जिस तरह से दिन भर महाभारत के युद्ध में कौरव और पांडव की सेनाएं लड़ती
थी और सूर्य के अस्त होते ही युद्द रुक जाता था। तब दोनों सेनाओं में कोई
बैर भाव नहीं रह जाता था और सभी आपस में मिलकर खाते पीते गुठियाते थे।
उसी तरह का दृश्य सरकार और विपक्ष में दिखायी दिया। विधानसभा में सरकार
के विरुद्ध खड़ा विपक्ष सरकार को कठघरे में खड़ा करने में कोई कोताही
नहीं बरत रहा था लेकिन जब सरकार ने विपक्ष की बात नहीं मानी तो विपक्ष ने
विधानसभा से बहिर्गमन किया और विधानसभा स्थगित हो गयी। तब मुख्यमंत्री के
नेतृत्व में सरकार और विपक्ष दोनों ने नई बनती राजधानी की सैर पर एक साथ
निकल पड़े। कोई देखकर नहीं कह सकता था कि ये वे ही लोग हैं जो विधानसभा
में दुश्मनों की तरह झगड़ रहे थे।
सभी ने नई राजधानी में वृक्षारोपण किया। स्टेडियम में लंच लिया और भव्य
आकार लेते राजधानी के स्वरुप का दर्शन किया। एक बात तो साफ है कि नई नई
बनती राजधानी का श्रेय डॉ. रमन सिंह को हैं लेकिन जहां तक उपयोग का
प्रश्र है तो उपयोग तो सभी करेंगे। आज डॉ. रमन सिंह की सरकार है और जनता
ने चाहा तो कभी न कभी कांग्रेस की भी सरकार बन सकती है। तब भव्य राजधानी
की सुविधाओं का भरपूर लाभ कांग्रेसियों को भी मिलेगा। उसी तरह से जिस तरह
से कभी भोपाल राजधानी का निर्माण कांग्रेस की सरकारों ने किया था लेकिन
आज उस पर भाजपा काबिज है और शिवराज सिंह वल्लभ आवास की पांचवीं मंजिल पर
विराजमान हैं तो मुख्यमंत्री के आलिशान भवन का सुख भोग रहे हैं। खासकर उन
लोगों को तो भोपाल की याद आती ही है जो कभी मध्यप्रदेश में मंत्री विधायक
हुआ करते थे। कहां नए भोपाल की शानो-शौकत और कहां पुराना रायपुर शहर जहां
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पुराने भवनों, मकानों में गुजारा करना पड़ता
है। न तो भोपाल की तरह रायपुर में चौड़ी चौड़ी साफ सुथरी सड़कें हैं और न
ही खुला-खुला स्थान।
कुछ मार्गों को गौरवपथ के रुप में चौड़ा करने और सजाने संवारने का काम
डॉ. रमन सिंह की सरकार ने किया है लेकिन फिर भी भोपाल वाली बात तो नहीं
है। नया रायपुर पूरी तरह व्यवस्थित बनाया जा रहा है और सरकार की कल्पना
तो यही है कि देश के समस्त राज्यों की राजधानी से सुंदर और व्यवस्थित नया
रायपुर बने। नया रायपुर का स्वप्र तो प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी
देखा था और बहुत धूमधाम से सोनिया गांधी के कर कमलों से शिलान्यास भी
करवाया था लेकिन उनका दुर्भाग्य की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने का
दोबारा अवसर नहीं दिया। यह सौभाग्य डॉ. रमन सिंह के भाग्य में था।
छत्तीसगढ़ को बने 10 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं और नया रायपुर रुपाकार हो
रहा है तो स्वाभाविक रुप से एक खुशी का भाव तो डॉ. रमन सिंह के मन में
होगा ही। भाग्य के धनी तो डॉ. रमन सिंह हैं, ही लेकिन धैर्यपूर्वक अपनी
योग्यता को कार्य रुप में परिणित करने में भी उनको महारत हासिल है।
दिल्ली में राजग की सरकार थी तो अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री थे।
उन्होंने तो केंद्र सरकार के समक्ष प्रदर्शन भी किया था। डॉ. रमन सिंह
मुख्यमंत्री हैं तो दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में प्रदेश के
विकास के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था आसान काम नहीं है। फिर भी
