यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
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सोमवार, 15 मार्च 2010

छोटे राज्यों के विरोधियों को डॉ. रमन सिंह की चुनौती में यथार्थ से साक्षात्कार की चुनौती भी है

छोटे राज्य के क्या फायदे हैं? जब यह बात डॉ. रमन सिंह कहते हैं तो वे अपने अनुभव से कहते हैं। मध्यप्रदेश में जब तक छत्तीसगढ़ रहा तब तक वह विकास के सपने तो देखता था लेकिन सपनों को साकार होता, उसने नहीं देखा। छोटा समय नहीं 44 वर्ष से अधिक समय तक छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का अंग रहा लेकिन जगदलपुर और भोपाल का फासला मिट नहीं पाया। राजनैतिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ का पिछड़ा होना कांग्रेस की दृष्टि में लाभप्रद था और कांग्रेस ने इसे पूरी तरह से भुनाया भी। छत्तीसगढ़ का पिछड़ापन और नक्सली समस्या कांग्रेस का गढ़ बने रहने में किसी तरह की रुकावट नहीं था। छत्तीसगढ़ से होने वाली आय और छत्तीसगढ़ के कारण होने वाली आय मध्यप्रदेश के खाते में तो आती थी लेकिन उसका छत्तीसगढ़ में खर्च होना एक दु:स्वप्न की तरह था। छत्तीसगढ़ के इकलौते मेडिकल कॉलेज को ही मात्र 7 करोड़ रुपए देने से मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार ने इंकार कर दिया था।

भाजपा ने छत्तीसगढ़ राज्य बनाया और आज स्थिति यह है कि मात्र दस वर्ष में ही छत्तीसगढ़ का बजट 5 हजार करोड़ से 25 हजार करोड़ रुपए पहुंच गया। इससे भी बड़ी बात तो यह हुई कि सरकार और जनता के बीच की दूरी घटी। अब सरकार जनता की पकड़ से दूर नहीं भाग सकती। यदि उसने ऐसा प्रयास किया तो जनता उसे धूल चटा देगी। सरकार अब जनता की उपेक्षा कर चैन से नहीं बैठ सकती। परिणाम भी हुआ। आज नक्सल समस्या से लडऩे के लिए राज्य सरकार ने केंद्र को बाध्य कर दिया है। जिस समस्या का कोई हल कल तक दिखायी नहीं देता था, वह हल होता दिखायी दे रहा है। यह छोटे राज्य की बड़ी से बड़ी उपलब्धि है। जहां तक विकास का प्रश्न है तो अब छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार है और उसके पास अपना धन है। जिसे सिर्फ छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ में ही खर्च किया जाना है और खर्च किया जा रहा है। केंद्रीय योजनाओं का धन अब मध्यप्रदेश के कोटे से नहीं, सीधे छत्तीसगढ़ के कोटे से आता है। 44 वर्ष में 1 मेडिकल कॉलेज और 10 वर्ष में 4 मेडिकल कॉलेज। डेंटल कॉलेज एक भी नहीं था। अब हर बड़े शहर में है। ऐसा कोई जिला नहीं जहां इंजीनियरिंग कॉलेज न हो। शिक्षा विकास का माध्यम है और शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर जो विकास हो रहा है, वह छत्तीसगढ़ जैसा राज्य पृथक नहीं होता तो संभव ही नहीं होता।
विकास के लिए बिजली के बिना तो कुछ भी संभव नहीं। छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य हैं जहां सरप्लस बिजली है। केंद्र सरकार के विद्युत संयंत्र और भी लग रहे हैं तो कुछ राज्य सरकारें भी लगा रही है। छोटे-छोटे कारखाने विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछ गया है। लाखों की संख्या में शिक्षाकर्मी भर्ती किए गए हैं और गांव में स्कूल अध्यापन का काम कर रहे है। अपना उच्च न्यायालय है तो न्याय के लिए अब दूर जबलपुर की यात्रा करने की जरुरत नहीं है। देश के महानगरों से हवाई यात्रा के संबंध में जुड़े हैं तो फौज के विभिन्न विंग अपना कंट्नमेंट बनाने के लिए प्रयासरत हैं। केंद्र में कांग्रेस की सरकार हैं और प्रदेश में भाजपा की। फिर भी विकास के काम रुक नहीं रहे हैं। राजनीति अडंगा तो लगाती है लेकिन विलंब के बावजूद काम होते हैं। 


