इन्हीं के वोटों से सरकार बनती है। ये ही अपनी कमायी में से टैक्स चुकाते हैं तो सरकार आर्थिक विकास करती है। सरकार इन्हीं की भलाई के लिए विभिन्न योजनाएं बनाती हैं और उसे आम जनता तक पहुंचाने का दायित्व शासकीय अधिकारियों, कर्मचारियों का होता है। ये अपने कर्तव्य का निर्वाह सही ढंग से कर रहे हैं या नहीं, इसकी देखरेख का काम जनता के चुने हुए नुमाइंदों का है। गांव-गांव भटकेंगे तभी पता चलेगा कि सरकार हवा में तैर रही है या उसका जमीन पर भी कोई असर है। पंचायती राज संस्थाओं के 1 लाख 52 हजार प्रतिनिधि जब गांव-गांव में अपनी समस्याओं से सरकार को परिचित कराएंगे तभी सरकार उचित कदम उठाएगी। इस बार तो यह भी देखा जाएगा कि पिछली बार जो समस्याएं सामने आयी थी, उनका निपटारा हुआ या नहीं। वाजिब कारणों के बिना यदि सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों का पालन नहीं हुआ तो जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने के लिए भी सरकार को तैयार रहना होगा।
ग्राम सुराज अभियान एक वार्षिक कर्मकांड ही बन कर न रह जाए। इस विषय में ध्यान देने की सबसे ज्यादा जरुरत है। मुख्यमंत्री अकेले तो सभी गांवों एवं हर आदमी से मिल नहीं सकते। इसलिए प्रशासन सिर्फ मुख्यमंत्री के किए वायदों एवं निर्देशों तक ही सीमित न रहे। मंत्री भी जो निर्देश देते हैं, उनका पालन होना चाहिए। इसलिए अच्छा तो यही है कि ग्राम सुराज अभियान के तहत मिली समस्त शिकायतों के निपटारे की मॉनिटरिंग की जाए। कप्म्यूटर युग में यह कठिन काम भी नहीं है। जब देश के सारे नागरिकों का रजिस्टर बनाया जा सकता है तब शिकायतों की भी जांच की जा सकती है कि उनका निपटारा हुआ या नहीं। कांग्रेस के समय भी एक योजना चलती थी कि आपकी सरकार आपके द्वार लेकिन इसका जो परिणाम आना चाहिए था, वह नहीं आया। उस समय तो कम्यूटर की ऐसी सेवाएं उपलब्ध नहीं थी जैसी आज उपलब्ध है। इसलिए आज काम ज्यादा आसान है। यह स्वाभाविक है कि जिन्हें वास्तव में समस्या का हल करना है, वे ऐसी किसी व्यवस्था को सहजता से स्वीकार नहीं करते। क्योंकि कोई नहीं चाहता कि उसके काम के विषय में किसी के पास पकड़ हो।
सूचना के अधिकार के तहत जो कसबल ढीले हुए हैं और जानकारी देने में भी जो अडंगा लगाया जाता है, विभिन्न कारण बता कर, वह प्रमाण है कि लोग अपनी गल्तियों को छुपाना चाहते हैं लेकिन इस कानून के कारण अभी पर्याप्त राजनैतिक जागरुकता न होने के बावजूद जो जागरुक लोग जानकारी प्राप्त कर रहे है, उससे एक बेचैनी और घबराहट तो है। ग्राम सुराज अभियान में भी शिकायतकर्ता को तुरंत शिकायत की रसीद देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। जिससे एक तय समय सीमा में वह पूछताछ कर सके कि उसकी शिकायत का क्या हुआ? ग्राम सुराज अभियान में तपती धूप में विचरने का लाभ सरकार को तभी मिलेगा जब वास्तव में समस्याएं निपटा कर नागरिकों को संतुष्ट किया जाएगा। जनता यह तो समझ रही है कि हमारे मुख्यमंत्री समस्या का हल करना चाहते हैं लेकिन समस्या हल नहीं होती तो दोष भले ही सरकारी कर्मचारियों का हो लेकिन छवि तो मुख्यमंत्री की खराब होती है कि मुख्यमंत्री काम कराने में सक्षम नहीं हैं। कर्मचारी उनकी नहीं सुनते। नहीं तो एक आम आदमी की भावना तो यही होती है कि उसकी शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुंच गयी तो अब हल होने में कुछ समय भले ही लगे लेकिन समस्या का निराकरण अवश्य होगा।
