यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

मंदिर मस्जिद ही नहीं हर समस्या को सुलझाने के लिए समझौता ही सर्वश्रेष्ठ रास्ता है

लखनऊ खंडपीठ का फैसला मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। अखिल भारतीय
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास, मोहम्मद हाशिम अंसारी और रामलला
विराजमान की ओर से डा. रामविलास वेदांती के बीच जो चर्चाएं हो रही हैं,
उससे लगता है कि समझौते के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। दूसरी तरफ उच्चतम
न्यायालय में अपील करने की भी तैयारी के साथ आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल
बोर्ड निर्णय करने वाला है कि आगे क्या कदम उठाया जाए? सुन्नी वक्फ बोर्ड
के वकील उच्च न्यायालय में रहे जफरयाब जिलानी के विषय में हाशिम अंसारी
का कहना है कि सुलह की उनकी कोशिशो  के लिए उन्हें धमकियां दी जा रही
हैं और उनकी जान को खतरा है। पुलिस सुरक्षा के इंतजाम हाशिम अंसारी के
लिए किए गए हैं और अखाड़ा परिषद ने  भी घोषणा की है कि हाशिम अंसारी की
सुरक्षा उनके साधु संत करेंगे। जमीयत उलेमा हिन्द के अध्यक्ष मौलाना
मोहम्मद मदनी ने कहा है कि मुस्लिम समाज को उच्च न्यायालय का फैसला मानना
चाहिए। फैसले को कबूल करना देश के व्यापक हित में है।

बड़ों की बात जाने दें तो आम भारतीय चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान इस
विवाद को आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। अखाड़ा परिषद और हाशिम अंसारी
के बीच जो चर्चाएं हो रही हैं, उसको व्यक्त नहीं किया जा रहा है लेकिन जो
खबर है, वह तो यह है कि हिंदू मस्जिद निर्माण में कारसेवा करें और
मुसलमान मंदिर निर्माण में। मतलब साफ है कि हिंदू मुसलमान मिल जुलकर
मंदिर मस्जिद बनाएं और देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र का ऐसा वातावरण
निर्मित हो जिसकी वास्तव में देश को जरूरत है। मंदिर मस्जिद को लेकर
लड़ते हिंदू मुसलमान राजनीतिज्ञों को भले ही हितकर लगें लेकिन आम आदमी को
हितकर नहीं लगते। इसलिए जो भी देश और आम आदमी का हितचिंतक होगा वह आगे
सुप्रीम कोर्ट में ले जाने के लिए इस विवाद का समर्थक नहीं हो सकता।

वायु सेना के प्रमुख वायु सेना दिवस पर अपने सैनिकों से कह रहे हैं कि
देश ज्वालामुखी पर बैठा है और देश को बाह्य खतरे और आंतरिक खतरे से
सुरक्षित रखने के लिए हमें हर समय तैयार रहना चाहिए। देश के आम आदमी के
सामने वैसे भी समस्याओं की कमी नहीं है। महंगाई के साथ ही हिंसक
गतिविधियां अंतत: नुकसान तो आम आदमी का ही करती हैं। किसी के राजनैतिक
लाभ के लिए राम और रहीम को बांटा जाए यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं
है। हिंदुओं और मुसलमानों का उपयोग वोट बैंक की तरह हो, यह इन्हीं के
सोचने का विषय है कि क्या ये वस्तु हैं जो लोग इनका उपयोग करें। यह सबसे
अच्छी बात हो रही है कि समझौते का प्रयास गैर राजनीतिक लोग कर रहे हैं।
गैर राजनैतिक लोग जब किसी समस्या या विवाद का हल करते हैं तो स्पष्ट
मस्तिष्क और शुद्घ हृदय से करते हैं। उनके मन में किसी तरह की कुटिलता के
लिए जगह नहीं होती। इसलिए वे सर्वहित में निर्णय करने में समर्थ होते
हैं।

भारत में ही मंदिर मुसलमान बना सकता है और मस्जिद हिंदू। यही भारत की
गंगा जमुना संस्कृति का अर्थ भी है और यही असली धर्मनिरपेक्षता भी है।
रामलला के लिए कपड़े, माला कोई मुसलमान बनाता है तो यही हमारी असली
संस्कृति है। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर जितनी श्रद्घा कोई मुसलमान
प्रगट करता है, उतनी ही श्रद्घा हिंदू भी प्रगट करता है। दुख में सुख में
सबकी एक समान सहभागिता है। राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के मुकदमे के लिए
न्यायालय जाते समय जब एक ही टांगे पर बैठकर दोनों पक्ष जाते थे तो यह
भारत में ही संभव है। आज दोनों मिलकर मामले को सुलझा लेना चाहते हैं तो
यह उनका अधिकार है। जब यह विवाद न्यायालय में प्रारंभ हुआ था तब किसने
सोचा था कि यह मामला पूरे देश को झकझोर देगा लेकिन अब अयोध्या वासी ही
नहीं चाहते कि यह मामला और आगे न्यायालय में चले तो सारे देश को उनकी सोच
का सम्मान करना चाहिए।

