यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
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शनिवार, 17 अप्रैल 2010

शशि थरूर की सारी बातें लफफाजी के सिवाय और कुछ नहीं

विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर को क्यों कांग्रेस बर्दाश्त कर रही है? जब से वे विदेश मंत्री बने हैं तब से ही अपने बेलाग विचारों के कारण वे कांग्रेस की छवि को नुकसान ही पहुंचा रहे हैं। कभी हवाई जहाज के इकानामी क्लास को भेड़ बकरियों का बताकर तो कभी सऊदी अरब को पाकिस्तान भारत में मध्यस्थता की बात कर विवाद खड़ा करने के सिवाय शशि थरूर ने और क्या किया है? अब आईपीएल में अपनी टांग अड़ा रहे हैं। कोच्चि टीम को लेकर वे विवाद के घेरे में हैं। अपनी महिला मित्र सुनंदा पुष्कर को कोच्चि टीम में बिना एक पैसा लगाए 17 प्रतिशत का हिस्सेदार बनाने का आरोप उन पर है। आईपीएल के कमिश्नर ललित मोदी तो कह रहे हैं कि वे कोच्चि टीम को अबूधाबी ले जाना चाहते हैं। आईपीएल की तीसरी श्रृंखला चल रही है और आईपीएल ने दो नई टीमें बेची हैं। इसमें से ही एक कोच्चि टीम है जिसने पंद्रह सौ करोड़ रूपये से अधिक में मालिकाना हक खरीदा है।

आयकर विभाग को भी दो श्रृंखला तक खोज खबर लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई कि अरबों का धंधा करती आईपीएल की जांच की जाए कि आखिर पैसा आ कहां से रहा है और जा कहां रहा है? शायद शशि थरूर विवाद नहीं होता तो आयकर विभाग को भी जरूरत महसूस नहीं होती, जांच की। शशि थरूर कांग्रेस की छवि खराब कर रहे हैं और इसमें बड़ा हाथ ललित मोदी का है तो आयकर विभाग ललित मोदी को घेरने के लिए प्रमाणों की जुगत में है। भले ही घोषित रूप से क्रिकेट भारत का राष्टरीय खेल न हो लेकिन क्रिकेट के प्रति भारतीयों की उत्सुकता ने ही क्रिकेट को फलने फूलने का अवसर दिया और क्रिकेट आईपीएल के द्वारा बड़ा उद्योग ही साबित हो रहा है। न तो विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का कोई असर है, इस खेल पर, न ही किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में धन की बरसात कम हो रही है क्रिकेट पर। कहा तो यह जा रहा है कि एक सीजन आईपीएल का सब तरह के धंधों को मिलाकर एक लाख करोड़ रूपये से अधिक का कारोबार करता है.

पिछली बार जब देश में चुनाव हो रहे थे तब गृह मंत्रालय ने सुरक्षा के कारणों से आईपीएल टू के लिए इजाजत नहीं दी तो आईपीएल दक्षिण अफ्रीका चला गया और वहां भी शान से आईपीएल के मैच हुए। आईपीएल जब प्रारंभ हुआ तब सौ दो सौ करोड़ में टीमें नीलामी में बिकी थी और 3 वर्ष के लिए खिलाडिय़ों की भी नीलामी हुई थी। करोड़ों में खिलाड़ी भी बिके थे लेकिन 2 वर्ष में ही तीसरा वर्ष आते आते टीम की कीमत 15 सौ से 18 सौ करोड़ रूपये हो गई। आखिर इतनी महंगे टीम बिकने का कारण आर्थिक नहीं है तो क्या है? मैदान में दर्शकों के लिए भले ही खेल खिलाडिय़ों का हो लेकिन मैदान के बाहर यह कमायी का खेल पूंजीपतियों, राजनीतिज्ञों, अभिनेता, अभिनेत्रियों के लिए हो गया। जहां इतना ज्यादा धन होगा, वहां स्वाभाविक है कि सब कुछ ठीक ठाक तो नहीं होगा।

आईपीएल के कमिश्रर ललित मोदी के विषय में ही कहा जा रहा है कि विद्यार्थी के रूप में जब विदेश में पढ़ रहे थे तो 10 हजार डालर प्राप्त करने के लिए अपराध करने से भी ये नहीं चूके थे। विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने अपना अधिकांश जीवन विदेश में व्यतीत किया है। ये एक पत्नी को तलाक दे चुके हैं। दूसरी को देने जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि तीसरी के लिए ही इन्होंने कोच्चि टीम में अपने पद का दुरूपयोग किया। पहली बार सांसद बने और कांग्रेस ने न जाने क्या सोचकर इन्हें अपना विदेश राज्यमंत्री बना दिया।
राज्यमंत्री बनते ही इन्होंने अपना ठिकाना पंचसितारा होटल में बनाया और जब हल्ला मचा तब प्रणव मुखर्जी की घुड़की के बाद होटल छोड़ा। उस पर कहने से नहीं चूके कि होटल का बिल ये अपनी जेब से भर रहे थे?

