यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

नितिन गडकरी के प्रस्ताव पर सभी पक्षों को सद्भावना से विचार करना चाहिए

दरअसल ऐसी ही सोच की जरूरत है। नितिन गडकरी द्वारा भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में दिए गए वक्तव्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। समन्वय, सामंजस्य से ही देश को एक रखा जा सकता है। पहली बार किसी राष्ट्रीय राजनेता ने जोडऩे की बात कही है। यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। मुसलमानों से नितिन गडकरी की यह अपील कि राम मंदिर बनने दें और बनाने में सहयोग करें, वे कहीं और मस्जिद बनाएं, हम पूरा सहयोग देंगे। ऐसी अपील है जिससे हिंदू मुसलमान को बांटकर राजनीति करने वालों को सबक मिलेगा। बाबरी मस्जिद की जगह को पहले ही मुसलमानों से मांगा जाता तो न तो बाबरी मस्जिद विध्वंस की जरूरत पड़ती और न ही कितनों को अपनी जान गंवानी पड़ती। और तो और राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद राजनीति में हथियार की तरह काम नहीं करते। यदि ईमानदारी से, भाईचारे से मुसलमानों से हिंदू कुछ मांगें तो मुसलमान देने से इंकार कर देंगे, यह सोच ही फिजूल है। हिंदू मुसलमान भाईचारे का इतिहास तो पुराना है।

भारतीय मुसलमान वे लोग हैं जिन्होंने बंटवारे को स्वीकार नहीं किया। पाकिस्तान जाकर रहने के बदले भारत में ही अपने हिंदू भाइयों के साथ रहना स्वीकार किया। उनका अपने हिंन्दू भाइयों पर विश्वास नहीं होता तो वे यहां रहते ही क्यों? भारत ने भी धार्मिक राष्ट्र  बनने के बदले धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र  बनना स्वीकार किया। आज दुनिया आश्चर्य से भारत की तरफ  देखती है कि धर्म ही नहीं और कितनी तरह की विभिन्नताओं के बावजूद भारतीय मेल जोल, भाईचारे से रहते हैं। देश के नागरिकों को आपस में लड़ाने का षडय़ंत्र कम नहीं किया जाता लेकिन फिर भी षडय़ंत्रकारी सफल नहीं होते। यह हर मुसलमान जानता है कि उनके हिंदू भाइयों की श्रद्घा भगवान राम पर कितनी है। यदि हिंदुओं की आस्था जहां बाबरी मस्जिद थी उस स्थान को राम जन्मभूमि मानता है तो उसके लिए कानून कायदों से निर्णय होना चाहिए। किसी जोर जबरदस्ती से नहीं। जहां कानून का शासन हो, वहां निर्णय भी कानून के अनुसार होना चाहिए।
कानून का यही तो प्रभाव है कि 6 वर्ष तक केंद्र की सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा भी विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण नहीं करा सकी। न्यायालय में वर्षों से मामला विचाराधीन है। पता नहीं कब फैसला आएगा। फिर फैसला भी आएगा तो जिसके पक्ष में नहीं आएगा, उसे अच्छा थोड़े ही लगेगा। कोई हारे कोई जीते, किसी न किसी के स्वाभिमान को ठेस लगेगी। अच्छा तरीका तो यही है कि हिंदू मुसलमान मिलकर न्यायालय के बाहर कोई सम्मानजनक फैसला करें। जिससे हमारे भाईचारे को और ताकत मिले। उन संकीर्ण लोगों को करारा जवाब मिले जो राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद के  बहाने अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास करते हैं। भाजपा के नए युवा अध्यक्ष की पहल से हो सकता है कि भाजपा के समर्थक कुछ संगठन सहमत न हों। उन्हें लगे कि विवाद समाप्त हो गया तो फिर हमारी अहमियत क्या रह जाएगी? ऐसी ही सोच दूसरे पक्ष के  कुछ लोगों में भी हो सकती है लेकिन यदि यह मामला न्यायालय से बाहर निपट जाए तो यह देश के दीर्घकालीन हित के अनुरूप होगा।


