यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

कांग्रेस आलाकमान कांग्रेस का छत्तीसगढ़ में भला चाहती है तो अजीत जोगी को किसी अन्य राज्य में राज्यपाल बनाना चाहिए

जिंदगी भर की आदत बुढ़ापे में मजबूरी में बदलने के लिए आदमी तैयार हो जाए
तो बात दूसरी है। नहीं तो अक्सर आदतें बदलती नहीं और पुख्ता हो जाती है।
अजीत जोगी से भी उम्मीद करना कि वे अपने स्वभाव में परिवर्तन कर लेंगे,
स्वाभाविक नहीं है। फिर एक बार जिसने सत्ता का सुख चख लिया उसे जब उस सुख
से महरूम कर दिया जाता है तो उसके दिल की हालत वे नहीं समझ सकते, जो इस
तरह के मकाम से नहीं गुजरे। देखी जमाने की यारी बिछड़े सभी बारी बारी। कल
तक जो लोग अजीत जोगी के सामने दंडवत थे, उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ते थे,
वे ही जब साथ छोड़कर किनारा कर गए तो फिर पीड़ा की अनुभूति होती है, यह
अजीत जोगी से ज्यादा अच्छी तरह से कौन महसूस कर सकता है? हर तरह के
प्रयासों के बाद अपने दम पर युवक कोंग्रेस का अध्यक्ष अपने कार्यकर्ता को
बनवाया तो वह भी विवाद के घेरे में उलझ गया। ऊपर से युवराज राहुल गांधी
कह रहे हैं कि युवा नेतृत्व ईमानदार होना चाहिए। उसे चापलूसी नही  करना
चाहिए। उसे बड़े नेताओं के पीछे नहीं चलना है।

छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस के अध्यक्ष का मामला राहुल गांधी तक पहुंचा और
राहुल गांधी जो कहते हैं, वही किया तो युवक कांग्रेस की जीत हार में बदल
जाएगी। इतने प्रयासों के बाद मिली जीत का सुख भी आदमी न उठा पाए और एक
इशारे पर हार जीत में बदल जाए तो भी लडऩे का माद्दा प्रदर्शित करना, हर
किसी के बस की बात नहीं। वह कहते हैं न कि अब मारा तो मारा, फिर मारकर
देख। हार पर हार फिर भी मनोबल बढ़ा हुआ प्रदर्शित करना राजनैतिक आवश्यकता
है। शारीरिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ न होने के बावजूद अजीत जोगी जिस मनोबल
का प्रदर्शन करते हैं, उसकी तारीफ करने वालों की भी कमी नहीं है और वे
हौसला अफजाई भी करते हैं। तब और जोर से शर्म हया को एक किनारे रखकर बोलना
तो ऐसी स्थिति में मजबूरी बन जाती है। भटगांव की हार का बदला संजारी
बालोद में लेंगे। किससे बदला लेंगे? भाजपा से या जनता से। क्योंकि भाजपा
को जितवाया तो जनता ने है। वैशाली नगर की तरह बार्डर से नहीं बल्कि ऐसे
बहुमत से जिसके बाद जीत पर प्रश्रचिन्ह कोई लगाए भी तो किसी के गले से
नीचे न उतरे।

लोगों को बड़ी उम्मीद थी कि अजीत जोगी में बढ़ती उम्र के साथ परिपक्वता
आएगी। और नहीं तो राहुल गांधी से ही विनम्रता का पाठ पढ़ लेंगे।
छत्तीसगढ़ की मानसिकता को ही समझ लेते कि यहां विनम्रता की ज्यादा कद्र
है बनिस्बत की उग्रता के। कोई  भी परिपक्व नेता जनादेश के द्वारा ही
सत्ता प्राप्त करना चाहता है। वह यह नहीं कहता कि आलाकमान इशारा करे तो
वह जनादेश के बिना भी सरकार बना सकता है। इसका अर्थ सभी लोग अच्छी तरह से
समझते हैं। राजनीति में ऐसा होता नहीं, ऐसा नहीं है, लेकिन कोई खुलेआम इस
तरह की घोषणा नहीं करता। इसी तरह की कोशिश के कारण वे पार्टी से निलंबित
भी किए गए थे। उन्होंने जब यह बात खुलेआम मीडिया के सामने कही है तो बात
आलाकमान तक भी  गयी होगी। क्या वे समझते हैं कि उनकी बात से आलाकमान खुश
हुआ होगा?

