यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

आतंकवादी हमला करते रहें और हम वार्ता, यह कितनी उचित नीति है?

केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का यह कहना कि खुफिया एजेंसियों की नाकामी के कारण जर्मन बेकरी में विस्फोट नहीं हुआ, से कुछ लोग भले ही असहमत हों लेकिन चिदंबरम सही कहते लगते हैं। क्योंकि जर्मन बेकरी में हुए विस्फोट से बचा जा सकता था। जर्मन बेकरी के स्टॉफ ने सतर्कता बरती होती और टेबल के नीचे रखे बैग को खोलने के बदले पुलिस को सूचना दी होती तो विस्फोट को रोका जा सकता था। दरअसल जर्मन बेकरी में बम का रखना आतंकवादियों की हताशा का प्रतीक है। अभी जो खबरें आ रही हैं, उसके अनुसार टारगेट तो ओशो आश्रम और यहुदियों का उपासना स्थल खबाद हाउस था। समय से पहले खबाद हाउस में प्रार्थना प्रारंभ हो गयी और सुरक्षा बढ़ गयी, इसलिए आतंकवादी उसे टारगेट नहीं बना सके। यही हाल ओशो आश्रम का भी हुआ। पहले खुले मैदान में कार्यक्रम होना था लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण स्थान परिवर्तन कर दिया गया और सुरक्षा वहां भी बढ़ गयी। इसलिए आतंकवादी ओशो आश्रम को भी टारगेट नहीं बना सके। तब उन्होंने जर्मन बेकरी जैसे आसान निशाने को चुना। यहां भी वे असफल हो जाते, लेकिन बेकरी के स्टाफ की मूर्खता के कारण विस्फोट हो गया। 

सुरक्षा एजेंसियों की कड़ी चौकसी के कारण ओशो आश्रम और खबाद हाउस तो बच गए लेकिन जर्मन बेकरी निशाना बन गया। कहा जा रहा है कि हेडली ने इस क्षेत्र के एक होटल में रुक कर रेकी की थी। हेडली इस समय अमेरिका की पुलिस के  कब्जे में है लेकिन इसके साथ-साथ यह भी कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के एक आतंकवादी संगठन के नेता ने पिछले दिनों पाकिस्तान में पुणे पर हमला करने की घोषणा की थी। इन तमाम बातों पर गौर करें तो यह बात स्पष्ट दिखायी देती है कि आतंकवादियों का यह हमला जिसमें 9 लोग 2 विदेशी नागरिकों सहित मारे गए और 50 लोग घायल हुए, पूरी तरह से कायराना हमला था। अभी तक किसी ने भी इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन इंडियन मुजाहिदीन या पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन पर संदेह किया जा रहा है। नाम भले ही अलग-अलग हों लेकिन उद्देश्य तो उनका एक ही है। भारत को उकसाना कि वह पाकिस्तान से लड़े। जब भारत के हुक्मरान मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान से लडऩे के लिए तैयार नहीं हुए, तब वे पुणे विस्फोट के बाद क्या पाकिस्तान से लड़ेंगे?


भारत के हुक्मरान तो 25 फरवरी को विदेश सचिव स्तर की पाकिस्तान से चर्चा करने के लिए तैयार हो गए हैं। दक्षेस सम्मेलन में गृहमंत्री स्तर की वार्ता भी होने की उम्मीद की जा रही है। वह सब बातें अब कोई मायने नहीं रखती जो मुंबई हमले के बाद कही गयी थी कि जब तक दोषियों के विरुद्ध पाकिस्तान कार्यवाही नहीं करता तब तक उससे कोई बातचीत नहीं की जाएगी। पाकिस्तान के हुक्मरान इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत की इस तरह की बात का कोई विशेष औचित्य नहीं है। वे तो इन बातों को एक तरह की गीदड़ भभकी ही समझते हैं और मजाक उड़ाते हैं। 6 माह, साल भर व्यतीत होने दो भारत फिर बातचीत करेगा। यह पाकिस्तानी हुक्मरानों की सोच है और वे गलत भी नहीं सोचते, यह भारतीय हुक्मरान ही सिद्ध करते हैं ?


