दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि भाजपा कांग्रेस की बी टीम बन रही है। वामपंथी तो पहले से ही यह बात कहते थे। अब कौन ए टीम है और कौन बी टीम इससे परे यह बात स्मरणीय है कि कांग्रेस कभी समाजवादी पार्टी हुआ करती थी। उसका झुकाव स्वतंत्रता के बाद सत्ता में आने पर अपने को गरीबों की पार्टी बताने पर ज्यादा जोर था। यहां तक कि इंदिरा गांधी ने तो गरीबी हटाओ का नारा देकर ही एक आम चुनाव जीता। फिर जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब धीरे धीरे कांग्रेस ने समाजवाद का चोला छोड़कर पूंजीवाद को अपनाना प्रारंभ किया और नरसिंहराव के वित्त मंत्री बनकर मनमोहन सिंह ने तो कांग्रेस को पूरी तरह से पूंजीवादी पार्टी बना दिया। उदारीकरण के नाम पर कांग्रेस ने पूंजीवाद को आश्रय देना प्रारंभ कर दिया। भाजपा और पूर्व में भारतीय जनसंघ तो प्रांरभ से ही दक्षिण पंथी पार्टी मानी जाती थी। कांग्रेसी ही भाजपा को बनियाओं की पार्टी कहा करते थे। बीच में कुछ समय के लिए भाजपा ने अपने को गांधीवादी समाजवाद के नाम पर प्रचारित करना शुरू किया था लेकिन बहुत जल्द भाजपा इस भ्रम से बाहर निकल गयी।
आज केंद्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और वह ऊपर-ऊपर पैकिंग के रूप में गरीबों की हितैषी दिखने का प्रयास कुछ कार्यक्रमों को लेकर भले ही करती है लेकिन उसकी नजर हर बजट में इसी बात पर ही लगी रहती है कि जनता के हित में जारी किसी भी तरह की सब्सिडी को कैसे खत्म किया जाए? जैसे जैसे सब्सिडियां खत्म होती गयी, सरकार का खजाना चौड़ा होता गया। जिस तरह से एक पूंजीपति कितना भी धन कमा ले संतुष्ट नहीं होता, उसी तरह से अब सरकार भी कितना ही टैक्स वसूल कर ले, खुश नहीं होती। वह अवसरों की तलाश में रहती है कि कैसे नागरिकों पर और बोझ डाला जाए। नागरिकों को पूरी तरह से बाजार के हवाले कर दिया गया है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस जैसी कुछ वस्तुएं सरकार के नियंत्रण में है तो सरकार उससे भी छुटकारा पा लेना चाहती है। जिससे उसे इन मदों में होने वाले घाटे से निजात मिले और जनता स्वयं इस बोझ को उठाए। सरकार भरसक प्रयास कर रही है कि तेरा तू जाने, हमें क्या लेना देना?
कहने का अर्थ यही है कि कांग्रेस अब पूरी तरह से पूंजीवादी हो गयी है। जैसे बड़े-बड़े सेठ करोड़ों, अरबों कमाकर कुछ दान दक्षिणा देते हैं कि इस जन्म में पाप यदि कुछ किए हैं तो उसे पुण्य में बदल लें। उसी तरह से सरकार भी टैक्स वसूली में कोई कृपणता न दिखाते हुए मीठा मीठा गप गप और कड़वा कड़वा थू थू करने में लगी है। सरकार में रहना है तो गरीबों के वोट चाहिए। इसलिए गरीब नवाज होने का एक मुखौटा भी चाहिए। सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा गरीबों की मदद का ढोंग करती है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को 3 रू. किलो में चांवल गेहूं देती है। इसका कोटा भी कम करने का अवसर तलाशती है। शक्कर महंगी हुई तो राज्य सरकार का कोटा काटा जा रहा है। सब्सिडी इसलिए समाप्त की जाती है कि धन सरकार के खजाने में बचेगा तो सरकार देश का विकास करेगी। खाद्यान्न का सट्टा हो तो सरकार इसे रोकने की कोशिश नहीं करती। उसकी सोच है कि खाद्यान्न की कीमत बढ़ेगी तो फायदा किसान को होगा। किसान को कैसे फायदा होगा? किसान सरकार के द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य पर अनाज सरकार को बेच देता है। उसे तो उतना ही धन अपनी फसल का मिलता है जितना सरकार तय करती है।
