में तो एक तरह से केंद्र सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं और राज्य सरकारों
को इसके लिए जिम्मेदार भी बताया है। केंद्र सरकार कहती है कि राज्य
सरकारें टैक्स कम कर महंगाई कम करें। सब कुछ तय केंद्र सरकार करती है कि
नीतियां क्या हो? सब्सिडी दी जाए या न दी जाए। नियंत्रण रखा जाए या बाजार
के हवाले सब कुछ कर दिया जाए। शेयर मार्केट में शेयरों की कीमत बढ़ रही
है तो आर्थिक विकास हो रहा है। लोक लुभावन नीति आर्थिक विकास के लिए ठीक
नहीं है। जनता के सुख की कीमत पर विकास या जनता को कष्ट देकर विकास। तो
सरकार की सोच स्पष्ट है कि जनता को भले ही कष्ट हो लेकिन आर्थिक विकास
का पहिया तीव्र गति से घुमना चाहिए। समस्त लोक लुभावन योजनाओं को सरकारें
वापस ले ले तो तय है कि आम आदमी को दो समय का भोजन भी नसीब नहीं होगा।
कल ही दिल्ली में एक इलाके में पानी न आने के कारण लोग विरोध करने सड़क
पर उतर आए तो उन्होंने राहगीरों को मारना पीटना एवं रेहड़ी वालों को
लूटना प्रारंभ कर दिया। पानी न आने से इनका कोई लेना देना नहीं लेकिन
जनता की मानसिक स्थिति खराब हो रही है, इससे तो यही पता चलता है। सही और
गलत का भान यदि समाप्त हो जाए तब ही आदमी हिंसक हो जाता है। रायपुर में
ही एक ड्रायवर ने एक दंपत्ति को कुचल दिया। शराब के नशे में धुत्त
ड्राइवर क्रोध के वशीभूत जब हिंसक हो उठे तो इसका क्या अर्थ निकलता है?
युवा स्त्री पुरुष हिंसा पर उतर आएं तभी तो नक्सली समस्या खड़ी होती है।
नक्सलवादियों से प्रभावित होकर आखिर नवजवान क्यों हथियार उठा लेते हैं?
वे मारते हैं, अपने ही लोगों को और मरते भी हैं, सशस्त्र बलों की
गोलियों से। यह स्थिति सामान्य तो नहीं दिखायी पड़ती।
काश्मीर में ही फिर से हिंसा फैल रही है। कितने ही शहरों में कफ्र्यू
लागू है और सशस्त्र बलों पर पत्थरबाजी हो रही हैं। स्त्री पुरुष सभी
शामिल हैं। हिंसा नियंत्रण के बाहर होते देख देखते ही गोली मारने के आदेश
दिए गए हैं। प्रजातांत्रिक ढंग से कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार
है, काश्मीर में। कहा जा रहा है कि आतंकवादी नवजवानों को पत्थर सशस्त्र
बल पर फेंकने के लिए धन दे रहे हैं। देश में घुसने के लिए आतंकवादी
पाकिस्तानी सीमा पर इकट्ठा हैं। देश के बड़े हिस्से में रात्रिकालीन
ट्रेनें नहीं चल रही है। डर है कि नक्सली ट्रेनों को न उड़ा दें।
केंद्रीय गृह सचिव कह रहे हैं कि नक्सलियों ने वायदा किया है कि ट्रेनों
पर हमला नहीं करेंगे। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के साथ जो हादसा हुआ था,
उसे भी गृहसचिव नक्सलियों का कारनामा नहीं बता रहे हैं।
वैसे भी केंद्र सरकार की नजर में नक्सलियों का मामला राज्य सरकारों का
मामला है। केंद्र सरकार तो राज्य सरकारों को नक्सली समस्या से निपटने के
लिए सहयोग कर रही है। मतलब महंगाई हो या हिंसात्मक गतिविधियां सब
जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। केंद्रीय बल एवं राज्य पुलिस बल में मतभेद
है। यह बात केंद्रीय गृह सचिव खुलेआम स्वीकार करते है। नक्सल समस्या से
निपटने की जिन पर जिम्मेदारी है, जब उन्हीं मे मतभेद है तो वे किस तरह
से नक्सलियों से लड़ेंगे। गृह सचिव कहते हैं, रक्षा मंत्री कहते हैं कि
नक्सलियों से लडऩे के लिए फौज की जरुरत नहीं हैं। काश्मीर से भी फौज
हटायी गयी। अब मामला नियंत्रण से बाहर हो रहा है तो फिर फौज को बुलाया जा
रहा है। इतना ही नहीं पंजाब में बरसात ने हालात खराब कर दिए हैं। एक नहर
में दरार आ जाने से आसपास के शहर और गांव पर पानी कहर ढा रहा है तो दरार
को पाटने के लिए फौज को बुलाया गया है। मतलब साफ है कि दरार के पाटने की
क्षमता पुलिस और सशस्त्र बलों की नहीं है और न राज्य स्तर पर ऐसे आपातकाल
से लडऩे की क्षमता है.
