यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

अलकायदा की चेतावनी से क्या कोई देश डर जाएगा?

अब अलकायदा ने विश्व समुदाय को चेतावनी दी है कि वह अपने खिलाडिय़ों को विश्व कप हॉकी, आईपीएल तथा राष्ट्र्रमंडल खेलों के लिए भारत न भेजे। अन्यथा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे। यह चेतावनी अलकायदा के कमांडर इलियास काश्मीरी ने दिया है। यह वही शख्स है जिसके साथ डेविड हेडली के संबंध चर्चित है और मुंबई हमले में भी जिसका हाथ था। एक तरफ भारत जैसा धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और दूसरी तरफ चंद आतंकवादी। भारत सरकार सुरक्षा की पूरी गारंटी दे रही है लेकिन फिर भी खेल के नाम पर अपने देश के खिलाडिय़ों की जान जोखिम डालने के लिए कुछ देश तैयार न हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं और यही अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठन चाहते भी हैं कि उनकी धमकी से लोग डर कर यदि खेल में भाग लेने से कतराते हैं तो यह उनकी बड़ी जीत होगी। 

यह तो भारत के लिए ही नहीं विश्व समुदाय के सोच का विषय है कि वह इन आतंकवादी धमकियों से प्रभावित होता है या उनका मुंहतोड़ जवाब देता है। स्वाभाविक है कि भारत पर इस धमकी के  बाद सुरक्षा की अहम जिम्मेदारी है। इन खेलों को आतंकवाद से बचा कर सफलतापूर्वक संपन्न कराने की भी जिम्मेदारी भारत पर है। भारत तो अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करेगा कि खेल में किसी भी तरह का विघ्न न पड़े लेकिन विश्व समुदाय की भी अपनी जिम्मेदारी है। जो देश आतंकवादी धमकी से घबराएगा, वह सहज ही आतंकवादियों की दृष्टि में सरल निशाना होगा। यही समय है, अलकायदा को जवाब दिया जाए कि उसकी धमकी से दुनिया का कोई देश नहीं घबराता। राष्ट्रों  की सत्ता इतनी कमजोर नहीं है कि वह चंद आतंकवादियों की धमकी के सामने घुटने टेक दे। 


शांतिप्रिय देशों का हिंसा पर कोई विश्वास नहीं होता लेकिन यदि उन्हें कमजोर समझ कर कोई हिंसा के बल पर आतंक फैलाना चाहे और अपने मनमाफिक चलने के लिए बाध्य करने की कोशिश करे तो उसका मुहतोड़ जवाब देना राष्ट्रों  का कर्तव्य है। अमेरिका का ही उदाहरण पर्याप्त है। जब उस पर आतंकवादी हमला हआ तब उसने उसका मुहतोड़ जवाब देने के लिए अलकायदा के विरुद्ध अफगानिस्तान में जाकर सैन्य कार्यवाही करने से भी परहेज नहीं किया। सुरक्षा का ऐसा कवच अपने देश में बनाया कि दूसरी आतंकवादी घटना करने की धमकी तो अलकायदा देता रहा लेकिन आज तक वह ऐसा कर नहीं पाया। अमेरिका का खौफ तो इतना है कि वल्र्ड ट्रेड  सेंटर पर हमले के बाद ओसामा बिन लादेन ऐसा गायब हुआ कि ढूंढने पर भी नहीं मिल रहा है और बीच बीच में उसकी मृत्यु की खबर अवश्य आती है। 


आज की तारीख में आतंकवाद को कड़ा जवाब देना विश्व बिरादरी का पहला कर्तव्य है। क्योंकि हर कोई शांति और अहिंसा चाहता है। कौन अपने शांतिप्रिय नागरिकों की जान को आतंकवादियों के खौफ के साये में में देखना चाहता है। फिर जहां तक भारत का प्रश्र है तो उसने आतंकवाद का सबसे ज्यादा स्वाद चखा है। 1 लाख से अधिक भारतीय आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं लेकिन अहिंसा और शांति के देश भारत ने आतंकवादियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है, ऐसा तो किसी भी कोण से परिलक्षित नहीं होता। कल की तुलना में भारत आज आतंकवादियों का मुकाबला करने में अधिक सक्षम हुआ है। मुंबई हमले के बाद तो कहा जा रहा है कि यदि फिर से भारत पर आतंकवादी हमला हुआ तो भारत अपने आपको युद्ध करने से रोक नहीं पाएगा। स्थिति तो ऐसी निर्मित होती है लेकिन युद्धों का भारत के पास लंबा इतिहास है। वह जानता है कि युद्ध अधैर्य का परिणाम नहीं होना चाहिए लेकिन जब युद्ध जरुरी हो जाए तब भारत ने उसका कड़ा जवाब भी दिया है।


