यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

सबको सन्मति दे भगवान लेकिन छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत

दाई दुर्गा की उपासना, भक्ति में छत्तीसगढ़ के लोग लगे हुए हैं।
कामनवेल्थ गेम्स का भी आज समापन हो रहा है। क्रिकेट में भारत ने
आस्ट्रेलिया को धूल चटा दिया है। सचिन तेंदुलकर को आस्ट्रेलिया के लोगों
ने माना कि वे सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर हैं। समस्त आलोचनाओं के बावजूद
कामनवेल्थ गेम्स का सफल आयोजन करने में भारत सफल रहा है। अयोध्या विवाद
पर अभी भी समझौते के आसार कायम हैं। भारतीय मुसलमानों ने कहा है कि
काश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। नक्सलियों  के छत्तीसगढ़ में क्षेत्र
विस्तार की खबर है तो मुठभेड़ों में नक्सलियों के मारे जाने की भी खबर
है। सरकार राज्योत्सव मनाने की तैयारी कर रही है। 10 वर्ष राज्य गठन के
पूरे होने जा रहे हैं तो अतिरिक्त उत्साह परिलक्षित हो रहा है। राजधानी
रायपुर की सड़कें भी बन रही हैं। राज्यों में दुकानों, मकानों की रंगाई
पुताई के लिए भी नगर निगम के आह्वïन का चेम्बर ऑफ कामर्स ने स्वागत किया
है। कामनवेल्थ गेम्स में सर्वाधिक पदक और नए खेलों में पदक प्राप्ति ने
देश में उत्साह का संचार किया है। दशहरा, दीपावली जैसे बड़े त्यौहार भी
दस्तक दे रहे हें। कुछ जमा मामला उत्साहजनक है।

भटगांव उपचुनाव 34 हजार मतों से जीतकर भाजपा थिरक रही है। उसने संजारी
बालोद के उपचुनाव की भी तैयारी प्रारंभ कर दी है लेकिन कांग्रेसियों को
आपस में ही उलझने से फुरसत नहीं है। कल दिल्ली में आस्कर फर्नाडिस के
दरबार में जमा हुए कांग्रेसी प्रदेश कमेटी के सदस्यों को लेकर ही उलझते
दिखायी पड़े। बीआरओ और डीआरओ कैसे प्रदेश प्रतिनिधि बन गए? कैसे शहर के
कांग्रेसी, आदिवासी अंचलों से प्रदेश प्रतिनिधि बन गए? राष्ट्रिय  अध्यक्ष
का चुनाव हो गया लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस का चुनाव अधर में लटका हुआ है।
नगर निगम रायपुर में भी कांग्रेसी पार्षद पूरी तरह से गुटबाजी में लगे
हुए हैं। जिन्हें पद नहीं मिला वे महापौर को दोषी बता रहे हैं। शहर
कांग्रेस कमेटी भी नगर निगम के जोन चुनाव में उलझ गयी है। पार्षदों को
नोटिस थमाया गया है। एक पार्षद तो दिल्ली चला गया है, महापौर  की शिकायत
करने। कांग्रेसियों के इन झगड़ों को देखकर जनता के पास एक ही सोच शेष है
कि कहीं कांग्रेस को नगर निगम की सत्ता सौंपकर उसने गलती तो नहीं कर दी।
यह भी कटु सत्य है कि रायपुर की जनता ने किरणमयी नायक को महापौर चुना
लेकिन कांग्रेसी पार्षदों को बहुमत नहीं दिया। यदि कांग्रेस के पक्ष में
मतदाता होते तो पार्षदों का बहुमत भी कांग्रेस के पक्ष में होता। पिछली
बार जब सुनील सोनी को मतदाताओं ने महापौर चुना था तब पार्षदों का बहुमत
भी भाजपा को दिया था। इसलिए यह बात तो स्पष्ट है कि महापौर के रूप में
किरणमयी की जुझारू छवि के कारण लोगों ने महापौर चुना लेकिन यह भी आदेश
दिया कि अन्य पार्षदों का सहयोग लेकर नगर निगम चलाएं।

रायपुर शहर की जनता ने जब कांग्रेसी पार्षदों का बहुमत नहीं दिया तो
किरणमयी की तो बाध्यता है कि वह बहुमत के लिए निर्दलीय पार्षदों का सहयोग
लें और उन्हें सहयोग दें। ऐसे में किरणमयी ने जोन में कांग्रेसियों के
साथ एक निर्दलीय पार्षद को अध्यक्ष बना दिया तो ऐसा कौन सा पहाड़ टूट गया
कि संगठन अनुशासन की कार्यवाही करने लगा। सबको पद चाहिए तो सबको पद पर
बिठाना किरणमयी के लिए तो संभव नहीं। यह बात कांग्रेस के बड़े नेताओं को
अच्छी तरह से समझना चाहिए। कांग्रेस की थुक्का फजीहत भले ही हो लेकिन
हमारी बात चलनी चाहिए, इससे कहीं नगर निगम चल सकता है। नगर निगम को विकास
के काम करने हैं तो धन चाहिए और धन राज्य सरकार ही देगी। किस विषम स्थिति
से साबका महापौर का है, यह समझने के लिए कांग्रेसी तैयार नहीं हैं तो
जनता की भी भविष्य में मजबूरी बन जाएगी कि वह ऐसे व्यक्ति को महापौर न
चुने जो सरकारी पक्ष का न हो।