7 प्रदेशों में नक्सल समस्या विकराल रुप से खड़ी है। सशस्त्र बलों के
जवान नक्सलियों के हमले में शहीद हो रहे हैं। दरअसल मारे जा रहे हैं,
कहना उचित नहीं हैं। सम्मानजनक भी नहीं है। इसलिए शहीद हो रहे हैं, कहा
जाता है। नक्सली भारतीय है और वे सशस्त्र बल के जवानों को घेर कर मारते
हैं तो लड़ाई भारतीय सशस्त्र बल और भारतीयों के ही बीच हो रही है।
नक्सलियों के विरुद्ध फौज के इस्तेमाल पर यह तर्क दिया जाता है कि
भारतीयों को भारतीय फौज मारे यह उचित नहीं है। अब फौज मारे या पुलिस मारे
या सशस्त्र बल मारे, बात तो एक ही है। नक्सलियों को पकडऩा है या मारना
है। यह तो निश्चित है। फिर अभी निर्णय लिया गया है कि अब नक्सलियों के
साथ कोई मुरव्वत नहीं दिखाना है। अपने नेता आजाद के मारे जाने का बदला
लेने की धमकी भी तो नक्सली दे रहे हैं और समाचार पत्रों में छप भी रहा है
कि नक्सली बड़े हमले की तैयारी कर रहे हैं। पुलिस और सशस्त्र बलों में
मतभेद है तो फिर नक्सली हमले का जवाब कैसे देंगे?
14 जुलाई को मुख्यमंत्रियों के साथ गृहमंत्री बैठक कर आगे की रणनीति
बनाने के विषय में विचार करेंगे। प्रधानमंत्री भी इस बैठक में सम्मिलित
होंगे। ऐसी बैठकें पहले भी हो चुकी। गृह मंत्रालय निर्देश देता है कि
नक्सलियों से निपटने की हर मुमकिन तैयारी की जाए। नक्सल प्रभावित
क्षेत्रों में विकास के काम किए जाएं। दूसरी तरफ कल ही एक स्कूल भवन को
नक्सलियों ने उड़ा दिया। एक गांव के लोगों को जो नक्सल समर्थक नहीं थे,
नक्सलियों ने गांव छोडऩे का आदेश दे दिया। अब विकास के काम करेंगे तो
कैसे? नक्सली गांव से जिन्हें निकाल रहे है, उन्हें गांव में ही रहने पर
सुरक्षा क्यों नहीं दी जा रही है? पलायन तो बहुत पुरानी बात है। गांव में
रहना है तो नक्सलियों के अनुसार चलना पड़ेगा। काश्मीर हो या नक्सल
प्रभावित क्षेत्र सरकार की चलती कितनी है? फिर भी चिदंबरम की तारीफ की
जानी चाहिए कि अलोकप्रियता की परवाह न करते हुए भी उन्होंने नक्सल समस्या
को समाप्त करने का बीड़ा उठाया। आज उन्हीं की कोशिशों का परिणाम है कि
नक्सलियों से लडऩे का माद्दा राज्य सरकारों में पैदा हुआ है। नहीं तो
पहले राज्य सरकार का मामला कह कर केंद्र सरकार बुचक लेता था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी माना है कि देश के लिए नक्सल समस्या
खतरनाक है। नक्सल समस्या के प्रति केंद्र को जागरुक करने में छत्तीसगढ़
के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की भूमिका भी बड़ी महत्वपूर्ण है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का एक वर्ग तो प्रारंभ से ही नक्सल समस्या को हल
करने के मामले में रोड़े अटकाने का ही काम करता रहा है। समस्या को समस्या
की तरह देखने के बदले उसे राजनैतिक चश्मे से ही देखा गया। आज भी दिग्विजय
सिंह कह रहे हैं कि भाजपा की नक्सलियों से सांठगांठ है। चिदंबरम की राह
में भी रोड़े अटकाने का काम दिग्विजय सिंह ने ही किया। दरअसल जिस शांति
से दिग्विजय सिंह के शासनकाल में नक्सली फले फूले उसी का परिणाम तो है कि
नक्सली आज इतने ताकतवर हो गए। राज्य और केंद्र कार्य के मामले में भले ही
अलग-अलग दिखायी पड़े लेकिन हैं तो वे एक ही संविधान से बंधे हुए और नक्सल
समस्या हो महंगाई की समस्या केंद्र अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़
सकता।
- विष्णु सिन्हा
समस्या समस्या सब चिल्लाते हैं कारण और निवारण की बात कोई नहीं करता खास कर कांग्रेसियों में से तो कोई भी नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत सजग आलेख। सहमत।
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