कभी कांग्रेस ने नारा दिया था कि गरीबी हटाओ तो भारतीय मतदाताओं ने वोटों से उसकी झोली भर दी थी। आज 38 वर्ष बाद इस नारे के गरीबी तो मिटी नहीं अकल्पनीय महंगाई ने लोगों को अवश्य अपने कब्जे में कर लिया है। कभी कांग्रेस का नारा गरीबी हटाओ अवश्य था और उसमें वह सफल नहीं हुई लेकिन अब इस बजट को देखकर तो लगता है कि कांग्रेस का नारा है, महंगाई बढ़ाओ। जिस देश की 40 प्रतिशत जनता 20 रुपए से कम में प्रतिदिन गुजारा करती है, उस देश के हुक्मरान न जाने किस सोच की किस दुनिया में रहते हैं। न तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डीजल, पेट्रोल की कीमतों में कोई वृद्धि दर्ज की जा रही है और न ही तुरंत बढऩे के कोई आसार हैं लेकिन फिर भी कल बजट प्रस्तुत हुआ और उसमें वित्त मंत्री ने इजाफा करने का प्रस्ताव किया है और रात से ही कीमत बढ़ गई। संसद ने अभी वित्त मंत्री के प्रस्ताव को पारित नहीं किया है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी कह रहे हैं कि यह गलत है लेकिन सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही है।
यह सब प्रजातांत्रिक भारत में हो रहा है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कह रहे हैं कि प्रस्ताव वापस लेने का प्रश्न ही नहीं उठता। विपक्ष संसद से लेकर सड़क तक पर सरकार के विरुद्ध संघर्ष की बातें कर रहा है। बजट के दो दिन पहले ही महंगाई पर लोकसभा में बहस हो चुकी है। विपक्ष ने और खास कर प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने महंगाई को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उम्मीद की जा रही थी कि इससे सरकार कुछ तो चेतेगी लेकिन सरकार तो लगता है कि पूरी तरह से मदांध हो गई है। शायद सरकार को लगता हो कि जनता ने उसे 5 वर्ष तक अपने ऊपर अन्याय करने का लाइसेंस दे दिया है। उसके पास बहुमत है और वह जब तक पुन: चुनाव नहीं होता तब तक जो चाहे कर सकती है। विपक्ष और जनता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
ऐसा ही अहंकार एक बार इंदिरा गांधी को भी दो तिहाई बहुमत से चुनाव जीतने के बाद हुआ था। तब भी बेरोजगारी, महंगाई सब कुछ सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गए थे और गुजरात से उठा आंदोलन जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में पूरे देश में फैल गया था। इतिहास दोहराया जाता है लेकिन इतनी जल्दी। उस समय तो दो तिहाई बहुमत था, इस समय तो गठबंधन की सरकार है। जनता महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है। चंद लोग दोनों हाथों लूट रहे है और केंद्र सरकार राज्य सरकारों को दोषी ठहरा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रही है। महंगाई के लिए कौन दोषी तो केंद्र सरकार का जवाब है कि राज्य सरकार। डीजल के भाव भी राज्य सरकार ने बढ़ाए हैं, क्या? जब डीजल के भाव बढ़े हैं तो परिवहन भाड़ा बढ़ेगा। परिवहन भाड़ा बढऩे का अर्थ हर वस्तु के भाव बढ़ेंगे। खेती में काम आने वाला ट्रैक्टर भी डीजल से ही चलता है। अब खेतों में फसल उगाही का खर्च भी बढ़ेगा। यात्री बस का किराया भी बढ़ेगा। आज के इस युग में ऐसी कौन सी चीज है जो बिना डीजल के यहां से वहां ले जायी जा सके। यह छोटी सी बात जो हर किसी के समझ में आती है, सरकार की समझ में न आती हो, ऐसा तो नहीं है।
फिर भी सरकार राहत देने के बदले कीमतों में इजाफा हो ऐसा प्रस्ताव बजट में करती है तो कौन मानेगा कि वह दोषी नहीं हैं? आयकर में सरकार छूट देती है। 3 लाख तक आयकर में पुरानी स्थिति है। इससे ज्यादा जिनकी आय होती हैं उन्हें छूट का लाभ मिलेगा? 115 करोड़ के देश में 3 लाख तक आय प्राप्त करने वाले कितने व्यक्ति है? सरकार के इस छूट से 26 हजार करोड़ के आयकर की कमी होगी तो वह पेट्रोल डीजल से46 हजार करोड़ निकालेगी। मतलब चंद लोग छूट का लाभ उठाएंगे और भुगतान उसके बदले सबको करना पड़ेगा। अब जिन्हें आयकर के छूट का लाभ होगा, वे शेयर बाजार में रकम लगाएंगे तो शेयर सूचकांक ऊपर जाएगा। शेयर सूचकांक का ऊपर जाना ही तो सरकार की नजर में देश की आर्थिक तरक्की है। आयकर की छूट की रकम बाजार में आएगी। माल ज्यादा बिकेगा। मतलब व्यापारियों, उद्योगपतियों का पूरा ख्याल रखा है, सरकार ने। गरीब आदमी तो वैसे भी बाजार में खाद्यान्न के सिवाय खरीदता क्या है? खाने की पूर्ति ही नहीं कर सकता तो और क्या खरीदेगा?
खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि का लाभ भी आम आदमी, उत्पादक किसान नहीं प्राप्त करता। इसका लाभ व्यापारी या सटोरिए उठाते है। खाद्यान्न का सट्टï बाजार खुले आम चलता है। ये सटोरिए नित्य तरह-तरह के उपाय करते है कि भाव बढ़े और बढ़े भाव का लाभ बिना कुछ वास्तव में खरीदे बेचे ये उठाएं। गरीब को तो दाना चुगाया जाता है। जिससे वह न जी सके और न ही मर सके। सीमेंट, लोहा सब महंगा होगा। एक अदद मकान बनवाना भी अब आसान नहीं होगा। गरीबों के लिए सस्ता मकान बनाने और देने की भी सरकार की योजना है लेकिन सभी गरीब तो गरीबी रेखा के नीचे नहीं आते। मात्र 6 हजार रुपए वार्षिक सें जिसकी आय कम है वही तो गरीबी रेखा से नीचे है। छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेसी नेता कहते है कि 17 लाख गरीब बढ़कर 36 लाख कैसे हो गए? जिसकी आय वार्षिक 6 हजार वह गरीब और जिसकी साढ़े सात हजार वह गरीब नहीं। महंगाई ने 25-30 हजार रुपए वार्षिक पाने वाले को भी गरीब बना दिया।
आयकर का लाभ राजनेताओं को, नौकरशाहों को, व्यापरियों को मिलेगा। इनकी खर्च करने की ताकत बढ़ेगी। साफ मतलब है कि इनकी संपन्नता और बढ़ेगी। इन्हीं के घरों पर छापे मारने से करोड़ों रुपए आयकर विभाग अघोषित के नाम पर पकड़ता है। गरीब के घर क्या मिलेगा? लेकिन छूट का हर्जाना तो प्रणव मुखर्जी ने इन गरीबों से ही वसूल करने की ठानी है। 26 हजार करोड़ रुपए से जो लोग ऐश करेंगे, उसकी कीमत आम जनता 46 हजार करोड़ रुपए के ही रुप में नहीं चुकाएगी बल्कि उसका भुगतान हर खरीदी पर करेगी। हम तो यही कह सकते हैं कि सरकार गरीब की हाय लेने के लिए कटिबद्ध दिखायी देती है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 27.02.2010
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