विनम्रता अच्छी बात है। गल्तियों को माफ करने की ताकत भी बड़ी बात है लेकिन यह उनके संबंध में उचित है जो गल्तियों को महसूस करते हैं लेकिन जो इस तरह की अच्छी भावनाओं को कायरता समझते हैं, उनके साथ भलमनसाहत का क्या अर्थ है? जो अपनी आदतों से बाज आने को तैयार नहीं। तीन-तीन बार युद्ध में हार जाने के बावजूद जिनकी अक्ल ठिकाने नहीं आयी, उनसे बातचीत से मामला निपटाया जा सकता है, यह सोच ही अव्यवहारिक है। एक तरफ आतंकवादियों से निपटने के नाम पर अमेरिका पाकिस्तान को अरबों रुपए की सहायता करता है और दूसरी तरफ हमें शांति का पाठ पढ़ाता है। पाकिस्तान तो खुल कर कह रहा है कि काश्मीर का मामला फिलीस्तीन की तरह का है। काश्मीर को आतंक की आग में झुलसाने का पाकिस्तान ने कम प्रयास नहीं किया और आज भी कर रहा है। घुसपैठ जारी है। युद्ध विराम के बावजूद पाकिस्तानी सीमा से भारतीय सीमा पर गोलीबारी होती ही रहती है। पाकिस्तान ने तो एक भी उदाहरण आज तक प्रस्तुत नहीं किया कि वह वास्तव में भारत के साथ मैत्री चाहता है। दुनिया को दिखाने के लिए वह इस तरह के ढोंग अवश्य करता है।


किसी भी तरह की बातचीत का तब तक क्या औचित्य है जब तक बातचीत में ईमानदारी न हो। शिमला समझौता भी तो भारत के साथ पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान गंवाने के बाद किया था। यह भी तथ्य स्पष्ट है कि पाकिस्तानी आतंकवादी बंगला देश से भी भारत में घुसते ही नहीं है बल्कि वहां भी उन्होंने अपने ठिकाने बना रखे है। पाकिस्तान तो अमेरिका और चीन दोनों से दोस्ती का दम भरता है। वह अमेरिका और चीन दोनों से लाभ उठाता है और भारत को चुनौती देता है। यहां तक कि जब लंका की क्रिकेट टीम पर पाकिस्तान में हमला हुआ तब भी उसने तुरंत आरोप लगाया कि यह भारत ने किया है। ब्लूचिस्तान में भी वह भारत के हस्तक्षेप का राग अलापता है। अफगानिस्तान को भारत की मदद भी उसे फूटी आंख नहीं सुहाती। फिर उसकी राजनीति का मूल केंद्र भारत से दोस्ती नहीं, घृणा है। तब भारत कितनी भी दोस्ती की, शांति की बात करें, उसका परिणाम तो वह नहीं निकलता जो भारत चाहता है।
ऐसे में पाकिस्तान के साथ किसी भी स्तर की बातचीत करना सिवाय समय खराब करने के और क्या है? पाकिस्तान सरकार की नीयत और वहां से चलने वाली आतंकवादी गतिविधियों से सतर्क रहने और उसका  मुंह तोड़ जवाब देने के सिवाय भारत के पास दूसरा चारा नहीं है। जो लोग समझते हैं कि वार्ता की कूटनीति से हमारी समस्याओं का हल हो जाएगा, उनके सामने उदाहरणों की कमी नहीं है कि वार्ता में हमने जीत तक को तो गंवाया है। चाहे वह ताशकंद समझौता हो या शिमला समझौता। हमें मिला क्या है? यहां तक कि पाकिस्तान के कब्जे में चला गया काश्मीर तक हम वापस प्राप्त नहीं कर सके। राजनीति का आदर्शवाद भारत के लिए चीन और पाकिस्तान के मामले में ही नहीं नेपाल तक के मामले में भी नुकसानप्रद ही साबित हुआ है। कभी इसकी भी समीक्षा करें, भारत के हुक्मरान। 


चीन के मामले में पंचशील का सिद्धांत काम नहीं आया। चीनी हिन्दी भाई-भाई का अलाप लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन गंवा बैठा और आज भी चीन की नजर हमारी भूमि पर लगी हुई है। हमारे हुक्मरान कहते हैं कि चीन हमारा दोस्त है और उससे कोई खतरा नहीं है। भारत के ही एक प्रदेश में भारत के प्रधानमंत्री के जाने पर जो चीन विरोध प्रदर्शित करता है, वह हमारा मित्र कैसे दिखायी पड़ता है? यदि दिखायी पड़ता है तो सिर्फ हमारी कमजोरी ही दिखायी पड़ती है। हम वार्ता करते रहते हैं और चीन हमारी भूमि पर कब्जा करता जाता है। चीन तो पाकिस्तान में फौजी केंद्र भी बनाने वाला है। वे हमारा मजाक उड़ाते हैं तो गलत क्या करते हैं? क्या हमारे कृत्य मजाक के योग्य नहीं है? शुतुरमुर्ग की तरह सोच होगी तो परिणाम भी शुतुरमुर्ग की तरह ही भोगना पड़ेगा।


- विष्णु सिन्हा
दिनांक 15.02.2010

2 टिप्‍पणियां:

  1. सच है ऐसी वार्ता का क्या लाभ ... पता नही भारत सरकार कब तक ढोंग करेगी ... ढुलमुल सरकार देश का बेड़ा गार्क कर के ही जागेगी ........

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  2. aapne warta par chinta chanri ki hai .. are pahle ye to sabit ho ki bom blast pakistanyo ne kia hai yh bhi to ho sakta he ki yh karye bharat ke hinduon ka ho

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