यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

काली स्याही फेंकने वालो के पीछे कौन है, यह बात आलाकमान को बताने से कांग्रेसी डरते क्यों हैं?

अजब हाल है, कांग्रेस का। राज्यपाल के पास पहुंच गए। फरियाद करने कि
पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था केंद्रीय मंत्री के सुरक्षा के लिए की गई
होती तो नारायण सामी पर काली स्याही नहीं फेंकी जा सकती थी। पुलिस की
लापरवाही से यह घटना घटी और इसके लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है। राजभवन
के सामने खड़े होकर फोटो खिंचवाओ और कर्तव्य की इति श्री। नारायण सामी से
जब तक किसी की नाराजगी नहीं होगी तब तक वह उन पर काली स्याही क्यों
फिकवाएगा? काली स्याही फेंकना या कालिख फेंकने का तो एक ही अर्थ होता है,
अपमानित करना। न तो नारायण सामी को अपमानित करने में भाजपा सरकार की ही
रुचि है और न ही पुलिस की। कोई ऐसा कारण ही नहीं है कि ये दोनों नारायण
सामी का अपमान करें। दरअसल ये कांग्रेस के अपने घर का अंदरुनी विवाद है
और पकड़े गए लोगों ने पप्पू फरिश्ता का नाम ले ही लिया। अब पप्पू पुलिस
की पकड़ में आए तो पुलिस उससे पूछताछ कर उसके पीछे कौन व्यक्ति है, इसका
पता लगाने के लिए भी तैयार हैं।

कांग्रेसी जानते हैं कि असल में कौन व्यक्ति इस घटना के लिए जिम्मेदार
है? कम से कम बड़े नेताओं को तो पक्का विश्वास है कि पप्पू फरिश्ता के
पीछे किसका चेहरा है। ये आपस में रास्ता देख रहे हैं कि कोई तो उस शख्स
का नाम ले। किसी तरह से उसका नाम सामने आए। ये गुप्त बैठकें करते हैं और
रणनीति पर विचार करते हैं कि आलाकमान तक असली नाम कैसे पहुंचाया जाए? सभी
सयाने एकमत हैं  कि हाथ उसी का है। जिस तरह से उस नेता की चल नहीं रही है,
उससे पैदा अवसाद ने इस तरह का कृत्य करवाया है। पप्पू फरिश्ता को पकड़ कर
पुलिस उसका नाम पप्पू से कहलवा दे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।
छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस उसके लिए सुविधा जनक माध्यम दिखायी दे रहे हैं।
राज्यपाल के द्वारा पुलिस और सरकार पर दबाव डलवाना आसान लग रहा है।
राज्यपाल निर्देश दे दें तो पप्पू को पकडऩा पुलिस के लिए कोई कठिन काम तो
है, नहीं।

धनेन्द्र साहू, चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा और रविन्द्र चौबे ने कल
रायपुर में मोतीलाल वोरा से मुलाकात कर घटना से अवगत तो कराया ही है।
मोतीलाल वोरा ने भी सुरक्षा की व्यवस्था में कोताही के लिए राज्य सरकार
पर ही निशाना साधा है। प्रदेशाध्यक्ष का मनोनयन सोनिया गांधी को करना है।
खबर है कि वे 24 से 30 अक्टूबर तक देश से बाहर रहने वाली हैं। इससे
अनुमान लगाया जा रहा है कि अब 1 तारीख के बाद ही प्रदेशाध्यक्ष का मनोनयन
होगा। हो सकता है दीपावली के कारण यह मामला दीपावली के बाद के लिए टल
जाए। उसके पहले ही कालिख फेंकवाने वाले असली व्यक्ति का नाम पुलिस
स्पष्ट कर दे तो मनोनयन में  आसानी ही होगी। क्योंकि ऐसा कोई व्यक्ति
प्रदेशाध्यक्ष के लिए सोनिया गांधी के द्वारा मनोनीत हो जाता है और बाद
में पता चलता है कि काली स्याही फेंकने वाले व्यक्ति के पीछे का असली
चेहरा वही है तो कांग्रेस की और फजीहत ही होगी।