आज दुनिया में तेजी से भारत की प्रतिष्ठï बढ़ रही है। कामन वेल्थ गेम्स
देश  ने सफलता पूर्वक करवा लिया। तैयारियों को लेकर कितनी आलोचनाएं की
गई। शायद वे जरूरी थी। क्योंकि आलोचना नहीं होती तो आज जो तैयारी हुई
हैं, उसमें मीनमेख निकाला जा सकता था। सारी दुनिया भारत की तैयारियों को
देखकर आश्चर्यचकित हैं और उद्घाटन समारोह की तो पूरी दुनिया की मीडिया ने
तारीफ की है। भारत के खिलाड़ी खेलों में भी आश्चर्यजनक रूप से सफल हो रहे
हैं। खेलों में मिल रही सफलता से पूरा देश गदगद है। अब तो यह भी कहा जा
रहा है कि भारत ओलंपिक कराने की पात्रता रखता है। क्या यह देश के लिए
गर्व की बात नहीं है? भारत से जलन की भावना रखने वाले भी आश्चर्यचकित हैं
कि यह सब भारत में संभव कैसे हो गया? क्योंकि तैयारियों को लेकर जिस तरह
की आलोचनाएं हो रही थी, उससे तो लगता था कि देश की छवि खराब होगी। अब
किसी को कोई गिला शिकवा नहीं है और देश का नागरिक गर्व का अनुभव कर रहा
है। यह तो पहली बार पता चल रहा है कि वास्तव में खेलों को प्रोत्साहन
मिले तो देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है।

खेलों के बाद दूसरी बड़ी बात है, अमेरिका के राष्टपति बराक ओबामा की
भारत यात्रा। अपने कार्यक्रम से दो दिन पहले ओबामा ठीक दीपावली के दिन
भारत आ रहे हैं। दीपावली बहुसंख्यक हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है।
बराक ओबामा भारत की दीपावली देखना चाहते हैं। उनकी तो सोच है कि भारत
तेजी से आगे बढ़ रहा देश है। विश्वव्यापी मंदी मे भी भारत ने अपनी
विकास  8.5 प्रतिशत बनाए रखी है तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है, भारत की।
फिर ओबामा दीपावली की रात उसी ताज होटल में मनाने जा रहे हैं जो
आतंकवादियों का शिकार हुआ था और आज फिर से सीना तानकर खड़ा है। ओबामा ने
स्पष्ट भी किया है कि आतंकवाद के विरूद्घ युद्घ में वह भारत के साथ हैं।
ओबामा भी यह बात अच्छी तरह से समझते हैं कि अमेरिका का कोई वास्तव में
मित्र हो सकता है तो वह भारत है। भारत दोस्ती करना जानता है तो उसे
निभाना भी जानता है। ओबामा के लिए आदर्श है डा. मार्टिन लूथर किंग और
महात्मा गांधी। जबकि मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी को अपना मार्गदर्शक
मानते थे और अमेरिका में गांधी जी की तरह सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया था।
अब यह भारतीयों की ही सोच का विषय है कि वे मंदिर मस्जिद को लेकर ही
लड़ते रहेंगे या फिर दुनिया में बढ़ती भारत की शक्ति को बढ़ाने में अपनी
ऊर्जा खर्च करेंगे। यह उनकी ही सोच का विषय है कि वे अपनी भावी पीढ़ी के
लिए देश को कैसी सौगात देना चाहते हैं। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद
सर्वोच्च न्यायालय में जाने का संवैधानिक अधिकार भले ही हो लेकिन विवाद
में ही उलझे रहना अक्लमंदी है, क्या? आज दुनिया देख रही है, भारत की तरफ।
आज दुनिया को शांति और अहिंसा की जरूरत है। भारत के पास अवसर है कि वह
दुनिया को दिखाए कि देखों कैसे शांति से रहा जा सकता है। चुनाव हमारे हाथ
में है और हमे ही चुनना है कि हम चाहते क्या है ?
- विष्णु सिन्हा
09-10-2010