यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

नई कार्यकारिणी के साथ रामसेवक पैकरा पार्टी को और जनता के बीच लोकप्रिय कर सके तभी वे सफल माने जाएंगे

प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी की घोषणा हो गयी। प्रदेशाध्यक्ष रामसेवक
पैकरा ने अपनी तरफ से तो सबको संतुष्टï करने की कोशिश की है लेकिन फिर भी
कोई असंतुष्टï होता है तो होता रहे। स्वाभाविक रुप से मुख्यमंत्री डॉ.
रमन सिंह का वर्चस्व कार्यकारिणी में दिखायी देता है। असंतुष्टïों को
ज्यादा तरजीह नहीं दी गयी तो उसका कारण भी स्पष्टï है। क्योंकि पार्टी को
पिछले चुनावों में इन असंतुष्टïों की गुटबाजी के कारण ही नुकसान उठाना
पड़ा। अति महत्वाकांक्षी असंतुष्टï अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के
लिए पार्टी हित के विरुद्ध निर्णय और काम करते दिखायी दिए। आम चुनाव के
बाद विधान चुनाव, नगरीय निकाय के चुनावों में पार्टी को नुकसान उठाना
पड़ा। नई कार्यकारिणी में उन्हें तो स्थान दिया गया है लेकिन उनके
समर्थकों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है। नए लोगों को पदाधिकारी
बनाकर नई टीम को सक्रिय करने की मंशा भी नई कार्यकारिणी में स्पष्टï
दिखायी देती है। युवकों और महिलाओं को पूरा प्रतिनिधित्व दिया गया है और
इनकी सक्रियता पार्टी के चाल-चरित्र और चेहरे को निखारेगी ही।
सत्ता पर तो डॉ. रमन सिंह का पूरी तरह से कब्जा है, ही। अब संगठन पर भी
वर्चस्व दिखायी पड़ रहा है। प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा उन्हीं की पसंद
के व्यक्ति हैं। पैकरा ने कार्यकारिणी की घोषणा के बाद कहा भी है कि जाति
और क्षेत्रीयता का पूरा ध्यान रखा गया है। 162 सदस्यीय प्रदेश
कार्यकारिणी में ऐसे लोगों की भी बहुतायत है जो प्रदेश स्तर पर जाने
पहचाने नेता है तो बहुतेरे स्थापित होने के लिए कड़ा श्रम कर रहे हैं।
कार्यकारिणी में चुनाव जीते हुए लोग हैं तो हारे हुए लोगों को भी
जिम्मेदारी दी गयी है। यह पहले ही तय हो चुका है कि हारे हुए लोगों को
सत्ता की आसंदी नहीं दी जाएगी लेकिन संगठन के काम के लिए उनका उपयोग किया
जाएगा। शायद यह सोचा गया होगा कि संगठन में पकड़ की कमजोरी के कारण ही ये
चुनाव में सफल नहीं हुए। उपाध्यक्ष बनाए गए अजय चंद्राकर हों या
सच्चिदानंद उपासने या प्रभा दुबे चुनाव की वैतरणी पार नहीं कर सके।
विधानसभा का चुनाव हुआ था तब भाजपा के 50 विधायक चुन कर आए थे। एक
उपचुनाव हारने और एक विधायक की आकस्मिक मृत्यु के कारण विधायकों की
संख्या 48 हो गयी है। एक एंग्लो इंडियन विधायक आने से भले ही संख्या 49
हो गयी है लेकिन 50 विधायक फिर से भाजपा के विधानसभा में बैठें तो इसके
लिए भटगांव का उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए आवश्यक हो गया है। इसीलिए
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भटगांव उपचुनाव जीतने की तैयारी अभी से
प्रारंभ कर दी है। मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों के साथ न केवल भटगांव
का दौरा किया बल्कि विभिन्न योजनाओं के लिए धन की घोषणा भी कर दी।
रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव में महापौर का चुनाव हारने की पीड़ा अभी
भी पार्टी को है। डॉ. रमन सिंह की लोक लुभावन योजनाओं के कारण भाजपा की
लोकप्रियता में कमी हुई हो, ऐसी बात नहीं है बल्कि पार्टी के नेताओं की
गुटबाजी के कारण चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। हार के लिए जिम्मेदार
