यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

मोहन भागवत का यह कहना एकदम सही है कि राम मंदिर तो बहुत हैं लेकिन राम जन्मभूमि एक ही है

दशहरा के अवसर पर राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संदेश दिया कि देश में राम मंदिर तो कई हैं लेकिन राम जन्मभूमि तो एक ही है। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब किसी तरह के शक संदेह की गुंजाईश भी नहीं रही। राम जन्मभूमि के पुरातात्विक सर्वेक्षण से भी सिद्ध हो गया कि उस स्थान पर मंदिर था। यह बात पीठ के तीनों जजों ने स्वीकार की। मोहन भागवत ठीक कहते हैं कि अब हिंदू मुसलमान को मिल बैठकर इस स्थान पर राम मंदिर बनाने के विषय में विचार करना चाहिए। हिंदू धर्म की सबसे बड़ी खूबी उसकी सहिष्णुता है। हिंदू कट्टर होता तो भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र नहीं होता। धर्म के मामले में भारत के बंटवारे के बाद तो कदाचित नहीं लेकिन धर्म के आधार पर पाकिस्तान बनने के बावजूद भारत के हिंदुओं ने धर्मनिरपेक्षता का चुनाव किया। सभी धर्मों को आदर की दृष्टि से ही नहीं देखा बल्कि समान अधिकार भी दिया।


देश में प्रजातंत्र हैं और देश पर शासन करने का अधिकार उसे मिलता है जिसे बहुमत जनता चाहे। हिंदू इस देश की आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक है और वह धर्म निरपेक्षता को स्वीकार करता है। इससे वह सहज ही सम्मान का अधिकारी हो जाता है लेकिन फिर भी वह न्याय व्यवस्था पर विश्वास करता है। प्रारंभ से ही राम मंदिर को लेकर कहा गया कि यह आपसी समझदारी से, संसद में कानून बनाकर या फिर न्यायालय के फैसले के आधार पर इसका निर्णय होना चाहिए। आपसी समझदारी बनी नहीं, अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय न हो, इसलिए संसद ने कानून बनाकर इस मामले को हल करना चाहा नहीं, और न्यायालय के फैसले पर ही सब कुछ छोड़ दिया गया। अब उच्च न्यायालय का फैसला आ चुका है। उच्चतम न्यायालय में इसके विरुद्ध अपील करने का अधिकार सभी पक्षों को है। खबर है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में अपील करने का फैसला कर लिया है। निर्मोही अखाड़ा भी उच्चतम न्यायालय में अपील करने को तैयार है।यह ऐसा मोड़ है कि सभी को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। केंद्र सरकार की भूमिका सबसे अहम है। वह हिम्मत करे तो समझौते का प्रयास न्यायालय के बाहर कर सकती है लेकिन वह शायद इस मामले में पडऩा नहीं चाहती। उसे डर है कि समझौता होने, न होने दोनों स्थिति में उसे नुकसान वोटों का हो सकता
है। उच्चतम न्यायालय में भी अपील का फैसला एक न एक दिन होगा। यदि उच्च न्यायालय के फैसले को ही उच्चतम न्यायालय उचित समझता है तो फिर क्या होगा? अनेक प्रश्र तब भी खड़े होंगे। एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया जाएगा तो जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर ही आएगी कि वह दोनों पक्षों के बीच समझौता करा कर कोई सम्मानजनक हल निकाले। एक तिहाई स्थान पर मुसलमान मस्जिद बनाने के लिए सहमत होंगे तो क्या मस्जिद बना कर भी शांति कायम रखी जा सकेगी या हमेशा के लिए अशांति पैदा करने की तैयारी है उच्चतम न्यायालय
ने फैसला दे दिया कि पूरी जमीन मुसलमानों की है तो क्या राम लला को वहां से हटाया जा सकेगा,जहां वे विराजमान हैं। क्या यह शांति से संभव है। संभव होता तो विवाद ही क्यों होता? उच्चतम न्यायालय ने पूरी जमीन राम लला को दे दी तो मुसलमान संतुष्ट हो जाएंगे। आज भले ही वे कहें कि उन्हें उच्चतम न्यायालय का अंतिम फैसला स्वीकार होगा।
अभी उच्च न्यायालय के फैसले को जिस शांति से हिंदू और मुसलमान ने सुना,तब भी क्या वही स्थिति होगी, जब उच्चतम न्यायालय का फैसला  आएगा। अभी कहा जा रहा है कि आस्था के आधार पर उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया। उच्चतम न्यायालय का फैसला भी तो किसी न किसी को चोट पहुंचाएगा। तब भारतीय कानून व्यवस्था पर ऊंगली उठायी जाएगी। फैसला तो न्यायालय देगा और लागू करने की जिम्मेदारी सरकार पर ही आएगी। तब जो भी आक्रोशित होगा, उसे संतुष्ट कैसे कराया जाएगा? विवाद को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को को ही रास्ता निकालना पड़ेगा। सरकार ने तो फैसले के बाद समझौते के लिए अपनी तरफ से कोई
पहल न कर मामले को टाला ही हैं लेकिन यह मामला ऐसा नहीं है कि टालने से टल जाए। वक्त काटा जा सकता है और एक न एक दिन फिर भी फैसले की घड़ी आएगी।तब निर्णय करना ही पड़ेगा तो आज ही निर्णय मिल बैठ कर क्यों नहीं कर लेते? मामले को हमेशा के लिए समाप्त क्यों नहीं कर देते? समझदारी तो इसी में है।

