सम्मान के प्रतीक के रुप में फूलों की माला का हर जगह स्थान रहा है। चाहे देवी-देवता हों या शादी व्याह में दूल्हे से लेकर बराती, सबको फूलों की माला पहना कर आदर व्यक्त किया जाता है। पुराने जमाने के राजा और आज के प्रजातांत्रिक राजाओं का भी सम्मान फूलों का हार पहना कर करना आम बात है। शायद ही ऐसा कोई मंच हो जहां राजनेता क्या छुटभैय्ये नेता विराजमान हों, फूलों के हार से उन्हें लादा जाना एक परंपरा की तरह है। पिछले दिनों भाजपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने अपनी नियुक्ति के बाद कहा था कि कार्यकर्ता उनके सम्मान में फूलों के हार लेकर न आएँ बल्कि उस धन को पार्टी कार्यालय में रखी पेटी में डाले। गडकरी की नजर में फूलों का हार पहनाना अपव्यय के सिवाय कुछ नहीं लेकिन फिर भी उनकी बात किसी ने मानी प्रतीत नहीं होता। क्योंकि इंदौर में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में जब उनके चयन पर राष्ट्रीय कार्यसमिति ने मुहर लगायी तब बड़े-बड़े भाजपाई नेताओं ने पुष्पहार से ही उनका स्वागत किया और गडकरी उसका विरोध नहीं कर पाए।
मायावती की माया का जहां तक प्रश्न है तो वह तो बेमिसाल है। उनके स्वागत सत्कार में जो न हो जाए, थोड़ा है। कांशीराम के जन्मदिन पर आयोजित विशाल रैली में मायावती को सम्मानित करने के लिए जिस माला का उपयोग किया गया, वह कहा जा रहा है कि हजार रुपए के नोटों से बनी माला थी। गिनती करने वालों ने गिनती भी कर ली कि माला में 1 करोड़ 1 लाख 11 हजार के नोट लगाए गए थे। हालांकि दूर से देखने वालों को तो लगा कि न जाने किन फूलों की माला बनायी गयी है लेकिन कैमरों ने तस्वीर खींच कर बता दिया कि फूल नहीं रिजर्व बैंक के नोटों से माला बनायी गयी है। मायावती के जन्मदिन पर कीमती उपहार देने की प्रथा तो रही है। इसके लिए चंदे के नाम पर जबरन वसूली की शिकायतें भी रही हैं लेकिन मायावती ने किसी बात की परवाह की ऐसा नहीं लगता। यदि परवाह होती तो सबकी नजरों में गडऩे के लिए हजार-हजार के नोटों की माला उन्हें लाखों की भीड़ के सामने नहीं पहनायी जाती।
राजनीति में एक से एक दिग्गज महानुभाव हुए हैं। बड़ी-बड़ी मालाओं का चलन दक्षिण भारत में ही सबसे पहले प्रारंभ हुआ लेकिन ये मालाएं फूलों की ही होती थी। कभी कभार कुछ नोट भी नत्थी किए जाते थे लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में सिर्फनोटों की ही माला किसी राजनेता को पहनायी जाएगी, यह सोच ही अकल्पनीय थी। तिरुपति तिरुमला के देवस्थान पर करोड़ों के गहने, जेवरात, नगद रकम चढ़ाने की खबरें तो आती रहती हैं। शिरडी के साईं बाबा की दानपेटी में भी करोड़ों चढ़ते हैं। ऐसा ही चढ़ावा कटरा की वैष्णो देवी पर भी चढ़ता है। आजकल के साधु संतों के अनुष्ठïन में भी करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है। राजनेता भी अपने और अपनी पार्टियों के लिए करोड़ों का चंदा इकट्ठा करते हैं लेकिन खुले आम किसी जीवित व्यक्ति को एक करोड़ से अधिक का हार पहनाने की तो यह पहली घटना है।
