जब सही जवाब न हो तब निम्न स्तर की बातों को जवाब बनाया जाता है। यह कहना बाल ठाकरे का कि मुंबई इटैलियन मम्मी का नहीं है, अभद्रता का ही प्रतीक नहीं है बल्कि इस बात की भी निशानी है कि मुंबई और महाराष्ट्र सिर्फ मराठियों का जैसी बात ग्राह्य नहीं हो रही है। बहुमत इस बात से सहमत नहीं है। न तो कांग्रेस, न ही राष्ट्रवादी कांग्रेस और न ही भाजपा मुंबई और महाराष्ट्र को सिर्फ मराठियों की बात से सहमत है। विधानसभा के चुनाव में ही शिवसेना, मनसे को मिले वोट ही यह स्पष्ट कर देते हैं कि अधिकांश जनता उनके पक्ष में नहीं है। क्योंकि 288 विधानसभा क्षेत्रों में 60 से भी कम सीटों पर चाचा भतीजा को जीत मिली और 228 विधारनसभा क्षेत्र के लोग उनसे सहमत नहीं है। जब मराठी ही इनकी बातों से सहमत नहीं हैं तब उनकी बातों का क्या महत्व रह जाता है ? यह तो मीडिया की मेहरबानी से इनके विवादास्पद विचार और कृत्य लोगों तक पहुंच रहे हैं और जिस तरह से कड़ी कार्यवाही की इनके विरूद्घ कानून के पालन के लिए जरूरत थी, उसमें सरकार विफल रही है। यदि कानून हाथ में लेकर मारपीट करते हुए इनके कार्यकर्ताओं पर सरकार ने कड़ी कार्यवाही की होती तो न इनके हौसले बढ़ते और न बात यहां तक पहुंचती।
सोनिया गांधी के विषय में यह कहना कि वे इटैलियन मम्मी हैं, राहुल की, न केवल सभ्य आचार के विरूद्घ है बल्कि भारतीय संस्कृति के भी विरूद्घ है। यह सत्य है कि सोनिया गांधी का जन्म इटली में हुआ लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसार स्त्री का घर उसका मायका नहीं होता बल्कि ससुराल होता है। राजीव गांधी से विवाह के बाद सोनिया गांधी का घर भारत है और वह किसी भी भारतीय महिला की तरह भारतीय हैं। जब हर भारतीय का अधिकार मुंबई पर है तो सोनिया गांधी का क्यों नहीं होगा? फिर महाराष्ट्र के लोगों ने तो अपने ऊपर शासन करने का अधिकार भी उस पार्टी को दिया है जिसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। कभी कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस बनाने वाले शरद पवार ने कांग्रेस सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के कारण ही छोड़ी थी लेकिन आज उनकी पार्टी न केवल महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ भागीदारी कर सरकार चला रही है बल्कि केंद्र में सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले संप्रग सरकार के मंत्री भी शरद पवार हैं। संप्रग विभिन्न दलों का गठबंधन है जिसमें शरद पवार का दल भी शामिल हैं। उन्होंने भी सोनिया गांधी को संप्रग का अध्यक्ष माना हुआ है।
शरद पवार स्वयं कह चुके हैं कि विदेशी मूल का सोनिया गांधी का मुद्दा अब कोई मुद्दा नहीं हैं। क्योंकि भारत की जनता ने ही इस मुद्दे की हवा निकाल दी है। वे चाहती तो मनमोहन सिंह के बदले स्वयं प्रधानमंत्री बन सकती थी। संप्रग के सभी दलों ने उन्हें ही अपना नेता चुना था। कहीं कोई अड़चन नहीं थी। तब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। आज केंद्र में उनकी सरकार है। महाराष्ट में उनकी सरकार है। कई प्रांतों में उनकी सरकार है। वे देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी की अध्यक्ष हैं। तब बाल ठाकरे के कह देने मात्र से तो मुंबई सोनिया गांधी की नहीं हो सकती। मुंबई जितनी किसी भारतीय की है, उससे कम सोनिया गांधी की नहीं हैं। इटैलियन मम्मी जैसे शब्द का प्रयोग कर बाल ठाकरे खुश हो सकते हैं लेकिन इससे जनता भी उनसे सहमत है, ऐसा तो नहीं दिखायी पड़ता।
