छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू का नक्सलियों से संबंध यह आसानी से हजम होने वाली बात नहीं है। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा और पूर्व कांग्रेसी मंत्री भूपेश बघेल द्वारा एक किताब के आधार पर यह कहना कि चंद्रशेखर साहू का नक्सलियों से संबंध है और सरकार अपने मंत्री को बर्खास्त करे, एक राजनैतिक आरोप से ज्यादा प्रतीत नहीं होता। ऐसे तो उस किताब का आमुख स्व. श्री हरि ठाकुर ने लिखा है तो क्या कांग्रेसी उन्हें भी नक्सली समर्थक बताएंगे? छत्तीसगढ़ राज्य आज अस्तित्व में हैं तो जिन गिने चुने लोगों को इसका श्रेय दिया जा सकता है, उनमें से प्रमुख हरि ठाकुर हैं। अकाल मुक्त छत्तीसगढ़ किताब में एक लेख उस शख्स का है जिसे भाजपा सरकार ने नक्सली समर्थक पाया तो आज वह जेल में है। जब तक उसे पकड़ा नहीं गया था तब तक कितनों को मालूम था कि प्रफुल्ल झा नक्सली समर्थक हैं। तब तो चंद्रशेखर साहू ही नहीं, हर वह शख्स जो कभी भी प्रफुल्ल झा के संपर्र्कमें आया, नक्सली समर्थक हो गया।
चंद्रशेखर साहू का जो दोष गिनाया जा रहा है कि प्रफुल्ल झा के लेख को किताब के द्वितीय संस्करण में चंद्रशेखर साहू के नाम से प्रकाशित किया गया है। यह तथ्य सही है लेकिन प्रफुल्ल झा इस मामले में आपत्ति कर सकते हैं कि उनका लेख अपने नाम से क्यों चंद्रशेखर साहू ने छापा? दूसरों को तो आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। फिर चंद्रशेखर साहू या उनके किसी सहयोगी से ऐसी गलती हो ही गयी तो मूल बात तो यही है कि लेख प्रफुल्ल झा का है। लेख में जोगी शासन के समय का वर्णन है कि किसान क्यों पलायन को बाध्य होते हैं? सरकार की नीति दोषी है और इसी कारण नक्सलियों को फलने-पूलने का मौका मिलता है। कहीं से भी साबित नहीं होता कि चंद्रशेखर साहू का नक्सलियों से दूर-दराज का भी कोई संबंध है।
चंद्रशेखर साहू ने तो आरोप लगने के बाद स्पष्ट कर दिया है कि आरोप साबित हो गए तो छत्तीसगढ़ ही छोड़ देंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के इशारे पर भाजपा और उनको बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। चंद्रशेखर साहू ने स्वीकार किया है कि वर्ष 2001 में प्रकाशित किताब का संपादन प्रफुल झा ने प्रोफेशनल तरीके से किया था। वर्ष 2008 में प्रकाशित किताब में टंकन त्रुटि हुई है जिस पर सार्वजनिक रुप से मैं खेद व्यक्त करता हूं। यह राजनैतिक बदला लेने की पराकाष्ठा है और इसे बेनकाब करने के लिए मैं मानहानि का मुकदमा दायर करुंगा। चंद्रशेखर साहू एक स्वच्छ चरित्र के राजनेता रहे है। जब 1984 में इंदिरा लहर थी कांग्रेस की तब वे अभनपुर से भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे। महासमुंद से लोकसभा के सदस्य भी वे रहे और पृथक छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन में भी उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
पिछला चुनाव वे बहुत कम मतों से हार गए थे लेकिन उनकी सेवाओं और निष्ठा को मद्देनजर रखते हुए डॉ. रमन सिंह ने उन्हें लोक सेवा आयोग का सदस्य मनोनीत किया था। जब चंद्रशेखर साहू ने लोक सेवा आयोग में अनियमितताएं देखी और उन्हें दूर करने के उनके बार-बार के प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिली तो उन्होंने लोक सेवा आयोग की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। आज उनकी बढ़ती लोकप्रियता से घबराहट होना स्वाभाविक है। उन्होंने वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू को चुनाव में हराया। उन्होंने अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया