यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

पुरुष कुतर्कों से महिलाओं को आगे बढऩे से रोकने का कितना भी प्रयास करे, वह रोक नहीं पाएंगे

हिंदू नव वर्ष के प्रथम दिन नीतिन गडकरी ने अपनी कार्यकारिणी की घोषणा कर दी। छत्तीसगढ़ से दो महिलाएं उनकी टीम में है । करुणा शुक्ला उपाध्यक्ष और सरोज पांडे सचिव। ये पुरानी टीम में भी थी। गडकरी की टीम में महिलाओं को 30 प्रतिशत से अधिक स्थान मिला है। इससे महिलाओं के विषय में पार्टी की सोच एकदम स्पष्ट दिखायी देती है। फिर भी असंतोष तो है। कहा जा रहा है कि हर वर्ग की महिला का प्रतिनिधित्व नहीं है। दलित और आदिवासी महिलाओं की कमी टीम में खलने वाली है। छत्तीसगढ़ से ली गयी दोनों महिलाएं एक ही जाति से ताल्लुक रखती है। वैसे भाजपा की और खास कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सोच जात-पात को नहीं मानती। उनकी सोच सभी के प्रति एक समान है। संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने तो जाति प्रथा समाप्त करने के लिए ही कहा है। कभी जाति का संबंध कर्म से था लेकिन अब तो सभी लोग सभी काम करने लगे, इसलिए जाति का अर्थ ही क्या रह जाता है? उत्तरप्रदेश में तो ब्राम्हण जाति के लोग स्थानीय संस्थाओं में सफाई कर्मचारी की हैसियत से भी काम करते हैं।

प्रश्र राजनीति के लिए जातियों का भले ही हो। क्योंकि जाति में भारतीयों को विभाजित कर ही कुछ लोग अपना राजनैतिक भविष्य देखते हैं। इसीलिए महिला आरक्षण का भी वे लोग विरोध करते हैं। उनका कहना स्पष्ट है कि महिला आरक्षण में जातियों का भी आरक्षण होना चाहिए। जिससे पिछड़ी जाति की महिलाएं भी राजनाति में आगे बढ़ सकें। वे महिला आरक्षण का यह अर्थ देखते है कि इससे लाभ सिर्फ पढ़ी लिखी सवर्ण महिलाओं को ही होगा और इस तरह से सवर्ण लोगों से सत्ता को मुक्त कराना कठिन होगा। यह बात ध्यान में नहीं रखी जाती कि मुख्यत: महिलाएं ही पूरी तरह से उपेक्षित हैं। अभी ही लोकसभा में सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाएं चुन कर आयी हैं और यह 63 वर्ष के स्वतंत्र भारत का इतिहास है। पुरुषों को बराबरी की टक्कर देकर महिलाएं इतना ही अर्जित कर सकी है।

पुरुष प्रधान समाज में भी आज कांग्रेस की अध्यक्ष और संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी है तो लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज है। देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती हैं। पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के वर्चस्व को भी एक महिला ममता बेनर्जी ने तोड़ा है। यह सब अर्जित करने वाली महिलाओं ने पुरुषों से बड़ी प्रतिस्पर्धा से ही उच्च पदों को हासिल किया है। महिलाएं हर क्षेत्र में उपलब्धियों के झंडे गाड़ रही है। पिछले दिनों उच्च न्यायालय ने महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन देने के आदेश दिए है। पहली भारतीय महिला कल्पना चावला ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी अपनी योग्यता प्रदर्शित की है। महिलाओं का आगे बढऩा बहुत से पुरुषों को नागवार लग रहा है और वे अच्छी तरह से समझते हैं कि महिला आरक्षण हो गया तो उनके सत्ता सुख का रास्ता बंद हो जाएगा।

