यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

सलमान का स्वागत कर राज्यपाल ने कोई गलत काम नहीं किया है बल्कि बड़प्पन का परिचय दिया है

राज्यपाल शेखर दत्त एवं मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के द्वारा सलमान खान के
स्वागत को कांग्रेस विवाद का विषय बना रही है। प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र
साहू कह रहे हैं कि राज्यपाल जैसे गरिमामय पद के व्यक्ति का सलमान खान का
स्वागत करना गरिमा के अनुसार नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य को बने 10 वर्ष
होने जा रहे हैं और इस अवसर पर राज्योत्सव मनाया जा रहा है। सत्ता से
बाहर बैठे लोगों को उत्सव नहीं भा रहा है, यह तो कोई खास बात नहीं है।
दूसरों का उत्सव मनाना दुखी लोगों को वैसे भी पसंद नहीं आता। कहा तो यह
भी जा रहा है कि राज्योत्सव धन की बर्बादी है। कांग्रेस शासनकाल में भी
राज्योत्सव तो हुए लेकिन इस समय कांगे्रसियों ने नहीं कहा कि यह धन की
बर्बादी है। स्वयं करें तो सही और दूसरा करे तो गलत। राजनीति इसी को कहते
हैं। प्रतिपक्ष के नेता रविन्द्र चौबे का राज्योत्सव के उद्घाटन में
मंचस्थ होना और विकास कार्यों की तारीफ करना भी कांग्रेसियों को रास नहीं
आ रहा है। अब प्रतिपक्ष के नेता हैं तो सरकारी कार्यक्रमों में भी जाना
पड़ता है और पद की मर्यादा के अनुसार बोलना पड़ता है। प्रतिपक्ष का नेता
होने का यह अर्थ तो नहीं होता कि हर जगह विरोधी की ही भूमिका निभायी जाए।
सरकार का विरोध करने के लिए कांग्रेसी हमेशा कारणों की तलाश करते हैं।
कोई न कोई कारण ढूंढ़ भी लेते हैं तो अपनी जितनी भी ताकत है, उससे विरोध
करते हैं लेकिन उसका न तो जनता पर असर पड़ता है और न ही आलाकमान पर। ले
देकर राज्यपाल को अपना आदमी समझते हैं तो उनके दरबार में भी शिकायत
पहुंचा देते हैं लेकिन कोई परिणाम तो दिखायी देता नहीं। राज्यपाल की
नियुक्ति राष्टपति केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर करते हैं। इसका
अर्थ यह नहीं होता कि केंद्र में जिसकी सरकार है, उसके प्रतिनिधि
राज्यपाल हैं। राज्यपाल एक संवैधानिक पद है और राज्यपाल उसी के अनुसार
काम करते हैं। कोई यह समझता है कि राज्यपाल की नियुक्ति कांग्रेस सरकार
ने की है तो राज्यपाल को कांग्रेसियों के अनुसार चलना चाहिए, एकदम गलत
धारणा है। दरअसल सरकार किसी भी पार्टी की हो, होती तो राज्यपाल की सरकार
है। इसीलिए अपने संबोधन में राज्यपाल मेरी सरकार कहकर संबोधित करते हैं।
जिनकी सोच सही न हो वही राज्यपाल अपने को किसी पार्टी का मान सकता है और
राज्यपालों पर आरोप भी लगे हैं कि वे कांग्रेसी की तरह व्यवहार करते हैं
लेकिन सभी तो ऐसे नहीं हैं। वे अपने पद की मर्यादा ओर संवैधानिक
दायित्वों का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करते हैं।

छत्तीसगढ़ के राज्यपाल शेखर दत्त भी पद की मर्यादा के अनुसार आचरण करते
हैं लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे अहंकारी व्यक्ति हैं। वे विनम्र
व्यक्ति हैं और यही विनम्रता घर आए अतिथि के स्वागत के लिए सहर्ष तैयार
हो गयी। सलमान खान आज देश में अत्यंत लोकप्रिय कलाकार हैं। जनता उन्हें
देखना और सुनना चाहती है। वह तो इसके लिए नियम कायदों को भी तोडऩे में
परहेज नहीं करती। नियम कायदा कायम रखने के लिए पुलिस को सख्ती भी करनी
पड़ती है। यह बात जनता भी जानती है। इसके बावजूद वह पुलिस की लाठियां
खाने के लिए भी तैयार हो जाती है और बैरिकेट्स के ऊपर चढ़कर उस पार
छलांग लगा देती है। जरूर जनता को सलमान की उपस्थिति प्रसन्नता देती है।
नहीं तो कौन लाठी खाने के लिए तैयार होगा? सबको अच्छी तरह से मालूम है कि
लोकप्रिय कलाकारों के आने पर क्या होता है? लोग कलाकारों के दीवाने ही
हैं, यही तो उनकी उपयोगिता भी है। जिसकी उपस्थिति राज्य की जनता में
प्रसन्नता की लहर पैदा करे, उसका सम्मान यदि राज्यपाल करते हैं तो इसमें
ऐसी कोई गलत बात नहीं है। घर आए मेहमान का स्वागत करना तो हमारी परंपरा
है। राज्यपाल ही प्रदेश के प्रथम नागरिक हैं और वे सलमान का स्वागत,
सम्मान करते हैं तो इससे प्रदेश की प्रतिष्ठï गिरती नहीं बल्कि बढ़ती
है।

