यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

जिला पंचायतों में जीत का डंका बजाकर डा. रमन सिंह ने फिर अपनी लोकप्रियता सिद्घ की

जिला पंचायतों के चुनाव ने फिर सिद्घ कर दिया कि डा. रमन सिंह के जादू से अभी भी मतदाता सम्मोहित हैं। इसे सम्मोहन न कहें तो क्या कहें कि जिला पंचायत के लिए चुने गए कांग्रेसी अध्यक्ष के लिए कांग्रेस प्रत्याशी को वोट देने के  बदले भाजपा प्रत्याशी को वोट देते हैं। कारण जो भी हो लेकिन मतदान तो यही साबित करता है कि कांग्रेसी भी चाहते हैं कि जिला पंचायतों पर भाजपा का कब्जा रहे। रायपुर जिला पंचायत के लिए चुने गए प्रतिनिधियों में कांग्रेस के प्रतिनिधियों की संख्या सर्वाधिक थी। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के प्रत्याशी को चुनाव में विजयी होना था लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो भाजपा प्रत्याशी भारी बहुमत से जीत गया। भाजपा प्रत्याशी को 25 मत मिले तो कांग्रेस प्रत्याशी को 10। स्पष्ट दिखायी देता है कि कांग्रेसी भी अब कांग्रेस के  साथ न होकर भाजपा के साथ रहना ज्यादा पसंद करते हैं। मतलब साफ है कि कांग्रेस के पदाधिकारियों पर कांग्रेसियों का विश्वास अब रह नहीं गया है।

राष्ट्रीय स्तर पर भले ही कांग्रेस और भाजपा नदी के दो किनारे हों। जो कभी नहीं मिलते लेकिन नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में तो भाजपा और कांग्रेस एक दिखायी पड़ते हैं। जहां जिला पंचायत के चुनाव में भारतीय कम्युनस्टि पार्टी के विरूद्घ दोनों एक हो गए और भाजपा का अध्यक्ष चुना गया तो कांग्रेस का उपाध्यक्ष। अब कांग्रेस आलाकमान और पदाधिकारी भले ही अपने सिर के बालो को नोचें लेकिन सत्य तो यही है कि कम्युनिस्ट पार्टी की तुलना में कांग्रेस और भाजपा ने समझौता करना ही बेहतर समझा। यह सब छत्तीसगढ़ में ही संभव है। क्या सही है और क्या गलत है, इसकी पहचान छत्तीसगढ़वासियों को अच्छी तरह है। वे अपना हित भी अच्छी तरह से पहचानते हैं। पार्टी से बढ़कर विश्वसनीयता उनके लिए ज्यादा अहमियत रखती है और यह बात तो दो चुनावों में छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने सिद्घ किया है कि उनकी विश्वसनीयता डा. रमन सिंह पर अधिक है।


डा. रमन सिंह की बढ़ती लोकप्रियता से किसी के  भी सीने पर सांप लोटे लेकिन तथ्य और सत्य को नकारा नहीं जा सकता। ठेठ छत्तीसगढिय़ा जिस तरह का सीधा सादा, भोला भाला होता है, उसका ही प्रतिनिधित्व डा. रमन सिंह करते हैं। खांटी छत्तीगढिय़ा नेता कौन तो डा. रमन सिंह। सिद्घांत भी साफ है कि कर्म किए जाओ फल की चिंता मत करो। विकास जिसका मूल मंत्र हो, वह किसी बात की फिक्र न करे तो इसमें आश्चर्य की क्या बात ? कभी छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के मुख्य कारणों में से सबसे बड़ा कारण छत्तीसगढ़ का कांग्रेस के प्रति समर्थन था लेकिन वादा और वादा और सिर्फ वादा के  सिवाय छत्तीसगढ़ को कुछ नहीं मिला तो छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश से अलग होने के सिवाय अन्य कोई चारा भी दिखायी नहीं दिया। अटलबिहारी वाजपेयी ने आश्वासन दिया कि छत्तीसगढ़ की 11 में से 11 लोकसभा सीट भाजपा को मिली तो वे छत्तीसगढ़ राज्य बनाएंगे लेकिन छत्तीसगढ़ से 8 ही सीटें भाजपा को मिली। इतने समर्थन को भी अटलबिहारी वाजपेयी ने पर्याप्त माना और  छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बना दिया।


