यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

डॉ. रमन सिंह के नक्शे कदम पर चलने के लिए केंद्र की सरकार बाध्य

देर से ही सही लेकिन दिल्ली की कांग्रेस सरकार दुरुस्त हो गयी। योजना
आयोग के उपाध्यक्ष और प्रमुख अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया भले ही
कहें कि ग्रामीण संपन्नता बढऩे के कारण महंगाई बढ़ी है और ग्रामीण भी
दूध, सब्जी, फलों का सेवन करने लगे हैं लेकिन खुद उनकी केंद्र सरकार इस
बात से इत्तफाक नहीं रखती। इत्तफाक रखती तो 80 करोड़ भारतीयों को सस्ता
अनाज देने के लिए तैयार नहीं होती। गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को ही
नहीं, बहुतों को मार्च, 2011 से सस्ता अनाज मिलने के अवसर दिखायी दे रहे
हैं। 3 रु. किलो चांवल और 2 रु. किलो गेहूं और 1 रु. किलो ज्वार देने की
योजना ने कदम आगे बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दुनिया भर के
देशों को भले ही शिक्षा देते दिखायी दें कि सरकारों को जनहितकारी
योजनाओं, लोक लुभावन योजनाओं से बचना चाहिए लेकिन यह बात उनकी ही पार्टी
स्वीकार नहीं करती। स्वीकार करती तो सस्ता अनाज देने के विषय में सोच
विचार ही नहीं करती, देने की बात तो पैदा ही नहीं होती।

दुनिया भर में बड़ी आर्थिक शक्ति के नाम पर भारत का नाम रौशन हो लेकिन
भारत की जनता महंगाई की आड़ में भूखी रहे तो ऐसी आर्थिक शक्ति किस काम
की। कल ही कुछ समाचार पत्रों में छपा है कि भारत 2013 तक चीन को भी विकास
दर के मामले में पीछे छोड़ देगा। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने
देशवासियों से कह रहे हैं कि भारत और चीन का आर्थिक विकास अमेरिका के लिए
खतरे की घंटी है। मनमोहन सिंह की ही सिर्फ चले और उनके आर्थिक सलाहकार
मोंटेक सिंह अहलूवालिया के अनुसार ही सब कुछ चले तो निश्चित रुप से भारत
दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है लेकिन उसकी कीमत आम
भारतवासियों को भूखा रहकर चुकाना पड़ेगा। मुकेश अंबानी को दुनिया का सबसे
बड़ा धनी बनना है। दुनिया के धनी लोग सारे के सारे भारतीय हों तब भी 120
करोड़ के देश के पेट में  भूख की ज्वाला सुलगती रहे तो ऐसा विकास किस काम
का।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कथनी से नही करनी से बता दिया
है कि दोनों मोर्चों पर सफलता हासिल की जा सकती है। राज्य के नागरिकों की
क्षुधा शांति के लिए अनाज भी दिया जा सकता है और विकास के रथ की गति को
तीव्र किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह 2 रु. और 1 रु. किलो
चांवल गरीबों को प्रतिमाह 35 किलो दे रहे हैं तो विकास दर भी छत्तीसगढ़
की पूरे देश में सर्वाधिक है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तो जनहितकारी
ऐसी ऐसी योजनाएं लागू की हैं कि दूसरे राज्यों से आकर लोग अध्ययन कर रहे
हैं कि कैसे इतना ज्यादा काम छत्तीसगढ़ के डॉ. रमन सिंह कर रहे हैं। उनकी
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से स्वयं केंद्र सरकार प्रभावित हैं
लेकिन संकीर्णता श्रेय देने से रोक देती है। केंद्र के कांग्रेसी नेता
ईमानदारी से स्वीकार करेंगे तो वे डॉ. रमन सिंह की योजनाओं के प्रभाव को
स्वयं स्वीकार करेंगे।

कल ही परिवार नियोजन के लिए डॉ. रमन सिंह ने अपनी योजना घोषित की है और
एक बच्चे के माता पिता को सभी आर्थिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया है।
12 वीं तक पढऩे का पूरा खर्च और उच्च शिक्षा के लिए भी 50 हजार रुपए
प्रतिवर्ष देने की घोषणा। गरीबी रेखा के परिवार को दो बच्चों तक में छूट
दी गयी है।लेकिन लाभ एक ही बच्चे या बच्ची को मिलेगा। एक संतान चाहे
लड़का हो या लड़की नसबंदी कराने वाले को तुरंत लड़का होने पर दस हजार
रुपया और लड़की होने पर 12 हजार रुपए दिए जाएंगे। सरकार अपने संसाधनों का
पूरी तरह से दोहन करने के लिए कृतसंकल्पित है तो अपने नागरिकों को आगे
बढऩे के लिए सब तरह की सुविधाएं देने के लिए एक पैर पर खड़ी है। डॉ. रमन
सिंह ने इतनी योजनाएं घोषित की है कि वास्तव में सभी योजनाओं की जानकारी
किसी मंत्री या नौकरशाह से मांगी जाए तो वह नाम भी नहीं गिनवा सकेगा। डॉ.
रमन सिंह ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत केंद्र सरकार से गरीबों को
दाल भी सस्ती कीमत पर देने का आव्हान किया था लेकिन केंद्र सरकार सत्ता
में पुन: आने के बाद आज तक अनाज ही अपनी घोषणा के तहत 3 रु. किलो में
देने को क्रियान्वित नहीं कर सकी तो दाल कहां से देगी?