और किसी से न सही, युवा राहुल गांधी से ही सीखें। मनमोहन सिंह उन्हें
मंत्री बनाना चाहते हैं लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं। मंत्री क्या वे
चाहें तो प्रधानमंत्री बन सकते हैं लेकिन वे इससे जरूरी काम पार्टी को
जनता के विश्वास के योग्य बनाने में ज्यादा रूचि ले रहे हैं। वे
कांग्रेसियों को अच्छी तरह से समझा रहे हैं कि सरकार से ज्यादा जरूरी है
जनता का विश्वास। जब तक जनता विश्वास नहीं करेगी तब तक जोड़ तोड़ से
सत्ता मिल भी गयी तो किस काम की। आज भारतवर्ष में वे प्रधानमंत्री से
ज्यादा लोकप्रिय हैं। सर्वेक्षण की रिपोर्ट तो यही कहती है। तब उनके
इरादों पर पलीता अपनी महत्वाकांक्षा के लिए लगाने वाले लोग राहुल गांधी
को कितना पसंद आएंगे। यह बात भी स्पष्ट है कि कांग्रेस में राहुल गांधी
जिसे पसंद नहीं करेंगे, उसका भविष्य क्या होगा? युवक कांग्रेस चुनाव में
हाथ डालकर अजीत जोगी ने राहुल गांधी को खुश नहीं किया है। यह बात तो
राहुल गांधी के मध्यप्रदेश में दिए वक्तव्यों और युवक कांग्रेस के
नवनिर्वाचित अध्यक्ष को देखकर ही समझा जा सकता है।

धीरे धीरे अब कांग्रेस में युवा पीढ़ी का वर्चस्व बढ़ेगा। प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि पिछले दिनों कि वे अपनी मंत्रिमंडल की औसत
उम्र कम करने जा रहे हैं। मतलब मंत्रिमंडल में नए लिए जाने वाले मंत्री
युवा होंगे। अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री रहते हुए स्वयं कहा था कि 60 वर्ष
पूरा हो जाने पर वे राजनीति से अवकाश ले लेंगे। कब का 60 वर्ष वे पूरा कर
चुके लेकिन राजनीति से अवकाश लेने का अभी तक तो उन्होंने कोई निश्चय
प्रदर्शित नहीं किया। वे अवकाश लें न लें लेकिन वक्त उन्हें अवकाश की तरफ
ही ले जा रहा है। कांग्रेस के हित में भी यही है। छत्तीसगढ़ में
कांग्रेस  की युवा पीढ़ी तेजी से आगे आ रही है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए
जिन लोगों का नाम चर्चा में है, वे सभी के सभी अजीत जोगी से अपनी दूरी
सिद्घ करने में लगे हैं। धनेन्द्र साहू जब प्रदेश अध्यक्ष बने थे तब भी
इस बात का प्रचार किया गया कि अजीत जोगी की सिफारिश से बने हैं लेकिन
अंतत: यह बात साबित न हो सकी। आलाकमान भी अच्छी तरह से समझ गया है कि
अजीत जोगी के कारण कांग्रेस को जनता का समर्थन नहीं मिल रहा है।
अजीत जोगी भी बात कितनी भी  बड़ी बड़ी करें लेकिन यह बात अच्छी तरह से
जानते हैं कि कांग्रेस के बाहर उनकी क्या स्थिति है? विद्याचरण ने तो
कांग्रेस से बाहर जाकर भी राजनीति की लेकिन इतनी हिम्मत अजीत जोगी नहीं
कर सकते। क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने ऐसी कोशिश की तो उनके बड़े
नेता होने की पूरी पोल खुल जाएगी। कांग्रेस में रहकर तो वे कांग्रेस की
सत्ता में वापसी करा नहीं सके। एक बार तो विद्याचरण कारण बने लेकिन दूसरी
बार तो सभी एक साथ थे। तब भी कांग्रेस के पक्ष में जनता ने सत्ता नहीं
सौंपी बल्कि सदा से कांग्रेस  समर्थित रहे आदिवासी ही कांग्रेस का साथ
छोड़ गए। जबकि अजीत जोगी को आदिवासी होने के कारण मुख्यमंत्री बनाया गया
था। आलाकमान का यह निर्णय कांग्रेस के लिए कितना नुकसानप्रद साबित हुआ,
यह तथ्य आलाकमान को भी अच्छी तरह से पता है।

अब तो भाजपाई भी दुआ मांगते हैं कि अजीत जोगी स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों
और इसी तरह बोलते रहें तो सत्ता से उन्हें कोई हटा नहीं सकता। इस छोटी सी
बात से ही समझा जा सकता है कि अजीत जोगी के रहते भाजपा के हाथ से सत्ता
खिसकने वाली नहीं है। यह दूसरी बात है कि डा. रमन सिंह का शासन जनता के
हितों को संरक्षित करता है और कांग्रेसियों के लगाए आरोप जनता स्वीकार
नहीं करती। आलाकमान की अजीत जोगी के प्रति ज्यादा ही सहानुभूति है तो
उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाकर छत्तीसगढ़ से रूखसत करना चाहिए और
फिर सत्ता में वापसी के विषय में सोचना चाहिए।

- विष्णु सिन्हा
06-10-2010