यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

डा. रमनसिंह और बृजमोहन अग्रवाल ने भटगांव में कांग्रेस को हारने के लिए बाध्य कर दिया

कड़ी टक्कर, कांटे की टक्कर, फिर अंत में बराबरी का मुकाबला जैसे अखबारी
जुमलों को धत्ता बताकर भाजपा की रजनी त्रिपाठी 35 हजार से अधिक मतों से
चुनाव समर में विजयी हो गयी। महल का प्रभाव, राजा के चाचा को टिकट,
कांग्रेसियों का प्रयास सब निष्फल साबित हो गया, कांग्रेस के लिए। जिनकी
जबान नहीं थकती थी, यह कहते हुए कि सरकार के विरूद्घ जनता में भारी
आक्रोश है और वे निश्चय ही भटगांव चुनाव जीतेंगे, उन सबके चेहरे उतर गए
हैं। वही पुराना राग अलापा जा रहा है कि सरकारी तंत्र का दुरूपयोग किया
गया। मतदाताओं को खरीदा गया। इसलिए कांग्रेस चुनाव हार गयी। असलियत जो
चुनाव परिणाम से सामने आता है, वह तो  सरकार के समर्थन में जनता की
शाबासी ही है। डा. रमन सिंह की बात से मतदाता सहमत हैं कि जो काम 50 वर्ष
में कांग्रेस की सरकार नहीं कर पायी, वह काम भाजपा ने 7 वर्ष में किया
है।

कांग्रेस ने अपनी तरफ से कम प्रयास नहीं किया। विधायकों की पूरी फौज को
चुनाव जीतने के लिए उतारा गया। अंबिकापुर में टिके विधायकों को चुनाव
क्षेत्र में जाकर वहीं रूकने के लिए प्रदेश प्रभारी नारायण सामी ने
धमकाया। यदि अंबिकापुर में नजर आए तो अगले चुनाव में टिकट न देने तक की
बात कही गयी। प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू और प्रतिपक्ष के नेता
रविन्द्र चौबे तो जीत के लिए इतना उत्साहित थे कि पूरे समय चुनाव क्षेत्र
में ही जमे रहे। कांग्रेस के इकलौते लोकसभा सदस्य चरणदास महंत ने पूरी
ताकत अपनी टीम के साथ लगायी। लगता था बिना चुनाव जीते वे मानने वाले नहीं
हैं लेकिन चुनाव परिणाम स्पष्ट कर गया कि चुनाव पर प्रभाव पडऩा तो दूर,
कांग्रेस पिछले चुनाव से भी बुरी तरह हारी।

छत्तीसगढ़ में कोई, माने या न माने लेकिन खुद को सबसे बड़ा कांग्रेसी
नेता मानने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो भटगांव में रोड शो तक
किया। भटगांव चुनाव जीतकर प्रदेश से भाजपा की सरकार की उल्टी गिनती की भी
बात की। आलाकमान आदेश दे तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने का दावा भी
किया। कांग्रेसी एकजुट हैं, यह भी प्रदर्शित करने की पूरी कोशिश की गयी
लेकिन परिणाम यह हुआ कि पुरानी जीत के रिकार्ड को दरकिनार कर भाजपा की
रजनी त्रिपाठी ने जीत का ऐसा परचम लहराया कि सब रिकार्ड ध्वस्त हो गए।
युवक कांग्रेस और एनएसयूआई का चुनाव जीत जाना अलग बात है और सीधे
मतदाताओं से समर्थन प्राप्त करना एकदम अलग बात है। अभी भी समझ में नहीं
आया है कि भाजपा की जड़ें कितनी गहरी हो गयी है, लोगों के दिलो दिमाग पर
तो स्वप्न देखते रहिए और उम्मीद करिये स्वप्न का जगत टूटे न। स्वप्न
देखना है तो नींद में जाना भी जरूरी नहीं। क्योंकि कांग्रेसी जागते हुए
भी स्वप्न देखने के अनुभवी हो चुके हैं।

कभी एक पक्षीय कांग्रेस के पक्ष में रहने वाले छत्तीसगढ़ ने अच्छी तरह से
अनुभव कर लिया है कि कोग्रेस सरकार और भाजपा सरकार में अंतर क्या है?
कांग्रेसी बड़ी उम्मीद कर रहे थे कि बृजमोहन अग्रवाल के चुनाव संचालन का
रिकार्ड इस बार ध्वस्त हो जाएगा। अभी तक जितने भी क्षेत्रों में बृजमोहन
अग्रवाल ने चुनाव का संचालन किया, जीत ही भाजपा के हिस्से में आयी। इस
बार भी रिकार्ड टूटा नहीं है बल्कि कांग्रेसियों को जिस तरह से मुंह की
खानी पड़ी है, वह तो नया रिकार्ड है। डा. रमन सिंह तो दूर की बात हैं,
बृजमोहन अग्रवाल से ही कांग्रेसी निपट नहीं पा रहे हैं। महल और सरकार का
मुकाबला चुनाव के समय करने वाले भी अब सरकार का ही गुणगान करते नजर आएं
तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। क्योंकि बिन पेंदी के लोटों का स्वभाव कुछ
छुपा तो है, नहीं।

