यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

नक्सलियों की किससे मिली भगत है यह जनता को अच्छी तरह से पता है

लोकसभा में छत्तीसगढ़ के इकलौते कांग्रेसी सांसद चरणदास महंत ने दंतेवाड़ा की घटना के विषय में कहा कि जवानों को बुलेट प्रूफ जैकेट मुहैया नहीं कराया गया। सीआरपीएफ को हथियार, वर्दी, बुलेट प्रूफ जैकेट देने का काम राज्य सरकार का नहीं है। फिर खबर तो यह है कि जवानों के मृत शरीर से बुलेट प्रूफ जैकेट तक नक्सली उतार कर ले गए। ऐसी स्थिति में चरणदास महंत के आरोपों का क्या औचित्य रह जाता है? चरणदास महंत लोकसभा में लालूप्रसाद यादव को बता रहे थे कि वे एमएससी, एमए, लॉ एवं पीएचडी हैं। उनके नाम चरणदास से उन्हें बिना पढ़ा लिखा न समझा जाए। वे मध्यप्रदेश के गृहमंत्री भी रह चुके हैं। इतना परिचय देने का तो यही अर्थ निकलता है कि दूसरी बार लोकसभा में पहुंचे चरणदास महंत को अभी ठीक से लोकसभा सदस्य पहचानते भी नहीं। भाजपा पर आरोप लगाते हुए चरणदास महंत ने ऐसे आरोप लगाए कि भाजपा के छत्तीसगढ़ के सांसद उनके विरूद्घ संसद में खड़े हो गए और चरणदास महंत के आरोपों को नियमों के तहत कार्यवाही से निकाल दिया गया।

मध्यप्रदेश के गृहमंत्री, छत्तीसगढ़ के प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और बाद में कार्यकारी अध्यक्ष के पद को सुशोभित करने वाला व्यक्ति जब कांग्रेस की तरफ से लोकसभा में बोलने के लिए खड़ा हुआ तो बार बार पानी पीते हुए दिखायी पड़ा। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि नक्सलियों से उसकी मिली भगत है। बस्तर की जो 12 में से 11 सीटें भाजपा ने जीती है तो वह नक्सलियों से मिली भगत के कारण जीती है। जबकि यह तथ्य सबको अच्छी तरह से पता है कि पहली बार राज्य में कोई सरकार नक्सलियों से जूझ रही है तो वह डा. रमन सिंह की ही सरकार है। यदि डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार की नक्सलियों से मिली भगत होती तो वह सलवा जुडूम का समर्थन ही क्यों करती? बार बार केंद्र सरकार को नक्सली समस्या की गंभीरता से अवगत कराने की कोशिश ही क्यों करती? बार बार डा. रमन सिंह केंद्र सरकार से क्यों कहते कि यह अकेले छत्तीसगढ़ राज्य की समस्या नहीं है बल्कि कई राज्यों में फैली समस्या है और केंद्र सरकार जब तक सभी राज्यों को एक साथ जोड़कर संयुक्त कार्यवाही नहीं करती तब तक समस्या से निपटा नहीं जा सकता।
बस्तर की जो 12 में से 11 सीटें भाजपा ने जीती है, वह नक्सलियों से मिली भगत के कारण नहीं जीती है बल्कि इसलिए जीती है, क्योंकि पहली बार किसी सरकार पर आदिवासियों ने नक्सल समस्या से मुक्त कराने के लिए विश्वास प्रगट किया है। विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में छत्तीसगढ़ में भाजपा को जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में समर्थन मिला है, उसका कारण भी यही है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह आज तपती दोपहरी में वातानुकूलित कक्षों में नहीं बैठे हैं बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर चौपाल पर बैठकर ग्रामीणों की समस्या हल कर रहे हैं। कांग्रेसी छत्तीसगढ़ के क्या कर रहे हैं? लोगों को सरकार के विरूद्घ जागरूक करने का काम कर रहे हैं और इसके लिए वे एक दिनी धरना देकर और राज्यपाल को ज्ञापन देकर कि सरकार को बर्खास्त किया जाए, कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं। पिछली बार अकेले लोकसभा के लिए अजीत जोगी चुने गए थे, इस बार उनकी पत्नी ने चुनाव लड़ा तो वह हार गयी और चरणदास महंत अकेले 11 में से लोकसभा के लिए जीत पाए। यदि नक्सलियों से मिली भगत से ही चुनाव जीतना आसान होता तो कांग्रेस को क्या समस्या थी ? जबकि नक्सलियों से जूझते और सलवा जुडूम के पक्ष मे खड़े डा. रमन सिंह की आलोचना करने में कांग्रेस का एक गुट बढ़ चढ़कर आगे रहा। मानवाधिकार की वकालत करने वाले भी राज्य सरकार को ही दोषी करार देते रहे लेकिन 76 जवानों की हत्या के मामले में आंसू बहाने के लिए कोई सामने नहीं आया। दिग्विजय सिंह जैसे असफल कांग्रेसी नेता अपनी ही पार्टी के चिदंबरम को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। जो हर समस्या में राजनैतिक लाभ ही तलाशते हैं तो देश के साथ क्या कर रहे हैं, यह नहीं समझते, ऐसा तो नहीं माना जा सकता। ये वही दिग्विजय सिंह हैं जो अपने विधायकों से कहा करते थे कि 5 वर्ष के काम पर वोट नहीं मिलते बल्कि रणनीति पर वोट मिलते हैं। चरणदास महंत इन्हीं के तो शिष्य हैं और गृहमंत्री के रूप में इनकी कितनी चलती थी, सरकार में, यह छत्तीसगढ़ के लोगों को अच्छी तरह से पता है।

