यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

डॉ. रमन सिंह की पग ध्वनि में सब कुछ बदल डालने की प्रतिध्वनि तो सुनायी पड़ रही है

बजट किसी भी सरकार का हो, उसमें कमियां देखना प्रतिपक्ष का काम है। इसलिए डॉ. रमन सिंह के बजट में प्रतिपक्ष के नेताओं को कमियां दिखायी देती है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। जहां तक बजट से लोगों की आकांक्षाओं का प्रश्र है तो आकांक्षाएं इतनी ज्यादा है कि सीमित साधनों से सभी की मनोकामना पूरा करना किसी भी सरकार के  बस की बात नहीं। संतोष की बात तो यही है कि डॉ. रमन सिंह ने बजट में ऐसे प्रावधान नहीं किए जिससे जनता पर करों का बोझ बढ़े। कर लगाया भी है तो धुम्रपान करने वालों पर और स्वाभाविक है कि धुम्रपान करने वाले  के साथ किसी की भी सहानुभूति नहीं है। जहां तक शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा का प्रश्र है, डॉ. रमन सिंह ने बजट का बड़ा हिस्सा इसके लिए रखा है गांव, गरीब और किसान बजट के केंद्र में है तो नक्सल उन्मूलन, अपराध से नागरिकों की सुरक्षा के लिए गृह मंत्रालय को भी पर्याप्त राशि दी गई है। 

खाद्य सुरक्षा मतलब गरीबों को 2 रु. किलो और 1 रु.  किलो चांवल देने के लिए सरकार ने एक हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। चुनाव के समय जो कहा जा रहा था, विरोधियों के द्वारा कि चुनाव के बाद गरीबों को सस्ता चांवल मिलना बंद हो जाएगा। उस संबंध में डॉ. रमन सिंह ने बजट में पर्याप्त प्रावधान कर करारा जवाब दिया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भाजपा की गुटीय राजनीति में लाभ देखने वालों को भी डॉ. रमन सिंह ने बजट के बहाने संदेश दे दिया है कि उनके मंत्रिमंडल में सम्मिलित सभी सदस्यों में पूर्ण एकता है। सबसे अधिक बजट आबंटन बृजमोहन अग्रवाल को दिया गया है। मुख्यमंत्री ने अपने से भी अधिक राशि बृजमोहन अग्रवाल के विभागों के लिए आबंटित की है। मतलब साफ है कि आपस में किसी तरह का कोई विवाद नहीं है। कोई किसी की रेखा छोटी नहीं कर रहा है बल्कि बड़ी करने का अवसर देने में भी कोई हिचक नहीं है। राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी ने राष्ट्रीय अधिवेशन में जो संदेश दिया था, उसे छत्तीसगढ़ में देखा जा सकता है।


डॉ. रमन सिंह की दृष्टि साफ है। वे योग्यता है तो सबको बढऩे का अवसर देने के लिए तैयार हैं। डॉ. रमन सिंह का अनुभव भी स्पष्ट है कि किसी भी काम को बृजमोहन को सौंप कर निश्चिंत हुआ जा सकता है। एक तरह से प्रतिपक्ष की इस उम्मीद पर विराम लग गया है कि भाजपा में आपसी द्वन्द कराकर लाभ उठाया जा सकता है। प्रतिपक्ष का रोना कायम है कि घोषणा पत्र की मांग को पूरा नहीं किया गया। पिछले चुनाव के समय मतदाताओं को गाय न मिलने के लिए भी कम उकसाने का प्रयास प्रतिपक्ष ने नहीं किया लेकिन डॉ. रमन सिंह के शासन से संतुष्ट जनता ने तो प्रतिपक्ष की बातों पर कान देना भी उचित नहीं समझा था। फिर घोषणा पत्र 5 वर्ष के लिए होता है। डॉ. रमन सिंह की नियत साफ है तो जनता का विश्वास भी उन पर कायम है और जनता का विश्वास उन पर कायम है तो वे किसी की क्यों परवाह करें लेकिन फिर भी वे विनम्रतापूर्वक आग्रह करने में पीछे नहीं हैं कि जहां तक प्रदेश के विकास का प्रश्र निहित है वहां प्रतिपक्ष सार्थक सहयोग देकर राज्य की प्रगति में सहयोगी बने। 


डॉ. रमन सिंह अपने बजट भाषण का समापन करते हुए कहते है-
मुमकिन है सफर हो आसां, अब साथ भी चल कर देखें ।
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बेदल कर देखें॥