जिसकी कोई मिसाल न हो उसे ही बेमिसाल कहा जाता है। मायावती को उनके भक्तों के द्वारा 1 करोड़ 1 लाख 11 हजार के नोटों की माला पहनाना इसीलिए बेमिसाल है, क्योंकि इसकी कोई पहले मिसाल तो नहीं मिलती। बहुतों को यह अशोभनीय लग सकता है और सम्मान का भौंडा प्रदर्शन भी लगे तो आश्चर्य की बात नहीं लेकिन मायावती ने ऐसे लोगों की सोच की कभी परवाह की, ऐसा तो नहीं लगता। कभी मायावती तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार का नारा लगाया करती थी। सब सुनते थे लेकिन विरोध में कुछ कर तो सकते नहीं थे। फिर बहुजन समाज से सर्व समाज का समर्थन मायावती ने जुटा लिया और अकेले अपने दम पर उत्तरप्रदेश में बहुमत प्राप्त कर लिया। मुलायम सिंह, भाजपा, कांग्रेस जैसे दिग्गजों को धराशायी कर दिया। खुल कर ब्राम्हणों सहित सवर्णों को टिकट दिया और वे जीत कर भी आए। मायावती की जन्मदिन पार्टी में कमर मटका कर नाचते और बधाइयां देते बड़े-बड़े नेताओं को लोगों ने देखा।
समय तो ऐसा भी आया कि सोनिया गांधी स्वयं मायावती के निवास स्थान पर मायावती से समझौते की बात करने पहुंच गयी लेकिन मायावती ने समझौता नहीं किया। कल की रैली में ही महिला आरक्षण का विरोध करने की घोषणा मायावती ने की। मनमोहन सिंह की सरकार ने जब विश्वास मत प्राप्त करने के लिए लोकसभा में प्रस्ताव रखा तो मायावती ने विरोध किया और उनके साथ वामपंथी, भाजपा सभी खड़े थे। वामपंथियों को तो भविष्य की प्रधानमंत्री भी मायावती दिखायी पडऩे लगी थी। मायावती ने हजारों करोड़ रुपए खर्च कर लखनऊ में कांशीराम और अपना स्मारक ही बनाना प्रारंभ कर दिया। वह तो न्यायालय ने हस्तक्षेप न किया होता तो स्मारक अब तक बन चुका होता। जितना भी बन गया है, वह भी कम नहीं है। मुलायम सिंह भले ही कहते है कि उनकी सरकार बनी तो वे स्मारक को नष्ट कर देंगे लेकिन इसकी आशा तो नहीं दिखायी पड़ती।
दरअसल कहना अलग बात है और नष्ट करना अलग। क्योंकि स्मारक से मायावती ने दलितों के आत्म सम्मान को जोड़ दिया है। मायावती ने इन स्मारकों के बहाने दूर तक असर करने वाला खेल खेला है। अपनी पहले से पुख्ता जमीन को और पुख्ता कर लिया है। उप चुनाव में बसपा की जीत अपनी कहानी खुद कहती है। मायावती को एक करोड़ से अधिक नोटों का हार पहनाने पर जो लोग आलोचना कर रहे हैं, वे दरअसल मायावती का ही काम कर रहे हैं। इस तरह की बातों को लेकर उनकी जितनी आलोचना की जाएगी, उतनी ही उनकी पकड़ अपने मतदाताओं पर बढ़ेगी। फिर साहस से नायकत्व का जन्म होता है और मायावती का साहस एक बहुत बड़े वर्ग को उनकी तारीफ करने के लिए बाध्य करता है।
बरेली में विगत कई दिनों से कफ्र्यू लगा हुआ है लेकिन पुलिस और प्रशासन उससे निपट रहा है। मायावती ऐसी बातों की परवाह नहीं करती। वे कड़ी कार्यवाही करने पर विश्वास करती है और प्रशासन अच्छी तरह से जानता है कि मायावती के निर्देश, आदेश का क्या मतलब होता है। आलोचक आलोचना करते है कि मुख्यमंत्री के रुप में मायावती ने एक बार भी बरेली जाकर स्थिति से परिचित होने का प्रयास नहीं किया और उत्सव मना रही हैं। एक तरफ प्रदेश में दंगा हो रहा है और दूसरी तरफ मायावती एक करोड़ का हार पहन रही है। इसीलिए तो मायावती बेमिसाल है और उनके मुकाबले का दूसरा कोई नहीं हैं।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 16.03.2010
मंगलवार, 16 मार्च 2010
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