यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

छत्तीसगढ़ के 10 वर्ष पूरे होने के अवसर पर किसी को याद करना जरुरी है तो वह सिर्फ अटल बिहारी बाजपेयी हैं

जनता पार्टी जब सरकार चलाने में आपसी द्वन्द के कारण असफल हो गयी तब 1980
में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ और सत्ता से बाहर बैठी इंदिरा गांधी
चुनाव प्रचार के लिए रायपुर आयी। उस समय शंकर नगर के मैदान में आयोजित
चुनावी सभा में इंदिरा गांधी से छत्तीसगढ़ पृथक राज्य के विषय में मंतव्य
पूछा गया तब उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनी तो वे गुण दोष के आधार पर
छत्तीसगढ़ राज्य के विषय में निर्णय लेंगी लेकिन उन्होंने अपने जीते जी
छत्तीसगढ़ राज्य बनाने के विषय में निर्णय नहीं लिया। उनकी हत्या के बाद
राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने भी इस संबंध में कोई निर्णय
नहीं लिया। विश्वनाथ प्रतापसिंह जैसी सरकारों के पास तो इस विषय में सोच
विचार का समय ही नहीं था। राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंह राव की
कांग्रेस सरकार आयी और उस समय कांग्रेस के ही सांसद चंदू लाल चंद्राकर के
नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्य को लेकर पुन: आंदोलन प्रारंभ हुआ। जब
चंदूलाल चंद्राकर के नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ हुआ तो उम्मीद जगी कि
शायद नरसिंह राव छत्तीसगढ़ राज्य के गठन का इरादा रखते हैं लेकिन वह
उम्मीद भी पूरी नहीं हुई।
लगता नहीं था कि छत्तीसगढ़ राज्य के लिए शांतिपूर्वक किया जाने वाला
आंदोलन कभी सफल भी होगा लेकिन फिर भी धुन के पक्के छत्तीसगढ़ की मांग से
जुड़े ही रहे। फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने सप्रे शाला मैदान में चुनावी आम
सभा में घोषणा की कि छत्तीसगढ़ ने 11 में से 11 लोकसभा सीटें भाजपा को दी
तो वे छत्तीसगढ़ राज्य बनाएंगे। स्वाभाविक रुप से उम्मीद जगी और
छत्तीसगढ़ ने 11 में से 11 तो नहीं लेकिन 8 सीटें भाजपा की झोली में डाल
दी। इससे अटल बिहारी बाजपेयी तो अपने वायदे को पूरा करने के लिए बाध्य
नहीं थे। क्योंकि 3 सीटें भाजपा को देकर छत्तीसगढ़ ने उन्हें छत्तीसगढ़
पृथक राज्य बनाने के वायदे से मुक्त कर दिया था लेकिन फिर भी अटल बिहारी
बाजपेयी ने छत्तीसगढ़ के लोगों को निराश नहीं किया। अटल बिहारी बाजपेयी
की सरकार बनी और उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य को अस्तित्व में ला दिया।
निश्चित रुप से बहुत से लोगों ने छत्तीसगढ़ के लिए संघर्ष किया और उनकी
भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन यह भी कटु सत्य की तरह है कि अटल
बिहारी बाजपेयी जैसा प्रधानमंत्री इस देश को न मिला होता तो छत्तीसगढ़
राज्य अस्तित्व में नहीं आता।
कांग्रेस शासित प्रदेशों में अभी भी पृथक राज्यों के लिए आंदोलन जारी
हैं। महाराष्टï्र में विदर्भ और आंध्रप्रदेश में तेलंगाना आंदोलन को
प्रमुखता से गिनाया जा सकता है। पिछले चुनाव में तो तेलंगाना पार्टी के
साथ समझौता कर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा लेकिन तेलंगाना को पृथक राज्य
कांग्रेस ने नहीं बनाया। तेलंगाना और विदर्भ में तो पृथक राज्यों के लिए
उग्र आंदोलन भी हो चुके और अभी भी आंदोलन जारी है लेकिन कोई लक्षण नहीं
दिखायी देते कि ये आंदोलन सफल भी कांग्रेस की सरकार में हो सकते हैं।
छत्तीसगढ़ पृथक राज्य अटल बिहारी बाजपेयी के कारण नहीं बनता तो आज जो
विकास की गंगा प्रवाहित होते दिखायी दे रही है, उसकी कल्पना भी नहीं की
जा सकती थी। छत्तीसगढ़ तो जितना भी अटल बिहारी बाजपेयी का कृतज्ञ हो, कम
है। हालांकि अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्याई का ही असर है कि छत्तीसगढ़ की
जनता ने पहला अवसर मिलते ही सत्ता की बागडोर भाजपा को सौंप दी। कभी
कांग्रेस का गढ़ रहे छत्तीसगढ़ ने अच्छी तरह से पहचान लिया कि वास्तव में
कौन उसका हितैषी है और कौन उसका शोषक?
छत्तीसगढ़ के सीधे सादे भोले भाले लोग विश्वासघात और अहसान फरामोशी तो
जानते नहीं है। उन्होंने पूरी निष्ठा से 50 वर्षों तक कांग्रेस का साथ
दिया लेकिन कांग्रेस ने इसके बदले छत्तीसगढ़ को क्या दिया, यह किसी से
