यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 5 जुलाई 2010

पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्घि के विरोध में भारत बंद घडिय़ाली आंसू तो नहीं

कल भारत बंद है। विपक्षी पार्टियों का आव्हान है। जो दल सत्ता में
केंद्र में नहीं है, वे सभी भारत बंद के पक्ष में हैं। मुद्दा पेट्रोलियम
पदार्थों की कीमत में वृद्घि है। सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पेट्रोलियम
पदार्थों के मूल्य में वृद्घि कर विपक्ष को एक मंच पर आने का अवसर दिया
है । विभिन्न मुद्दों को लेकर आपस में उलझती पार्टियों को जब भी ऐसा
मुद्दा मिल जाता है कि वे एक हों और इसी में सबका हित दिखायी देता है,
तब वे अलग अलग अपनी ढपली नहीं बजा सकती। बिना किसी भेदभाव के अधिकांश
भारतीय महंगाई की जिस पीड़ा को भोग रहे हैं, उसके लिए अलगाव की राजनीति
काम नहीं करती। मनमेहन सिंह और उनकी सरकार भले ही कहे कि पेट्रोलियम
पदार्थों की मूल्यवृद्घि आवश्यक है लेकिन जो इस मूल्यवृद्घि की पीड़ा को
भोग रहे हैं, वे सरकार से सहमत नहीं हो सकते।
बड़ी बेशर्मी से कहा जा रहा है कि केरोसिन की कीमत में वृद्घि का असर 50
पैसे प्रतिदिन से ज्यादा नहीं है। वे समझ नहीं रहे हैं कि 20 रूपये
प्रतिदिन पर गुजारा करने वालों के लिए 50 पैसे की क्या अहमियत है? जो यह
तर्क दे रहे हैं, उनके लिए न तो केरोसिन की कोई महत्ता है और न ही 50
पैसे की। जिनका वेतन हजारों में नहीं अब लाखों में हो गया, उनके लिए 50
पैसे की निश्चित रूप से कोई महत्ता नहीं है। उनके बच्चों ने तो शायद देखा
भी नहीं होगा कि 50 पैसे का सिक्का भी होता है। हालांकि आज बाजार की जो
स्थिति है, उसमें 50 पैसे मे कुछ मिलता नहीं। एक और दो रूपये के नोट और
सिक्के की ही जब बाजार में कोई अहमियत नहीं रह गयी है तो 50 पैसे के
सिक्के की क्या अहमियत है? फिर भी 20 रूपये में अपना गुजारा करने वालों
के लिए तो महत्व है। सरकार ही जब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के घाटे
को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है तब यह सोचना कि आम जनता इसे बर्दाश्त कर
लेगी, जनता के साथ अन्याय के  सिवाय कुछ नहीं है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में नहीं है। वह भी महंगाई के विरूद्घ
आन्दोलन करने का इरादा रखती है। उसकी मांग है कि राज्य सरकार वेट में
कटौती करे और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत कम हो। केंद्र सरकार जो कि
कांग्रेस की है, वह कीमत बढ़ाए और राज्य सरकार कीमत कम करे। केंद्र
सरकार तो कीमतों का बोझ उठा नहीं सक रही है। जिसके पास आय के साधन ही
साधन हैं और राज्य सरकार जिसके पास आय के साधन सीमित हैं, वह टैक्स कम कर
अपना राजस्व घटाए। जिससे विकास  के काम जो चल रहे हैं, उसमें भी रूकावट
आए। आज कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। कभी ये नरसिंहराव
सरकार में वित्त मंत्री हुआ करते थे। तब इन्होंने संसद में कहा था कि
जनता से वायदा करना चुनाव के समय और बात है और पूरा करना और बात। 100
दिन में महंगाई कम करने क नाम पर जो सरकार जनता का समर्थन प्राप्त करती
है और उसे सत्ता में आते ही भूला देती है तब महंगाई बेहिसाब बढ़ती है तो
अपने हाथ खड़ा कर देती है। वह क्या सोचती है कि जनता पूरी तरह से मूर्ख
है और उसे कुछ समझ में नहीं आता।
1 रू. और 2 रू. किलो चांवल देकर छत्तीसगढ़ की डा. रमन सिंह सरकार ने तो