फिर बाजार में बढ़ती महंगाई का लाभ उसे कैसे मिलेगा ? लाभ तो इस महंगाई का जमाखोर, व्यापारी, खाद्यान्न का सट्टा खेलने वाले उठाते हैं और नुकसान देश की आम जनता को उठाना पड़ता है। भाजपा की नकल में कांग्रेस दक्षिण पंथी तो हो गयी लेकिन परिणाम तो जनता भुगत रही है। अब कोई कैसे माने कि कांग्रेस गरीबों की पार्टी है। कहा जा रहा है कि शक्कर से ही एक लाख करोड़ रूपये व्यापारियों ने कमा लिए। सरकार खुश है कि उसकी आर्थिक नीति सफल है। विकास दर में इजाफा हो रहा है। सरकार की छाती चौड़ी हो रही है। सरकार को और धन चाहिए। अगले वर्ष 1 करोड़ और लोगों को रोजगार देना है। इस बहाने जनता की गर्दन पर महंगाई अपनी पकड़ और सख्त करे। खाद्यान्न के साथ अब दूसरी चीजों पर महंगाई अपनी नकेल कसने वाली है। आखिर जनता चाहती है कि देश विकसित हो तो उसे ही तो इसकी कीमत चुकानी है। यह सब ए टीम कांग्रेस कर रही है।
अब कांग्रेस की बी टीम भाजपा क्या करे ? वह यह सब आंख बंद कर देख तो नहीं सकती। इसलिए उसका कर्तव्य है कि वह कांग्रेस सरकार के विरोध में प्रदर्शन करे। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तय हुआ है कि 21 अप्रेल को भाजपा संसद का घेराव करेगी। 15 लाख नागरिको को लाकर दिल्ली में ऐसा प्रदर्शन किया जाएगा कि सरकार की चूल हिल जाए। लालकृष्ण आडवाणी ने तो आह्वïन किया है कि सिर्फ भाजपा के कार्यकर्ता ही इस प्रदर्शन में सम्मिलित नहीं हों बल्कि महंगाई के विरूद्घ जनता भी प्रदर्शन में भाग ले। जिससे जनता को पता चले कि उसकी असली हितैषी भाजपा है। जब कांग्रेस के महामंत्री दिग्विजयसिंह ही कांग्रेस को ए टीम और भाजपा को बी टीम बता रहे हैं तो दोनों के बीच सत्ता के लिए फे्रंडली मैच होना तो जायज है।
यह राजनीति का खेल है। जिस तरह से किसी भी खेल में दो टीम होती है और वे आपस में जीत के लिए खेलती है और दर्शक ताली बजाते हैं। उसी तरह का यह भी खेल है। दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है तो भाजपा दिल्ली में प्रदर्शन करती है। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है तो कांग्रेस छत्तीसगढ़ में धरना प्रदर्शन करती है। देश भर के भाजपाई महंगाई का कारण केंद्र की कांग्रेस सरकार को बताते हैं तो छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी महंगाई के लिए राज्य की भाजपा सरकार को दोषी बताते हैं। अब यह जनता पर है कि वह तय करे कि कौन सही है? चुनाव में निर्णय का अधिकार जनता के पास ही होता है। जनता के वोट ही निर्णायक होते हैं कि खेल में कौन जीता, कौन हारा? लेकिन कोई जीते कोई हारे, अंतत: हार तो जनता ही जाती है। क्योंकि उसका एक बार किया निर्णय जिसके भी पक्ष में होता है, वही 5 वर्ष के लिए सत्ता का हकदार बन जाता है।
कभी कभी जनता किसी अच्छे व्यक्ति को भी चुन लेती है। वह अपनी क्षमता भर बल्कि उससे बढ़कर जनता की समस्याओं को हल करने का ईमानदारी से प्रयास करता है। तब दूसरी बार भी निर्णय के वक्त जनता दुष्प्रचारों से प्रभावित न होकर पुन: सत्ता उसे ही सौंप देती है। कभी देश में एक छत्र शासन करने वाली कंग्रेस जिसे ए टीम बताया जाता है केंद्र में मिली जुली सरकार चला रही है तो कितने ही राज्यों में उसका सुपड़ा साफ हो गया है। भाजपा जिसे बी टीम बताया जा रहा है वह 9 राज्यों में सत्ता पर है और 100 से अधिक लोकसभा सदस्य उसके पास हैं। वह 6 वर्ष तक केंद्र की सत्ता पर काबिज भी रह चुकी। मतलब साफ है कि जनता ए टीम से नाराज हुई तो सत्ता बी टीम के पास ही जाना है। सत्ता जिसके पास हो वहीं ए टीम है तो आज की ए टीम कल को बी टीम बन जाती है तो यही तो राजनीति का खेल है।
- विष्णु सिन्हा
20-2-2010
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