छत्तीसगढ़ कांग्रेस के गठन का जिम्मा सोनिया गांधी को सौंप दिया गया।
सबको अच्छी तरह से पता था कि यही होने वाला है लेकिन प्रजातांत्रिक
पार्टी होने का स्वांग तो दिखाना पड़ता है। दिल्ली से प्रदेश प्रभारी
नारायण सामी और विप्लव ठाकुर आए। उम्मीद से परे इनका स्वागत किया गया।कुछ लोगों ने नारायण सामी पर काली स्याही फेंक कर स्वागत किया। 4 युवक पकड़े भी गए हैं और वे इंकार कर रहे हैं कि उन्होंने यह कृत्य नहीं किया।उनके पास से कुछ पर्चे भी मिले हैं जिस पर गरीब कांग्रेसियों की उपेक्षा का आरोप है।
बीआरओ, डीआरओ स्वयं प्रदेश प्रतिनिधि बन गए, यह बात तो
पुरानी हो गयी। अब केंद्रीय नेताओं का ऐसा स्वागत सत्कार कांग्रेस की
कहानी जनता के सामने स्वयं उजागर करती है कि कांग्रेसी कहां से चले थे और कहां पहुंच गए।निश्चित रुप से स्वतंत्रता संग्राम की महात्मा गांधी की कांग्रेस और सोनिया गांधी की कांग्रेस में जमीन आसमान का अंतर आ गया। कभी कांग्रेस अंग्रेजों से लड़ती थी, तब भी ऐसी हरकतें नहीं करती थी, जैसी हरकतें अब कांग्रेसी, कांग्रेसी से ही लडऩे में, विरोध प्रदर्शन में कर रहे हैं। घर की इज्जत को बचाने के बदले उसे तार-तार करने में कांग्रेसियों की ज्यादा रुचि हैं। तभी तो कहने में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी को हिचक नहीं होती कि नीचे से ऊपर तक कांग्रेसी बिक गए हैं। आलाकमान को शिकायत करते हैं कांग्रेसी, तो उस पर कोई फैसला आलाकमान नहीं लेता। खबर तो यह भी है कि छत्तीसगढ़ के झगड़ों को देखकर आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के प्रति उपेक्षा का रुख अपना लिया है। किसी को भी किसी पद पर बिठाया जाता है और जिनकी नहीं चलती, वे शिकायत का पुलंदा लेकर आलाकमान का दरवाजा खटखटाने
लगते हैं। कभी कांग्रेसियों के लिए दिल्ली क्या भोपाल ही बहुत दूर था
लेकिन अब नगर निगम तक के मामले में शिकायत करने पार्षद दिल्ली पहुंच जाते हैं।
अभी वह दिन तो नहीं आया जब महापौर को महापौर परिषद और जोन अध्यक्ष में चयन के लिए आलाकमान की अनुमति लेना पड़े लेकिन विवाद इसी तरह से बढ़ा तो वह दिन दूर नहीं जब पंच सरपंच तक का चुनाव कौन लड़ेगा, यह आलाकमान ही तय करेगा। प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष कौन हो, जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष कौन हो, कार्यकारिणी में कौन किस पद पर बैठे, ये सभी निर्णय तो आलाकमान ही कर रहा है। सत्ता में हों झगड़ें तो एक बार समझ में भी आता है लेकिन सत्ताविहीन होकर झगड़ा और किसी एक नाम पर सर्वसम्मति का न बनना कांग्रेस की सांगठनिक स्थिति का खुलासा ही करता है। जब शासन और सत्ता नहीं है तब भी संगठन पर कब्जा इसलिए आवश्यक लगता है कि कभी सत्ता भूले
भटके हाथ में आ गयी तो सांगठनिक प्रमुख को ही मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल सकता है। टिकट वितरण में भी भूमिका मिल सकती है लेकिन ऐसी स्थिति में जैसी आज है, सत्ता का ढोल दूर की ही बात लगती है।
आज कांग्रेसियों की सबसे बड़ी कमजोरी ही यह बन गयी है कि उनकी न चले तो काग्रेस हार भी जाए तो कोई बात नहीं। कांग्रेस बड़ी या कांग्रेसी तो कहें भले ही नहीं लेकिन स्पष्ट तो यही दिखायी देता है कि कांग्रेसी बड़े।
