यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
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शुक्रवार, 5 मार्च 2010

राजनीति कैसे-कैसे जवाब तलाशती है, महंगाई का जवाब है महिला आरक्षण

कोई मरे या जिए, इससे परे मनमोहन सिंह को विकास दर 8.5 प्रतिशत चाहिए और इसके लिए पेट्रोल डीजल की कीमत बढऩा जरुरी है। जनता के बीच से चुनाव जीत कर आने वाले शख्स में और राज्यसभा के माध्यम से देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठने वाले शख्स की सोच में अंतर तो स्वाभाविक है लेकिन जब शरद पवार और प्रणव मुखर्जी जैसे सरकार के भागीदार भी उनका समर्थन करे तो बात सोनिया गांधी को भी माननी पड़ती है। सोनिया गांधी ने तो स्पष्ट कह दिया है कि कीमतें नहीं घटेंगी। ममता बेनर्जी कुछ कसमसा रही है लेकिन वे भी सरकार छोड़कर जनता के साथ खड़ी होंगी, ऐसा तो दिखायी नहीं पड़ता। वैसे भी अमेरिका से परमाणु समझौते के मुद्दे पर विश्वास मत प्राप्त कर वामपंथियों को अंगूठा दिखाने वाले मनमोहन सिंह को जब लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला तो स्वाभाविक रुप से अहंकार में वृद्धि तो होनी ही थी। अब जनता के सूचना के अधिकार कानून पर भी पुनर्विचार करने की उनकी मंशा स्पष्ट है। जबकि सोनिया गांधी इसके पक्ष में नहीं है।

सूचना का अधिकार ऐसा कानून है जनता के पास जिससे अच्छे अच्छों पर लगाम लगायी जा सकती है और सारी जानकारी बाहर सार्वजनिक हो सकती है। मनमोहन सिंह इसमें कटौती करना चाहते हैं। बहाना सुप्रीम कोर्र्ट के मुख्य न्यायाधीश का है। फिर सूचना के अधिकार में कटौती करने का मतलब स्वयं को भी सुरक्षित कर लेना तो है, ही। सोनिया गांधी ने अपने बदले जिस मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था, अब वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं हैं। अब बहुत कछ बदल गया है। अब संप्रग की एकमात्र सुप्रीमो सोनिया गांधी को ही यह समझाने का समय आ गया है कि पार्टी अध्यक्ष से बड़ा प्रधानमंत्री होता है। असली सत्ता उसी के हाथ में होती है। वह हर मामले में अति बुद्धिमान है, अपनी अध्यक्ष से। प्रधानमंत्री के रुप में वह सब कुछ तो सोनिया गांधी को बता नहीं सकता। 


कल तक सोनिया गांधी मनमोहन सिंह का उपयोग कर रही थीं। कहा भी जाता था और विपक्ष का आरोप भी था कि भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं लेकिन असली सत्ता सोनिया गांधी के पास है। कोई कांग्रेसी मनमोहन सिंह के बदले राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की बात भी कहता था तो उसे दुत्कार दिया जाता था। जिसने ऐसा कहा उसे मनमोहन सिंह ने दोबारा मंत्रिमंडल में लिया ही नहीं। सोनिया अपने वफादार का अपमान देखती रही लेकिन कुछ कर न सकी। अब तो बात पूरी तरह से बदल गयी है और सोनिया गांधी की हां में हां मिलाना जिनका कभी एकमात्र कर्तव्य था, अब वे विचारों की भिन्नता ही प्रगट नहीं कर रहे हैं बल्कि सरकार को अपने विचारों से चलाने की पूरी जुगत भी कर रहे हैंं। सोनिया गांधी को भी समझ में तो आ गया है कि सिवाय मनमोहन सिंह की हां में हां मिलाना ही फिलहाल वक्त का तकाजा है। 


महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष की एकता को तोडऩे के लिए 10 वर्ष पुराना महिला आरक्षण विधेयक फिर से जीवित किया जा  रहा है। महिला नेत्रियां तो इतनी आशान्वित है कि 8 मार्च महिला दिवस पर यह विधेयक राज्यसभा से पारित हो ही जाएगा। मतलब राजनीति की तिकड़म भी अब मनमोहन सिंह अच्छी तरह से समझ गए हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि महिला आरक्षण पर भाजपा और वामपंथी समर्थन देने के सिवाय कुछ कर नहीं सकते। लालू, मुलायम, शरद यादवों का विरोध उनको अलग-थलग कर देगा। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने तो स्पष्ट कर दिया है कि वैधानिक संस्थाओं में पिछड़ों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। इसलिए महिला आरक्षण में भी उनके लिए अलग से व्यवस्था नहीं की जा सकती।