छत्तीसगढ़ का वार्षिक बजट हर वर्ष बढ़ रहा है और अब तो ढाई हजार करोड़ से
प्रारंभ हुआ बजट 25 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का हो गया है। छत्तीसगढ़
राज्य जब बना था तब विद्युत की खपत 12 सौ मेगावाट छत्तीसगढ़ में थी जो आज
बढ़ कर 26 सौ मेगावाट से भी अधिक हो गयी है। इससे विकास का अर्थ समझा जा
सकता है। दोगुने से भी ज्यादा विद्युत खपत का तो स्पष्ट अर्थ होता है कि
राज्य विकास की गति तीव्र है और सबसे बड़ी बात तो यही है कि केंद्र सरकार
के द्वारा निरंतर बिजली कटौती के बावजूद छत्तीसगढ़ सरप्लस विद्युत राज्य
है। कितनी ही लोक लुभावन योजना सरकार चला रही है और उसमें भी 2 रु. एवं 1
रु. किलो चांवल 32 लाख से अधिक परिवारों को प्रतिमाह 35 किलो दिया जा रहा
है। जबकि 3 रु. किलो में 35 किलो अनाज देने के वायदे के नाम पर केंद्र की
सत्ता में पुन: पदारुढ़ हुई सरकार अभी तक अपने वायदें को पूरा करने में
सक्षम नहीं हुई।
विपक्ष भले ही अपना विपक्ष का धर्म निभाने के लिए सरकार की आलोचना करें
लेकिन डॉ. रमन की सज्जनता के तो सभी कायल हैं। नया रायपुर के दर्शन
के लिए भले ही अजीत जोगी नहीं गए लेकिन उनकी विधायक पत्नी रेणु जोगी तो
गयी। विपक्ष के विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा आमंत्रित कर
सस्ती राजनीति से परहेज भी किया डॉ. रमन सिंह। छत्तीसगढ़ में वैसे भी
राजनैतिक माहौल स्वस्थ है। मतभिन्नता अलग बात है लेकिन एक दूसरे के प्रति
आदर भाव प्रगट करने में पक्ष और विपक्ष दोनों का कोई सानी नहीं हैं। किसी
भी तरह का व्यक्तिगत दुराव नहीं है। यही कारण है कि पक्ष और विपक्ष
राजनीति से परे कुंभ के समय गंगा स्नान करने भी चला जाता है। स्वाभाविक
है कि कुछ चुगलखोरों को यह सब अच्छा नहीं लगता। वे कांग्रेस आलाकमान से
शिकायत भी करते हैं। नए रायपुर भ्रमण की भी शिकायत करें तो कोई आश्चर्य
की बात नहीं। क्योंकि इनकी समझ में राजनीति में आगे बढऩे का यही तरीका
है।
विरोध का एक मर्यादित तरीका होता है। सरकार का ध्यान आकर्षित करना और
जनता को सरकार के गलत काम से परिचित कराना। यह दायित्व कांग्रेस के
विधायक अपनी तरफ से विधानसभा में निभाने का पूरा प्रयत्न करते हैं। वे यह
भी तो अच्छी तरह से जानते हैं कि जब तक सरकार के पास जनादेश बहुमत का है
तब तक उसे हटाया नहीं जा सकता। केंद्र सरकार भी संवैधानिक प्रावधानों से
बंधी हुई है। वह किसी भी तरह का मनमाना फैसला नहीं ले सकती। कितनी बार तो
अजीत जोगी राष्टपति शासन की मांग उठा चुके लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी
नहीं सुनी। वह सुन भी नहीं सकती। विपक्ष अपनी दृष्टि से जो देखता है, वही
सही है, ऐसा भी तो नहीं है। नक्सली समस्या को लेकर डॉ. रमन सिंह पर आरोप
लगाना कि उनकी नक्सलियों से सांठगांठ है, सच होती तो यह सच क्या केंद्र
सरकार से छुपा होता? यह तो डॉ. रमन सिंह का बड़प्पन है कि वे अपने पर
लगाए गए आरोपों से किसी के प्रति व्यक्तिगत बैर भाव नहीं रखते और यही
सरकार के मुखिया में होना भी चाहिए। क्षुद्र मनोवृत्ति का व्यक्ति बड़े
पद पर बैठता है तो पद की गरिमा गिरती है लेकिन विस्तृत और खुले मन का
व्यक्ति पदासीन होता है तो गरिमा बढ़ती है। डॉ. रमन सिंह इसके साक्षात
उदाहरण हैं।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 29.07.2010
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