यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

फैसले के बाद जिस अहिंसा और भाईचारे पर देश ने आस्था प्रगट की यही सच्ची श्रद्धांजलि है राष्ट्रपिता को

आज राष्टपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। हमने साबित किया है कि हम
राष्टपिता के वास्तव में वारिस है। राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद
का लखनऊ खंडपीठ के द्वारा दिया फैसला जिस शांति से हमने सुना और हिंसा की
एक चिंगारी को भी जन्म नहीं लेने दिया, उससे निश्चित रुप से राष्टपिता
को प्रसन्नता ही हुई होगी। हिंदुओं का इस समय पितृपक्ष चल रहा है।
मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर लोग अपने-अपने लोक से पृथ्वी पर आते
हैं और संतानों से श्राद्ध प्राप्त करते हैं। पितृपक्ष में निश्चित रुप
से महात्मा गांधी भी भारत भूमि में पधारे हैं। राष्टपिता हैं इसलिए
स्वाभाविक रुप से वे हमारे पितृ पुरुष हैं। जिस फैसले के बाद लोगों का
आशंकाओं से मन भरा हुआ था कि कहीं न कहीं कोई न कोई गड़बड़ करेगा, उस
आशंकाओं को दरकिनार कर भारतीयों ने जिस भाईचारे का प्रदर्शन किया, उससे
बड़ा श्राद्ध महात्मा गांधी राष्टपिता का और कुछ हो नहीं सकता।

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान, समझाते समझाते महात्मा
गांधी ने नश्वर शरीर छोड़ा था। उनके जीते जी दंगे फसाद से लेकर बंटवारा
तक हुआ। फिर भी लोग राष्टपिता की कसौटी पर खरे साबित नहीं हुए।
स्वतंत्रता के बाद भी अपना उल्लू सीधा करने वाले पीछे नहीं हटे लेकिन
2010 की पीढ़ी ने जो शांति और अहिंसा का संदेश भारत को ही नहीं दुनिया को
दिया है, वह बेमिसाल है। आदमी अनुभव से सीखता है लेकिन इतना लंबा समय
लगाया हमने सीखने में। इसका कारण आज की पीढ़ी है। भारतीयों की आज की
पीढ़ी है जो ज्यादा परिपक्व और समझदार दिखायी देती है। मात्र दिखायी ही
नहीं देती बल्कि अपने कृत्यों से वह साबित भी कर रही है कि वह किसी के भी
बहकावे में नहीं आने वाली है। यह परिपक्वता और समझदारी कायम रही और विवेक
का दामन हमने नहीं छोड़ा तो भारतीयों से सुखी और संतुष्ट दुनिया में कोई
नहीं होगा।

पुरानी पीढ़ी के कुछ लोग अभी भी घडिय़ाली आंसू बहाकर शुभचिंतक के मुखौटे
में अपना स्वार्थ सिद्ध करने की मंशा रखते हैं। यह उनके वक्तव्यों से भी
प्रगट होता है। जाति, धर्म, भाषा के नाम पर उल्लू सीधा करने वालों का कोई
भविष्य नहीं है, भारत में, यदि भारतीय इनके बहकावे में न आएं। शांति और
भाईचारा तो उन पर गाज बन कर गिर रही है। जहां फैसले के बाद आम राय तो यही
है कि विवाद समाप्त हो जाना चाहिए, वहीं कुछ लोग विवाद को जिंदा रखने की
फिराक में भी हैं। जिनको इंसान, इंसान नहीं दिखायी देता, वोट दिखायी देता
है, उनकी फितरत को अच्छी तरह से पहचानने की जरुरत है। जाति, धर्म, भाषा
के नाम पर कब तक भारतीयों को एक होने से रोका जाएगा। यह देश राष्टपिता
महात्मा गांधी का है और अंतत: सभी को उनके दिखाए पथ पर ही चलना है।
राष्टपिता को कभी जनता की सेवा के लिए सत्ता की जरुरत नहीं पड़ी।
लोगों को आपस में लड़ाकर और उनका भावनात्मक शोषण करने की जरुरत नहीं
पड़ी। उन्होंने समस्याओं को सुलझाने पर विश्वास किया। न कि समस्याओं को
उलझाकर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने का प्रयास किया।
छुआछूत, जातपांत सबसे परे थे, हमारे राष्टपिता। उन्होंने देश की
स्वतंत्रता के लिए आंदोलन ही नहीं किया बल्कि सामाजिक बुराइयों के
विरुद्ध भी उनका आंदोलन था। शरीर भले ही उनका चला गया लेकिन उनकी आत्मा
आज भी भारतवासियों के हृदय में विद्यमान है। पाकिस्तान बंटवारे के बाद भी
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र  बने रहने की प्रेरणा मिली तो उसका सबसे
बड़ा कारण महात्मा गांधी ही थे। उनके नाम का ही इतना प्रभाव है कि
कांग्रेस अपने अध्यक्ष के रुप में गांधी नाम वाले व्यक्ति को ही रखना
पसंद करती है। निहित स्वार्थियों की चलती तो महात्मा गांधी को वे दरकिनार
कर देते लेकिन जो भारत की आत्मा हो उसे दरकिनार करना किसी के बस की बात
नहीं।

