यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

अरूंधति राय का खेल स्वयं को अंतराष्ट्रिय स्तर पर चर्चित करने का है

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं होता कि व्यक्ति अभिमत प्रगट
करने के लिए स्वच्छंद है। करोड़ों लोगों की मान्यता और भावना को ठेस
पहुंचाने वाली अभिव्यक्ति कानून तोडऩे के मामले में आती है और पता नहीं
क्यों सरकार इतनी कमजोर साबित होती है कि लोग कुछ भी कहते हैं तो कानूनी
कार्यवाही से हिचकती है। अरूंधति राय को एक उपन्यास के लिए
अंतराष्ट्रिय  पुरस्कार क्या मिल गया, वे समझने लगी कि हर विषय में राय
वे प्रगट करेंगी तो लोग उन रायों को स्वीकार करेंगे। नहीं, वे अच्छी तरह
से जानती हैं कि धारा के विपरीत कथन विवादास्पद तो बनाता ही है, चर्चित
भी बनाता है। विवादास्पद बातें कहो और चर्चित बने रहो। अंतराष्ट्रिय
जगत में ऐसे लोगों की पूछ परख करने वाले भी अपने अपने स्वार्थ के अधीन
मिल ही जाते हैं। मीडिया को तो मसाला चाहिए और विवादास्पद वक्तव्य मसाले
का ही काम करते हैं। अपने प्रकाशन को अधिक से अधिक प्रसारित करने के लिए
ये मामले उपयोगी सिद्घ होते हैं।

मीडिया जरा सा भी विवेक का परिचय देता तो अरूंधति राय के विचारों को
प्रचारित करने से बचा जा सकता था। मीडिया के द्वारा प्रचार न मिले तो ऐसे
लोग जानते हैं कि फिर बोलने से क्या लाभ? काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है,
यह बात हर भारतीय मानता है। काश्मीर में अवश्य कुछ निहित स्वार्थी अपना
उल्लू सीधा करने के लिए तथाकथित आजादी की बात करते हैं और पाकिस्तान को
भी इस मामले में सम्मिलित करते हैं लेकिन जम्मू और लद्दाख के लोग ही चंद
काश्मीरियों की राय से सहमत नहीं हैं। काश्मीर नरेश हरिसिंह ने अपने
राज्य जम्मू काश्मीर का भारत में विलय किया था। आज इस क्षेत्र का बहुत
बड़ा हिस्सा पाकिस्तान और चीन के कब्जे में है। भारत तो शांतिपूर्ण ढंग
से अपने हिस्से वापस चाहता है। ऐसे में कोई भी कुछ भी कहे लेकिन काश्मीर
भारत का अभिन्न अंग है, इस विषय में किसी भी तरह के समझौते की उम्मीद
नहीं की जा सकती।

अरूंधति राय, गिलानी, जेठमलानी के कहने से क्या होता है? केंद्र सरकार को
तो इनके वक्तव्यों को लेकर इन पर कड़ी कार्यवाही करना चाहिए। खबर है कि
गृह मंत्रालय ने अरूंधति राय पर कार्यवाही की इजाजत पुलिस को दे दी है।
इसके पहले नक्सलियों के विषय में भी अरूंधति राय ने वक्तव्य दिया था।
नक्सली संगठन केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा प्रतिबंधित संगठन है। ये
तो भारत के संविधान पर ही विश्वास नहीं करते। भारत में सारी स्वतंत्रता
जो सभी भारतीयों को मिली हुई है, वह संविधान के अंतर्गत ही है। संविधान
से परे स्वतंत्रता का अर्थ कानून के विरूद्घ जाना है और इस मामले में
स्पष्ट सजा का प्रावधान है। केंद्रीय मंत्री और काश्मीर के पूर्व
मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ही कहते हैं कि भारत में कुछ ज्यादा ही
आजादी है। उनकी बात सच नहीं है। आजादी अवश्य है लेकिन वह कानून के दायरे
में है। कानून का पालन करवाने की जिम्मेदारी सरकार की है और सरकार अपना
कर्तव्य निर्वाह करने में लापरवाही का परिचय दे और इसे लोग ज्यादा आजादी
समझें तो गलती सरकार की है।

सरकारों का तो पहला दायित्व ही है, कानून का शासन सख्ती से लागू करना।
कानून को कोई मजाक बनाने की कोशिश करे तो उसे जेल की कोठरी में पहुंचा
देना। अरूंधति राय कहती हैं कि भ्रष्टाचार  की खुली छूट है। भ्रष्टाचारदेश में है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन इसका यह अर्थ तो कदाचित
नहीं लगाया जा सकता कि देश में भ्रष्टाचार की छूट है। जिन्हें कानून का
पालन कराने की जिम्मेदारी संविधान ने दी है, उनके सक्षम न होने के कारण
भ्रष्टाचार फल फूल रहा है तो इसका अर्थ भ्रष्टाचार की छूट नहीं लगाया
जा सकता। फिर भी भ्रष्टाचार  और देशद्रोह में जमीन आसमान का अंतर है। देश
की अखंडता और एकता के विरूद्घ बात करना और लोगों को भड़काना देशद्रोह की
श्रेणी में आता है। जबकि भ्रष्टाचार सामान्य अपराध की श्रेणी में? सबसे
बड़ा अपराध तो हत्या को माना जाता है। जिसकी सजा फांसी तक है लेकिन
राष्टद्रोह से बड़ा अपराध तो कोई नहीं हो सकता।

