छत्तीसगढ़ कांग्रेस का खेवनहार कौन होगा, यह निर्णय अब सोनिया गांधी को
ही करना है। आवश्यक सभी कर्मकांड पूरे हो चुके हैं। आधी अधूरी चुनावी
प्रक्रिया के बावजूद जिन लोगों को प्रदेश प्रतिनिधि माना गया, उन्होंने
सोनिया गांधी को जिम्मेदारी सौंप दी हैं कि वे जिसे चाहें उसे प्रदेश की
बागडोर सौंप दें लेकिन इससे पदाकांक्षी चुपचाप अपने घर बैठ गए हैं, ऐसा
नहीं है। सभी अपनी-अपनी कोशिशें विभिन्न आयामों से करने में लगे हैं।
आखिरी जंग अब दिल्ली में ही होने वाली है और जब तक सोनिया गांधी प्रदेश
अध्यक्ष का नाम घोषित नहीं करती तब तक पदाकांक्षियों की श्वांस ऊपर की
ऊपर और नीचे की नीचे बनी रहेगी। सबके पास अपने-अपने तर्क हैं और
अपने-अपने दावें। हालांकि पिछले 10 वर्षों में ऐसे दावे सोनिया गांधी ने
बहुत सुने और किसी को भी दावों की कसौटी पर सही उतरता नहीं पाया।
अध्यक्ष के लिए जिस कांग्रेसी का नाम सबसे पहले लिया जा रहा है, वह है
कोरबा के सांसद और प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत। ये प्रदेश
कांग्रेस के अध्यक्ष कुछ समय रह चुके हैं और चुनाव के पहले इन्हें
अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। हटाया ही नहीं गया था बल्कि इन्हें
कार्यकारी अध्यक्ष बना कर पद अवनति भी की गई थी। अब फिर से इन्हें प्रदेश
अध्यक्ष के लिए उपयुक्त समझा जा रहा है लेकिन इनकी प्राथमिकता अध्यक्ष
बनने से ज्यादा केंद्र में मंत्री बनने की है। कहा जा रहा है कि ये
मंत्री नहीं बनाए गए तब ही ये अध्यक्ष बनने के लिए तैयार होंगे।
मंत्रिमंडल के विस्तार की खबरें भी आ रही हैं और छत्तीसगढ़ के इकलौते
लोकसभा सदस्य होने के कारण उम्मीद की जा रही है कि सोनिया गांधी की कृपा
से इन्हें मंत्री पद मिल सकता है। हालांकि ऐसी ही स्थिति पिछली बार अजीत
जोगी के साथ भी थी। तब वे प्रदेश के लोकसभा के लिए अकेले सांसद चुने गए
थे। तब भी खबरें उड़ती थी कि अजीत जोगी को सोनिया गांधी मंत्री बनवाने
वाली है। उनके मंत्री बनने की खबरें तो नरसिंहराव सरकार के समय भी उड़ती
थी लेकिन नरसिंहराव ने भी उन्हें मंत्री नहीं बनाया।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर कांग्रेस का मुख्यमंत्री अजीत जोगी को अवश्य
बनाया गया लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद केंद्र की कांग्रेस की
गठबंधन सरकार में छत्तीसगढ़ से मंत्री बनने का अवसर किसी कांग्रेसी को
नहीं मिला। लोकसभा में भले ही कांग्रेस का एक ही सदस्य पहुंचता रहा लेकिन
राज्यसभा में तो दो सदस्य हमेशा रहे। मोतीलाल वोरा और मोहसिना किदवई के
मंत्री बनने की खबरें तो कई बार उड़ी लेकिन ये भी मंत्री नहीं बनाए गए।
इसलिए चरणदास महंत भी मंत्री बनाए जाएंगे, इस विषय में संदेह कम नहीं है।
क्योंकि कांग्रेस के ही कई दिग्गज नेता ऐसा होने देना पसंद नहीं करते।
अजीत जोगी तो कभी पसंद नहीं करेंगे कि चरणदास महंत को केंद्रीय मंत्री
बनाकर छत्तीसगढ़ का बड़ा नेता बनाया जाए। चरणदास महंत का केंद्रीय मंत्री
बनना कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ में कितना हितकारी होगा, यह अलग बात है
लेकिन कई नेताओं को अपने भविष्य पर प्रश्र चिन्ह लगता दिखायी देगा। यदि
चरणदास महंत को मंत्री बनाया जाता है तो छत्तीसगढ़ की उपेक्षा का जो आरोप
कांग्रेस पर लगता है, उससे कांग्रेस को मुक्ति अवश्य मिलेगी। दिग्गज
नेताओं की तुलना में निश्चय ही चरणदास महंत युवा हैं और राहुल गांधी की
टीम के लिए सिपहसालार बनने की योग्यता रखते हंै। प्रदेश अध्यक्ष बनकर जो
काम चरणदास महंत पार्टी के लिए नहीं कर सकते, वह काम वे मंत्री बनकर
प्रदेश के लिए और कांग्रेस के लिए कर सकते हैं और निश्चय ही छत्तीसगढ़ की
कांग्रेस को उनके मंत्री बनने से नवजीवन मिलेगा।
जहां तक वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू का प्रश्र है तो वे प्रदेश