गरीबों का वह हित किया है जिसके  पक्ष में कांग्रेस भी नहीं थी। जब डा.
रमन सिंह ने यह योजना लागू की थी तब कांग्रेस ने जमकर इसका विरोध किया
था। आज डीजल की कीमत बढऩे से राज्य सरकार पर परिवहन का अतिरिक्त व्यय आया
है। आम जनता को जहां दैनंदिन उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में इजाफा का
कष्ट झेलना पड़ रहा है, वहीं सरकार का विकास कार्य भी और महंगा हो गया
है। जो सरकार केंद्र में बैठकर सिर्फ इस बात के लिए प्रयत्नशील हो कि
विश्व में उसकी छवि कैसे चमके और अमेरिका के  राष्ट्रपति उसकी तारीफ
करें, वह गरीबों का दुख दर्द नहीं समझ सकती। उदारवाद अर्थात पूंजीवाद की
तरफ देश को तीव्र गति से ले जाने वाली सरकार सिर्फ विकास के आंकड़ों पर
कायम है। विकास दर कैसे 10 प्रतिशत हो? इसी की जिसको चिंता है, वह सिर्फ
चुनाव के समय झूठी बात कह सकती है।
120 करोड़ के आबादी के देश को सिर्फ विकास दर वृद्घि से संतुष्ट नहीं
किया जा सकता। जहां तक विद्रोह और क्रांति का संबंध है तो वह न तो
पूंजीपति करता है और न ही गरीब बल्कि यह मध्यम वर्ग का बुद्घिजीवी करता
है। आज उपभोक्ता सामग्री के जिस मकडज़ाल में मध्यम वर्ग उलझा हुआ है, उसे
धन चाहिए और बढ़ती महंगाई और धन की मांग करती है। मध्यम वर्ग तेजी से बढ़
रहा है। सर्विस टैक्स के नाम पर आज जिस तरह से हर क्षेत्र को घेरा जा
रहा है उसका बोझ भी तो उसी पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। सरकार हर बजट में
यही खोजती है कि और कौन सा क्षेत्र बच गया है जिस पर सर्विस टैक्स
लगाया जाए। मकान पर भी तो सर्विस टैक्स लगा दिया गया है। पहले राज्य
सरकार  रजिस्ट्री पर शुल्क लिया करती थी। अब केंद्र सरकार भी सर्विस
टैक्स लेगी। हवा को छोड़कर कर ऐसा कुछ नहीं है जिस पर सरकार टैक्स न ले
रही हो।
अभी कृषि पर आयकर नहीं है लेकिन कितने दिन यह भी बची रहेगी। सरकार की
दृष्टि नहीं है ऐसा भी नहीं है लेकिन सरकार जानती है कि उसने ऐसा कदम
उठाया तो उसके हाथ से सत्ता निकल जाएगी। यही डर किसानो को आयकर से बचाए
हुए है। बैंकों में फिक्स्ड डिपाजिट पर भी तो सरकार टीडीएस ले रही है।
बैंकों से भी कह दिया गया है कि जिनके पेन नंबर आयकर के  नहीं हैं उनका
खाता बंद कर दिया जाए। मतलब साफ है कि आपके पास धन है तो वह सरकार की
जानकारी में होना चाहिए। आप आयकर के दायरे में नहीं आते हैं तो बैंकों के
द्वारा काटे गए टीडीएस की वापसी के लिए आयकर के दफतर के चक्कर लगाएं या
किसी आयकर  प्रेक्टीशनर की सेवाएं लें और उसकी फीस पटाएं।
भ्रष्टाचार और काले धन का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा है कि आयकर विभाग
बड़ों को तो फांस नहीं पाता। छुटभैय्यों को ही पकड़कर आत्मसंतुस्टि
करता है। बाबा रामदेव ने मनमोहन सिंह से कहा था कि बड़े नोट बंद कर
दीजिए। सारा काला धन बाहर आ जाएगा लेकिन वे इसके  लिए तैयार नहीं हुए।
आयकर विभाग भी जहां छापा मारता है 5 सौ और हजार के नोट ही पकड़ में आते
हैं? सरकार की ईमानदार मंशा काला धन पकडऩे और भ्रष्टïचार समाप्त करने की
दिखायी नहीं देती। पेट्रोलियम पदार्थों के  मूल्यवृद्घि को लेकर विपक्ष
जो भारत बंद कर रहा है, इससे सरकार झुकने वाली तो नहीं दिखायी पड़ती।
फिर यह भी जनता की भावनाओं को भड़काकर अपना राजनैतिक उल्लू सीधा करने के
सिवाय तो कुछ नहीं दिखायी पड़ता।
- विष्णु सिन्हा
4-7-2010

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