यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

अयोध्या विवाद के फैसले ने देश में भाईचारे का नया मानदंड स्थापित किया है यह भारत में ही संभव है

शिया हुसैनी टाईगर्स ने मंदिर निर्माण के लिए 15
लाख रुपए देने की घोषणा की है। वे तो यह भी चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट
में मामले को ले जाने के बदले मामला यहीं समाप्त कर दिया जाए। वे मुस्लिम
पर्सनल लॉ बोर्ड से भी अपील करने वाले हैं। अब तो खुलकर मुसलमान भी कहने
लगे हैं कि एकतिहाई जमीन भी मंदिर को ही सौंप दी जाए। देश में सद्भाव का
जो वातावरण बना है, उसे कायम रखने में आम भारतीयों की रुचि है। मुलायम
सिंह यादव के घडिय़ाली आंसुओं को भी मुसलमान ही पसंद नहीं कर रहे हैं।
अयोध्या मामले को लेकर कोई अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने का प्रयास करें
तो उसे अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जा रहा है। अभी तक जाति और धर्म के नाम
पर बांट कर वोट की राजनीति करने वालों के लिए समय खराब ही दिखायी दे रहा
है। जनमानस की चेतना इसी तरह से जागृत होती रही और इसने एकता को पुख्ता
किया तो राजनीति को भी अपना रंग ढंग बदलना होगा।

वह दिन देश के लिए सबसे अच्छा होगा जब हिन्दू हित, मुस्लिम हित, जाति हित
के बदले समग्र हित की राजनीति की जाएगी। अयोध्या विवाद के न्यायिक फैसले
ने रास्ता खोल दिया है जब भारतीय फूट की राजनीति करने वालों को अच्छी तरह
से पहचाने। अंग्रेजों से सीखी रणनीति फूट डालो और राज करो, जिस दिन देश
के लिए बेमानी हो जाएगी, उस दिन राजनीति का चरित्र भी बदल जाएगा। तब
बहुतों की आधारभूमि ही खिसक जाएगी। ऐसे ही समय का स्वप्र महात्मा गांधी
ने देखा था। आज देश में सबसे ज्यादा जरुरत महात्मा गांधी की है। उनकी सोच
की है। उनके दिखाए रास्ते पर चलने की है। वह महात्मा गांधी ही थे
जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना से कहा था कि बंटवारे की बात मत कीजिए। आप
स्वयं भारत के प्रधानमंत्री बन जाइए। अपने अनुसार अपना मंत्रिमंडल बनाइए।
जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभ भाई पटेल और कांग्रेस के बड़े नेताओं ने
जिन्ना के समक्ष ही कहा था कि बापू ऐसा चाहते हैं तो ऐसा ही होगा लेकिन
जिन्ना ने नहीं माना।

पाकिस्तान बना और आज सबके सामने उसका परिणाम है। एकमात्र भारत विरोधी
नीति पर चलकर पाकिस्तान ने कुछ पाया तो नहीं बल्कि खोया ही खोया। वह
पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश बनने से नहीं रोक पाया। नफरत से कुछ भी
हासिल नहीं किया जा सकता, सिवाय बर्बादी के। भारत ने धर्मनिरपेक्षता को
अपनाया। सर्व के प्रति समभाव को संविधान में स्थान दिया। आज परिणाम सामने
हैं। आज दुनिया की तीसरी बड़ी शक्ति भारत हैं। यह सब तब है जब फूट डालो
और राज करो की नीति को राजनीतिज्ञों ने नहीं छोड़ा। स्वतंत्रता का 63
वर्षों का अनुभव हमारे पास है। आज युवा पीढ़ी राजनीति को अच्छी नजरों से
नहीं देखती। वह पढ़ लिख कर इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक बनना चाहती है।
अपने सीमित साधनों के बावजूद अपने पालकों के सहयोग से भारतीय युवाओं ने
दुनिया को चकाचौंध कर दिया है। वे दुनिया में जहां भी जाते हैं तो सफलता
के नए मापदंड स्थापित करते हैं। अमेरिका तो घबराने लगा है कि कहीं भारतीय
युवा उसकी नौकरियों पर एकछत्र कब्जा न कर लें। इसलिए भारतीयों को
हतोत्साहित करने के लिए उसने वीसा के नए नियम बनाए हैं।

