जारी हो गयी हैं। जारी सूची में कई पुराने दिग्गज स्थान नहीं बना पाए हैं
तो कई दिग्गजों को सिर्फ अपने नाम से ही संतोष करना पड़ रहा है। जो स्थान
पा गए हैं, वे स्वाभाविक रुप से कांग्रेस के बड़े नेता हैं लेकिन कहा जा
रहा है कि मोतीलाल वोरा के समर्थकों को सूची में सबसे ज्यादा स्थान मिला
है। यह कहना वास्तव में मोतीलाल वोरा के कद को कम करना है। दरअसल सूची
में जितने भी नाम हैं, वे सभी मोतीलाल वोरा के समर्थक हैं। छत्तीसगढ़
कांग्रेस में आज कोई भी नहीं कह सकता कि वह मोतीलाल वोरा का विरोधी है।
मोतीलाल वोरा कांग्रेस में सदा से गुटविहीन नेता हैं। वास्तव में न तो
उनका कोई गुट है और न ही गुटबाजी में विश्वास करते है। पूरी की पूरी
कांग्रेस उनकी है और वे कांग्रेस के है। कांग्रेस के हित में जो भी हो,
वही उनका समर्थक। उनके दरवाजे हर किसी के लिए खुले हुए हैं और वे हर किसी
को सुनने और उसकी बात पार्टी हित में हो तो उसे मानने के लिए तैयार रहते
हैं।
उम्र के जिस पायदान पर वे खड़े हैं, उस स्थिति में तो अब वे छत्तीसगढ़ के
कांग्रेसियों के लिए बाबूजी बन गए हैं। सोनिया गांधी का उन पर कितना
विश्वास है, इसके लिए किसी प्रमाण की जरुरत नहीं है। पार्टी के
राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष का पद छोड़कर उनकी जगह कोई भी होता तो केंद्रीय
मंत्रिमंडल में सम्मिलित होना पसंद करता लेकिन मोतीलाल वोरा को तो जैसे
कोई पद लिप्सा ही नहीं है। संगठन के कितने ही लोग केंद्रीय मंत्रिपरिषद
की शोभा बढ़ा रहे हैं लेकिन मोतीलाल वोरा को छोडऩे के लिए सोनिया गांधी
तैयार नहीं हैं। कांग्रेस में विश्वसनीयता के माप से उनका किसी से
मुकाबला हो सकता है तो वह सिर्फ मनमोहन सिंह ही है। हो सकता है कभी
मनमोहन सिंह का स्थानापन्न तलाश करने की जरुरत सोनिया गांधी को पड़े और
राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार न हों तो मोतीलाल वोरा वह
शख्स हो सकते हैं जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान दिखायी दें।
वैसे राष्टपति के चुनाव के समय उनका नाम भी उभरता रहा है।
आज प्रणव मुखर्जी जैसा वरिष्ठ नेता 75 वर्ष की उम्र में ही अवकाश ग्रहण
की बात करने लगा है लेकिन 79 वर्ष के हो जाने के बावजूद मोतीलाल वोरा
पूरी युवा ऊर्जा से ओतप्रोत हैं और दिन में 18 घंटे आज भी अपने कर्तव्य
के निर्वाह में लगे रहते हैं। लोग तो यही पूछते हैं कि आखिर इतनी युवा
ऊर्जा मोतीलाल वोरा प्राप्त कहां से करते हैं तो दो टूक जवाब यह है कि
कर्तव्य के प्रति निष्ठï और समर्पण ही ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत है। जब
कोई आदमी अपने काम के प्रति, अपने नेता के प्रति, अपनी संस्था के प्रति
एकनिष्ठï से कार्यरत होता है तो ब्रह्मïड की शक्तियां उसमें ऊर्जा
प्रवाहित करती हैं। एक पार्षद के रुप में अपना राजनैतिक कैरियर प्रारंभ
कर बिना किसी गुटबाजी के ही मोतीलाल वोरा ने राजनीति में जो मकाम हासिल
किया, वह कांग्रेस की राजनीति में बेमिसाल है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के
मामले में ही सुनी सबकी जाती है लेकिन अंतिम फैसला मोतीलाल वोरा की ही
सलाह पर लिया जाता है और इससे स्वाभाविक रुप से उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती
है।
गुटबाजी की राजनीति करने वाले कांग्रेसी काश उनसे ही कुछ शिक्षा ग्रहण
करते तो कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में दुर्गति नहीं होती। स्वार्थ की
संकीर्ण सोच ने ही कांग्रेस की छवि जनसामान्य में खराब कर रखी है। जब भी
कांग्रेस किसी साफ सुथरी छवि के व्यक्ति को सामने करती है तो जनता का उसे
समर्थन मिलता है। यह बात तो कांग्रेसी अच्छी तरह से जानते हैं कि
