यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 28 मार्च 2010

अमिताभ बच्चन को ही नहीं हरिद्वार में गंगा स्नान को भी कांग्रेस राजनैतिक चश्मे से देख रही

विधानसभा अध्यक्ष के आमंत्रण पर छत्तीसगढ़ के अधिकांश विधायक हरिद्वार की यात्रा पर गए। पहले मुख्यमंत्री ने आमंत्रित किया था तो कांग्रेस विधायक दल ने इंकार कर दिया था। क्योंकि उन्हें डर था कि मुख्यमंत्री के आमंत्रण पर वे हरिद्वार गए तो उनकी छवि खराब होगी और जनता तक गलत संदेश जाएगा कि सरकार और प्रतिपक्ष में एकता है। फिर रास्ता निकाला गया और विधानसभा की तरफ से ले जाने का कार्यक्रम बना और कांग्रेस विधायक दल ने सहमति दे दी। अब कान सीधे पकड़ो या हाथ घुमाकर, पकड़ोगे तो कान ही। मुख्यमंत्री के आमंत्रण पर हरिद्वार जाओ या विधानसभा अध्यक्ष के, जाओगे तो छत्तीसगढ़ सरकार के ही खर्च पर। फिर जनता क्या समझती नहीं? 17 विधायक कांग्रेस के हरिद्वार चले गए और बड़े कांग्रेसी विधायकों ने येन समय पर व्यक्तिगत कारणों से हरिद्वार न जाने का बहाना बना लिया।

मुंबई में घटी घटना के कारण भी भय पैदा हो गया। जिस तरह से अमिताभ बच्चन के साथ कार्यक्रम में सम्मिलित होने पर अशोक चव्हाण को निशाना बनाया गया और कारण बताया गया कि वे नरेंद्र मोदी के गुजरात के ब्रांड अम्बेसडर है। इसलिए कांग्रेसियों को उनसे दूर रहना चाहिए। इससे कांग्रेस की छवि खराब होती है। इस भय ने ही कल दिल्ली में अर्थ ऑवर के दौरान अभिषेक बच्चन के बैनर और वीडियो से परहेज करने के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को प्रेरित किया। मतलब अमिताभ से ही नहीं उनके पुत्र से भी कांग्रेस दूरी दिखाना चाहती है। कोई भाजपा सरकार के राज्य का ब्रांड अम्बेसडर पर्यटन के मामले में बनता है तो वह तो कांग्रेस के लिए अछूत हो ही गया। उसका गैर राजनैतिक पुत्र भी अछूत हो गया। गांधीजी ने अछूतोद्धार का कार्यक्रम चलाया। कांग्रेस की घोषित नीति बनाया कि सब समान हैं। आज कांग्रेस भेदभाव सीखा रही है।

ऐसे माहौल में छत्तीसगढ़ के कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी विधायकों ने व्यक्तिगत कारणों से भाजपा के साथ हरिद्वार जाने से परहेज किया तो कोई आश्चर्य की बात नहींं। गुजरात का पर्यटन का ब्रांड अम्बेसडर बनने वाले को जब पसंद नहीं किया जा रहा है तो सरकार तो छत्तीसगढ़ में नरेन्द्र मोदी की ही पार्टी की हैं। विधानसभा अध्यक्ष भी उसी पार्टी के हैं। उनके साथ हरिद्वार जाकर गंगा स्नान करना तो धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला है। कल को कोई यह प्रश्र भी उठा सकता है कि विधानसभा अध्यक्ष से व्हील चेयर लेना अजीत जोगी का उचित नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष से लेना अलग बात है। क्योंकि वे धर्म-निरपेक्ष दलों के समर्थन से लोकसभा अध्यक्ष बने थे। छत्तीसगढ़ विधानसभा में तो विधानसभा अध्यक्ष भाजपा की टिकट पर जीता विधायक बना है। उससे व्हील चेयर की मांग करना ही अजीत जोगी का गलत है। इससे तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस का दिग्गज नेता भाजपा की दी गई व्हील चेयर पर बैठ कर चलने-फिरने के लिए बाध्य है। जब विपक्ष में किसी के तर्क प्रस्तुत करना हो तो तर्कों की कमी तो नहीं हैं।