लेकिन आज के युग में महिलाओं को आगे बढऩे से रोकना क्या आसान है? जब पुरुष प्रधान समाज में उन्होंने संघर्ष कर अपना स्थान बनाया तब आरक्षण न भी मिला तो भी वे रुकने वाली नहीं हैं। इस देश की महिलाओं ने तो स्वतंत्रता में भी अहम भूमिका निभायी है। तब जब शिक्षा का पूरी तरह से अभाव था। आज भी प्रधानमंत्री की सूची पर जब दृष्टि डाली जाती है तो इंदिरा गांधी के मुकाबले में कौन ठहरता है? जब पुरुषों का पूरी तरह से कांग्रेस पर वर्चस्व था तब पार्टी से निकाले जाने के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी खड़ी की और एक बार नहीं दो बार। जनता ने उनको भरपूर समर्थन दिया। जनता आपातकाल के कारण उनसे नाराज भी हुई तो शीघ्र ही मात्र ढाई वर्ष के अंतराल के बाद सत्ता के लिए उन्हें योग्य समझा।

आज उनकी बहू सोनिया गांधी के ही इशारे पर ही सरकार चलती है। इटली में जन्मी महिला ने भारतीय जनता का विश्वास जीत लिया। जो लोग सोनिया गांधी के विदेशी मूल का होने के कारण उनका विरोध करते थे, जनता ने उनके बदले सोनिया को स्वीकार किया। विरोध करने वाले आज सोनिया गांधी की नाराजगी का अर्थ समझते हैं। राज्यसभा से महिला आरक्षण बिल का पास होना सोनिया गांधी की ही दृढ़ इच्छा शक्ति का परिणाम है। इसी से समझ में आ जाना चाहिए कि महिला यदि किसी बात को ठान लेती है तो उसे वह करने से कोई रोक नहीं सकता। वह उपलब्धि और त्याग दोनों का उदाहरण है। सोनिया गांधी के लिए प्रधानमंत्री बनने का अवसर स्पष्ट था लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बनाया। यह भी एक महिला ही कर सकती है। घर की चहारदीवारी तोड़ कर जो महिला देश के लिए लडऩे के लिए फौज मे पहुंच गयी, उसकी शक्ति की कथाएं तो हमारे धर्मग्रंथों में भी भरी पड़ी हैं। शक्ति की देवी दुर्गा की उपासना का पर्व नवरात्रि चल रहा है। असुरों के संहार के लिए दुर्गा माता की ही उपासना की जाती है। बंगलादेश का युद्ध जीतने पर भाजपा के नेता अटल बिहारी बाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा की ही उपमा दी थी।

लोकसभा में ही देखें तो वयोवृद्ध भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी सुषमा स्वराज के सामने फीके लगते है। भाजपा ने स्त्री शक्ति को पहचाना है और उसे आगे बढ़ाना संगठन के माध्यम से प्रारंभ किया है। हेमामालिनी, स्मृति ईरानी, सरोज पांडे, वसुंधरा राजे सिंधिया जैसी नेताओं में जनता का विश्वास अर्जित करने की शक्ति है। कालचक्र का चक्का आगे घूम रहा है। उसे उल्टा नहीं घुमाया जा सकता। कल ही भिलाई के महर्षि विद्या मंदिर के प्राचार्य को लात जूते खाने पड़े। क्योंकि उसने छात्राओं के साथ अश्लील बातें की। अब पुरानी छात्राएं नहीं है। जो शर्म हया के कारण सब कुछ बर्दाश्त कर लें। छात्राओं ने प्राचार्य की बातें अपने मोबाइल में रिकार्ड कर ली और अपने पालकों को बतायी। पालक स्कूल पहुंच गए और फिर प्राचार्य को पीट-पीट कर पुलिस के हवाले कर दिया। छात्राओं की बुद्धिमता और जागरुकता की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है।
वक्त बदल गया है। लड़कियां आगे आ रही हैं। आरक्षण मिला तो वे पुरुषों की बाढ़ को तोड़ देंगी। पुरुषों ने अपनी तरफ से रोकने का पूरा प्रयास किया।न भी मिला तब भी वह रुकने वाली नहीं है। ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां भारतीय लड़कियां, महिलाएं अपने जौहर नहीं दिखा रही है। राजनीति के क्षेत्र मे भी उन्हें अवसरों की जरुरत है। सीधे-सीधे अवसर न मिला तो वे झपट लेंगी। बहुत दिनों तक पुरुषों की दादागिरी नहीं चलने वाली है। महिला आरक्षण को कुतर्कों से जो रोकने की कोशिश कर रहे हैं, वे रोक तो नहीं पाएंगे।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 19.03.2010

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