अर्थात सिमी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा एक जैसी ही है।
तब सरकार ने सिमी पर तो प्रतिबंध लगा दिया लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक
संघ पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? वे युवक कांग्रेसियों को क्यों समझा
रहे हैं? समझाना है तो अपनी सरकार को समझाएं कि संघ और सिमी में कोई अंतर
नहीं है। इसलिए सिमी के साथ संघ पर भी सरकार प्रतिबंध लगा दे। राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ राष्ट्रवादी संगठन है और हिंदुओं के बीच काम करता है।
नाथूराम गोडसे ने जब महात्मा गांधी की हत्या की थी तब भी यह आरोप लगा था
कि नाथूराम गोडसे संघ का स्वयंसेवक हैं और संघ पर उस समय कांग्रेस सरकार
ने प्रतिबंध भी लगाया था लेकिन फिर प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। राहुल
गांधी की दृष्टि में दोनों संगठन कट्टरवादी हैं। राष्ट्रप्रेम की
कट्टरता को कौन गलत कह सकता है?
भारत माता के प्रति आस्था यदि कट्टरता है तो निश्चय ही राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ कट्टर हैं। बहुसंख्यक हिंदुओं की एकता की बात करना कट्टरता
है तो संघ कट्टर है। संघ सिर्फ बात ही नहीं करता बल्कि उसके विभिन्न
संगठन इस दिशा में सक्रिय रूप से काम भी करते हैं। संघ लोभ लालच से
धर्मांतरण की निंदा करता है तो गलत क्या करता है? संघ प्रमुख मोहन भागवत
जब राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद पर न्यायालय का फैसला आने के बाद कहते
हैं कि जय पराजय की बात नहीं है तो क्या वे कट्टरता का परिचय देते हैं?
हिंसा के लिए संघ में कोई स्थान नहीं है तो वे गलत किस तरह से हो गए।
सिमी और संघ की तो किसी भी दृष्टि से तुलना नहीं की जा सकती। जब कभी
ईमानदारी से इतिहास लिखा जाएगा तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को खलनायक
नहीं बनाया जा सकेगा।
इस देश में सभी अपने अपने धर्म के आधार पर संगठन बनाएं तो वे धर्म
निरपेक्ष और हिंदुओं के नाम पर संघ का संगठन काम करे तो वह सांप्रदायिक।
कब तक इस तरह की बातों से देश के नागरिकों को बहकाया जाएगा। राहुल गांधी
को संघ की विचारधारा से प्रभावित लोगों की जरूरत अपने कांग्रेस संगठन के
लिए नहीं है तो संघ के स्वयंसेवक ही कहां कांग्रेस की सदस्यता के लिए
उत्सुक हैं। ऐसा कोई मामला हो कि स्वयं सेवक राहुल गांधी से मिलकर युवक
कांग्रेस की सदस्यता देने का अनुरोध करें तब यह कहने का भी कोई औचित्य है
कि स्वयं सेवकों के लिए कांग्रेस में कोई जगह नहीं है। राहुल गांधी क्या
कट्टरपंथी नहीं हैं? धर्मनिरपेक्षता के मामले में वे कट्टरपंथी नहीं
है, क्या? क्या धर्मनिरपेक्षता के विषय में उनकी सोच ढुलमुल है। जिस भी
विचार को कोई भी मानेगा और उसके अनुसार आचरण करेगा तो वह कट्टर ही
होगा लेकिन इसका अर्थ प्रजातंत्र में तो कम से कम दुश्मनी नहीं होना
चाहिए।
वैचारिक स्वतंत्रता भारत में प्रत्येक व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है।
जरूरी तो नहीं कि हर किसी के विचार से हर कोई सहमत हो। कांग्रेस के ही
विचारों से पूरा देश कहां सहमत है? 35 प्रतिशत लोग ही कांग्रेस के समर्थक
हैं तो 65 प्रतिशत लोग कांग्रेस के समर्थक नहीं हैं। राहुल गांधी युवक
कांग्रेस के द्वारा ईमानदार योग्य लोगों को राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते
हैं। अच्छी बात है। वैचारिक तल पर इसका स्वागत ही किया जाएगा लेकिन
यथार्थ के धरातल पर भी तो इसे सत्य साबित होना चाहिए। ईमानदारी से सबसे
पहले राहुल गांधी ही अपने आसपास की गतिविधियों को देखें। वे युवक
कांग्रेस का चुनाव करवा रहे हैं। चुनाव ही कितने साफ सुथरे हो रहे हैं।
युवक कांग्रेस के चुनाव में ही धन पानी की तरह बह रहा है। पद पर काबिज
होने के लिए हर हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। कल इन्हें देश का शासन चलाने की
जिम्मेदारी मिलेगी तो ये कैसे ईमानदारी से शासन करेंगे?