तो वे फिर से चुनाव जीत कर आ सकते हैं। यह बात किसी को तकलीफ पहुंचाती हो तो आश्चर्य की बात नहीं। फिर पिछड़े वर्ग के बहुसंख्यक साहू समाज का प्रतिनिधित्व वे मंत्रिमंडल में करते हैं। साहू समाज भाजपा का प्रबल समर्थक है। आज छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार हैं तो उसका एक बड़ा कारण साहू समाज का भाजपा को समर्थन भी है। साहू समाज के वोट को अपने पक्ष में करने के लिए ही कांग्रेस ने धनेन्द्र साहू को पार्टी अध्यक्ष बनाया लेकिन सफलता नहीं मिली। उल्टे धनेन्द्र साहू ही चुनाव चंद्रशेखर साहू से हार गए।
ताराचंद साहू भी इसी दम पर कि साहू समाज उनके साथ है, भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। कांग्रेस यह बात अच्छी तरह से जानती है कि जब तक साहू समाज भाजपा से नाराज नहीं होता तब तक भाजपा को सत्ता से बेदखल करना संभव नहीं है। चंद्रशेखर साहू इसीलिए टारगेट किए गए है। कांग्रेस की देन नक्सली समस्या से जिस तरह से डॉ. रमन सिंह जूझ रहे हैं और सफलता के झंड़े गाड़ रहे हैं, उससे भी कांग्रेस को बेचैनी है। नक्सल समस्या से मुक्त हो गया छत्तीसगढ़ तो डॉ. रमन सिंह और भाजपा को श्रेय मिलेगा। फिर आदिवासी क्षेत्रों में विकास की गंगा बह गयी तो अभी ही आदिवासी भाजपा के पक्ष में है, फिर उन्हें कांग्रेस के पाले में लाना असंभव की तरह हो जाएगा। इसलिए कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में सरकार बनाना है तो गैर आदिवासी क्षेत्रों में ही अपने को केंद्रित करना पड़ेगा।
और इसके लिए जरुरी है कि साहू समाज भाजपा से नाराज हो जाए। नक्सली संपर्क के बहाने ऐसा हमला करो कि चंद्रशेखर साहू की छबि खराब हो। सरकार फिर भी मंत्रिमंडल से नहीं निकालती तो डॉ. रमन सिंह पर ही हमला करो कि नक्सलियों से लडऩे का वे ढोंग करते है। क्योंकि एक नक्सली समर्थक ही उनके मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहा है। इस दुष्प्रचार को आदिवासियों तक भी पहुंचाया जा सकता है। महंगाई जैसे मुद्दे का तो कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है। प्रदेश सरकार को दोषी ठहरा कर वह जनता को बरगलाने में सफल नहीं हो सकी। तब वह करे, क्या? ऐसे ही चरित्र हनन के मुद्दे तलाश करे जिसमें एक निर्दोष ठेठ छत्तीसगढ़ी को नक्सली समर्थक सिद्ध कर अथवा उल्लू सीधा किया जाए।
चंद्रशेखर साहू वह व्यक्ति हैं जिनका राजनीति में प्रवेश ही छत्तीसगढ़ के मुद्दे को लेकर हुआ। उन्होंने स्वयं कहा है कि पवन दीवान से प्रभावित होकर वे राजनीति में आए। मतलब पवन नहीं यह आंधी है छत्तीसगढ़ का गांधी हैं। जब पवन दीवान कांग्रेस में चले गए तब चंद्रशेखर भाजपा में आ गए। कोई भी चतुर चालाक होशियार आदमी राजनीति सत्ता के लिए करता तो वह भाजपा में नहीं जाता। क्योंकि दूर-दूर तक सत्ता की कोई आशा नहीं दिखायी देती थी, उस समय। फिर भी जब सर्वत्र इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस जीत रही थी तब भाजपा की टिकट पर जीत कर चंद्रशेखर साहू विधायक बन कर भोपाल पहुंच गए। इसका मतलब यही है कि वे जमीन से जुड़े नेता है और हार जीत की परवाह करने वाले नेता नहीं है। किसान का बेटा आज प्रदेश का कृषि मंत्री है तब बहुतों को बर्दाश्त नहीं हो रहा होगा। अस्वाभाविक कुछ नहीं है लेकिन किसी भी तरह की जांच हो, चंद्रशेखर साहू साफ सुथरे ही निकलेंगे, इसकी उम्मीद ही की जाती है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 04.03.2010
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शुक्रवार, 5 मार्च 2010
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