बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
आने वाले समय में मुलायम सिंह का भी हश्र कल्याण सिंह की तरह हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं
अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया। जयाप्रदा ने अमरसिंह के पक्ष में वकालत करने की कोशिश की तो उन्हें तो बर्खास्त होना ही था। बिना अमरसिंह के जया बच्चन भी समाजवादी पार्टी में रह कर क्या करेंगी? मुलायम सिंह उन्हें बर्खास्त करें या न करें, अंतर कुछ नहीं पड़ता। क्योंकि जया बच्चन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि परिवार या पार्टी में से उन्हें चुनना पड़ा तो वे परिवार को ही चुनेंगी और अमर सिंह परिवार के व्यक्ति हैं, यह तो जगजाहिर है। सोनिया गांधी और मायावती को भी अमर सिंह ने इस बीच मक्खन लगाने की कोशिश की लेकिन देवियां प्रसन्न होती तो नहीं दिखायी पड़ रही है। समाजवादी की राजनीति को देखते हुए अमिताभ बच्चन ने पहले ही नया ठिकाना ढूंढ लिया है और नरेन्द्र मोदी के साथ वे दोस्ती का नया संस्करण लिख रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने भी गुजरात का पर्यटन एंबेसडर उन्हें बना दिया है। राजनीति में अमरसिंह का हाथ पकड़ कर आए संजय दत्त ने वक्त की नजाकत को समझ कर समाजवादी पार्टी के महासचिव पद से पहले ही इस्तीफा दे दिया है।
समाजवादी पार्टी पर अमरसिंह के कारण जो ग्लैमर छाया था, वह अब पूरी तरह से उतर गया है। यह कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि समाजवादी पार्टी अपने ठेठ पुराने रंग में आ गयी है। जितने भी लोग मुलायम सिंह और अमर सिंह की दोस्ती के कारण अपने आपको उपेक्षित और अपमानित समझ रहे थे, उन सभी का राग समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह के प्रति पुन: उत्पन्न हो गया है लेकिन खबर तो यह भी है कि 4 निलंबित विधायकों के साथ और भी कुछ विधायकों की जल्द ही समाजवादी पार्टी से छुट्टी होने वाली है। उत्तरप्रदेश में ही समाजवादी पार्टी का सब कुछ है और आज वहां वह सत्ता से बाहर बैठी हुई है। अकेले दम पर मायावती से सत्ता छीनना समाजवादी पार्टी के बस में भी नहीं है। फिर कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से अपनी तरफ फोड़कर अपनी शक्ति का आभास करा दिया है।
राजनैतिक क्षेत्रों में चर्चा का बाजार गर्म है कि कांग्रेस फिर मुलायम सिंह के साथ खेल रही है। जिस तरह से पिछली लोकसभा में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी का समर्थन प्राप्त कर मनमोहन सिंह की सरकार को बचाया लेकिन बदले में मुलायम सिंह और उनकी पार्टी को कुछ मिला नहीं, उसी तरह का खेल फिर मुलायम सिंह के साथ खेला जा रहा है। आगे गठबंधन के लिए मुलायम सिंह से कहा गया कि अमर सिंह को अलग करो। अमर सिंह के रहते समझौता मुमकिन नहीं। अमरसिंह ने जिस तरह से अमिताभ बच्चन, जया बच्चन को समाजवादी पार्टी से जोड़ा , यह कांग्रेस को पसंद आने वाली बात नहीं थी। वैसे भी मुलायम सिंह सोनिया गांधी को एक बार प्रधानमंत्री बनने से रोकने के कारण सोनिया गांधी की गुड लिस्ट में नहीं। फिर अमिताभ और जया को राजनीति में अपने पक्ष में करके तो उन्होंने आग में पेट्रोल ही डालने का काम किया। यह सब हुआ तो अमरसिंह के ही प्रयासों से। जब अमरसिंह समाजवादी पार्टी मे नहीं तो ये सब भी पार्टी से बाहर।