कांग्रेस की छवि जनता के मन से क्यों उतर गयी? सत्ता में बैठकर अपने
सामने किसी को भी कुछ न समझने की आदत ने ही कांग्रेसियों की एकजुटता को
नष्ट किया। व्यक्ति व्यक्ति में भेद कांग्रेसी होने के बावजूद किया जाना
भी कांग्रेस के लिए अहितकारी सिद्ध हुआ। मोतीलाल वोरा ऐसे शख्स हैं जिनके
नेतृत्व में पार्टी एकजुट हो सकती है। कांग्रेस के गुटबाज नेताओं से
ज्यादा जरुरत निष्ठïवान कार्यकर्ता की है और यह गुण कांग्रेसी मोतीलाल
वोरा से सीख सकें तो पार्टी का भला करेंगे ही, अपना भी भला करेंगे।
राहुल गांधी जो नया नेतृत्व एनएसयूआई और युवक कांग्रेस के द्वारा उभारना
चाहते हैं, उसके पीछे भी यही सोच है कि योग्य, कर्तव्यपरायण, निष्ठïवान
लोग कांग्रेस में आगे आएं। जिससे पार्टी को युवा नेतृत्व मिले। वे
गुटबाजी जैसी बुराइयों से दूर रहें लेकिन गुटबाज नेता उनकी इस योजना को
भी पलीता लगाते हैं जब इन संगठनों के नेता अपने आपको गुट विशेष का बताते
हैं। खेल तो गुटबाज नेताओं का ही होता है। जो इन संगठनों पर कब्जा कर
अपनी ताकत बढ़ाने का इरादा रखते हैं। ये नेता जब सोनिया गांधी, राहुल
गांधी के प्रति वफादारी का दम भरते हैं तब भी इनकी जुबान चुगली करती है
कि इनका सोनिया राहुल से कितना लेना देना है और अपनी स्वार्थ सिद्धि से
कितना। मोतीलाल वोरा के तो समर्थकों की तो यही शिकायत रही है कि उनके
नेता अन्य गुटबाज नेताओं की तरह उन्हें आगे बढ़ाने के लिए गुटबाजी की
राजनीति नहीं करते। ऐसे लोग वोराजी का साथ भी छोड़ देते हैं और गुटबाज
नेताओं के फेर में भी पड़ते हैं लेकिन जल्द ही समझ में तो आ जाता है कि
मोतीलाल वोरा और अन्य नेता में अंतर क्या है? मोतीलाल वोरा अपने समर्थकों
को वस्तु की तरह इस्तेमाल नहीं करते। इसलिए भटक भटका कर कार्यकर्ता लौटता
है तो उससे किसी तरह का दुराभाव प्रगट नहीं किया जाता।
किसी भी तरह के मानवीय सहयोग की उम्मीद आप मोतीलाल वोरा से कर सकते हैं।
इस बात से मोतीलाल वोरा का कोई लेना देना नहीं होता कि आप किस जाति,
धर्म, प्रदेश या वर्ग के साथ किस राजनैतिक पार्टी के सदस्य है। जहां तक
मानवता के प्रति सदाशयता का प्रश्र है तो मोतीलाल वोरा में इंसानियत कूट
कूट कर भरी है। छत्तीसगढ़ का हित होता हो तो मोतीलाल वोरा किसी भी तरह की
राजनीति को पसंद नहीं करते। कोई छोटे मन का नेता कुर्सी के अहंकार में
मोतीलाल वोरा का अपमान भी कर देता है तो वे उसे दुश्मनों की तरह नहीं
लेते बल्कि ऐसे नेता भी अंतत: मोतीलाल वोरा के दरवाजे पर खड़े दिखायी
देते हैं लेकिन पार्टी का हित हो तो मोतीलाल वोरा अडऩा भी जानते हैं।
पूरी जिंदगी राजनीति में बिताने के कारण राजनीति की हर विधा को उन्होंने
नजदीक से देखा है। राजनीति का अच्छा और बुरा दोनों पक्ष उन्होंने देखा है
लेकिन बुरे पक्ष से अप्रभावित रहने की कला भी उन्हें आती है। काजल की
कोठरी में रहने के बावजूद बिना किसी दाग के रहने से बड़ी कला और क्या हो
सकती है?
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, उत्तरप्रदेश के
राज्यपाल जैसे पदों को सुशोभित करने वाले मोतीलाल वोरा आज पार्टी के
कोषाध्यक्ष हैं। किसी भी पद से कम जवाबदारी का पद कोषाध्यक्ष का नहीं
होता। लोगों के पद बदलते रहे लेकिन सोनिया गांधी ने कोषाध्यक्ष के पद के
लिए मोतीलाल वोरा को ही हमेशा विश्वसनीय समझा तो यह बड़ी उपलब्धि है,
उनकी। आज छत्तीसगढ़ के मामले में आलाकमान उनकी राय को सबसे ज्यादा तव्वजो
देता है तो यह पार्टी के हित में तो है, ही, समझदारों के लिए इशारा भी है
कि पार्टी में पूछ कैसे व्यक्ति की होती है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 29.10.2010
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