परिणाम आने के पहले अजीत जोगी कह रहे थे कि जब तक डा. रमन सिंह की सरकार
है, नक्सल समस्या से प्रदेश मुक्त नहीं हो सकता। राष्टपति शासन लगाया
जाना चाहिए और दूसरी तरफ जाकर रेल रोको आंदोलन कर रहे हैं। रेल तो केंद्र
सरकार की है और केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार है। फिर रेल सुविधाओं के
विस्तार के लिए अजीत जोगी को रेल रोको आंदोलन में सम्मिलित होने की क्या
जरूरत है? वे अपनी सरकार से कहें और सरकार सुविधा बढ़ाए लेकिन लगता है कि
केंद्र सरकार में अजीत जोगी की सुनवायी ही नहीं होती। होती तो आंदोलन की
जरूरत ही क्यों पड़ती? इसी से हालत समझ में आती है कि जनता तो सुनती नहीं
और सुनती भी है तो मानती नहीं। खुद की सरकार तवज्जो देती नहीं। करें तो
क्या करें ? फिर डा. रमन सिंह पर जनता का विश्वास और पुख्ता होता जाता है
तो करें तो क्या करें? आखिर अपनी सरकार के भी विरूद्घ आंदोलन करना पड़
रहा है।

कभी विश्वसनीय रहे लोग भी एक एक कर किनारा कर गए। 3 वर्ष तक डा. रमन सिंह
की सरकार को दूर दूर तक खतरा नहीं है। भटगांव चुनाव परिणाम ने और स्पष्ट
कर दिया है। उसके बाद भी चुनाव हुए और डा. रमन सिंह और उनकी सरकार की
लोकप्रियता इसी तरह बढ़ती रही तो फिर राजनीति में भविष्य ही क्या है? आज
5 विधायक हैं। कल को वे भी नहीं रहेंगे। आलाकमान है कि सुनता ही नहीं।
तव्वजों देने की बात तो दूर है। पत्नी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की
गुजारिश भी सुनी जाएगी या अनसुनी यह तो नियुक्ति से ही तय हो जाएगा।
भटगांव चुनाव परिणाम ने कांग्रेसियों को आईना तो दिखाया ही है। डा. रमन
सिंह छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने  के अजीत जोगी के वक्तव्य का जवाब दिन
में स्वप्न देखने की बात कहकर दे चुके हैं।

डा. रमन सिंह अजातशत्रु हैं, यह भटगांव के चुनाव परिणाम ने फिर से सिद्घ
कर दिया है। प्रारंभ में भाजपा के नेताओं के असंतोष की बात अवश्य उठी थी
लेकिन शिवप्रताप सिंह का निलंबन समाप्त कर डा. रमनसिंह ने ऐसा पांसा
फेंका कि कांग्रेस उफ तक नहीं कर सक रही है। जीत से भाजपाइयों का
उत्साहित होना तो स्वाभाविक है लेकिन राष्ट्रीय  अध्यक्ष नितिन गडकरी
अपनी पिछली यात्रा में तीसरी बार जीतने की तैयारी करने के लिए कह गए हैं।
इसलिए डा. रमन सिंह और संगठन अपनी तैयारियों में लग गया है। भाजपा की
एकजुटता के साथ सरकार के काम उसकी उपलब्धि हैं। पिछले 7 वर्षों में
छत्तीसगढ़ राज्य ने जिस तरह से विकास के पथ पर अपने कदम बढ़ाएं हैं, वह
डा. रमन सिंह और उनकी पूरी टीम की सोच का ही नतीजा है। 3 वर्ष का समय तो
बहुत होता है और डा. रमन सिंह छत्तीसगढ़ की जनता को क्या उपहार देंगे, यह
अभी कांग्रेस की कल्पना के भी बाहर है। 3 रू. किलो चांवल तो कोंग्रेस
भूली नहीं है कि डा. रमन सिंह ने किस चमत्कारिक ढंग से पूरा माहौल ही बदल
दिया था। वे कहते भी हैं कि उनका खजाना जनता के लिए खुला हुआ है और जनता
के हित में उसे लुटाना वे बंद करने वाले नहीं हैं। ऐसे दरियादिल इंसान के
साथ छत्तीसगढ़ का मतदाता खड़ा नहीं होगा तो किसके साथ खड़े होगा?

- विष्णु सिन्हा
04-11-2010