यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

बुधवार, 1 सितंबर 2010

भाजपाध्यक्ष को काला झंडा दिखाने से कांग्रेस के प्रति लोगों का झुकाव नहीं होने वाला

भाजपा के राष्ट्रीय  अध्यक्ष नीतिन गडकरी को कुछ कांग्रेसी काला झंडा
दिखाने का इरादा रखते हैं। भाजपा अपने राष्ट्रीय  अध्यक्ष के स्वागत में
101 स्वागत द्वार बनाने जा रही है तो कुछ कांग्रेसी गडकरी को 101 काला
झंडा दिखाना चाहते हैं। उनकी नाराजगी का कारण है, गडकरी के द्वारा
दिग्विजयसिंह के विरूद्घ कहे गए शब्द। इनकी मांग है कि गडकरी यात्रा के
पूर्व शब्द वापस लें और माफी मांगे। ये गडकरी और दिग्विजयसिंह के बीच का
मामला है और दिग्विजयसिंह गडकरी को जवाब दे चुके हैं। गडकरी ने पहले ही
अपने शब्द वापस लेने से इंकार कर दिया है। माफी मांगने की बात तो दूर दूर
तक नहीं है। छत्तीसगढ़ से दिग्विजयसिंह की विदाई छत्तीसगढ़ राज्य बनने की
पूर्व बेला में किस तरह से हुई थी और किसने दिग्विजयसिंह का अपमान किया
था, यह कांग्रेसी अच्छी तरह से जानते हैं? कांग्रेसियों ने ही
दिग्विजयसिंह का अपमान किया था।

छत्तीसगढ़ के लिए वैसे भी दिग्विजयसिंह ने अपने 7 वर्षीय शासन काल में
ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए वे याद किए जाएं। जाते जाते अजीत जोगी को
मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस का जो नुकसान दिग्विजयसिंह ने किया, उससे भी
सभी अच्छी तरह से परिचित हैं। उन दिग्विजयसिंह के लिए जिन्होंने रायपुर
मेडिकल कालेज को मात्र 7 करोड़ रूपये देने से इंकार  कर दिया था, उनके
मान अपमान से छत्तीसगढ़ का क्या लेना देना? उस समय तो छत्तीसगढ़ में
इकलौता मेडिकल कालेज छत्तीसगढ़ में रायपुर का ही था। छत्तीसगढ़ राज्य
बनने के बाद अब 5 वां मेडिकल कालेज अंबिकापुर में खोलने की घोषणा हो चुकी
है। निजी मेडिकल कालेजों को  अनुमति देने के लिए भी सरकार तैयार है।
छत्तीसगढ़ की जीडीपी भी सर्वोच्च है। नक्सली समस्या भी विरासत में देने
वालों में से दिग्विजियसिंह एक हैं।

दिग्विजयसिंह के शासनकाल में छत्तीसगढ़ की उपेक्षा पर तो पूरा शास्त्र
लिखा जा सकता है। उस दिग्विजयसिंह से छत्तीसगढ़ का क्या लेना देना?
छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद कांग्रेस की सरकार ने ही कहां दिग्विजयसिंह को
पूछा। कभी दिग्विजयसिंह के वफादार रहे लोगों ने ही अजीत जोगी के शासनकाल
में दिग्विजयसिंह से दूरी बना ली थी। जब वर्ष में दो बार दिग्विजयसिंह
डोंगरगढ़ की यात्रा पर आते थे तो कितने वफादार उनके आगे पीछे घूमते थे।
अब दिग्विजयसिंह की याद जिन कांग्रेसियों को आ रही है उसका कारण भी
स्पष्ट है। इस समय दिग्विजयसिंह और राहुल गांधी का तालमेल अच्छा है।
दोनों उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने में लगे हैं। मतलब
दिग्विजयसिंह पावरफुल हैं। जिन्हें संगठन चुनाव में दूध की मक्खी की तरह
दरकिनार कर दिया गया, उन्हें आशा दिखायी दे रही है कि दिग्विजयसिंह को
प्रसन्न कर अपने लिए जगह बनायी जा सकती है। प्रसन्न करने का एक ही तरीका
है कि दिग्विजयसिंह को संदेश मिले कि उनके समर्थक भाजपा अध्यक्ष को काला
झंडा दिखा रहे हैं। दिखा पाएं या न दिखा पाएं लेकिन उनकी मंशा तो
दिग्विजयसिंह तक पहुंच ही जाएगी और दिग्विजयसिंह प्रसन्न हो गए तो कुछ न
कुछ प्रसाद मिल जाएगा।

लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। नीतिन गडकरी को काला झंडा दिखाएंगे तो
भाजपा के कार्यकर्ता दिखाने तो नहीं देंगे? प्रशासन भी सतर्क रहेगा कि
अप्रिय स्थिति निर्मित न हो। फिर इसने परंपरा का रूप ले लिया और
कांग्रेसियों की तरह भाजपाई भी कांग्रेस अध्यक्ष के कभी आगमन पर काला
झंडा दिखाने के लिए उद्यत हुए तो जिम्मेदार कौन होगा? दिग्विजयसिंह ही
खुलकर भाजपा और संघ के विरूद्घ बोलते हैं। बोलने का कारण तो स्पष्ट है।
क्योंकि इसी से कांग्रेस के प्रति उनकी वफादारी सुनिश्चित होती है और
अल्पसंख्यक वर्ग में छवि बनती है कि दिग्विजयसिंह हमारे खैरख्वाह हैं।
सीधा सीधा राजनैतिक खेल है। कभी जिन्होंने दिग्विजयसिंह की कृपा से सत्ता
सुख मध्यप्रदेश में भोगा है, उन्हें अब कहीं से  भी किसी तरह की आशा नहीं
दिखायी देती तब वे दिग्विजयसिंह की ही ऊंगली पकडऩे का अवसर तलाश रहे हैं।
कुछ नहीं तो पीसीसी के लिए मनोनीत होने वालों में ही उनका नाम जुड़ जाए।
आज संगठन में कोई जगह न मिलने से जिन्हें सदमा लगा है, वे सदमे से उबरने
के लिए काला झंडा दिखाना चाहते हैं।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने ऐसा निर्णय नहीं लिया है। अभी तो पुरानी कमेटी
ही काम कर रही है। सोनिया गांधी के राष्ट्रीय  अध्यक्ष बनने के बाद ही
छत्तीसगढ़ में नई कमेटी अस्तित्व में आएगी, ऐसा अभी तक की गतिविधियों से
परिलक्षित होता है। छत्तीसगढ़ के बड़े कांग्रेसी नेता तो दिल्ली में
नामांकन फार्म में किसी तरह से उनका नाम भी समर्थक या प्रस्तावक के रूप
में दर्ज हो जाए, इस जुगाड़ में लगे हैं। किसी के पास समय नहीं है कि वह
भाजपा के राष्ट्रीय  अध्यक्ष को काला झंडा दिग्विजयसिंह के लिए दिखाने
में रूचि ले। शहर जिला कांग्रेस कमेटी अवश्य इस बात में रूचि ले रही है
कि सुभाष स्टेडियम गडकरी के कार्यक्रम के लिए न दिया जाए। इसके लिए नगर
निगम के महापौर को ज्ञापन देने के बदले राज्यपाल को ज्ञापन दिया गया है।
कायदे से विरोध दर्ज कराना भी था तो नगर निगम उसके लिए उपयुक्त जगह है,
जहां पर कांग्रेस का ही कब्जा है। अपने कार्यकारी महापौर को ज्ञापन भी
देने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो पार्टी निर्देश दे सकती है कि सुभाष
स्टेडियम आबंटित न किया जाए।

आजकल कुछ भी हो, कांग्रेसी राज्यपाल को ज्ञापन देने पहुंच जाते हैं। शायद
उनकी सोच है कि राज्यपाल केंद्र द्वारा नियुक्त हैं, इसलिए उनकी सुनवायी
राज्यपाल के दरबार में होगी और राज्यपाल के बहाने वे सरकार को दबा ले
जाएंगे। जो काम वे स्वयं कर सकते हैं जब उसके लिए राज्यपाल का दरवाजा
खटखटाएं तो इसी से उनकी ताकत का पता चलता है। इनका हाल तो यह है कि इनकी
सलाह पर आलाकमान ही तवज्जो नहीं देता। सबके पास अपनी अपनी शिकायतें हैं
और उपलब्धि के नाम पर यही है कि न तो कांग्रेस लोकसभा में और न ही
विधानसभा चुनावों में अच्छा परिणाम दे पा रही है। काला झंडा और स्टेडियम
न दिया जाए, जैसे कृत्य से जनता कांग्रेस के प्रति समर्थन देगी, यह सोच
ही फिजूल है।

किसी के घर कोई सम्मानित मेहमान आए तो उसका आदर सत्कार करना चाहिए। यह न
हो सके तो कोई बात नहीं लेकिन उसका अपमान करने से जनता के दिल में स्थान
बनाने की कोशिश फलदायी नहीं होगी बल्कि अभद्रता ही प्रदर्शित होगी। जनता
की नजरों में सम्मान प्राप्त करना है तो सम्मानजनक कृत्य करें। भलमनसाहत
का तकाजा भी यही है। बाकी विरोध प्रदर्शन से दिग्विजयसिंह खुश होकर कुछ
पद दिला दें तो बात दूसरी है लेकिन इससे कांग्रेस का तो भला होने से रहा।
चिंतन करें कि क्यों जनता ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। अच्छी छवि का
कोई कांग्रेसी चुनावी मैदान में उतरता है तो क्यों जनता उसे चुनती है।
अपना भला करना चाहते हैं या कांग्रेस का। जब तक कांग्रेस के भले का चिंतन
नहीं होगा तब तक काला झंडा दिखाने से कुछ नहीं होने वाला।

- विष्णु सिन्हा
31-08-2010