बाबरी मस्जिद हिंदू मंदिर या उसके ढांचे पर बनायी गयी, यह तो पुरातात्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है। इसकी जानकारी सभी हिंदुओं को हो चुकी है।कल तक जिन्हें संदेह भी था, उनका संदेह दूर हो चुका है। कल तक जो लोग इसे राजनीति समझ रहे थे, वे भी अब संतुष्ट हैं कि मंदिर की जगह पर मस्जिद बनायी गयी थी। इसके बाद राम लला को वहां से हटाया नहीं जा सकता। कोई भी सरकार ऐसी कोशिश करेगी तो उसकी उल्टी गिनती प्रारंभ हो जाएगी। यदि लोगचाहते हैं कि फिर से राम जन्मभूमि के नाम से देश में राजनैतिक आंदोलन जन्म ले और देश की शांति को नष्ट करे तभी इस विवाद को कायम रखा जाना चाहिए। नहीं तो सम्मानजनक तरीके से हल निकालना, हल पर सहमत होना, आज आस्था के लिए ही नहीं, राजनैतिक जरुरत भी है। अभी तक जो हिंदू मानसिकता एक पक्षीय नहीं हुई, उसे एक पक्षीय करना चाहते हैं तभी ऐसा निर्णय करना चाहिए कि राम लला को राम जन्मभूमि से हटाया जाए।मंदिर तो कितने ही यातायात के नाम पर ही हटाए जा रहे हैं। सड़कों को चौड़ा करना है। रास्ते छोटे पड़ रहे हैं और मनुष्यों की संख्या बढ़ती जा
रही है। इन मंदिरों को हटाने के समय कुछ लोग विरोध भी करते हैं लेकिन प्रशासन की सख्ती के सामने उनका विरोध नहीं चलता। इन मंदिरों में राम का भी मंदिर है। कुछ तो बहुत प्राचीन भी हैं लेकिन अधिकांश हिंदुओं की आस्था पर इससे चोट नहीं लगती। हिंदुओं के लिए राम ईश्वर के अवतार हैं। साक्षात ईश्वर हैं। रामचरित मानस जिसे रामायण कहा जाता है, हर घर में है। यहां तककि अनपढ़ हिंदुओं को भी रामायण के दोहे चौपाई कंठस्थ है। राम कथा ही ऐसी है जिसे हर हिंदू जानता है। जब दूरदर्शन पर रामायण दिखाया जाता था तब सड़कों पर विरानी छा जाती थी। यदि उस समय विद्युत अवरोध हुआ तो लोग बिजली दफ्तर पर पत्थर बरसाने में भी नहीं हिचकते थे। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का प्रिय भजन था ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान। रघुपति राघव राजा राम पतितपावन सीताराम ।राम तो हिंदुओं के रोम रोम में बसे हुए हैं। इसलिए राम जन्मभूमि अन्यमंदिरों की तरह हिंदुओं के लिए नहीं है। मोहन भागवत जब कहते हैं कि राममंदिर तो देश में बहुत हैं लेकिन राम जन्म भूमि एक ही है तो वे एकदम सही बात कहते हैं। इसलिए उच्च न्यायालय ने जब निर्णय दे दिया है कि जहां राम
लला विराजमान हैं वह स्थान राम जन्मभूमि है तब उन्हें वहां से हटाया तो जा नहीं सकता। इसलिए शांत हृदय से सच्चाई को स्वीकार करने में ही भलाई है। हम तो यही कह सकते हैं कि ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 18.10.2010
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