मुंबई में अमिताभ बच्चन को लेकर जो बवाल खड़ा किया गया, उसका कारण यह बताया जा रहा है कि कार्यक्रम में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बुलाया नहीं गया और आमंत्रण पत्र में उनका नाम भी प्रकाशित नहीं किया गया। कांग्रेस में यह खेल पुराना है। कोई भी किसी से नाराज हो तो उसके विरुद्ध इसी तरह की बातें की जाती है। इससे पूरे देश के कांग्रेसी सतर्क हो जाते हैं और उसी रास्ते पर चलने लगते हैं। जब छत्तीसगढ़ सरकार ने विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने का प्रस्ताव विधानसभा में रखा तब किसी कांग्रेसी ने विरोध नहीं किया। किसी ने भी यह कहने की जरुरत नहीं समझी कि सरकार हमारे वेतन भत्ते बढ़ाने के बदले किसानों को बोनस दे। किसानों को मुफ्त में बिजली दे। आखिर प्रस्ताव तो भाजपा सरकार का था, कांग्रेस ने सहमति क्यों दी? इसलिए कि स्वयं को लाभ हो रहा है। कितने ही मुद्दों पर कांग्रेसी विधायक बहिर्गमन करते हैं। इस मुद्दे पर भी करते। नहीं, इसकी जरुरत नहीं समझी गई।

किसी भी तरह की स्पष्ट सोच कांग्रेसियों के पास नहीं है। जब मुख्यमंत्री के आमंत्रण से असहमति प्रगट की गई तो विधानसभा के अध्यक्ष के आमंत्रण पर सहमति का क्या अर्थ होता है? फिर सहमति दी ही थी तो अंतिम समय पर जब कांग्रेसी विधायक हवाई अड्डे पहुंच गए तब व्यक्तिगत कारण के बहाने कन्नी क्यों काटी गई? व्यक्तिगत कारण भी वास्तव में था तो भी कम से कम प्रतिपक्ष के नेता रविन्द्र चौबे हवाई अड्डे पर कांग्रेसी विधायकों को विदा करने तो जा ही सकते थे। इसमें क्या अड़चन थी? अड़चन क्या भय था? यदि अशोक चव्हाण की तरह जवाब देना पड़ता तो क्या जवाब देते? यह तो कह नहीं सकते थे कि उन्हें मालूम नहीं था कि भाजपा के मंत्री और विधायक भी जा रहे हैं। क्योंकि यह बहाना चलने वाला नहीं था। मुंबई में अमिताभ बच्चन का मामला नहीं उठा होता तो जा भी सकते थे। डर यही था कि छत्तीसगढ़ के किसी कृपाशंकर सिंह ने भी हल्ला मचा दिया तो ऐसा न हो कि प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी चली जाए।

ऐसा तो कहा नहीं जा सकता कि प्रतिपक्ष का नेता बनने की इच्छा कोई और कांग्रेसी नहीं रखता। मौका मिला तो कौन बैठने के लिए तैयार नहीं होगा? कुछ है जो धनेन्द्र साहू की प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। वे कोई ऐसा खतरा उठाने के लिए तैयार नहीं है। जिसके कारण गद्दी मिलने का अवसर खड़ा हो तो हरिद्वार यात्रा अड़ंगा बन कर खड़ा हो जाए। कांग्रेस के वही विधायक गए हैं जिन्हें मालूम है कि उन्हे कुछ मिलने वाला नहीं है। न तो वे प्रतिपक्ष का नेता बनने वाले है और न ही प्रदेशाध्यक्ष। इसलिए उन्हें कोई विशेष फर्र्क भी नहीं पड़ता। अभी तो पौने चार वर्ष तक सरकार से उन्हें काम पडऩा है और अपने क्षेत्र की समस्याओं को हल करना है। वे अपने शेष कार्यकाल मे जनता को समस्याओं से निजात दिलवाने में सफल हो गए तो फिर से जीत कर आने के अवसर उनके बढ़ जाएंगे।

बड़े कांग्रेसी विधायकों का क्या है? वे वैसे भी मुख्यमंत्री की गुड लिस्ट में है और प्राथमिकता के आधार पर अपने काम कराने में सक्षम हैं। इसलिए वे स्पष्ट भी नहीं कहते कि सरकार के साथ जाकर गंगा स्नान करने से कहीं उनके भविष्य पर प्रश्रचिन्ह न लग जाए। वे व्यक्तिगत कारण बता रहे हैं। सौजन्यता का परिचय दे रहे हैं। जिससे सरकार भी अन्यथा न समझे और आलाकमान से शिकायत भी न हो सके लेकिन शिकायत करने वाले यह तो कह ही सकते हैं कि ये जाना चाहते थे। अमिताभ बच्चन का मामला न उठा होता तो चले भी जाते। इसके साथ ही ये कोई नीति सिद्धांत की बात नहीं कह रहे हैं। बल्कि व्यक्तिगत कारण को बहाना बना रहे हैं। इससे कांग्रेस की छवि खराब हो रही है। इनका कर्तव्य था कि ये जाने वालों को भी रोकते और जाने के मामले में पहले सहमति ही नहीं देते। सीधा-सीधा कुंभ स्नान का मामला था लेकिन यह भी राजनैतिक चश्मे से देखा जा रहा है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 28.03.2010

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