दरअसल गलत टिकट वितरण न किया जाता तो भाजपा चुनाव हारती नहीं। भाजपा के ही 5 बागी चुनाव निर्दलीय के रुप में जीते और अच्छे खासे वोटों के अंतर से जीते। ऐसा क्यों हुआ? क्यों जीतने वाले उम्मीदवारों के टिकट काटे गए और उन्हें जनता के दबाव में बागी होने के लिए बाध्य किया गया। अंतिम टिकट वितरण और घोषणा का अधिकार जिनके पास था, उसमें रमेश बैस भी थे। टिकट की घोषणा की और दिल्ली उड़ गए। जब टिकट बांटा था तो पार्टी प्रत्याशियों की जीत के लिए पसीना भी तो बहाना चाहिए था। अंतिम दिन मुख्यमंत्री के साथ रथ पर सवार होकर निकले तो किसके मुर्दाबाद के नारे लगे। जब टिकट बांटा था तो हार की नैतिक जिम्मेदारी भी लेना चाहिए। कमल विहार योजना के मत्थे हार का ठिकरा फोडऩे से सत्यता को छुपाया नहीं जा सकता। पूरी पार्टी में छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी जानता है कि हार के लिए जिम्मेदार कौन है?
सांसद होने से ही कुछ ऐसा नहीं हो जाता कि सरकार हर काम सांसद से पूछ कर करे। फिर कमल विहार योजना का खाका तो बहुत दिनों से खींचा जा रहा है। जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें 35 प्रतिशत विकसित भूखंड देने की बात है। आर्थिक रुप से नुकसान तो किसी का नहीं हो रहा है। राजधानी रायपुर में एक विकसित सर्वसुविधा संपन्न कॉलोनी बसे, इसमें ऐतराज की क्या बात है? विकास प्राधिकरण और गृह निर्माण मंडल निजी भवन निर्माताओं की तुलना में करीब आधी कीमत पर मकान देते हैं। फिर सरकार गरीबों का ध्यान नहीं रखती ऐसा कहां है? गरीबों के लिए तो सरकार ने मकान ही मकान बनाएं हैं और बना भी रही है। कुछ मकान या कॉलोनी मध्यम वर्ग के लिए भी सरकार बनाए तो इसमें आपत्ति कीक्या बात है?
स्वयं रमेश बैस ब्राम्हणपारा में रहते थे। वहीं रहते। रवि नगर कॉलोनी में रहने की क्या जरुरत थी? आखिर धन आया तो अच्छी कॉलोनी और अच्छे मकान में रहने की इच्छा भी जागृत हुई। जब रमेश बैस की इच्छा जागृत हुई तो शहर में बहुत से लोग हैं जो इन्हीं कॉलोनियों में रहना चाहते है। उनकी इच्छा को ध्यान में रख कर सरकारी एजेंसियां कुछ मकान बनाती है तो विरोध का क्या कारण है? ऐसे ही गरीबों की इतनी चिंता होती तो कुछ गरीबों के लिए करते भी दिखायी पड़ते। इस बार के लोकसभा चुनाव में गांवों से तो वह समर्थन नहीं मिला रमेश बैस को जो रायपुर शहर से मिला। यह समर्थन भी कोई रमेश बैस के कारण ही मिला हो, ऐसा भी नहीं, डॉ. रमन सिंह की लोकप्रिय जनहित कारी योजनाओं और शहर के भाजपा विधायकों के अथक प्रयासों के कारण मिला।
महिला आरक्षण विधेयक पारित हो गया तो हो सकता है कि रायपुर लोकसभा सीट महिला के कोटे में चली जाए। तब तो चुनाव रायपुर छोड़कर यदि लोकसभा में जाना है तो अन्य सीट से लडऩा पड़ेगा लेकिन क्या पार्टी अन्य सीट से टिकट देगी और वरिष्ठ मान कर दे भी दिया तो क्या जीत पाएंगे? न भी हुआ आरक्षण के तहत महिला सीट तो कांग्रेस के पास रमेश बैस का मुकाबला करने के लिए अब किरणमयी नायक दमदार प्रत्याशी है। नगर निगम चुनाव में जो बोया है उसे काटेगा कौन? स्वाभाविक है, रमेश बैस को ही काटना पड़ेगा। सभापति के चुनाव के लिए जब भाजपा के बागी पार्षदों से संपर्क किया गया तो उन्होंने भाजपा प्रत्याशी का समर्थन किया। क्योंकि संपर्क करने वालों को ये लोग अपनी टिकट काटने के मामले में दोषी नहीं समझते थे। ये अभी भी भाजपा से नाराज नहीं हैं लेकिन रमेश बैस से खुश है, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता।