कभी कांग्रेस गरीबी हटाओ का नारा लगाकर सत्ता पर काबिज होती थी और आज कांग्रेस का मंत्री एक ऐसा पूंजीपति है जो पद का दुरूपयोग कर आईपीएल की टीम खरीदने में मदद करता है। कांच की गिलास को रूमाल से छुपाकर पता नहीं क्या सरेआम पार्टी में पीता है? यदि छुपाने वाली वस्तु न हो तो रूमाल से गिलास ढंकने की जरूरत क्या थी? यह हर बार गलती करता रहा और प्रधानमंत्री हर बार इसे माफ करते रहे लेकिन अब बात बहुत आगे बढ़ गयी है। संसद में दिए गए वक्तव्य को सरकार का वक्तव्य न मानकर एक सांसद का वक्तव्य माना गया और पूरा विपक्ष इन्हें मंत्रिपरिषद से बर्खास्त करने की अपनी मांग पर अड़कर सदन के गर्भगृह में खड़ा हो गया। तृणमूल कांग्रेस तो संसद में आ नहीं रही है और लालू मुलायम ने भी सरकार का समर्थक होने के बावजूद विपक्ष का ही साथ दिया। आईपीएल की महिमा देखिए कि संसद की कार्यवाही इसी को लेकर ठप्प की जा रही है। यह इतना बड़ा मुद्दा है कि अन्य मुद्दे पीछे रह गए। यह सब इसीलिए हो रहा है क्योंकि भारत सरकार का एक मंत्री इसमें संलग्र पाया जा रहा है। शायद शशि थरूर को अभिमान हो गया था कि वे चूंकि सरकार में हैं, इसलिए वे जैसा चाहेंगे वैसा आईपीएल के कमिश्नर ललित मोदी करने के लिए बाध्य होंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश में हैं, और उन्होंने कहा है कि वे वापस लौटकर सभी तथ्यों की जानकारी लेकर आगे की कार्यवाही करेंगे। विपक्ष भी उनके वापस आने और उनके विचार जानने के बाद आगे की रणनीति पर विचार करेगा। लेकिन अभी तक के घटनाक्रम में कांग्रेस के किसी भी नेता ने शशि थरूर के पक्ष में कुछ नहीं कहा है जबकि शशि थरूर तीन तीन बार प्रणव मुखर्जी से मिल चुके हैं। वे सोनिया गांधी से भी मिल चुके हैं लेकिन कहीं से भी उन्हें रक्षात्मक सहायता नहीं मिली। अब सब कुछ मनमोहन सिंह पर निर्भर करता है। मामला इसलिए गंभीर है कि शशि थरूर की मित्र सुनंदा पुष्कर को बिना एक पैसा लगाए 70 करोड़ रूपये की हिस्सेदारी कोच्चि टीम में दी गई है। सुनंदा पुष्कर का कहना है जो दुबई में रहती है कि उन्हें हिस्सेदारी उनके काम के मेहनताने के बदले में दी गई है। पता नही कंपनी के लिए वे ऐसा क्या काम करेगी ? जिसके लिए उन्हें इतनी ज्यादा इज्जत दी जा रही है। सुनंदा स्वीकार करती हैं और शशि थरूर भी स्वीकार करते हैं कि वे दोनों आपस में अच्छे मित्र हैं। इससे प्रतिध्वनित तो यही होता है कि मित्र के पद को लाभ पहुंचाने की कीमत सुनंदा को दी गई।

अब कितना भी शशि थरूर अपने को निर्दोष बताएं लेकिन संदेह की सुई उन्हीं पर टिकी हुई है। वे कहते हैं कि केरल को एक टीम मिले और केरल का गौरव बढ़े यही उनका उद्देश्य था लेकिन कोच्चि टीम होने के बाद भी केरल के कितने खिलाड़ी इस टीम में खेलेंगे और नाम भर रख लेने से केरल कैसे गौरवान्वित होगा ? अरबों में जिन्होंने टीम खरीदी है, उन्होंने इसलिए तो टीम खरीदी नहीं है कि वे केरल के खिलाड़ी ही अपनी टीम में खिलाएंगे। क्योंकि हार जाएं, यह दूसरी बात है लेकिन हर कोई चाहता तो यही है कि उसकी टीम जीते। इसीलिए तो विदेशी खिलाडिय़ों को भी भारी कीमत पर खरीदा जाता है। शशि थरूर की सारी बातें सिवाय लफफाजी के और कुछ नहीं। कांग्रेस उन्हें टिकाए रखने का निर्णय लेती है तो नुकसान कांग्रेस का ही होगा।

- विष्णु सिन्हा
17-04-2010

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