समाजवादी पार्टी से राज बब्बर ने अमरसिंह के कारण ही किनारा किया। आज वे कांग्रेस के सांसद हैं। अमरसिंह को समाजवादी पार्टी से निकलवाकर कांग्रेस ने एक तीर से दो शिकार किया। अमरसिंह को कहीं का नहीं छोड़ा। आज न तो अमरसिंह में कांग्रेस की कोई रुचि हैं और न ही राष्ट्रवादी कांग्रेस की। कल्याण सिंह उन्हें अपनी पार्टी में ले लें तो बात अलग है। वैसे भी कल्याण सिंह का भाजपा छोडऩे के बाद क्या हश्र हुआ यह सबको पता है। अमरसिंह भी अब ठाकुरों और अति पिछड़ों को जोड़ कर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं तो मतलब कल्याण सिंह ही है लेकिन ये फिल्मी सितारे अमर सिंह के साथ कल्याण सिंह के भी साथ जाएंगे, इसकी गुंजाइश कम है। अमिताभ बच्चन तो गुजरात के नरेन्द्र मोदी के साथ जाकर स्पष्ट कर चुके हैं कि अब वे उत्तरप्रदेश के झमेले में नहीं पडऩे वाले है। उन्होंने चुना भी है तो सोनिया गांधी के घोर विरोधी को। अमरसिंह को भाजपा लेने को तैयार होगी तभी अमरसिंह की राजनीति में कोई स्थान हो सकता है लेकिन अमरसिंह जैसे स्वच्छंद व्यक्ति भाजपा को रास आएंगे, इसकी कम गुंजाईश है।
जहां तक कांग्रेस का मामला है तो कांग्रेस मुलायम सिंह के कमजोर पडऩे पर ही उत्तरप्रदेश में अपने उदय की संभावना देखती है। क्योंकि मुकाबला तो अब भाजपा से है, नहीं। विगत वर्षों में भाजपा उत्तरप्रदेश में बहुत कमजोर हो गयी है। मुकाबला सीधे-सीधे मायावती से है। मुसलमानों और सवर्णों को अपनी तरफ करने में कांग्रेस सफल हो रही है। मुलायम सिंह से कुछ ले देकर समझौता हो जाता है तो पिछड़ों के वोट बैंक को भी अपनी तरफ किया जा सकता है। इसी से संभावना बनती है कि मायावती को चुनाव में सत्ताच्युत किया जा सके। कांग्रेस को लोकसभा में पूर्ण बहुमत चाहिए तो उसे हर हाल में उत्तरप्रदेश में अपनी उपयोगिता सिद्ध करना पड़ेगा। अमरसिंह को समाजवादी पार्टी से निकलवा कर कांग्रेस ने भविष्य की अपनी योजना की तरफ एक कदम और आगे बढ़ाया है।
लेकिन यह भी सच है कि अमर सिंह चुप बैठने वाले प्राणी नहीं हैं। खुद का भला कर सकें न कर सकें लेकिन मुलायम सिंह को भी सत्ता की चौखट पर खड़ा होता वे देख नहीं सकते। इसलिए मुलायम की ताकत जितनी वे कमजोर कर सकेंगे, उतनी तो करने का पूरा प्रयास करेंगे। कल्याण सिंह अपना कुछ नहीं बना सके लेकिन भाजपा को चोट पहुंचाने में वे सफल रहे। अमरसिंह भी यही करेंगे। धन की ताकत तो उनके पास है, ही और वे जुगाड़ करना भी जानते हैं लेकिन आज की स्थिति में इसमें भी उन्हें आसानी नहीं होगी। यह तो तय है कि अमर सिंह की अमरबेल बिना सहारे बढ़ नहीं सकती लेकिन मुलायम के साथ उन्होंने जो किया, उसके बाद कौन अमरबेल को फैलाने का मौका देगा फिर भी मुलायम के लिए वे जितने हितकारी थे, अब उतने ही उनके लिए नुकसानकारी होंगे तो फायदा किसे मिलेगा?
स्वाभाविक रुप से मायावती को या कांग्रेस को। अमरसिंह ने तो समाजवादी पार्टी को यादवों की पार्टी का तमगा भी दे दिया है। मतलब मुलायम के विरुद्धजितना भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दुष्प्रचार संभव होगा, अमरसिंह करेंगे। भले ही वे कहते हैं कि अब समाजवादी पार्टी का नाम भी नहीं लूंगा। पहले ही वे कह चुके हैं कि मुलायम सिंह के कई राज उनके पास हैं लेकिन वे उनको उजागर नहीं करेंगे। वे तो यहां तक कहते हैं कि ये राज उनकी मृत्यु के साथ उनके साथ ही जाएंगे लेकिन ऐसी बातों की राजनीति में क्या अहमियत है, सभी इसे अच्छी तरह से जानते है। फिर जरुरी थोड़े ही है कि राज को अमरसिंह ही उजागर करें। दूसरे स्रोत से राज उजागर होंगे तो अमरसिंह पर भले ही दोषारोपण लगे लेकिन वे दूध के धुले स्वयं को तो कह ही सकते हैं। वैसे भी कहा जाता है कि दोस्त जब दुश्मन बनता है तो उससे बड़ा दुश्मन और कोई नहीं होता। अभी तो यही दिखायी पड़ता है कि हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 03.02.2010
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शीर्षक मे कुछ आसमानता है . मुलायम नही अमर हो सकते है कल्याण
जवाब देंहटाएंअभी तो पहली करवट है, देखते चले अगले कुछ माहों में.
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