तब भी कांग्रेस को समझ में नहीं आया कि छत्तीगढ़वासियों का विश्वास उसने खो दिया है। प्रथम मौका सरकार बनाने का पुराने मध्यप्रदेश के लिए हुए चुनाव के आधार पर कांग्रेस को ही मिला तो जनप्रतिनिधियों की राय से इत्तफाक न करते हुए अजीत जोगी को मुख्यमंत्री के रूप में थोप दिया। इस व्यक्ति ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में ऐसे तेवर दिखाए कि आदिवासी जनता ने ही कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। पहले चुनाव का अवसर मिलते ही कांग्रेस से सत्ता छीनकर जनता ने सत्ता भाजपा को सौंप दी। भाजपा ने भी डा. रमन सिंह के रूप में ऐसे मुख्यमंत्री का चयन किया जो जनता की कसौटी पर खरा साबित हुआ। कहते हैं कि विकास के अभाव के कारण नक्सल समस्या का जन्म हुआ। कांग्रेस सरकारों ने इफरात धन खर्च किया, अपने शासनकाल में आदिवासियों के लिए। स्वयं अजीत जोगी ने एक बार कहा  कि यह धन आदिवासियों को सीधे सीधे बांट दिया जाता तो हर आदिवासी के हिस्से में 2 करोड़ रूपये आते। किसी को भी आसानी से समझ में आता है कि आदिवासियों तक पहुंचने वाला धन किनकी जेबों में पहुंच गया। अवसर अच्छा था और नक्सलियों ने इसका भरपूर लाभ उठाया।


पहली बार डा. रमन सिंह ने आदिवासियों के दुख तकलीफ  को महसूस किया। सलवा जुडूम जब प्रारंभ हुआ तो तमाम तरह के बुद्घिजीवियों और आदिवासी हितैषी कांग्रेसियों के विरोध के बावजूद डा. रमन सिंह ने सलवा जुडूम का साथ दिया। आदिवासियों की नक्सलियों से रक्षा के लिए विशेष पुलिस बल तैयार किया। केंद्र सरकार के कानों में इतनी बार अपनी बात समझायी कि आज केंद्र सरकार भी मानने को तैयार है कि नक्सली समस्या देश के लिए खतरनाक है। आज संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी नक्सल समस्या की गंभीरता को स्वीकार किया। पार्टीगत राजनीति भले ही इसका श्रेय डा. रमन सिंह को देने में सकुचाए लेकिन छत्तीगसढ़ के  लोग तो अच्छी तरह से जानते हैं कि केंद्र सरकार को नक्सली समस्या की गंभीरता को समझने के लिए डा. रमन सिंह ने ही बाध्य किया।
अब डा. रमन सिंह ने ईमानदारी से काम किया तो उसके परिणाम भी आए। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को बैकफुट में धकेलने में सशस्त्र बल सफल रहे। जो लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए आदिवासी नेता ही आदिवासियों का विकास कर सकता है, नारा लगाते थे, उन्हें डा. रमन सिंह ने करारा जवाब दिया। जो काम कांग्रेस का तथाकथित आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं कर सका, वह काम करके एक गैर आदिवासी मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने दिखाया। भाजपा के राष्ट्रीय  सम्मेलन में राष्ट्रीय  अध्यक्ष नितिन गडकरी ने न केवल नक्सलवाद से जूझने के लिए डा. रमन सिंह की तारीफ की बल्कि इसके साथ यह भी कहा कि पूरी पार्टी डा. रमन सिंह के  पीछे खड़ी है। 


पार्टी के साथ साथ छत्तीसगढ़ के  लोग भी डा. रमन सिंह  के पीछे खड़े हैं। यही कारण है कि जिला पंचायत के चुनाव में 18 में से 14 पर भाजपा को सफलता मिली। यह कम बड़ी बात नहीं है कि कांग्रेसी भी अपने नेताओं के बदले डा. रमन सिंह की तरफ ही आशा भरी नजरों से देखते हैं। इस जीत के बाद डा. रमन सिंह ने भी पूरी दरियादिली दिखाते हुए कहा हैं कि सरकार 18 जिला पंचायतों को विकास के काम में पूरी मदद करेगी। किसी भी जिला पंचायत से भेदभाव नहीं किया जाएगा। नक्सली समस्या से जूझना और उससे अपने नागरिकों को मुक्त कराना तो सरकार का दायित्व है लेकिन डा. रमन सिंह इतने से ही संतोष करने वाले नहीं है बल्कि उनका मुख्य मकसद विकास है। विकास की ऐसी गंगा में छत्तीसगढ़वासियों को गोता लगाते देखना चाहते हैं। जिसमें हर किसी की सुख समृद्घि विकसित हो।


- विष्णु सिन्हा
22-2-2010

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