एक मेजर ने फौज से अवकाश के लिए न्यायालय में मामला इस आधार पर दायर किया
था कि उसे अपने पिता की सेवा के लिए अवकाश दिया जाए। कल ही न्यायालय ने
फैसला दिया है कि देश से बड़े पिता नहीं हैं और विशेष प्रशिक्षण के कारण
मेजर की जरूरत देश को अधिक है। इसलिए उसे अवकाश नहीं दिया जा सकता।
स्पष्ट है कि देश के सामने बाकी सभी बातों का कोई महत्व नहीं है। देश को
स्वतंत्र कराने के लिए लाखों लोगों ने अपनी जवानी कुर्बान की। वर्षों
सलाखों के पीछे जेल में बंद रहे। फांसी के फंदे पर चढ़ गए। उन वीर भारत
माता के पुत्रों की कुर्बानी के कारण भारत वर्षों की गुलामी के बाद आजाद
हुआ। यह आजादी जो देश को मिली यह अरूंधति राय के कारण नहीं मिली। इसी
आजादी का परिणाम है कि अरूंधति राय जो ठीक समझें उसे अभिव्यक्त कर
करोड़ों राष्ट्रभक्त  देशवासियों की भावनाओं को ठेस लगा रही है। काश्मीर
को भारत ने विशेष दर्जा दिया तो यह भारत की काश्मीर के प्रति अनुकंपा है,
 है। इसे कोई अपना अधिकार समझ ले तो यह उसकी गलतफहमी है। सैयद अली
शाह गिलानी जैसों के अनुसार भारत नहीं चल सकता। हर भारतीय का काश्मीर पर
उतना ही अधिकार है जितना अधिकार उसका शेष भारत पर है। काश्मीरी पंडित ही
इनकी दिल्ली की सभा में इन पर जूते फेंकते हैं। वंदे मातरम का नारा लगाते
हैं। वे भी काश्मीरी हैं। इसके पहले वे भारतीय हैं।

कानून मंत्री वीरप्पा मोइली कहते हैं कि देश में अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप लोगों की देशभक्ति की
भावनाओं को ठेस पहुंचाए। ऐसे बयानों को राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जा
सकता जो रष्ट्रद्रोह  की हद तक पहुंच जाता है। अरूंधति राय कहती हैं कि
वे अपने दिए बयान पर कायम हैं। अब गेंद सरकार के पाले में हैं। करोड़ों
निगाहें सरकार की तरफ टकटकी लगाए देख रही है कि सरकार क्या निर्णय लेती
है? वह ढुलमुल रवैया अपनाती है या ठोस कदम उठाती है। अमेरिका के
राष्टपति बराक ओबामा भारत की यात्रा पर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि
एकाएक जो यह गतिविधियां बढ़ी हैं, उसका कारण उनकी यात्रा है। वे अमेरिकी
राष्टपति को समझाना चाहते हैं कि वे जैसा भारत को समझते हैं, वैसा
भारत नहीं है। काश्मीर में विरोध की राजनीति इसलिए प्रदर्शित की जा रही
है जिससे भारत के प्रति जो राष्टपति की भावना है, उसे बदला जाए। सारा
खेल पाकिस्तान प्रायोजित है। मांग भी उठाने वाले उठाते हैं कि अमेरिका
बीच में पड़कर मामला निपटाए। जबकि अमेरिका बार बार कह चुका है कि मध्यस्थ
बनने का उसका कोई इरादा नहीं है लेकिन निहित स्वार्थी बाज नहीं आते।
अमेरिकी राष्टपति आएं या कोई भी आए। सरकार को स्पष्टता से दिखाना
चाहिए कि भारत में कानून का शासन है और कानून से खिलवाड़ करने वाला कोई
भी हो, सरकार उसके साथ मुरब्बत नहीं करने वाली। दरअसल सरकार की हिचक के
पीछे कारण भी है। चूंकि अरूंधति राय अंतराष्ट्रिय  पुरस्कार प्राप्त
लेखिका हैं। इसलिए उनकी गिरफतारी के विरूद्घ  अंतराष्ट्रिय मानवाधिकारी
आवाज उठाएंगे और भारत की प्रजातांत्रिक छवि को खराब करने का प्रयास
करेंगे। अपनी इसी स्थिति का लाभ उठाकर तो अरूंधति राय मनमाना बयान देती
हैं। खेल स्पष्ट है। न तो काश्मीर से और न ही नक्सलियों से, लेना देना
है तो स्वयं से। स्वयं को चर्चित, महान प्रदर्शित करने का खेल है। देश के
लोग इस खेल को देख रहे हैं और सरकार के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

- विष्णु सिन्हा
27-10-2010