यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

भटगांव चुनाव परिणाम से कांग्रेस सबक ले सकती है तो ले ले?

रस्सी जल गयी लेकिन बल नहीं गया। बुरी तरह से हार जाने के बावजूद
विनम्रता तो आयी नहीं, घमंड स्पष्ट दिखायी दे रहा है। अजीत जोगी कह रहे
हैं कि एक इशारे पर सरकार गिरा सकते हैं। मतलब जनता की इच्छा का कोई अर्थ
नहीं। जनता किसी के भी हाथ में सत्ता सौंपे लेकिन उसे चलना अजीत जोगी के
अनुसार ही होगा। मुख्यमंत्री रहते जब वे चुनाव हारे थे तब भी जनादेश को
पलटने की उन्होंने कम कोशिश नहीं की थी लेकिन असफलता ही हाथ लगी। तब से
कांग्रेस के हाथ से सत्ता गयी तो लौटने का नाम ही नहीं लेती। कल तक जो
अजीत जोगी को ही कांग्रेस का खेवनहार समझते थे, वे भी समझ गए कि जब तक
अजीत जोगी कांग्रेस के नेता दिखायी देते रहेंगे तब तक कांग्रेस की
छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के अवसर नहीं हैं। लोग तो यह  भी कहते हैं कि
भटगांव में कांग्रेस बुरी तरह नही  हारती, यदि अजीत जोगी चुनाव प्रचार
नहीं करते।

चुनाव परिणाम से मिले आंकड़े भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता की ही तरफ इशारा
करते हैं। पिछली बार भाजपा ने भटगांव विधानसभा क्षेत्र से 17 हजार मतों
की लीड से जीत दर्ज की थी तो इस बार जस्ट डबल 34 हजार मतों से उसने चुनाव
जीता है। भाजपा की अलोकप्रियता और कांग्रेस की लोकप्रियता का सारा ख्वाब
टूट कर बिखर गया। यह सही है कि कांग्रेस के मतों में इस बार वृद्घि हुई
है और पिछली बार 18 हजार 453 मत प्राप्त करने वाली कांग्रेस ने 39 हजार
436 मत प्राप्त किया है लेकिन भाजपा ने पिछली बार 35 हजार 941 मत प्राप्त
किया था तो इस बार उसने रिकार्ड तोड़ 74 हजार 92 मत प्राप्त किया है।
कांग्रेस के वोटों में 20 हजार 96 मतों का इजाफा हुआ है तो भाजपा के मतों
में 38 हजार 251 मतों का। मतों के आंकड़े स्पष्ट आईना है कि भाजपा कहां
खड़ी है और कांग्रेस कहां?

राहुल गांधी मध्यप्रदेश के दौरे पर हैं और उन्होंने युवाओं से अपील की है
कि वे चमचागिरी बंद करें। नेताओं के पीछे खड़ा होना बंद करे। साफ सुथरी
छवि और हुनरमंद लोगों को आगे बढऩे का मौका मिलेगा। छत्तीसगढ़ में ठीक
इसके विपरीत हो रहा है। पिछले दिनों युवक कांग्रेस चुनाव में जो युवा
जीतकर आया है, उसे अजीत जोगी का कार्यकर्ता कहकर प्रचारित किया जा रहा
है। जिस समय वह युवक कांग्रेस का सदस्य बना और उसने चुनाव लड़ा, उस समय
वह शिक्षा कर्मी के रूप में शासकीय सेवा में था। जब वह शासकीय सेवा में
था तब वह गरीबी रेखा की श्रेणी में तो आता नहीं। फिर भी शासकीय रिकार्ड
ही कहते हैं कि उसके पास बीपीएल कार्ड है। वह मरवाही विधानसभा क्षेत्र का
निवासी है। यह युवक चुनाव अवश्य जीत गया लेकिन छवि के मामले में तो राहुल
गांधी की परिभाषा के अंदर नहीं आता। इससे कांग्रेस की छवि किस तरह की बन
रही है, यह राहुल गांधी की ही सोच का विषय है।

राहुल गांधी की कांग्रेस की छवि को जनता के बीच स्वीकार्य बनाने की
योजना को जिस तरह से कांग्रेस के दिग्गज नेता ही पलीता लगा रहे हैं,
उसके बाद आलाकमान की ही सोच का विषय है कि ऐसे लोगों के साथ वह किस तरह
का व्यवहार करे। इनके अहंकारपूर्ण बयान कि ये चुनी हुई  सरकार को एक
इशारे पर गिरा सकते हैं, जनता को सोचने के लिए बाध्य करती हैं कि ऐसे
नेता कांग्रेस के लिए क्यों मजबूरी बने हुए हैं? प्रतिपक्ष का नेता बनने
के लिए इन्होंने पूरा जोर लगाया। यह बात दूसरी है कि आलाकमान ने इनके
इरादों पर लगाम लगाया। अब यह प्रदेश कांग्रेस पर कब्जा करने की मंशा रखते
हैं। इनके अनुसार इन्हे  कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष नहीं  बनाया गया तो कांग्रेस
छत्तीसगढ़ में सत्ता में पुन: आने का ख्वाब तो न देखें। इसके साथ ही
लोकसभा में भी अपनी सीटों के इजाफे की उम्मीद न करें।