छत्तीसगढ़ का हित सर्वप्रथम जिसकी दृष्टि में हो, वह कुंद बुद्धि का व्यक्ति नहीं होता। वह हर उस तरह की सोच का स्वागत करता है जिससे 2 करोड़ से अधिक छत्तीसगढ़वासियों का हित हो। बदलती दुनिया में अब प्रतिपक्ष का काम सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं होता। जहां जरुरत हो बदलने की वहां सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को बदलने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब जनता का कल्याण ही उद्देश्य हो और सत्ता में बैठा व्यक्ति उसे करने के लिए तैयार हो तो और क्या चाहिए? सरकार की कमियां सरकार को बदलने के लिए नहीं बल्कि कमियां दूर करने के लिए होना चाहिए। सरकारें तो बदल जाती हैं। जनता ने कितनी ही बार सरकारें बदली लेकिन कमियां कम होने के बदले बढ़ती ही गई। क्या इसका कारण सत्ता में बैठे लोगों का अहंकार और प्रतिपक्ष में बैठे नेताओं का सरकार को हटा कर स्वयं काबिज होने के अवसर की तलाश के सिवाय और कुछ रहा है। व्यक्ति बदले, नाम बदला, झंडा बदला लेकिन हासिल क्या हुआ? मतदाता को चुनावी शतरंज का मोहरा बना कर सिर्फ उपयोग किया गया। व्यवस्था की कमियां बदली जाए। भ्रष्टïचार समाप्त किया जाए। ईमानदारी को मान प्रतिष्ठï मिले। दलालों और सटोरियों के धंधे पर लगाम लगे और यह तभी हो सकता है जब सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष में एक स्वस्थ सोच हो।


दरअसल जब तक जनहित के कंधे पर बंदूक रखकर सत्ता पर काबिज होने का खेल चलता रहेगा तब तक बदलना कुछ भी आसान नहीं है। कहा भी जाता है कि चुनाव भ्रष्टाचार के केंद्र में है। तमाम तरह की आचार संहिताओं के बावजूद चुनाव में धन के खेल को रोका नहीं जा सका। जब बिना धन के कोई चुनाव नहीं जीत सकता तब जीत के बाद सत्ता धन उगाहने का साधन बन जाती है। कांग्रेस ने ही पिछले चुनाव में करीब 500 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। कांग्रेस के सिवाय तो अन्य पार्टियों ने चुनाव आयोग को हिसाब भी नहीं दिया है। व्यवस्था को बदलना है तो पहले स्वयं को बदलना होगा। सत्ता के ठाठ बदलने होंगे। किसी भी समस्या के निवारण के लिए यदि इच्छाशक्ति हो तो असंभव कुछ नहीं। आपरेशन ग्रीन हंट ने ही नक्सलियों को वार्ता के लिए बाध्य तो किया है। जो समस्या कल तक लाइलाज दिखायी देती है, उसका हल निश्चित रुप से दिखायी दे रहा है। 


यह एक व्यक्ति डॉ. रमन सिंह की निरंतरता और इच्छाशक्ति का ही कमाल है। जब सब तरफ से डॉ. रमन सिंह पर नक्सल समस्या के हल के तरीके को लेकर हमले हो रहे थे तब भी डॉ. रमन सिंह अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटे । वह दिन भी आया जब केंद्र में गृहमंत्री चिदंबरम बने और उन्होंने डॉ. रमन सिंह की बात को अच्छी तरह से समझा और समस्या के हल के लिए तैयार हुए। आज परिणाम सामने है। छत्तीसगढ़ में नक्सली बैकफुट पर है। अब 72 दिन के लिए सीज फायर के लिए भी तैयार है। जो व्यक्ति इतनी बड़ी समस्या से जूझ सकता है, वह अपने प्रदेश के लोगों के लिए क्या नहीं कर सकता। गंदी, संकीर्ण राजनीति सत्ता को आड़े न आए तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सब कुछ करने में सक्षम है। आदिवासी क्षेत्रों में विकास के काम तो होने दीजिए। छत्तीसगढ़ विकास के मान से पूरा बदला-बदला नजर आएगा। मुख्यमंत्री बजट के बहाने प्रतिपक्ष का आव्हान तो कर ही रहे हैं कि कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें।


- विष्णु सिन्हा
दिनांक 23.02.2010

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