छोटी मोटी सत्ता मिली भी तो कांग्रेसी लड़ झगड़कर मिले हुए समय का
सदुपयोग कर पार्टी की छवि जनता में चमकाने के बदले धुंधली ही कर रहे हैं।
हर बड़े नेता का अलग दबाव है कि फलां को जोन अध्यक्ष बनाओ तो फलां को
महापौर परिषद में लो। तमाशा शहर के नागरिक देख रहे हैं तो नगर निगम के
कर्मचारी भी देख रहे हैं। मीडिया पूरी तरह से हवा दे रहा है तो भाजपाई
मुस्करा रहे हैं। शहर के लोगों को आपसी लड़ाई झगड़े से कुछ लेना देना
नहीं है। उन्हें तो अपनी समस्याओं का हल चाहिए। उसे कैसे हल किया जाए? इस
मामले में संगठन किस तरह से महापौर का सहयोगी हो सकता है, यह सोच विचार
का विषय होना चाहिए या व्हिप जारी कर वोट किसे डालना। रायपुर शहर में
सड़कें बन रही है लेकिन इसका श्रेय कांग्रेस को नहीं मिल रहा है। श्रेय
पूरी तरह से सरकार के खाते में जा रहा है। कांग्रेसी चुनाव प्रचार में
खुलकर समझाने का प्रयास करते हैं कि फलां फलां योजना का जो लाभ जनता को
हो रहा है, वह केंद्र की योजना है। केंद्र सरकार के धन से सरकार
वाहवाही लूट रही है। राज्य सरकार तो वाहवाही लूट ही रही है और जनता मानती
भी है कि डा. रमन सिंह की सरकार उसके दुख सुख का क्या ख्याल रखती है
लेकिन कांग्रेस शहर में होने वाले कार्यों का भी श्रेय नहीं ले पा रही
है। उसके पास एकमात्र काम है, जनता के द्वारा चुनी हुई महापौर को अपने
अनुसार चलाना।

स्पष्ट दिखायी देता है कि सत्ताविहीनता का अवसाद कांग्रेस को खाए जा रहा
है। ऐसे में जनता के बीच कांग्रेस की पकड़ बढऩे का तो अवसर दिखायी नहीं
देता। संजारी बालोद में भी कांग्रेस बुरी तरह से हारे तो कोई आश्चर्य की
बात नहीं है जो जिस डंगाल पर बैठा है जब उसे ही काटे तो उसके साथ कोई
सहानुभूति भी दिखाए तो क्यों ? कोई अपनी पत्नी को प्रदेश अध्यक्ष की
कुर्सी पर बिठाना चाहता है तो कोई स्वयं पद छोडऩा नहीं चाहता। हर तरह से
कोशिश करने में लगा है कि पद उसके नीचे से निकल न जाए। जो वास्तव में
पार्टी का भला कर सकता है और निष्ठïपूर्वक जनता में कांग्रेस को
लोकप्रिय बना सकता है, उसे जब तक आलाकमान पदारूढ़ संपूर्ण शक्ति के साथ
नहीं करता तब तक कांग्रेस का भला नहीं हो सकता। भाग्य साथ दे और सरकार के
कदम बहक जाएं तो जनता नाराज हो। तभी कांग्रेस के लिए सत्ता के मामले में
कोई भविष्य है। नहीं तो आज की स्थिति में जनता के छुटपुट समर्थन को भी
बचाने का माद्दा कांग्रेसियों में नहीं दिखायी देता। एक बेचारी कांग्रेस
और सब अपनी अपनी तरफ पकड़ कर खींचें तो उसका क्या हाल होगा? आश्चर्य तो
यह है कि सब कुछ समझने वाले समझदार ही कांग्रेस की दुर्गति करने पर उतारू
हैं? इसलिए सब जगह सब तरह की नियुक्तियां सोनिया दाई आसानी से कर देती है
लेकिन छत्तीसगढ़ का मामला लटका ही रहता है। अध्यक्ष किसी को बनाया जाता
है तो वह अपना पूरा कार्यकाल समाप्त कर देता है लेकिन कार्यकारिणी नहीं
बना पाता। गांधी जी कहते कहते दुनिया से चले गए कि सबको सन्मति दे भगवान
लेकिन आज सन्मति की जरूरत तो सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों को
ही है।

- विष्णु सिन्हा
14-10-2010