छोटा राज्य का क्या फायदा है, यह जानने के लिए जब डॉ. रमन सिंह विदर्भ के लोगों को छत्तीसगढ़ आकर देखने के लिए आमंत्रित करते हैं तो वे सत्य से साक्षात्कार का अवसर देते हैं। नागपुर में भाजपा के युवा जगार में डॉ. रमन सिंह का भाषण इस बात का द्योतक है कि छोटे राज्य विकास को गति देने में सक्षम है। कांग्रेस, शिवसेना भले ही विदर्भ को अलग राज्य बनने देना नहीं चाहते लेकिन असलियत तो यही है कि विदर्भ के लोगों को उनका वाजिब हक बिना पृथक राज्य बने नहीं मिल सकता। तेलंगाना के मामले में तो समझौता कर कांग्रेस ने आंध्र का चुनाव लड़ा था लेकिन कांग्रेस वादा निभाने में सफल नहीं हुई। कांग्रेस की चलती तो छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड भी नहीं बनता। हालांकि विदर्भ और तेलंगाना की पृथकता का आंदोलन पुराना है लेकिन विधानसभा से सहमति न मिलने और बड़े राज्य पर शासन का सुख भोगने की मनोकामना ने इन राज्यों को नहीं बनने दिया। फिर इस मामले में कांग्रेस का अनुभव सही नहीं रहा। आज छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड कहीं भी तो कांग्रेस की सरकार नहीं है और न ही कांग्रेसी सरकार बनने के अवसर दिखायी पड़ते। यहां तक कि जिन राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार से अलग होकर ये छोटे राज्य बने, वहां भी कांग्रेस सत्ता में आने की स्थिति में नहीं है। 


मांग तो अभी उत्तरप्रदेश के और छोटे टुकड़े करने की हो रही है और उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती इसका समर्थन भी कर रही है लेकिन कांग्रेस अच्छी तरह से जानती है कि छोटे राज्य बनाने की तरफ उसने कदम उठाए तो उसके हाथ कुछ लगने वाला नहीं है। विदर्भ तेलंगाना का वह इसीलिए समर्थन नहीं करती। उसे डर हैं कि आंध्र और महाराष्ट से भी उसकी सत्ता न चली जाए। हिमाचल, हरियाणा, पंजाब को भी अलग  राज्य बनाने का अनुभव कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं रहा। सबसे बड़ा खौफ तो यही है कि छोटे राज्यों में सत्ता स्थानीय राजनैतिक पार्टियों के हाथ में चली जाती है। तब केंद्र में एकछत्र हुकुमत करने का उसका स्वप्न धरा का धरा रह जाता है। जबकि इस तरह का भय भाजपा को राष्ट्रीय  पार्टी होने के बावजूद नहीं सताता। जब जनहित से बड़ा स्वयं का हित हो जाए तो सोच का दायरा भी तो सिकुड़ जाता है।
छोटा राज्य नया नेतृत्व उभारता है। नए अवसर पैदा करता है। सरकार और जनता के बीच की दूरी को कम करता है। स्थानीय समस्याओं से अच्छी तरह से परिचित लोगों को जनता के बीच से उभरने का मौका देता है। स्वयं डॉ. रमन सिंह इसके उदाहरण हैं। जनता की तकलीफों को समझ कर उन्होंने जनहित में जो योजनाएं बनायी और लागू किया, उसने उन्हें जन-जन का प्रिय बना दिया। आज मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में कई बार न केवल दिखायी पड़ते हैं बल्कि लोगों को उनसे साक्षात्कार का अवसर भी मिलता है। बड़ा राज्य होने पर 5 वर्ष में एक बार भी मुख्यमंत्री का दर्शन दुर्लभ होता था और राजधानी और आम आदमी के बीच जो दूरी होती थी  उसे कम करना संभव नहीं था। फिर बड़े प्रदेश में मुख्यमंत्री जिस क्षेत्र का होता है, राज्य शासन का बजट उसी क्षेत्र में अधिकाश खर्च होता है। ऐसे में असंतुलित विकास तो सामान्य बात की तरह हो जाती है। छोटे प्रदेश में विकास का असंतुलन हो तो तुरंत ध्यानाकर्षित करती है और काम करना पड़ता है। 


इसलिए प्रशासनिक दृष्टि से भी छोटा राज्य ही अच्छा है। जनहित असली उद्देश्य हो तो फिर वे सब कारण जो छोटे राज्य के हित में बाधा बनते है, फिजूल हो जाते है लेकिन सत्ता ही असली उद्देश्य हो तो क्षेत्रों का पिछड़ापन भी राजनैतिक पार्टियों को लाभप्रद दिखायी पड़ता है। भाषावार प्रांत बना कर एक प्रयोग किया जा चुका और उसके अनुभव अच्छे तो नहीं कहे जा सकते। जितने भी छोटे राज्य बने उन्होंने विकास की नई गाथा लिखी। हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड सभी इसके अनुपम उदाहरण है। डॉ. रमन सिंह और भाजपा छोटे राज्यों का समर्थन करते है तो उनका समर्थन यथार्थ के धरातल भी उचित ही कहा जाएगा।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 15.03.2010 

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