वैसे भी प्रदेशाध्यक्ष का मनोनयन जिस व्यक्ति का होगा, उसी पर जिम्मेदारी
आगामी विधानसभा चुनाव की भी होगी। छत्तीसगढ़ सरकार 2 वर्ष पूरे करने जा
रही है तो चुनाव के लिए बचते हैं, 3 वर्ष। ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष का काम
और जिम्मेदारी कांग्रेस को सत्ता की आसंदी तक पहुंचाने की होगी। इसलिए
तलाश तो ऐसे व्यक्ति की ही की जा रही है जो गुटबाजी से परे कांग्रेस की
छवि को जनमानस में पुन: लोकप्रिय बनाने की कर सके। आजकल कांग्रेस में
सबसे ज्यादा डर फूल छाप कांग्रेसियों का ही है। सरकार से लाभ प्राप्त
करना और सरकार की खिलाफत करना एक साथ तो संभव नहीं। छत्तीसगढ़ में कइयों
को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर देखा परखा जा चुका है। अभी तक कांग्रेस को न तो
ऐसा मुख्यमंत्री मिला और न ही प्रदेशाध्यक्ष और न ही प्रतिपक्ष का नेता
जो जनता से सत्ता के लिए कांग्रेस को सहमति दिला सके। आलाकमान पर
नियुक्ति की जिम्मेदारी सौंप कर कांग्रेसी तो जिम्मेदारी से मुक्त हो
जाते हैं और मनोनीत व्यक्ति को असफल करने के अपने खेल में लग जाते हैं।
सत्ताधीश होने पर तो किसी को भी प्रदेश अध्यक्ष बना कर काम चलाया जा सकता
है। पहले भी मुख्यमंत्री के पिछलग्गू की भूमिका प्रदेशाध्यक्ष निभाते रहे
हैं लेकिन सत्ता से बाहर रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी ही सर्वोच्च
कुर्सी होती है। प्रतिपक्ष का नेता भी यदि प्रदेशाध्यक्ष शक्तिशाली हो तो
उसके अनुसार चलने के लिए बाध्य होता है। प्रतिपक्ष का नेता तो चुने हुए
विधायकों का ही नेता होता है लेकिन प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी तो पूरे
प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र की होती है। पूरी पार्टी के संगठन को
सक्रिय रखना और कांग्रेस की दमदार उपस्थिति दिखाना सबसे अधिक महत्व का
काम है। इसके लिए अति सक्रिय और ऊर्जावान नेता की जरुरत होती है। कोई भी
चुनाव सिर्फ जातिगत आधार पर नहीं जीते जा सकते। कांग्रेस ने यह प्रयोग
अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाकर, धनेन्द्र साहू को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर
देख लिया। चुनाव जीतना है तो सभी वर्गों का समर्थन चाहिए। इसलिए कांग्रेस
को इंदिरा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरु की तरफ दृष्टि डालना चाहिए। कोई भी
संकीर्ण सोच का व्यक्ति जो अपनी जाति के दायरे से बाहर सोच ही नहीं रखता,
वह कांग्रेस को सत्ता तक नहीं पहुंचा सकता।

कांग्रेस पिछड़ी, अगड़ी, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक सभी की पार्टी हैं।
उसे जातिगत गुणों के बदले वास्तविक योग्यता पर ध्यान देना चाहिए। हुड़दंग
और अभद्र कृत्यों को प्रोत्साहित करने वालों से परहेज करना चाहिए। काली
स्याही फेंकने जैसी घटनाओं से जो नुकसान पार्टी को होता है, उससे भी
सावधान रहने की जरुरत है। छत्तीसगढ़ एक शांत प्रदेश है। यहां का मतदाता
ऐसे लोगों को पसंद नहीं करता। कांग्रेसी कितना भी भाजपा सरकार को दोषी
ठहराएं लेकिन आम आदमी की सोच भाजपा सरकार के विरुद्ध नहीं है। भाजपा के
किसी कार्यकर्ता या नेता ने ऐसी अनुशासनहीनता की होती तो पार्टी पुलिस
जांच और परिणाम का इंतजार नहीं करती। छत्तीसगढ़ में ही अपने
प्रदेशाध्यक्ष तक को पार्टी ने निलंबित करने में हिचक महसूस नहीं की।
कांग्रेस को ही और विशेष कर आलाकमान को ही सोचना है कि वह कब तक ऐसे
लोगों को ढोते रहेगी। कांग्रेस के गढ़ को जिन्होंने ढहा दिया, उनके
कृत्यों से जब सभी वाकिफ हैं तब आलाकमान को जानकारी नहीं होगी, ऐसा तो
कोई भी नहीं मानेगा। जब पूरी पार्टी मनोनयमन से ही चलती है तो मनोनीत
व्यक्ति के क्रियाकलापों की जिम्मेदारी भी तो आलाकमान की ही है। जब तक
ऐसे लोग पार्टी में रहेंगे तब तक पार्टी का भला नहीं होने वाला है।

कांग्रेसियों की तो स्पष्ट सोच है कि सभी पद इनके और इनके परिवार के लिए
ही है, क्या? वक्त बदल गया है और जो एक बार नजरों से उतर जाता है, वह
दोबारा जनता की निगाहों में नहीं चढ़ता है। छत्तीसगढ़ में भी आलाकामान
चाहता है कि कांग्रेस का वह हाल हो जो कई प्रदेश में है तो फिर कुछ सोचने
विचारने की जरुरत नहीं है। जनता तो तमाशा देख रही है और मुस्करा रही है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 23.10.2020
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