छुपा हुआ नहीं है। भाजपा को तो एक बार समर्थन देकर लोकसभा की 8 सीटें ही
दी और बदले में अपना राज्य प्राप्त कर लिया। एक अदद खंडपीठ की मांग भी
कांग्रेस सरकारों ने नहीं मानी तो राज्य के साथ पूरा हाईकोर्ट ही मिल
गया, छत्तीसगढ़ को। बिलासपुर का रेलवे मंडल देश में सर्वाधिक आय देने
वाला मंडल था लेकिन जब जोन बनाने की बात आती तो खुलेआम उपेक्षा करना
कांग्रेस सरकारों का दस्तूर था लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी ने छत्तीसगढ़ की
यह मांग भी पूरी की। छत्तीसगढ़ के लोग ईमानदारी से विश्लेषण करेंगे तो
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ को क्या दिया और भाजपा ने क्या दिया तो अंतर
साफ-साफ दिखायी देगा।
10 वर्ष राज्य पूरा करने जा रहा है, 1 नवंबर को। 7 वर्ष से भाजपा का शासन
है, छत्तीसगढ़ में। सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि आज देश में सबसे
ज्यादा विकास दर छत्तीसगढ़ की ही है। भाजपा ने डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़
का मुख्यमंत्री बनाया। 5 वर्ष के बाद जनता से विश्वास मत प्राप्त करने की
जवाबदारी भाजपा ने डॉ. रमन सिंह पर सौंपी। कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि
डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़ की जनता पुन: सरकार बनाने का जनादेश नहीं देगी
लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो जनता ने डॉ. रमन सिंह के नाम पर ही सहमति
दी। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तब कहा गया कि आदिवासी बाहुल्य राज्य है और
यहां की सत्ता किसी आदिवासी को ही मिलेगी। इसी सोच ने कांग्रेस को
आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की प्रेरणा दी। आश्चर्यजनक रुप से एक गैर
आदिवासी डॉ. रमन सिंह आदिवासियों की पहली पसंद बन गए। बस्तर की 12 में से
11 विधानसभा सीट और दो में से दो लोकसभा सीटों के लिए आदिवासियों की पसंद
भाजपा प्रत्याशी बन गए। मतदाताओं ने कांग्रेस का सरकार बनने का स्वप्न
साकार नहीं किया। कांग्रेसियों को मतदाताओं की कितनी समझ है, यह तो
कांग्रेसी ही जानें लेकिन मतदाताओं को उचित अनुचित की परख है, यह
मतदाताओं ने वोट देकर सिद्ध किया है।
डॉ. रमन सिंह आरोप प्रत्यारोप की राजनीति करने के बदले लोगों के दिल में
उतरने की राजनीति करते हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि दिल का रास्ता
पेट से ही होकर गुजरता है और छत्तीसगढ़वासी का पेट क्षुधा की अग्रि से
जलता रहा तो फिर विकास का कोई अर्थ नहीं रह जाता। उनकी सबसे बड़ी इच्छा
यही है कि उनके प्रदेश में कोई भी भूखा न रहे। प्रदेश के मुखिया की
हैसियत से उनका कर्तव्य भी है। जिस तरह से परिवार के मुखिया का प्रथम
दायित्व यही होता है कि परिवार के हर सदस्य के भोजन की व्यवस्था वह करे।
उसी तरह से प्रदेश के मुखिया का भी प्रथम कर्तव्य तो यही है। अपना यह
कर्तव्य डॉ. रमन सिंह ने जिस तरह से निभाया है, उससे तो पूरे देश में
उनकी वाहवाही है। दूसरा बेरोजगारों को काम से लगाना। इस मामले में भी
सरकार ने अवसरों की कोई कमी नहीं रहने दी है। लाखों लोगों को तो सरकारी
नौकरी में ही स्थान मिला है। मुख्यमंत्री का मस्तिष्क तो इसी सोच विचार
में लगा रहता है कि वे और क्या करें, अपनी जनता के लिए। मुफ्त उपचार की
व्यवस्था, मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था जैसे कार्यक्रमों ने तो जनता को धन्य
कर दिया है। यदि कहीं कोई कमी है, शिकायत है तो वह डॉ. रमन सिंह के कारण
नहीं है बल्कि नौकरशाहों की अकर्मण्यता के कारण है। वह भी तब जब अपने
नौकरशाहों को भरपूर वेतन और सुविधा देने में डॉ. रमन सिंह पीछे नहीं हैं।
एक गंदी मछली तालाब को गंदा कर देती है। इसी तरह से एक नौकरशाह की
लापरवाही अन्य कर्तव्यपरायण नौकरशाहों की छवि खराब करती है। जिस तीव्र
गति से डॉ. रमन सिंह सोचते हैं और योजना को क्रियान्वित करते हैं, वही
तेजी नौकरशाह दिखाएं। पूरी विनम्रता और सेवा भावना से, अहंकार को छोड़कर
तो प्रदेश में जो स्वर्ग की कल्पना है उसे साकार किया जा सकता है। असंभव
को भी डॉ. रमन सिंह संभव करना जानते हैं।

- विष्णु सिन्हा