वह समय सामने खड़ा है जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन सकता हैं।
इससे जलन करने वाले नाना प्रकार के प्रयास करते हैं कि भारत में शांति न
रहे। क्योंकि शांति का समय ही ऐसा होता है जब लोग तीव्र गति से विकास
करते हैं। यह दुनिया के लिए घबराने वाला वाक्या है कि अयोध्या मामले में
न्यायालय के फैसले के बाद देश में न केवल शांति रही बल्कि एकता और
भाईचारा कैसे बढ़े, इसके लिए पूरा देश प्रयत्नशील रहा। यह बदलाव दुनिया
की नजरों में आश्चर्यजनक है। गल्तियां और वक्त सब कुछ अच्छी तरह से समझा
देता है। आज मुसलमान कह रहे हैं कि मंदिर बनाओ। हम सहयोग करेंगे तो यह
छोटी नहीं बड़ी बात है। इससे यह भी झलकता है कि अब विवाद खड़ा कर अपना
उल्लू सीधा करने की मंशा रखने वालों की खैर नहीं है।
इसी परिपक्वता की देश को जरुरत थी। अब किसी भी कीमत में किसी के बहकावे
में हम नहीं आएंगे, यह तय करने की जरुरत है। युवा पीढ़ी पूरी तरह से
जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही है। जिस देश की युवा पीढ़ी जिम्मेदार हो
जाए, उस देश को आगे बढऩे से कोई भी नहीं रोक सकता। यह एकता ही वह दिन
शीघ्र लाएगी जब गरीबी को भी समाप्त करने में हम सफल होंगे। हमारा संघर्ष
मंदिर मस्जिद के लिए नहीं, गरीबी के विरुद्ध होना चाहिए। इसमें तो कोई शक
शुब्हा की गुंजाईश ही नहीं है कि अमीरी ने भारत की तरफ कूच कर दिया है।
देश में धन संपदा बढ़ रही हैं। देश आज अपने 120 करोड़ नागरिकों की क्षुधा
शांति के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पन्न करने में सक्षम हो गया है। बड़ी
से बड़ी प्राकृतिक आपदा से भी निपटने में देश सक्षम हुआ है। अब भारत अपने
नागरिकों के पेट की भूख मिटाने के लिए दुनिया भर से सहायता प्राप्त करने
वाला देश नहीं है। सुनामी, भूकंप, बाढ़, सूखा जैसी समस्याओं से निपटने
में यह देश सक्षम है। कोई एक बाढ़ देश को बर्बाद करने की स्थिति में नहीं
है।

अब राजनीतिज्ञ भूल जाएं कि वे लोगों का भावनात्मक शोषण कर अपना उल्लू
सीधा कर सकेंगे। आज एक मुलायम सिंह के वक्तव्य को पंसद नहीं किया जा रहा
है। ऐसे वक्तव्यों को जनता अच्छी तरह से समझने लगी है। सभी को एक
सुरक्षित, संपन्न भारत की जरुरत है जिससे वे स्वयं और उनकी भावी पीढ़ी
सुख चैन से अपना जीवन व्यतीत कर सकें। नमाज पढऩा है, नमाज पढ़ो, पूजा
करना है, पूजा करो, प्रार्थना करना है प्रार्थना करो लेकिन इसके नाम पर
आपस में लड़वाने का खेल अब कोई पसंद करने वाला नहीं है। सड़कों को चौड़ा
करने के लिए मंदिर हटाए जाते हैं लेकिन छुटपुट विरोध को कोई पसंद नहीं
करता। अब उपासना स्थलों को लेकर होने वाला विवाद सदा के लिए समाप्त हो
जाना चाहिए और विवाद खड़ा करने वालों के विरुद्ध कड़ा कानून बनाना चाहिए।
उपासना स्थलों का काम देश को जोडऩे का होना चाहिए, तोडऩे का नहीं।
अयोध्या विवाद के फैसले ने दिखा दिया है कि भारतीयों की रुचि किसी भी इस
तरह के विवाद में पडऩे की नहीं है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 03.10.2010
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