दुनिया के देश और आतंकवादी यह समझ ही नहीं पाते कि भारतीय आखिर किस मिट्टी के बने हैं? मुंबई पर हमला होता है और दूसरे ही दिन से मुंबई अपनी पुरानी रफ्तार में भागता दिखायी देता है। न तो कोई आतंकवाद के डर से घर से निकलना छोड़ता है और न ही इस बात की परवाह करता है कि उसे आतंकवादियों का कोई खौफ है। पुणे में जर्मन बेकरी पर हुए विस्फोट से भी देश के मिजाज पर कोई फर्क नहीं आया बल्कि एक बात समझ में आयी कि भारत की सुरक्षा व्यवस्था इतनी तो है कि आतंकवादी तक डरे हुए हैं। वे पूरी तरह से कायराना हमला करते हैं और तब भी जांच एजेंसियों की नजरों से बच नहीं पाते। केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने वर्ष भर में ही खुफिया एजेंसियों के मृत शरीर में प्राण संचार कर दिया है और प्रशिक्षण की रफ्तार भी तेज है। वे देश में होने वाले विश्व खेलों को आतंकवादियों के कृत्यों से बचा ले जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। पहले घटनाएं होती थी तो दो चार दिन हल्ला गुल्ला होने के बाद सब शांत हो जाता था लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। हर घटना की न केवल सुक्ष्मता से जांच की जाती है बल्कि आतंकवादियों को पकडऩे में भी सफलता मिलती है।


जहां भी सुरक्षा बलों की, खुफिया एजेंसियों की कमजोरी समझ में आती है, उसे दूर करने का पूरा प्रयास किया जाता है। इसी कारण से नक्सलियों पर भी लगाम लग रही है। न केवल नक्सली पकड़े जा रहे हैं बल्कि मुठभेड़ों में मारे भी जा रहे है। यह भ्रम भी टूट गया है कि नक्सली कोई राजनैतिक समस्या है। पश्चिम बंगाल में जो 20 पुलिस के सिपाही नक्सली हमले में मारे गए तो उसका कारण नक्सलियों की वीरता नहीं थी बल्कि सुरक्षा कर्मियों की लापरवाही थी। यह बात नक्सलियों को भी समझ में आ रही है कि सरकार निरंतर इसी तरह से सख्ती से शिकंजा कसती रही तो वह दिन दूर नहीं जब नक्सली समस्या से ग्रस्त क्षेत्र मुख्य धारा में आ जाएंगे। उच्चतम न्यायालय ने भी माना है कि नक्सलवाद नाम की कोई राजनैतिक बात नहीं है। विकास का न होना असल में नक्सलियों के पनपने का कारण है। यह बात भी सामने आ चुकी है कि नक्सली विकास विरोधी हैं वे सड़कें तोड़ते है, स्कूल और पंचायत भवनों को बमों से उड़ा देते हैं। सरकार विकास के काम करती है तो होने नहीं देते लेकिन अब नक्सल समस्या से ग्रस्त इलाकों को मुक्त ही नहीं कराया जा रहा है बल्कि विकास के काम भी प्राथमिकता के आधार पर कराए जा रहे हैं। 


जहां तक विदेशों से आयातित आतंकवाद की बात है तो चंद लोग उसके बहकावे में भले ही आ जाएं लेकिन बहुसंख्यक भारतीय आतंकवाद के विरुद्ध अपना गुस्सा बार-बार प्रगट कर चुका है। आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए एक युवक की मां जब यह कहती है कि यदि उसके  बेटे ने गलत काम किया है तो उसे सजा होनी चाहिए तो इसी से समझ में आता है कि यह मदर इंडिया का देश है। देश के नागरिकों के  सपड़ में आतंकवादी आए तो उनकी खैर नहीं है। क्योंकि यह तो तय है कि आतंकवाद को प्रश्रय देने के लिए देश में कोई तैयार नहीं है। भारतीयों को पूरी उम्मीद है कि खेल भारत में होंगे और शांतिपूर्वक होंगे। कोई आतंकवादी खेल में विघ्र नहीं डाल सकेगा ।
विष्णु सिन्हा
दिनांक 17.02.2010
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