बहुसंख्यक जनता डॉ. रमन सिंह के शासन से खुश है। कांग्रेस भी विरोध कर के कुछ प्राप्त नहीं कर सकी। उसे स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में सफलता भी मिली तो अपने कारण नहीं, भाजपा के उन वरिष्ठ लोगों के कारण जिनका अपनी वरिष्ठता को लेकर दिमाग सातवें आसमान पर है। आश्चर्य की बात तो यह है कि ये सब बातें भाजपा आलाकमान तक पहुंचती है या नहीं पहुंचती तो पहुंचानी चाहिए। कांग्रेस को नुकसान कांग्रेसियों के कारण पहुंचा और अब भाजपा को नुकसान भाजपाइयों के कारण पहुंच रहा है। पार्टी यदि ऐसे कालिदासों से सावधान नहीं रहती तो पार्टी को और नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही जब काटेंगे तो डाल के साथ खुद भी तो नीचे गिरेंगे।
रमेश बैस कह रहे हैं कि वे कोर कमेटी में इस मामले को उठाएंगे। उन्हें अवश्य उठाना चाहिए लेकिन फिर मीडिया से वे बात कर लोगों को क्या संदेश दे रहे हैं? अभी कल ही तो राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने कहा है कि किसी को कोई शिकायत है तो वह मीडिया से नहीं, उनसे सीधी बात करें। कम से कम यह बात लोकसभा में भाजपा के संसदीय दल के सचेतक को तो समझ में आना ही चाहिए। इस तरह से पार्टी के बड़े नेता ही जब बेलगाम हो जाएंगे तो फिर पार्टी के अनुशासन का क्या होगा? सरकार तो पार्टी की पैठ और साख बढ़ाने के लिए काम करें और वरिष्ठ नेता मिट्टी पलीद करने की कोशिश करें। वे छोटे कार्यकर्ताओं को क्या संदेश दे रहे हैं? आखिर छोटे कार्यकर्ता सीखते तो बड़े नेताओं से ही है।
डॉ. रमन सिंह के विषय में इंडिया टुडे लिखता है कि भाजपा के असंतुष्ट उन्हें कुर्सी से बेदखल करने में नाकामयाब रहे। यहां तक कि पिछले वर्ष हुए नगरीय निकाय के चुनावों में मिला पार्टी को झटका भी उनकी छवि को बिगाड़ नहीं सका। यह बात असंतुष्ट को खल रही है। वे फिर से बहाने खोज रहे हैं। वे समझते हैं कि राजनाथ सिंह के बाद नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनने से अब उनके लिए फिर अवसर है। कमल विहार तो बहाना है। दरअसल नजर कहीं और हैं और कुछ मिले न मिले दबाव की राजनीति के तहत निगम मंडलों में अपने समर्थकों के लिए पद हथियाए तो जा ही सकते हैं। खेल भी पुराना है और खिलाड़ी भी पुराने हैं लेकिन इस बार शायद दांव न चले। आलाकमान भी जानता है कि असल में रोग की जड़ क्या है ?
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 22.03.2010
आज रायपुर के समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई है, मेरे कुछ मुअक्किलों के जमीन इस कमल विहार से प्रभावित हो रहे हैं इस कारण से मैंनें इस समाचार में रूचि लिया. तीन - चार समाचार पत्र को पढनें के बावजूद बैस जी के विरोध का कोई ठोस कारण समझ में नहीं आया. खैर हमें इस संबंध में सीईओ कटारिया जी से मिलने का वक्त मिला है जब मिलेंगें तब इस पर टिप्पणी करेंगें.
जवाब देंहटाएंदो टूक बातों में सच को सामने लाने के लिए आदरणीय विष्णु सिन्हा जी का धन्यवाद. डाक्टर साहब आपको इस ब्लाग के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.