दरअसल मुंबई के विषय मे ठाकरे चाचा भतीजा से असहमति की बात अब इतने लोगों ने कह दी है कि विरोध का कभी सामना न करने वाले अब बौखला गए हैं। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि राहुल गांधी ठाकरों के विचारों के विरूद्घ वक्तव्य देंगे। अभी तक कांग्रेस पर ही संदेह किया जाता था कि चाचा भतीजा की लड़ाई से फायदा उठाने के लिए कांग्रेस उन्हें शह दे रही है। इसलिए राहुल से ऐसे वक्तव्य की उम्मीद नहीं थी लेकिन राहुल ने जब खुलकर बोल दिया कि बिहार उत्तरप्रदेश सहित सभी राज्यों के कमांडों ने मुंबई हमले के समय मुंबई की रक्षा की तो मामला एकदम साफ हो गया। राहुल के पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी मुंबई और महाराष्ट्र के विषय में राय व्यक्त कर ही चुके थे। उन्होंने तो स्वयं सेवकों से कहा कि उत्तर भारतीयों पर हमला होता है तो उनकी रक्षा करें। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की नीति स्पष्ट हो गयी। ऐसे में कांग्रेस को अपनी बात तो स्पष्ट करनी ही थी। अब राज ठाकरे कह रहे हैं कि राहुल गांधी रोम पुत्र हैं। यह वक्तव्य खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तरह है। राज ठाकरे और बाल ठाकरे के विषय में भी तो कहा जा रहा है कि वे मराठी नहीं हैं बल्कि मध्यप्रदेश के इंदौर खंडवा से आकर मुंबई में बसे हैं।
कल ही एक न्यूज चैनल में दिखाया जा रहा था कि बाल ठाकरे पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी जावेद मियांदाद के साथ अपने निवास स्थान पर हंस हंस कर बात कर रहे हैं। वहीं पास में हाथ बांधे राज ठाकरे और उनके निकट उद्घव ठाकरे खड़े हैं। फिर जावेद मियांदाद सिर्फ क्रिकेट खिलाड़ी नहीं हैं बल्कि वे कुख्यात माफिया डान दाऊद इब्राहिम के समधी भी हैं। जिन्हें मुंबई बम विस्फोट का मुख्य कर्ताधर्ता माना जाता है। इस बम विस्फोट से हिंदुओं को बचाने का दावा उद्घव ठाकरे कर रहे हैं। शाहरूख खान के वक्तव्य कि आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को भी खेलना चाहिए, का विरोध करने वाले अपने गिरेबां में भी तो झांक लें। वे घर बुलाकर पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी को दावत दें तो सही और शाहरूख खान सिर्फ खेलने की बात कह रहे हैं तो उनसे कहा जा रहा है कि माफी मांगो। खुद करो तो सही और दूसरा कहे तो गलत।
विचार भिन्नता हो सकती है। प्रजातंत्र उसका सम्मान भी करता है। संविधान हर किसी को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता भी देता है। अभिव्यक्ति की भी स्वतंत्रता देता है लेकिन किसी को किसी के विचारों को मानने की बाध्यता नहीं देता। किसी को भी इसका अधिकार नहीं है कि वह दूसरे को नाजायज रूप से बाध्य करे। यदि कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो कानून को अपना काम करना चाहिए। कानून अपना काम पूरी मुस्तैदी से करे, यह देखना शासन का काम है। राहुल गांधी के सिर्फ वक्तव्य देने से काम नहीं चलने वाला है। उनकी महाराष्ट्र में सरकार है तो उन्हें उसके कान ऐंठने चाहिए कि यह महाराष्ट्र में हो क्या रहा है? शाहरूख खान की फिल्म दिखाने वाले थियेटरों को धमकाने वालों पर कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं जा रही हैै? पिछले दिनों इन्हीं ने एक न्यूज चैनल के दफतर में तोड़फोड़ की। भारत जैसे स्वतंत्र देश में किसी को भी इस बात की आजादी नहीं दी जा सकती कि वह बाहुबल से किसी को भी दबाए। ऐसा होता है और शासन मूकदर्शक बना रहता है तो शासन भी पूरी तरह से दोषी है। इनका मनोबल तो इतना बढ़ा है कि राहुल को भी चुनौती दे रहे हैं कि दम हो तो महाराष्ट्र में आकर यह बात कहें। राहुल को अवश्य मुंबई में जाकर खुली आम सभा में यह बात कहना चाहिए।
- विष्णु सिन्हा
4-2-2010
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बिलकुल सही कहा आपने । जब इन लोगों का अपना आधार जनता मे से खोने लगता है तब इन्हें सोनिया राहुल को कोसने के सिवा कुछ नही आता धन्यवाद इस आलेख के लिये
जवाब देंहटाएं100% sahmat....baal thakre to insaniyat ke bhi nahi hain ..maharashtr to door ki baat.
जवाब देंहटाएंभारत तथाकथित सुधरे हुए समाज का एक हिस्सा है
जवाब देंहटाएंभारत का इतिहास इसी तरह के विभाजन और आपसी लड़ाई झगड़ों की दास्ताँ लिए हुए है
२०१० का समय भी ये धर्म, क्षेत्रीयतावाद , जात पांत के भेद भावों को मिटा न पाया उसका बहुत अफ़सोस है -
-- हर देश भक्त को नमन --
भारतीय जनता कब संगठित होगी ?
बातें करने का समय कब का बीत चूका है ...
अब तो , कायरता का त्याग करो ...
नेता क्या करेंगें ? सिर्फ टेक्स लेंगें आपसे ..
जनता जनार्दन कब जागेगी ?
- लावण्या