यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

डा. रमनसिंह का ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनना प्रदेश में खेल क्रांति को जन्म देगा

मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। डा.
अनिल वर्मा के विरूद्घ जिस तरह से बशीर के नेतृत्व में ओलंपिक संघ के
पदाधिकारी और सदस्य गोलबंद हुए और डा. अनिल वर्मा को अध्यक्ष पद से हटाया
गया, उनकी कहानी तो सर्वविदित है लेकिन अनिल वर्मा को हटाकर भी बशीर और
उनकी टीम हटा नहीं पायी। ओलंपिक संघ ने तो लिखकर दे दिया कि अनिल वर्मा
ही अध्यक्ष हैं। अनिल वर्मा पर तो आर्थिक घोटाले तक का आरोप लगाया गया
लेकिन अनिल वर्मा किसी भी आरोप से विचलित नहीं हुए बल्कि स्थिति स्पष्ट
करते हुए उन्होंने तो मानहानि का मुकदमा ही दायर कर दिया। इसके साथ ही
मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का नाम अध्यक्ष के लिए बार बार उछाला गया।
जिससे अनिल वर्मा का मनोबल कमजोर किया जा सके लेकिन विवाद के बीच डा. रमन
सिंह अध्यक्ष बनने के लिए तैयार ही नहीं हुए।

तब अनिल वर्मा से समझौते के सिवाय कोई चारा ही नहीं बचा। यह तो समझ में
आ गया कि डा. अनिल वर्मा को उनकी इच्छा के विरूद्घ अध्यक्ष पद से नहीं
हटाया जा सकता। अनिल वर्मा को भी एक बात तो समझ में आ ही रही थी कि यह
विवाद अंतत: नुकसान तो खेलों को ही पहुंचाएगा और 2013 में होने वाला
नेशनल गेम इस विवाद से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। खेल संघों में
पदाधिकारियों के बीच अहम का टकराव कोई नई बात नहीं है। इससे खेल को
नुकसान भी होता है लेकिन कितने विवेकवान व्यक्ति है जो अपने अहम से बड़ा
खेल को समझें। अनिल वर्मा ने समझा कि ओलंपिक संघ का असल उदेश्य खेलों का
हित है, न कि आपसी विवाद और मुख्यमंत्री संघ के अध्यक्ष बनते हैं तो सभी
तरह के खेलों को लाभ ही होगा। इसलिए अपने अहम को एक तरफ रखते हुए
उन्होंने अध्यक्ष पद से न केवल इस्तीफा दे दिया वरन अध्यक्ष के लिए डा.
रमनसिंह का नाम भी प्रस्तावित कर दिया।

विद्याचरण शुक्ल कह रहे हैं जो ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष हैं कि डा.
रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बनें, उन्हें कोई ऐतराज नहीं है लेकिन
संवैधानिक प्रक्रिया के तहत उनका चुनाव हो। जब सभी राजी हैं तो संवैधानिक
प्रक्रिया भी पूरी की जा सकती है। इसमें अड़चन कहां है। मुख्यमंत्री जब
किसी काम का बीड़ा उठाते है तब तन मन धन से सहयोग करने में पीछे नहीं
रहते। मुख्यमंत्री अध्यक्ष न भी रहते तब भी सहयोग में पीछे नहीं रहते
लेकिन जब खेल संघ के अधिकांश पदाधिकारियों की इच्छा है कि नेतृत्व
मुख्यमंत्री के ही हाथ में हो तो मुख्यमंत्री ने भी उनकी इच्छाओं का आदर
किया। अब सभी खेलों के संघ मुख्यमंत्री से आशा कर सकते हैं कि उनके विकास
में धन की कमी आड़े नहीं आएगी।

दरअसल अब खेलों में धन की भी अहम भूमिका हो गयी है। खेल मात्र खेल होकर
मनोरंजन का साधन तो है नहीं बल्कि खेल अब निष्णात होने पर एक अच्छा
कैरियर भी प्रदान करते हैं? राष्ट्रीय स्तर पर जब कोई खिलाड़ी नाम कमाता
है तो अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उसके लिए दरवाजे खुल जाते हैं। फिर
नाम के साथ नामा भी मिलता है। आजकल अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में
उपलब्धि हासिल करने वाले खिलाडिय़ों को तो इतना धन मिलता है कि जितना धन
किसी भी तरह की नौकरी या व्यवसाय में भी नही मिलता। राष्ट्रीय स्तर पर
खेल में प्रतिनिधित्व मिले तो अच्छी नौकरियां मिल जाती है। खेल कोटे से
भी आरक्षण की व्यवस्था है। जब तक छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था तब तक
खेलों के विषय में इस क्षेत्र में किसी तरह के विकास की भी कल्पना नहीं
थी लेकिन आज जब लोग समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि भारत के क्रिकेट
कप्तान महेंन्द सिंह धोनी ने 200 करोड़ रूपये का अनुबंध किया तो खेल
क्षेत्र से जुड़े खिलाडिय़ों की ही लालसा नहीं बढ़ती बल्कि खिलाड़ी के
माता पिता भी खेल में सोच रखने वाले अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते
दिखायी देते हैं।