लेकिन अब जब केंद्र सरकार ने इस मामले में कदम बढ़ाया है और उम्मीद की जा
रही है कि योजना शीघ्र लागू होगी। क्योंकि सरकार से ज्यादा रुचि इस मामले
में सोनिया गांधी ले रही हैं तो सरकार बाध्य है कि वह योजना को
क्रियान्वित करे। भले ही यह उसकी पसंदीदा योजना हो न हो। इससे छत्तीसगढ़
सरकार के अनाज देने के कार्यक्रम से कुछ धन बचेगा तो वह दाल देने की
योजना लागू कर सकती है। चांवल के साथ दाल भी देना डॉ. रमन सिंह ने
प्रारंभ कर दिया तो गरीब की भूख तृप्तिदायक ढंग से मिट सकेगी। सरकार नमक
मुफ्त में दे रही है। चांवल नमक खा कर वैसे भोजन में कमी तो महसूस होती
ही है। दार चाऊर मिल  गे तो छत्तीसगढ़ के मनखे पूरा तृप्त हो जाहि। इसके
बाद तो आशीर्वाद हर कौर के साथ डॉ. रमन सिंह पर बरसने लगेगा। पंरपरा के
अनुसार संतों के दरबार में भंडारा चलता है। डॉ. रमन सिंह का यह भंडारा
उन्हें और उनकी सरकार के लिए ही नहीं, सबके लिए कल्याणकारी होगा।
राजनैतिक रुप से तो वैसे भी डॉ. रमन सिंह पर कोई खतरा नहीं है। सरकार
गिराने का ख्वाब देखने वाले तो वैसे भी अपने मंत्री पर कालिख पोतने से ही
परेशान हैं। उन्हें इसी काम से फुरसत नहीं है। फिर अभी तक जो केंद्र के
पैसे से फलां योजना चल रही है, से अपना गुणगान करने वाले स्वयं कठघरे में
खड़े हो गए हैं। बिहार चुनाव में ही पूछा जा रहा है कि राज्यों को धन
देकर केंद्र सरकार कोई उपकार करती है या यह उसका संवैधानिक दायित्व है।
इस सोच की धज्जियां उड़ायी जा रही है कि केंद्र में चूंकि कांग्रेस की
सरकार है, इसलिए जो धन केंद्र से राज्यों को मिलता है वह कांग्रेस के
द्वारा दिया जाता है। संवैधानिक व्यवस्था ऐसी है कि राज्यों से कर के रुप
में जो धन प्राप्त होता है केंद्र सरकार उसमें से राज्य सरकारों को उनको
हिस्सा दे। आज तो सर्वाधिक धन कर के रुप में विकास दर के मान से देखें तो
भाजपा शासित राज्य ही दे रहे हैं। जब धन राज्यों से आता है और उसमें से
अपना हिस्सा काट कर राज्य सरकारों को केंद्र सरकार देती है। तो यह उसकी
जिम्मेदारी है, अहसान नहीं।

डॉ. रमन सिंह की सरकार ने तो पहले 3 रु. किलो चांवल दिया। जिसका
छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों ने ही विरोध किया था। कहा गया कि यह
भ्रष्टïचार के लिए किया जा रहा है। फिर कहा गया कि चुनाव जीतने का स्टंट
है। इसके बाद विधानसभा का चुनाव हुआ और भाजपा को ही जनता ने पुन: सत्ता
सौंप दी। तब कांग्रेस को लगा कि चुनाव जीतने के लिए यही फार्मूला अपनाया
जाए। विधानसभा चुनाव के समय भी कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इसी
योजना के नाम पर वोट मांगा लेकिन जनता ने विश्वास नहीं किया। फिर लोकसभा
चुनाव के समय कांग्रेस ने यह योजना अपने घोषणा पत्र में सम्मिलित की और
चुनाव जीतकर सत्ता में आयी लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सफलता नहीं
मिली। डॉ. रमन सिंह की सरकार ने तो चुनाव जीत कर ही 2 रु. और 1 रु. किलो
चांवल देना प्रारंभ कर दिया लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार चुनाव के
डेढ़ साल बाद भी अभी तक तो 3 रु. किलो में चांवल नहीं दे पायी। दोनों
सरकारों का अंतर इसी से स्पष्ट दिखायी देता है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 24.10.2010
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