 महंगाई एक तरफ धरी रह जाएगी और महिला आरक्षण का विधेयक उस पर भारी पडऩे वाला है। लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधानपरिषद में एक तिहाई महिलाएं होंगी। सारा नजारा ही बदल जाएगा। महिला आरक्षण का यह अर्थ नहीं होगा कि महिलाएं अनारक्षित सीटों से नहीं लड़ सकेंगी। आरक्षित वर्ग को यह सुविधा तो आज भी सुलभ है कि वे चाहे तो आरक्षित सीट से लड़ें और चाहें तो अनारक्षित सीट से। 

स्वाभाविक है कि महिला आरक्षण का विधेयक पारित हो गया तो श्रेय के हकदार मनमोहन सिंह भी होंगे, सोनिया गांधी के साथ। भले ही समर्थन चंद पार्टियों के सभी दलों ने दिया हो। पिछली लोकसभा में लालू सरकार में थे तो विधेयक पारित करना मुमकिन नहीं था। क्योंकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देने के मामले में उनका पूरा जोर था लेकिन आज न तो सरकार चलाने के लिए उनकी जरुरत है और न ही महिला आरक्षण विधेयक उनके विरोध के कारण पारित होने से रुक सकता है। मुलायम, शरद यादव की तो कोई जरुरत ही नहीं है। विधेयक पारित होने के लिए सदन के दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरुरत है। स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि विधेयक पारित होने की स्थिति में है। खुदा न खास्ता पारित न हुआ तो भी मनमोहन सिंह और सोनिया गाधी यह संदेश तो महिलाओं तक पहुंचाने में सफल हो ही जाएंगे कि वे तो महिलाओं का हित चाहते हैं लेकिन विपक्ष के  दल नहीं चाहते तो वे क्या करें? भविष्य में जनता उन्हें पूरा सहयोग दे तो वे अवश्य विधेयक पारित करवाएंगे । विधेयक पारित हो गया तो उनके लिए बल्ले-बल्ले तो है, ही।


मुंबई हमले के बाद मनमोहन सिंह ने कहा था कि जब तक अपराधियों पर पाकिस्तान कार्यवाही नहीं करता तब तक उससे बात किसी तरह की नहीं की जाएगी लेकिन सब देख रहे हैं कि बातचीत हो रही है। प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह स्वयं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बातचीत कर चुके है। विदेश सचिव बातचीत कर रहे हैं। पाकिस्तान भारत को नीचा दिखाने में कहीं भी पीछे नहीं है। आतंकवादी देश में आ रहे हैं। अब अमेरिका के राष्ट्रपति  के बुलाने पर दोनों देश के हुक्मरान अमेरिका जा रहे हैं। अमेरिका हर तरह से पाकिस्तान की मदद कर रहा है। धन से भी, शस्त्रों से भी। बहाना आतंकवादियों से लड़ाई है लेकिन उपयोग भारत के ही विरुद्ध होगा, यह भी सभी को अच्छी तरह से पता है। 


मनमोहन सिंह लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी को झिड़कते है। लाल किले से सैनिकों के लिए किए गए वायदे को पूरा करने की बात करते हैं लेकिन अवकाश प्राप्त सैनिकों का संगठन ही कह रहा है कि वायदा पूरा नहीं हुआ। मनमोहन सिंह 6 वर्ष के प्रधानमंत्रित्व काल में इतने सशक्त हो ही गए हैं कि सोनिया गांधी चाहें भी तो उन्हें हटा नहीं सकती। जिसकी तारीफ में इतने कसीदे काढ़े गए हैं, उसे हटाना इतना आसान नहीं है। जिस व्यक्ति को राजनीति से परे समझ कर पद पर बिठाया गया, जब वही ताकतवर हो गया तो किसी राजनीतिज्ञ को न बिठाने का जो भय था, वह तो दूर नहीं हुआ। आज लोकप्रियता के सर्वेक्षणों में ही सोनिया गांधी को पीछे छोड़ दिया है, मनमोहन सिंह ने। बात तो बदल रही है लेकिन सतह से परिधि पर आने में वक्त तो लगेगा।


- विष्णु सिन्हा
दिनांक 05.03.2010

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