वह जमाना चला गया जब कहा जाता था कि पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब और
खेलोगे कूदोगे तो बनोगे गंवार। पढ़ लिखकर नवाब बनो न बनो लेकिन खेल कूद
में यदि ऊंचाइयों का स्पर्श किया तो नवाब की तरह जीवन की सुविधएं प्राप्त
करना कठिन काम नहीं है। डा. रमन सिंह के ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बनने के
बाद सरकार खेल सुविधाएं बढ़ाने पर पूरा ध्यान देगी, इसमें अब शक की कोई
गुंजाईश नहीं है। अभी छत्तीसगढ़ में नेशनल गेम्स होने में 3 वर्ष का समय
है। मतलब पर्याप्त समय है। हर तरह के खेल के लिए सभी सुविधाएं जुटाने के
लिए पर्याप्त समय है। छत्तीसगढ़ में प्रतिभा की कोई कमी है ऐसा मानने का
तो कोई कारण नही है लेकिन निश्चित रूप से सुविधाओं का अभाव है। डा.
रमन सिंह के नेतृत्व में सुविधाओं की व्यवस्था युद्घस्तर पर की जाती है
तो पूरा माहौल ही बदला बदला दिखायी देगा। डा. रमन सिंह में क्षमता की और
इच्छाशक्ति की कोई कमी नहीं है। नेशनल गेम्स की तैयारी कुंभ की तरह की
जाएगी। दरअसल भविष्य में अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए यह नींव
का काम करेगी। जिस तरह से डा. रमन सिंह के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय
स्टेडियम का निर्माण किया गया और वहां पर खेल गांव बनाने की मंशा डा. रमन
सिंह ने प्रगट की है, उससे ही उनकी खेल भावना को समझा जा सकता है।
मुख्यमंत्री जनता की मांग पर अक्सर कहा करते है कि धन की कमी नहीं आने दी
जाएगी तो खेल के मामले में भी डा. रमन सिंह धन की कोई कमी नहीं आने
देंगे। परिणाम भी आएगा। प्रदेश के युवाओं में शिक्षा के साथ खेल का भी
स्वस्थ माहौल बनेगा। युवाओं की ऊर्जा को खर्च करने के लिए खेल ही सही
माध्यम है। उच्च स्तर के हर खेल के मार्गदर्शक उपलब्ध कराए जा सकते हैं
तो खेल की बारीकियों को समझने का अवसर खिलाडिय़ों को मिलेगा। नक्सल
प्रभावित क्षेत्रों में खेल को पर्याप्त बढ़ावा मिला तो युवा वर्ग हिंसा
की तरफ आकर्षित होने के बदले खेल की तरफ आकर्षित होंगे और परिणाम स्वरूप
इन क्षेत्रों से भी विभिन्न खेल स्पर्धाओं के लिए निष्णात खिलाड़ी
निकलेंगे।

2013 में नेशनल गेम्स होंगे तो 2013 में ही विधानसभा के भी चुनाव होंगे।
सफल नेशनल गेम्स और खेल सुविधाओं का विस्तार निश्चित रूप से युवाओं को
डा. रमन सिंह की तरफ आकर्षित करेगा तो चुनाव परिणामों पर भी इसका कोई असर
नहीं पड़ेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता बल्कि साफ साफ असर दिखायी देगा।
डा. रमन सिंह का ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनना प्रदेश में खेल क्रांति को
जन्म देगा। एक नई फिजां का निर्माण करेगा। डा. रमन सिंह चतुर सुजान हैं
और उन्होंने 2013 के नेशनल गेम्स के साथ ही चुनाव की भी तैयारियां
प्रारंभ कर दी है।

- विष्णु सिन्हा
23-7-2010

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