यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

विपक्ष के द्वारा की गई शर्मनाक हरकतों से नीतीश कुमार इस्तीफा देने वाले नहीं

बिहार विधानसभा में घटित क्रियाकलापों को कितना भी शर्मनाक कहे लेकिन
विधायक और विधान परिषद के सदस्य जिन्होंने अपने क्रियाकलापों से सभ्य
समाज को शर्मसार किया, वे तो शर्मसार नहीं हैं। कोई विधायक विधानसभा
अध्यक्ष को चप्पल फेंक कर मारता है तो कोई विधान परिषद की महिला सदस्य
विधानसभा के बाहर रखे गमलों को उठा उठाकर पटकती है। कहीं से भी नहीं लगता
कि अपने कृत्यों के प्रति कोई अपराध भाव इनके मन में हैं। विधानसभा से
मार्शल विधायकों को उठाकर बाहर करते हैं। विधानसभा ऐसे 67 विधायकों को
निलंबित करती है। बस मामला समाप्त। क्या ऐसे लोग जनता का विधानसभा में
प्रतिनिधित्व करने का हक रखते हैं? सभ्य आचरण, मर्यादा जैसी कोई भी
गरिमामय भावना इनमें दिखायी नहीं देती। यह सही है कि 11 हजार करोड़ रुपए
के मामले में उच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच करने का निर्देश दिया है
तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि सरकार से इस्तीफा मांगने के लिए विधायक
विधानसभा में ही कानून की धज्जियां उड़ाएं।

यह मामला तीन सरकारों पर केंद्रित है। राबड़ी देवी सरकार, राष्टपति
शासन के दौरान राज्यपाल बूटा सिंह का शासनकाल और नीतीश कुमार का शासन
काल। इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं और हुआ है तो किसने कितना
भ्रष्टाचार किया है, यह सीबीआई की जांच का विषय है। जांच के बाद जब जांच
की रिपोर्ट न्यायालय के समय प्रस्तुत होगी तभी पता चलेगा कि दोषी कौन है?
दोष सिद्ध होने के पहले ही किसी को भी किसी तरह की सजा देने का प्रावधान
नहीं है। सभी राजनैतिक दल अभी तक तो इसी सिद्धांत पर राजकाज करते रहे।
चारा घोटाले के आरोप के बावजूद जब लालू प्साद यादव भारत सरकार के रेल
मंत्री रह सकते हैं तो फिर नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहने के मामले में
नए नियम कैसे बनाए जा सकते हैं? फिर मामला जांच क बाद न्यायालय में
प्रस्तुत हो और प्रथम दृष्टि में नीतिश कुमार दोषी पाए जाएं तब न
न्यायालय उनके विरुद्ध समंस या वारंट निकालेगा। उस समय नीतीश कुमार से
विपक्ष इस्तीफा भी मांगे तो समझ में आने वाली बात है।
लेकिन बिहार विधान सभा के अंदर उग्र कार्यवाही के द्वारा विपक्ष के
विधायक नीतीश कुमार को दोषी सिद्ध नहीं कर सकते। इस तरह की नौटंकी से वे
जनता के बीच यह संदेश तो दे ही नहीं सकते कि भ्रष्टïचार के विरुद्ध वे
लड़ रहे हैं। बिहार की जनता तो देख ही रही है कि लंबे अंतराल के बाद
नीतीश कुमार का शासन बिहार में अच्छे शासन का संदेश दे रहा है। चुनाव
सन्निकट है और सारा प्रयास नीतीश कुमार को बदनाम कर सत्ता हथियाने का है।
अभी तक का नीतीश कुमार का चरित्र और व्यक्तित्व एक ईमानदार व्यक्ति का
रहा है। बिहार में विकास के काम और अपराधियों पर नियंत्रण भी उनके शासन
काल में हुआ है। यह बात तो बिहार के लोग ही मानते हैं कि नीतीश कुमार का
शासन और 5 वर्ष बिहार में रह गया तो बिहार में कायापलट हो सकता है।
इसी से बौखलाए लोगों ने अपनी पूरी ऊर्जा गलत तरीके से नीतीश कुमार और
उनकी सरकार पर लगायी है कि नीतीश कुमार बदनाम हों। सीएजी की रिपोर्ट को
माध्यम बनाकर बदनाम करने का अवसर उन्हें दिखायी दे रहा है। नहीं तो
सीधे-सीधे चुनाव हो तो नीतीश कुमार भाजपा का गठबंधन फिर से सरकार बना
सकता है। जब नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी के एक साथ चित्रों के विज्ञापन
छपे थे तब नीतीश कुमार ने नाराजगी प्रगट की थी। विपक्ष को लगा था कि अब
ये गठबंधन चलने वाला नहीं है लेकिन वक्त के साथ सारा मामला टांय-टांय
फिस्स हो गया और यह तय दिखायी देने लगा कि नीतीश और भाजपा मिल कर चुनाव
मैदान में उतरेंगे। लालू यादव, रामविलास पासवान के गठबंधन में भी अब
पुराना जोश खरोश नहीं है। रामविलास पासवान तो लोकसभा का ही चुनाव नहीं
जीत पाए और बड़ी मुश्किल से राज्यसभा में पहुंच पाए हैं। सोनिया गांधी ने
भी पिछले कार्यकाल की तरह कोई लिफ्ट दिया नहीं। क्योंकि चुनाव के समय जिस
तरह से कांग्रेस के साथ ये दोनों सज्जनों ने व्यवहार किया था, उसके बाद
चुनाव में मिली असफलता ने वैसे भी इनकी गठबंधन में आवश्यकता ही नहीं होने
दी।। ये बिना मांगे संप्रग सरकार को समर्थन दे रहे हैं लेकिन बदले में
इन्हें कोई शासकीय पद तो मिला नहीं।