नारायण सामी के कपड़े पर, चेहरे पर काली स्याही फेंकने वाले या फेंकने के लिए उकसाने वाले किस तरह से सही कांग्रेसी हो सकते हैं। फिर नारायण सामी पर काली स्याही फेंकने से कांग्रेस की छवि तो खराब कर सकते हैं लेकिन बदले में प्राप्त क्या कर सकते हैं? काली स्याही फेंकने से क्या नारायण सामी डर जाएंगे? फिर फेंकने वालों के पास तो इतना मनोबल भी नहीं है कि वे भागने के बदले सामने आकर बताते कि वे कौन हैं और क्यों सामी का चेहरा काला करना चाहते हैं? आखिर नारायण सामी तो आलाकमान के प्रतिनिधि हैं।नारायण सामी के बदले आलाकमान किसी अन्य को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजता तो वह व्यक्ति आता। यह काली स्याही नारायण सामी के चेहरे और वस्त्रों पर नहीं फेंकी गयी बल्कि आलाकमान के ही चेहरे पर फेंकी गयी है। क्योंकि नारायण सामी का तो काम ही इतना है कि वे जो भी स्थिति देखें, यहां की, उसकी सूचना आलाकमान को दें। फिर आलाकमान के पास छत्तीसगढ़ की कांग्रेस की
सूचनाओं के लिए नारायण सामी ही अकेले सूचना स्त्रोत नहीं हैं और न ही
आलाकमान सिर्फ नारायण सामी की सूचनाओं, जानकारियों के आधार पर कोई निर्णय लेता है।
काली स्याही फेंकने वाले कितना भी छुपने का प्रयास करें लेकिन आलाकमान को जानकारी मिल ही जाएगी कि इस तरह का काम किस नेता के प्यादों ने किया है। कौन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की दुर्गति का असली खलनायक है? कुछ भी छुपने वाला नहीं है। भय, आतंक की राजनीति पर कौन विश्वास करता है? कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में बचाना है तो आलाकमान को कड़े निर्णय लेना चाहिए। जैसा कि इंदिरा गांधी लिया करती थी। नरसिंहराव के समय निर्णय को टाला जाता रहा तो परिणाम भी सामने आया। कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी थी। आलाकमान का कोई भय
ही नहीं रहेगा तो फिर सभी मनमानी करने लगेंगे। भाजपा की ही तरफ देखें।अनुशासनहीनता करने पर बड़े से बड़े नेता को भी बख्शा नहीं जाता। पार्टी से निलंबित या निष्कासित करने में हिचक नहीं होती।
आज छत्तीसगढ़ कांग्रेस में अनुशासन के डंडे की सबसे ज्यादा जरुरत है। यह डंडा कांग्रेस आलाकमान ही चला सकता है। नारायण सामी पर फेंकी गई काली स्याही सब चलता है कि तर्ज पर उपेक्षा करने लायक घटना नहीं है बल्कि यह तो अनुशासनहीनता का तमाचा है। जो वास्तव में नारायण सामी पर नहीं पार्टी अनुशासन पर लगाया गया है। पार्टी को जनता में लोकप्रिय बनाना है तो ऐसेलोगों की पार्टी में कोई जरुरत नहीं, इस बात को अच्छी तरह से समझना ही कल्याणकारी होगा। नहीं तो फिर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद ही छोड़ देना चाहिए। पार्टी की गुटबाजी ने वैसे ही जनता में कांग्रेस की छवि को खराब कर रखा है।
रायपुर नगर निगम में कांग्रेस की महापौर को चुनकर अब तो रायुपर के लोग ही सोचने लगे हैं कि उन्होंने कांग्रेस को अवसर देकर सही नहीं किया है। क्योंकि ये सुधरने वाले नहीं हैं। अपनी ही महापौर के विरुद्ध असंतोष प्रगट कर निगम को राजनीति का अखाड़ा बनाया जा रहा है। एक तरफ भाजपा की सरकार है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के पार्षद और जनता को समस्याओं से मुक्ति दिलाने का अहम दायित्व। कैसे निपटे महापौर? सबको पद चाहिए और महापौर को सामान्य सभा में पार्षदों के बहुमत का समर्थन। निर्दलियों के सहयोग के बिना यह संभव नहीं। महापौर तो
कांग्रेस की प्रतीक हैं। यदि जनता 4 वर्ष में और असंतुष्ट हुई तो
कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा चुनाव में क्या हासिल कर सकेगी?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में तो इस विषय की चिंतना करने वाला कोई दिखायी नहीं देता। जो हैं, वे भी हाशिए में ढकेल दिए जाते हैं। तब आलाकमान को ही सोचना है और निर्णय करना है कि क्या किया जाए?
-विष्णु सिन्हा
दिनांक: 19.10.2010
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