नाथूराम गोड़से ने गोलियों से उनके शरीर की भले ही हत्या कर दी लेकिन
नाथूराम और उनकी सोच के लोग भारत के भाग्यविधाता नहीं बन सके। आज गांधीजी
की उनके जन्म दिन पर याद आना एकदम स्वाभाविक है। आज के दिन को तो सारी
दुनिया अंतराष्ट्रिय  अहिंसा दिवस के रुप में मनाती है। दुनिया अहिंसा
को महात्मा गांधी के नाम पर याद करती है तो यह भारतीयों के लिए गर्व की
बात तो है, ही। साथ ही यह सोच और आचरण के लिए भी आवश्यक है कि भारतीय
पूरे हृदय से इस मार्ग का अवलंबन करे। 30 सितंबर को ठीक गांधी जी के जन्म
दिन के 2 दिन पूर्व भारतीयों ने दिखाया भी है कि वे अहिंसा के मार्ग पर
चलने की सामथ्र्य रखते हैं। दुनिया के हर धर्म ने प्रेम की महत्ता को
स्वीकार किया है। सहिष्णुता, करुणा, प्रेम, भक्ति, श्रद्धा के बिना कोई
धर्म हो नहीं सकता। भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना ही जब धर्म का
प्राथमिक लक्षण हो और परमात्मा से प्रार्थना में जब कहा जाए कि दाता इतना
दीजिए कि मैं भी भूखा न रहूं और पड़ोसी भी भूखा न रहे तो यह परमात्मा के
द्वारा दिए जीवन के प्रति आस्था प्रगट करने का ढंग है।

गांधीजी का दो ही संदेश प्रमुख था सत्य और अहिंसा। सत्य कैसा, जो सर्व
हितकारी हो। सत्य को चिकित्सक की सर्जरी की तरह होना चाहिए। जिसका चाकू
शरीर के अंग को काटे भले ही लेकिन शरीर की रक्षा के लिए। न्यायमूर्तियों
का फैसला भी ऐसा ही है। उन्होंने जमीन बांटी अवश्य है लेकिन सर्वहित में
बंटवारा किया है। न्यायमूर्तियों ने तथ्यों का ध्यान रखा है तो परंपरा का
भी ध्यान रखा है और कानून की शुष्कता में आस्था का भी ध्यान रखा है। सोच
समझकर सबके साथ न्याय हो, ऐसा फैसला न्यायमूर्तियों ने सुनाया है।
पक्षकार भले ही सोचें की पूरा का पूरा उन्हें ही मिलना चाहिए और इसके लिए
सुप्रीम कोर्ट भी जाएं लेकिन लोगों की आम सोच तो यही है कि अब न्यायालय
से नहीं लोगों की रजामंदी से आगे बढऩा चाहिए।

महात्मा गांधी के साथ भारत के सपूत लाल बहादुर शास्त्री का भी आज ही
जन्मदिन है। पक्के गांधीवादी लाल बहादुर शास्त्री शारीरिक कद से भले ही
छोटे थे लेकिन महानता और गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने के मामले में तो
ऊंचे थे। पाकिस्तान से युद्ध के बाद ताशकंद समझौता करने भी गए और
गांधीवादी हृदय का परिचय देते हुए विजित क्षेत्र भी पाकिस्तान को वापस कर
दिया। भले ही समझदारों को यह समझदारी न लगे लेकिन भलमनसाहत और सज्जनता का
तो यही तकाजा था। देशहित में, भाईचारे को पुख्ता करने के लिए जो उचित है,
वही पक्षकारों को करना चाहिए। जिंदगी हर पल नई शुरुआत करती है। बीती
बिसार कर आगे की सुध लेना ही गांधीजी और शास्त्रीजी के प्रति सच्ची
श्रद्धांजलि होगी।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 02.10.2010
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