आज बड़ा भाई छोटे भाई से मांग रहा है कि उसे जमीन का यह टुकड़ा  दे दो तो छोटे भाई को भी पूरी संवेदनशीलता से शांतिपूर्वक विचार करना चाहिए। हमारी संस्कृति, सभ्यता में यह कोई अच्छी स्थिति तो नहीं है कि बड़ा भाई छोटे भाई से मांगे। होना तो यह चाहिए कि छोटा भाई मांगे और बड़ा भाई दे। छोटे भाई का हक है कि वह बड़े भाई से मांगे और बड़े भाई का कर्तव्य है कि वह छोटे भाई को दे लेकिन परिस्थिति विशेष है। बड़ा भाई अपने किसी निजी स्वार्थ के  लिए जमीन मांग नहीं रहा है बल्कि वह उस जमीन पर अपने भगवान का मंदिर बनाना चाहता है। जिससे कोटि कोटि लोग भगवान के दर्शन, पूजा, अर्चना कर अपने लिए और सबके लिए सुख, समृद्घि, अमन, चैन की प्रार्थना कर सके। वैसे भी यह व्यक्तिगत स्वार्थ का मामला नहीं है। जिनकी उपासना पद्घति अलग है उनके लिए भी अन्यत्र पूजा स्थल का निर्माण करने में पूरा सहयोग देने का वायदा किया जा रहा है।


दुनिया में सब कुछ बदल रहा है। विज्ञान की तरक्की ने बहुत कुछ बदल दिया है। सभी को तरक्की करने का अवसर मिलना चाहिए। आर्थिक स्थिति बदलने का अवसर आ गया है। भारत की युवा पीढ़ी को भी नई दुनिया में जीना है। कठिन प्रतियोगिता में अपने लिए स्थान बनाना है। संकीर्णता से अब काम चलने वाला नहीं है। खुले दिमाग से भविष्य का आंकलन कर अपने बच्चों को आगे बढऩे का अवसर देना है। इसके  लिए सबसे जरूरी जो बात है, वह यही है कि विवादों का निपटारा किया जाए। विवादों में हमारी शक्ति  नष्ट होने के बदले निर्माण में लगे। दुनिया हमारी तरफ देख रही है। अमेरिका तक की सोच है कि आने वाले कल में भारत एक महाशक्ति का रूप ले लेगा। तब हम मंदिर मस्जिद के विवाद में उलझते रहे तो दुश्मन फायदा उठाने से बाज नहीं आएगा। मंदिर मस्जिद विवाद को निपटाकर हम उन लोगों को स्पष्ट संदेश दे देंगे जो हमारे बीच फूट का  बीज बोकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं ।


हिंदू हो, मुसलमान हो, हम सबको और हमारी आने वाली पीढ़ी को इसी भूमि में जीना रहना है। हम क्या बीजारोपण करते है और अपने आने वाली पीढ़ी के लिए किस तरह की समस्याओं को छोड़ते है, यह तो हमीं पर निर्भर करता है। बड़े भाई की हैसियत से हिंदुओं की जिम्मेदारी किसी से भी कम नहीं है लेकिन छोटे भाई होने के कारण मुसलमानों की भी जिम्मेदारी कम नहीं है। नितिन गडकरी के  प्रस्ताव पर गंभीरता से, शांति से विचार करने की जरूरत है। यह ऐसा प्रस्ताव है कि मिल बैठकर कोई रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे तो रास्ता अवश्य निकलेगा। पुराने चश्मे से समस्या को न देखकर युवा आंखों से देखने की जरूरत है। हर वह काम जरूरी है जिससे लोगों के बीच संदेह का नहीं विश्वास का माहौल बने। हमारी भावी पीढ़ी गर्व से कह सके कि हमारे बुजुर्ग इतने समझदार थे कि उन्होंने किसी तरह की समस्या हमारे लिए नहीं छोड़ी और हमें उस स्थिति में वारिसाना हक दिया है जहां हम सुख चैन से रह रहे हैं। कौन मां बाप होगा जो चाहेगा कि उसके  बच्चों में आपस में प्रेम न पनपे। प्रेम, मुहब्बत से बड़ी कोई चीज भी नहीं है। प्रेम का पौधा पुष्पित पल्लवित हो, इस दृष्टि को रखकर ही समस्याओं का निपटारा करना चाहिए। यह अच्छी तरह से समझना होगा कि किसी के भी स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने का मतलब अपने ही स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना है। पूजा पद्घति अलग अलग होने से सब कुछ अलग नहीं हो जाता। ईश्वर को कौन किस तरह से याद करता है या किस तरह से उससे प्रार्थना करता है, इसकी स्वतंत्रता तो हमारा संविधान ही देता है। इसका सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है। इसलिए अवसर हो तो समस्या का समाधान कर लेना चाहिए।


विष्णु सिन्हा
19-2-2010
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