लोगों से भी पार्टी अच्छी तरह से परिचित है।
लेकिन उन पर किसी तरह की कार्यवाही न होने से ईमानदार कार्यकर्ताओं को
पीड़ा ही हुई । अब नई कार्यकारिणी बन गयी है। पूरी ईमानदारी और जोश-खरोश
से कार्यकर्ता सक्रिय होंगे और शासकीय कार्यों की निगरानी ही करेंगे तो
योजनाएं डॉ. रमन सिंह ने कम नहीं बनायी है, जनता को सुविधाओं देने के
लिए। उन लोगों से भी सतर्क रहने की जरुरत है जो पार्टी का उपयोग, जनसेवा
के लिए न कर अपना निजी हित साधने के लिए करते हैं। जातिगत आधार पर
राजनीति करते हैं। जबकि डॉ. रमन सिंह की राजनीति सर्वहित के लिए हैं।
उनकी अधिकांश योजना वर्ग विशेष के लिए ही नहीं सभी के हित के लिए हैं।
उनकी सौम्यता और सज्जनता सभी का दिल जीतने की क्षमता रखती है। राष्टï्रीय
स्वयं सेवक संघ भी सर्व हिताय की बात करता है और जाति विहीन समाज की
कल्पना करता है। इसीलिए उसने जातिगत आधार पर जनगणना का भी विरोध किया। जब
सबके कल्याण और लाभ की बात होगी तो कोई भी ठगा हुआ महसूस नहीं करेगा ।
नक्सल समस्या सरकार के लिए ही नहीं पार्टी के लिए भी चुनौती है। जो नक्सल
प्रभावित क्षेत्र में पार्टी का काम करते हैं,वे जान जोखिम में डाल कर
पार्टी का झंडा बुलंद करते हैं और नक्सलियों की हिंसा के भी शिकार होते
हैं। सरकारी स्तर पर तो नक्सल समस्या से सरकार जूझ ही रही है, पार्टी
स्तर पर भी इसके लिए प्रयास होना चाहिए। क्योंकि यह नहीं भूलना चाहिए कि
आज प्रदेश में पार्टी की सरकार है तो उसका बड़ा कारण नक्सल प्रभावित
क्षेत्र में पार्टी को मिला एक तरफा समर्थन है। जिन आदिवासियों ने कभी
पूरी तरह से कांग्रेस का समर्थन किया था, उन्होंने कांग्रेस से निराश
होकर भाजपा को समर्थन दिया है। इस समर्थन की अहमियत की कद्र जितना पार्टी
करेगी, उसे उतना ही इन क्षेत्रों का विश्वास मिलेगा। इस दृष्टिï से
पार्टी की नई कार्यकारिणी को भी अपनी योजना बनाना चाहिए कि किस तरह से वह
इन क्षेत्रों में लोगों के अधिक से अधिक नजदीक आ सकती है।
डॉ. रमन सिंह की जितनी जिम्मेदारी हैं, उससे कम जिम्मेदारी रामसेवक पैकरा
की नहीं है बल्कि ज्यादा ही है। पार्टी जमीन से जुड़ी हुई है तो उसे
प्राप्त जन शिकायतों को सरकार तक पहुंचाना उसका दायित्व है। सत्ता और
संगठन में तालमेल होगा, पार्टी को उतना ही जन समर्थन मिलेगा। सत्ता से
बाहर बैठी पार्टी और सत्ता में बैठी पार्टी के दायित्वों में फर्क होता
है। विपक्ष की भूमिका अलग तरह से होती है और सत्ता में रहते भूमिका बदल
जाती है। राष्टï्रीय स्तर पर भले ही पार्टी विपक्ष में हो लेकिन प्रदेश
स्तर पर पार्टी सत्ता में है। ऐसे में संगठन की भूमिका जनता और सरकार के
बीच पुल की होती है। अक्सर सत्तारुढ़ पार्टियों का संगठन सत्ता में आते
ही निष्क्रिय जैसा हो जाता है और अधिकांश कार्यकर्ता सत्ता में रहना
चाहते हैं या सत्ता के आसपास परिक्रमा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते
हैं। कौन कितने नि:स्वार्थ भाव से सत्ता में रहना चाहता है और जिससे
पार्टी और सरकार की छवि जनता के बीच उज्जवल हो, यह सोचने और देखने का काम
पार्टी संगठन का ही है। भाजपा को अलग पार्टी की तरह माना जाता रहा है।
उसे इस दिशा में निरंतर प्रयत्नशील होने की जरुरत है। आवश्यकता पडऩे पर
कठोर कार्यवाही से भी नहीं चूकना चाहिए। नई कार्यकारिणी के साथ रामसेवक
पैकरा पार्टी की छवि को और उज्जवल करेंगे, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 14.07.2010

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