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तो अपने स्वयंसेवकों को शारीरिक शिक्षा ही
नहीं बौद्घिक शिक्षा भी देता है। चरित्र निर्माण उसका प्रमुख अंग है।
कांग्रेस के पास भी सेवादल के रूप में एक संगठन है। राजीव गांधी के समय
तो कांग्रेसियों के लिए सेवादल का प्रशिक्षण अनिवार्य था लेकिन फिर बात
आयी गई हो गयी। आज सेवादल की क्या स्थिति है? इसके विपरीत संघ के
स्वयंसेवकों में से जो राजनीति में जाना चाहता है तो भाजपा में उसकी
बड़ी इज्जत है। भाजपा के तो अधिकांश संगठन मंत्री संघ के ही स्वयंसेवक
हैं। संगठन मंत्री भले ही सत्ता में भागीदारी नहीं करते लेकिन सत्तारूढ़
लोगों पर नजर रखने का काम तो करते हैं। कांग्रेस में चुनाव जीतकर आगे आने
का जो प्रयास राहुल गांधी करवा रहे हैं, उसमें भी योग्य लोग आगे जा
पाएंगे, क्या? जब तक कि वे किसी स्थापित नेता का दामन नहीं थामते।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भले ही राहुल गांधी कट्टरवादी संगठन कहें
लेकिन आज संघ की राजनैतिक पार्टी भाजपा देश की दूसरी बड़ी राजनैतिक
पार्टी है। भाजपा ने तो 6 वर्ष तक देश पर शासन भी किया और अटलबिहारी
वाजपेयी गर्व से कहते थे कि वे संघ के स्वयं सेवक हैं? लालकृष्ण आडवाणी
भी यही बात कहते हैं। वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी तो कहते हैं कि
उन्हें गर्व है कि वे संघ के स्वयंसेवक हैं। यह राहुल गांधी की दृष्टि
में भले ही कट्टरता हो लेकिन संघ की नजर में चरित्र की दृढ़ता है। जब
जनता पार्टी शासनकाल में दोहरी सदस्यता का मामला उठाया गया तो जनसंघ के
लोगों ने सत्ता के लिए संघ का दामन छोडऩे के बदले सत्ता का ही दामन छोड़
दिया था। उन्होंने जनता पार्टी में बने रहने के बदले संघ के स्वयं सेवक
बने रहना पसंद किया।
आज केंद्र की गठबंधन सरकार में कांग्रेस विरोधी भी इसलिए सम्मिलित हैं कि
कहीं भाजपा सत्ता में न आ जाए। राज्य की भाजपा सरकारों ने आज कांग्रेस पर
बढ़त बना रखी है। कांग्रेस सब तरह का प्रयास कर भी भाजपा को अलोकप्रिय
नहीं कर सक रही है। इसका बड़ा कारण तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है जो
भाजपा के पीछे खड़े रहकर उस पर कड़ी नजर रखता है। जब से देश स्वतंत्र हुआ
तब से संघ को गरियाने का काम कांग्रेस कर रही है लेकिन संघ का प्रभाव
क्षेत्र घटने या सीमित होने के बदले बढ़ता ही गया। राम जन्मभूमि के मामले
में उच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह तो स्पष्ट हो गया कि राम जन्मभूमि
उसी स्थान पर है, जिसका दावा संघ और उसके आनुषांगिक संगठन कर रहे थे।
केंद्र में कांग्रेस की सरकार है लेकिन वह हिम्मत नहीं कर रही है कि
मामला आगे न बढ़े और दोनों पक्षों में समझौता हो जाए, जिससे यह मामला
हमेशा के लिए समाप्त हो जाए। डर लगता है कि समझौते के प्रयास में कहीं
कांग्रेस को राजनैतिक नुकसान न हो जाए। न्यायालय फैसला करे और सरकार
सिर्फ फैसले का इंतजार करे, यह क्या सही स्थिति है? क्या यह जिम्मेदारी
से भागना नहीं है। राहुल गांधी ही पहल करें। दोनों पक्षों को किसी समझौते
के लिए तैयार करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सिमी की तरह का संगठन
बताने से ही देश की समस्याएं नहीं सुलझेंगी।
- विष्णु सिन्हा
07-10-2010