कांग्रेसी आज भी समझ नहीं पाए कि उनके नेताओं का झूठा अहंकार ही उनके
राज्य में पतन का कारण बना। आपसी प्रतिस्पर्धा ने तो मर्यादा की लक्ष्मण
रेखा ही पार कर ली। तभी तो एक कांगे्रेसी नेता कहता है कि कांग्रेसी बिक
गए हैं। सिर्फ एक दूसरे की शिकायत आलाकमान से करने और अपनी रेखा को बड़ी
दिखाने में अपनी ऊर्जा नष्ट करने के सिवाय कांग्रेसियों ने किया ही क्या
है? अब राज्यपाल को विवादास्पद बनाना चाहते हैं। जिस तरह 10 वर्ष पूरे
होने पर राज्य सरकार उत्सव मना रही है, उसी प्रकार 10 वर्ष पूरा होने पर
कांग्रेसियों को भी उत्सव मनाना चाहिए। यह तो खुशी का समय है। देखते ही
देखते 10 वर्ष बीत गए और राज्य की अपनी छवि देश भर में अच्छी खासी बन गयी
है। 3 नए बने राज्यों में छत्तीसगढ़ ही विकास के मान से सबसे आगे है। अब
सूरज आकाश में चमक रहा है तो उसे नकारने की कोशिश कोई करे तो कम से कम
आंख वाले तो उसकी बात से सहमत नहीं हो सकते। सरकार राज्योत्सव के बहाने
लोगों में खुशी का संचार कर रही है तो यह उसका कर्तव्य तो है ही, जनता का
अधिकार भी है लेकिन कांग्रेसी तो अपने संगठन का ही चुनाव ईमानदारी से
नहीं करवा सके। हुए चुनाव पर ही कांग्रेसी ऊंगलियां उठा रहे हैं। अपने
प्रभारी महासचिव पर ही कालिख फेंक रहे हैं और दोषी सरकार को बता रहे हैं।
जैसे सरकार ने कालिख फेंकने के लिए कांग्रेसियों को तैयार किया था।
राज्यपाल के दरबार में हाजिरी देकर सरकार को कठघरे में खड़ा करना चाहते
हैं। जबकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि कालिख के पीछे किस बड़े नेता का
हाथ था।

एक अदद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव भी कांग्रेसी सर्वसम्मति से नहीं कर
सकते। इसके लिए वे सर्वाधिकार सोनिया गांधी को सौंपते हैं और तरह तरह से
स्वयं के लिए लाबिंग करते हैं। कौन प्रदेश अध्यक्ष बने और किसका कांग्रेस
पर कब्जा हो, इसी से कांग्रेसियों को फुरसत नहीं। अनुशासन समिति पार्षदों
पर अनुशासन की सिफारिश करती है तो उसे ही अध्यक्ष नहीं मानते। अनुशासन
समिति नोटिस देती है तो उसका जवाब देने की भी जरूरत पार्षद नहीं समझते।
राज्यपाल के पद की गरिमा का प्रश्र उठाने का अधिकार ही वे कहां रखते हैं?
संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेसी विरोधी  हैं।
विरोध करना ही उनका काम है लेकिन किस बात का विरोध करना चाहिए और किस बात
का नहीं, इसके लिए तो विवेक होना चाहिए। विरोध के लिए विरोध से जनता में
कोई ग्राह्य छवि नहीं बनती। यही कारण है कि कांग्रेसियों के विरोध के
साथ जनता खड़ी नहीं होती।

यह विरोध करने की आदत का ही कारण है कि पार्टी में कांग्रेसियों के बीच
विरोधाभास की कमी नहीं है। आपस में ही इतना विरोधाभास है कि सरकार के
विरूद्घ विरोध में भी पार्टी एक नहीं हो पाती और विरोध सफल न हो जाए,
इसलिए एक दूसरे की टांग खींचने में भी कोई पीछे नहीं है। यह वही सलमान
खान है जिन्होंने पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों का भी प्रचार
किया लेकिन किसी भाजपा के प्रत्याशी का प्रचार किया, ऐसा तो सुनने मे
और देखने में नहीं आया। फिर भी भाजपा की सरकार होने के बावजूद भाजपा ने
सलमान का सम्मान किया। उस भाजपा सरकार ने जिस पर कांग्रेसी सदा से
सांप्रदायिकता का आरोप लगाते रहे हैं। तीनों भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने
सलमान खान का स्वागत किया। राज्यपाल ने कर दिया तो कौन सी आफत
कांग्रेसियों को आ गयी ? आखिर तो सलमान कांग्रेस समर्थक माने जाते हैं।
जनता को सब कुछ स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि भाजपा और कांग्रेस में क्या
अंतर है?

- विष्णु सिन्हा
28-10-2010