अभी तक बिहार में जो राजनैतिक स्थिति है, उसमें कांग्रेस इन दोनों से
गठबंधन कर चुनाव लडऩे में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं कर रही है बल्कि
स्थिति ऐसी है कि पिछले चुनाव में जो व्यवहार इन लोगों ने कांग्रेस के
साथ किया, वही व्यवहार कांग्रेस इनके साथ करे। यदि कांग्रेस गठबंधन के
लिए तैयार भी हुई तो अपनी शर्तों पर तैयार होगी। मतलब साफ है कि
कांग्रेस के पास खोने के लिए तो कुछ नहीं है लेकिन कांग्रेस को कुछ नहीं
मिलता तो उसकी रुचि इनका हित सोचने में भी नहीं है। कांग्रेस से गठबंधन
की मजबूरी अब लालू और रामविलास को ही है, कांग्रेस को नहीं। कांग्रेस तो
चाहती है कि इनका पतन हो तो उसका उद्धार हो बिहार में। नीतीश कुमार का 5
वर्ष का कार्यकाल जिस तरह की नई आशाएं बिहार में जगा रहा है, उसके बाद तो
सत्ता में लौटने की किसी तरह की आशा लालू की है, नहीं। अब यह सीएजी की
रिपोर्ट जिसका संज्ञान उच्च न्यायालय ने लिया है और सीबीआई को जांच का
आदेश दिया है, एकमात्र आशा की किरण है कि नीतीश कुमार इसमें फंसें तो
बाकी के लिए सत्ता में लौटने का अवसर उपलब्ध हो।

विधानसभा में जो विधायक सक्रियता हुल्लड़ के द्वारा दिखा रहे हैं 5 वर्ष
तक तो वे कुछ कर नहीं सके। ऐसा कोई काम भी नहीं किया, जिससे जनता उन्हें
चुने। नीतीश कुमार की बढ़ती लोकप्रियता पुन: विधानसभा में चुन कर आने के
मामले में सरकार बना सकती है। टिकट के मामले में भी पार्टी का ध्यान
आकर्षित करने का सुनहरा अवसर है। वे यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि जब
तक विधानसभा में नीतीश कुमार के पास बहुमत है तब तक वे नीतीश कुमार को
मुख्यमंत्री की गद्दी से नहीं उतार सकते। गठबंधन में दरार भी नहीं डाल
सकते और न ही उनके उकसावे से नीतीश कुमार इस्तीफा देने वाले हैं। भारतीय
राजनीति ऐसी नहीं है कि लोग आरोप लगते ही इस्तीफा दे दें। वे लोग दुनिया
छोड़कर चले गए जो एक अंगुली भी उठे तो इस्तीफा देने में देरी नहीं करते
थे। रेल मंत्री के रुप में एक दुर्घटना पर इस्तीफा देने वाले लाल बहादुर
शास्त्री जैसा व्यक्ति अब राजनीति में नहीं पाया जाता। रोज ट्रेन
दुर्घटना होती है और आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता है लेकिन रेल मंत्री
आराम से अपनी कुर्सी पर विराजमान रहते हैं। ऐसे लोग इस्तीफा देने लगे
आरोप लगने पर तो वर्तमान में शासन में आरुढ़ हर व्यक्ति को किसी न किसी
आरोप के कारण इस्तीफा देना पड़ेगा। लालू प्रसाद यादव तो मुख्यमंत्री रहते
कहते थे कि वे जेल भी चले गए तब भी मुख्यमंत्री रहेंगे और जेल से ही
सरकार चलाएंगे। यह बात दूसरी है कि जब ऐसा अवसर आया तो उसके पहले ही
उन्होंने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया था। ऐसी
स्थिति में नीतीश कुमार विधानसभा में विपक्ष के विधायकों के हुल्लड़ के
कारण इस्तीफा दे देंगे, सोचने का कोई कारण नहीं हैं।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 22.07.2010

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