कांग्रेस के मुखिया के रुप में सफल होते तो नहीं दिखायी देते। छोटी मोटी
उपलब्धियां अवश्य कांग्रेस ने हासिल की है लेकिन पार्टी को सरकार बनाने
की स्थिति में खड़ा करने का दमखम उनमें नहीं दिखायी देता। फिर जो स्वयं
चुनाव नहीं जीत सकता, वह पार्टी को क्या चुनाव जितवाएगा? भटगांव उपचुनाव
में प्रतिपक्ष के नेता रविन्द्र चौबे के साथ मिलकर धनेन्द्र साहू ने पूरा
दम लगाया। प्रदेश प्रभारी नारायण सामी ने विधायकों को धमकी तक दी कि अगले
चुनाव में टिकट नहीं लेकिन चुनाव परिणाम जो आया, उससे स्वयं सिद्ध हो गया
कि इनके नेतृत्व में कांग्रेस की स्थिति में कोई चमत्कारिक परिवर्तन नहीं
आने वाला है। मोतीलाल वोरा को छोड़कर सभी कांग्रेसी नेताओं ने पूरा दमखम
लगाया लेकिन पार्टी प्रत्याशी 34 हजार से अधिक मत से हार गया। एक अकेले
बृजमोहन अग्रवाल का ही मुकाबला पूरी कांग्रेस के दिग्गज मिल कर नहीं कर
सके। ऐसी स्थिति में धनेन्द्र साहू स्वयं प्रदेश अध्यक्ष बने रहना चाहते
हैं तो उनकी तरफ से यही सही सोच हो सकती है लेकिन कांग्रेस की दृष्टि से
उनका पद पर बने रहना कांग्रेस के हित में नहीं है।
प्रतिपक्ष के नेता रविन्द्र चौबे चाहते हैं कि नंदकुमार पटेल
प्रदेशाध्यक्ष बनें। इसका अर्थ होता है कि वे भी नहीं चाहते कि धनेन्द्र
साहू प्रदेश अध्यक्ष बने रहें लेकिन रविन्द्र चौबे की सोच रविन्द्र चौबे
के हित में तो हो सकती है लेकिन कांग्रेस के हित में भी हैं, क्या?
विधानसभा चुनाव के बाद अजीत जोगी को प्रतिपक्ष का नेता बनाने के लिए
इन्होंने समर्थन किया था। इने गिने विधायकों को छोड़कर सभी अजीत जोगी के
पक्ष में थे लेकिन सोनिया गांधी को ही अजीत जोगी प्रतिपक्ष के नेता बनाने
के योग्य नहीं लगे तो रविन्द्र चौबे को प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया।
वैसे भी चरणदास महंत यदि केंद्र में मंत्री बनाए जाते हैं तो अध्यक्ष नंद
कुमार पटेल को प्रदेश अध्यक्ष पिछड़े वर्ग के समीकरण के तहत तो नहीं
बनाया जा सकता। ठीक उसी तरह से सत्यनारायण शर्मा के नाम पर विचार
रविन्द्र चौबे के प्रतिपक्ष के नेता रहते नहीं किया जा सकता। कांग्रेस कितना भी जात-पांत से परे राजनीति की बात करें लेकिन इस तरह के समीकरणों पर पहले भी ध्यान दिया जाता रहा है।
इन नामों के साथ जिस व्यक्ति का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए लिया जा रहा
है, वह हैं , राम पुकार सिंह। वरिष्ठ नेता हैं। आदिवासी हैं लेकिन सीधे
सादे हैं। सत्ता विहीन पार्टी को सत्ता तक पहुंचाना इनके बस की बात नहीं
है। इनका सीधापन कुछ चतुर चालाक लोगों को अपना हित साधने में भले ही सही
लगे लेकिन आज छत्तीसगढ़ कांग्रेस को जिस तरह के व्यक्ति की अध्यक्ष के
रुप में जरुरत हैं, वैसे व्यक्ति तो ये नहीं हैं। हालांकि अजीत जोगी के
आदिवासी कार्ड के जवाब में इनका नाम कुछ लोगों की पहली पसंद है। नाम
जितने भी सामने आ रहे हैं, वे सिर्फ इसलिए सामने हैं क्योंकि किसी न किसी
का हित उससे सधता है। कांग्रेस का हित सधे न सधे अपना हित साधना ही जिनका
एकमात्र ध्येय हो वे कांग्रेस का भला तो करने से रहे। एक तेज तर्रार नेता
मोहम्मद अकबर का भी नाम कांग्रेस अध्यक्ष के लिए लिया जा रहा है। राजनीति
की बारीकियों को अच्छी तरह से समझने वाले मोहम्मद अकबर वर्तमान स्थिति
में सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। यह दूसरी बात है कि गुटबाज नेता इन्हें
कितना पसंद करते हैं। सबकी सुनना और निर्णय करना सोनिया गांधी का ही काम
है। जिसका चयन वे कांग्रेस अध्यक्ष के रुप में करेंगी, उसी के अनुसार
कांग्रेस का भविष्य छत्तीसगढ़ में तय होगा।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 21.10.2010
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