डा. रमन सिंह के विरूद्घ जितना अमर्यादित बयान ये देते हैं, कांग्रेस की
छवि को नुकसान ही पहुंचाते हैं। डा. रमन सिंह की विनम्रता और इनके अहंकार
की तुलना में जनता डा. रमन सिंह को ही पंसद करती है। आदिवासी के नाम पर
इन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और आदिवासियों ने ही कांग्रेस का साथ छोड़
दिया। अब ये जगदलपुर जाकर रेल रोको आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र में
कांग्रेस की सरकार है और यह आंदोलन एक तरह से अपनी सरकार के ही विरूद्घ
है। कहा जा रहा है कि आंदोलन से रेल को करोड़ों का नुकसान हो रहा है।
केंद्र की कांग्रेस सरकार यदि इनकी मांगों के सामने झुकती हैं तो यह तो
ऐसा ही होगा कि ये अपनी सरकार को आंदोलन के द्वारा झुका सकते हैं। श्रेय
कांग्रेस को मिलेगा या अजीत जोगी को।

कांग्रेस को आज ऐसे चेहरे की जरूरत है नेतृत्व के लिए जिस पर जनता
विश्वास कर सके। जो राहुल गांधी के अनुसार चमचागिरी के आधार पर नहीं
बल्कि अपनी काबलियत के आधार पर जनता का विश्वास सृजन करने में सक्षम हो।
नहीं तो वैशाली नगर उपचुनाव में अपनी जीत से उत्साहित होने की जरूरत
नहीं है। आम धारणा तो यही है कि आज की स्थिति में डा. रमन सिंह एक और
चुनाव तो भाजपा को आसानी से जितवा ही सकते हैं। जबकि उनके पास 3 वर्ष से
अधिक का कार्यकाल अभी शेष है। इन 3 वर्षों में वे छत्तीसगढ़ की जनता को
और क्या क्या सुविधाएं दे डालेंगे, यह तो वे स्वयं ही जानते हैं। यह तो
सोचने की गलती ही न करें कि डा. रमन सिंह के हाथ से सत्ता की बागडोर
प्राप्त करना कांग्रेस के लिए आसान है। यथार्थ और झूठे आरोपों में बहुत
अंतर होता है। यह राग भी नहीं चलने वाला है कि जो  भी विकास कार्य
छत्तीसगढ़ में हो रहा है, वह केंद्र से प्राप्त सहायता के कारण राज्य
सरकार कर रही है। क्योंकि कोई खैरात राज्य को केंद्र सरकार नहीं देती।
प्रदेश का जो हक है, उसे देने के लिए केंद्र सरकार बाध्य है और यह काम
संवैधानिक है। छत्तीसगढ़ को ही नहीं, सभी राज्यों को आर्थिक सहयोग करना
केंद्र सरकार का दायित्व है।

कांग्रेसियों के पास यह कहने के सिवाय कि विकास के काम केंद्र सरकार के
द्वारा दिए धन से हो रहा है, और कुछ नहीं है। इसका अच्छा प्रभाव तो पड़ता
नहीं बल्कि गलत प्रभाव ही पड़ता है। उनके पास बताने के लिए यह नहीं है कि
50 वर्ष के शासनकाल में उन्होंने क्या दिया? जब डा. रमन सिंह मतदाताओं से
कहते हैं कि 50 वर्ष की तुलना उनके 7 वर्ष के कार्यकाल से कर ली जाए तो
फिर कहने को कुछ रह ही नहीं जाता। क्योंकि जनता को स्पष्ट दिखायी देता
है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले और बाद में अंतर क्या है? छत्तीसगढ़्
राज्य बनने के बाद भी कांग्रेस के 3 वर्ष के शासनकाल में और डा. रमन सिंह
के 7 वर्ष के कार्यकाल में क्या अंतर है? केंद्र धन राज्य को कोई आज दे
रहा है और अपने शासनकाल में नही  देता था, ऐसी बात तो नहीं है। फिर
विकास का अंतर जमीन आसमान का क्यों है? छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बनता तो
विकास का स्वाद चखने का अवसर छत्तीसगढ़ को नहीं मिलता और छत्तीसगढ़ राज्य
भाजपा के अटलबिहारी वाजपेयी की देन है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद
कांग्रेस के शासनकाल में जो भय और तानाशाही का माहौल निर्मित किया गया,
वह भी छत्तीसगढ़ की जनता नही भूल सकती। सत्ता जाने के बाद भी कांग्रेस
में किसी तरह का सुधार परिलक्षित नहीं हुआ? जब तक कांग्रेस बदनाम चेहरों
से मुक्त नहीं होती तब तक वह छत्तीसगढ़ में पुन: सत्तारूढ़ होने का अवसर
नहीं प्राप्त कर सकती।

- विष्णु सिन्हा
05-10-2010