चरणदास महंत यह दावा कर रहे है कि इनके गृहमंत्री रहते नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हिसक घटनाएं नहीं हुई। बालाघाट के पास जो नेता मारा गया था, वह हिंसक घटना नहीं थी। फिर जब नक्सलियों के रहमोकरम पर आदिवासियों को पूरी तरह से छोड़ दिया गया था तब हिंसक घटनाएं कम हुई तो आश्चर्य की क्या बात ? आज भी नक्सली यही मांग तो कर रहे हैं कि उनके विरूद्घ चलाया जा रहा सशस्त्र बल का आपरेशन बंद किया जाए। मतलब साफ है कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में सरकार हस्तक्षेप न करे। तब एकदम शांति होगी। क्या कोई भी सरकार ऐसी शांति पसंद करेगी? जैसे नक्सलियों का प्रभाव क्षेत्र बढ़ता जाए, वैसे वैसे सरकार सिमटती जाए तो नक्सली जो कह रहे है कि सन 2050 तक तक वे पूरे भारत में अपना शासन कायम कर लेंगे, इसके लिए सरकारें तैयार हैं, क्या ?

यह तो तय है कि अभी जो जनता के नुमाइंदे बने लोकसभा और विधानसभा में बैठे हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में बैठे हैं। इनमें से अधिकांश आज से 40 वर्ष बाद 2050 में शायद ही जीवित बचें लेकिन इनके बाल बच्चे तो निश्चित रूप से इसी भारत में रहेंगे। आज बैठे लोगों को ही तय करना है कि वे अपने बाल बच्चों के लिए कैसा भारत छोडऩा चाहते हैं? आज जो नक्सली नेता हैं या नक्सली लड़ाके वह भी 40 वर्ष में बुजुर्ग हो जाएंगे और 40 वर्ष बहुत बड़ा समय होता है। या तो देश की नई पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होगा या फिर दरिद्र। यदि इसी तरह से विभाजित विचारों से समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया जाएगा और व्यक्तिगत राजनैतिक लाभ के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल चलता रहेगा तो एकता की ताकत से जिस तरह से राष्ट्रीय समस्याओं से निपटा जाना चाहिए, उस तरह से निपटना कठिन होगा।
प्रतिपक्ष में होने के बावजूद भाजपा गृहमंत्रीके साथ खड़ी दिखायी दे रही है। जबकि कुछ कांग्रेसी गृहमंत्री की नीतियों से सहमत नहीं हैं। हालांकि अभी तक पार्टी असहमत नेताओं के साथ खड़ी नहीं दिखायी दे रही है और गृहमंत्री ने स्वयं कहा है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने जिस तरह से उनका समर्थन किया है, उसके लिए वे कृतज्ञ हैं। नक्सलियों के विरूद्घ अभियान बंद नहीं होगा। वे हथियार छोड़ दें तो वार्ता की जा सकती है। विकल्प खुला हुआ है और कितनी विनम्रता दिखाए सरकार। नक्सलियों से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी सरकार में बैठे लोगों की नहीं है। उनके कृत्यों से सहमति का तो प्रश्न ही नहीं उठता। कोई भी सरकार को बंदूक के बल पर झुकाकर अपने को सही सिद्घ करना चाहे तो सरकार उसे सही नहीं मान सकती। सरकार ही क्यों, कोई भी सही नहीं मान सकता।

- विष्णु सिन्हा
16-04-2010

2 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार ही क्यों, कोई भी सही नहीं मान सकता-बिल्कुल सही कहा आपने!

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  2. सिन्हा जी, कुछ समय पहले तक अखबार में सोच की लकीरें पढ़ा करता था, लेकिन फिर कुछ दिक्कतें हो गई। ब्लाग में वही सब पढ़ने को मिला, अच्छा लगा। अब से मैं एक बार फिर आपका नियमित पाठक।

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