लेकिन समय व्यतीत होता जाता है और कोई समस्या के हल होने के आसार नहीं दिखायी देते तो आदमी के मन में कैसे भाव उत्पन्न होंगे, यह समझना कठिन नहीं है। अधिकारी से शिकायत की, कुछ नहीं हुआ। मंत्री से शिकायत की, कुछ नहीं हुआ। अब मुख्यमंत्री से भी शिकायत की कुछ नहीं हुआ तो फिर आदमी जाए, कहां? फिर या तो वह विपक्ष के पास जाए, अकेला आदमी तो आंदोलन भी नहीं कर सकता, हर आदमी की जेब में इतनी रकम नहीं कि वह न्यायालय का दरवाजा खटखटाए। तब सिर्फ सरकार के प्रति उसके मन में आक्रोश ही बढ़ता है। आपसी बातचीत में वह लोगों से सरकार के विरुद्ध ही बोलता है। फिर वह विपक्ष की आवाज में स्वर मिलाने लगता है।
कहा जा रहा है कि जनप्रतिनिधि 1 करोड़ 66 लाख लोगों की समस्याएं 10 दिन में सुनेंगे। जनप्रतिनिधि समस्याएं सुनें, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? लेकिन समस्या सुनना तो एक पहलू हैं। दूसरा पहलू जो इससे कम महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि ज्यादा महत्वपूर्ण है, समस्याओं को हल करना 1 करोड़ 66 लाख लोगों की एक एक समस्या भी सरकार हल कर दे तो फिर ऐसी सरकार को कोई हटा नहीं सकता। कांग्रेस कितना भी सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन करे, कोई फर्र्क नहीं पड़ता। वास्तव में समस्याओं का निराकरण करने वाली सरकार की छवि बनी तो नक्सलियों को ढ़ूढने से भी सहयोगी नहीं मिलेंगे। जब सुराज होगा और वह भी गांवों में तो किसकी मति मारी गई है जो अन्याय के नाम पर बहकावे में आए। जब लोग बहकावे में नहीं आएंगे तो नक्सलियों के संघ का सदस्य कौन बनेगा? सुराज बिना सुशासन के नहीं हो सकता। सुराज लाना है तो सुशासन के विषय में विचार करना चाहिए। शासन देने वालों की नकेल पूरी तरह से मुख्यमंत्री के हाथ में होना चाहिए और यह आज तो कम से कम असंभव नहीं है। हालांकि इस संबंध में मुख्यमंत्री कार्यवाही भी कर रहे हैं। ब्लाक स्तर तक नेटवर्र्किंग से जोड़ा गया है। हर आदमी को सरकार से संवाद करने का खुला अवसर होना चाहिए तो सरकार को भी हर किसी की तकलीफ की जानकारी होना चाहिए। देश के सभी नागरिकों का पूरा वृतांत जनसंख्या रजिस्टर में दर्ज हो रहा है तो छत्तीसगढ़ के नागरिकों का दर्ज करना तो राज्य सरकार के लिए कोई कठिन काम नहीं है। यह हो गया तो सरकार नौकरशाही के हाथ में नहीं रह जाएगी बल्कि नौकरशाही सरकार के हाथ में होगी। तब ईमानदारी से जो चाहे सरकार कर सकती है। तब सुशासन से सुराज की कल्पना भी साकार हो सकती है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 12.04.2010
सुशासन और सुराज में कोई अंतर है?
जवाब देंहटाएंबड़ी मुश्किल सी बात है..देखिये कब ऐसा हो पाता है.
जवाब देंहटाएंaadrniy saadr vnde aapne susaashn ke naam pr ankit is lekh men desh ki nokrshaahi naafrmaani ki schchi tsveer uker kr rkh di he or srkaar ki vyvsthoo ko aayinaa dikhaaya he. is bhaaduri ke liyen aapko akhtar khan akela ki or se bdhaai ka purskaar krpyaa is tuch bhent ko svkikaar kren. akhtar khan akela kota rajasthan
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