यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

कार्यकर्ताओं को यह विश्वास दिलाने में नितिन गडकरी सफल हो गए कि उनसे कुछ छुपने वाला नहीं

अभी तक तो छत्तीसगढ़ के भाजपा कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों ने नितिन गडकरी
का नाम ही सुना था, पिछले 53 घंटों में उन्हें देख और पहचान भी लिया। अटल
बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज जैसे भाजपाई
दिग्गज नेताओं को भाजपा कार्यकर्ता सहित लोग जानते और पहचानते भी लेकिन
नितिन गडकरी अधिकांश के लिए नया नाम और शक्ल थे। नागपुर से लाकर दिल्ली
में संगठन के सर्वोच्च पद पर जब उन्हें बिठाया गया तब रायपुर के नजदीक
होने के बावजूद नागपुर के नितिन गडकरी तब छत्तीसगढिय़ों के लिए एक अंजाने
से व्यक्ति ही थे। राष्ट्रीय  अध्यक्ष बनने के बाद उनका नाम और शक्ल
मीडिया के द्वारा लोगों तक पहुंचा अवश्य लेकिन फिर भी जब तक आदमी रुबरु
नहीं होता तब तक वास्तविक पहचान नहीं होती। उनके दौरे ने उन्हें और अन्य
लोगों को आपस में समझने का अवसर दिया तो विश्वास जागृत हुआ कि नितिन
गडकरी पार्टी को उन ऊंचाइयों तक ले जाने में सक्षम हैं, जिसका स्वप्न हर
कार्यकर्ता ही नहीं, छत्तीसगढ़ की जनता भी देखती है।

कांग्रेसियों को भले ही इस बात से इत्तफाक न हो कि छत्तीसगढ़ की जनता
भाजपा को केंद्र की सत्ता पर आसीन देखना चाहती है लेकिन विधानसभा चुनाव
से भी अधिक समर्थन जनता ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिया है।
राष्ट्रीय  स्तर पर भाजपा अपने सभी प्रदेशों का आंकलन करे तो छत्तीसगढ़
ही ऐसा राज्य है जहां की जनता ने 11 में से 10 सीटों पर भाजपा का समर्थन
किया। दिल्ली में भाजपा सरकार नहीं बना सकी, यह दूसरी बात है लेकिन
छत्तीसगढ़ की जनता की इच्छा तो 11 में से 10 सीटों पर विजय दिलाने से
मंशा समझ में आ ही जाती है। जिन लोगों को सख्त नापसंद छत्तीसगढ़ की जनता
करती है, उन्हें भी इसलिए जितवा दिया, क्योंकि ऐसा न हो कि सिर्फ 1 सीट
की कमी सरकार बनने में रुकावट पैदा कर जाए।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो रमेश बैस है। उनकी लोकप्रियता का ह्राष निरंतर
हो रहा है। उनकी जीत के आंकड़े का ग्राफ भी नीचे सरक गया है। 1 लाख से भी
अधिक वोटों से जीतने वाले रमेश बैस पिछला चुनाव 50 हजार से कुछ अधिक मतों
से  ही जीत पाए और इसका कारण रायपुर के सक्रिय विधायक और मंत्री बृजमोहन
अग्रवाल और राजेश मूणत रहे। इन्हीं के कारण रमेश बैस जीत पाए। रायपुर शहर
से ही लीड 48 हजार से अधिक रही। निरंतर जीतने के कारण दिल्ली में इन्हें
पार्टी बड़ा ही लोकप्रिय नेता समझती है और लोकसभा में सचेतक भी पार्टी ने
बना रखा है। छत्तीसगढ़ में पार्टी के सबसे बड़े अंसतुष्ट नेता यही हैं।
यदा कदा राज्य सरकार की आलोचना मीडिया के द्वारा करने में भी ये पीछे
नहीं हैं। जबकि पार्टी का स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी तरह की शिकायत
हो तो उसे पार्टी फोरम में ही व्यक्त किया जाए लेकिन इसके बावजूद पार्टी
का वरिष्ठ नेता एवं सांसद होने के बावजूद ये अपने असंतोष को छुपा नहीं
पाते।

हालांकि पार्टी अनुशासन के मामले में सख्त है और अनुशासनहीनता पर सांसदों
को भी पार्टी ने निष्कासित करने में आगा पीछा नहीं सोचती  लेकिन ये अभी
तक बचते आए हैं। नितिन गडकरी को ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखने की जरुरत है।
कांग्रेस की बुराइयां अब भाजपा में भी प्रवेश कर रही हैं। ऐसे लोगों की
कमी नहीं जो ईमानदार और विश्वसनीय कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं करते। इनकी
सोच भी वफादारी का अर्थ पार्टी के प्रति वफादारी से हटकर स्वयं के प्रति
वफादारी हैं। डॉ. रमन सिंह तो सबको साथ लेकर चलने की अपनी तरफ से पूरी
कोशिश करते हैं लेकिन कुछ लोग इसे डॉ. रमन सिंह की कमजोरी समझने की भी
भूल करते हैं। डॉ. रमन सिंह जब अटल बिहारी बाजपेयी के मंत्रिमंडल में
मंत्री थे तब  प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए दूसरे मंत्री से भी कहा गया
लेकिन छत्तीसगढ़ में पार्टी के साथ संघर्ष में उतरने के बदले जिसने
मंत्री ही बने रहना उचित समझा और डॉ. रमन सिंह ने प्रदेशाध्यक्ष का
कांटों भरा ताज पहनना मंत्री पद छोड़ कर स्वीकार किया तब पार्टी छोड़ कर
14 विधायक कांग्रेस में जा चुके थे और पार्टी पदाधिकारी भी पार्टी का
भविष्य अंधकारमय समझ कर पार्टी से किनारा कर रहे थे। ऐसी विषम परिस्थिति
में जब पार्टी पूरी तरह से टूट फूट का शिकार थी तब डॉ. रमन सिंह ने
पार्टी अध्यक्षता स्वीकारी ।

उनके नेतृत्व में पार्टी ने सफलता के झंडे गाड़े और प्रदेश में भाजपा की
सरकार बनी तो डॉ. रमन सिंह ही मुख्यमंत्री बनने के स्वाभाविक दावेदार थे।
पार्टी ने उनकी क्षमता और योग्यता को स्वीकार भी किया और उन्हें
मुख्यमंत्री बनाया। डॉ. रमन सिंह ने सरकार की बागडोर ऐसी कुशलता से
संभाली कि आज प्रदेश में डॉ. रमन सिंह से ज्यादा लोकप्रिय नेता किसी
पार्टी मे नहीं हैं। विकास की उन्होंने ऐसी गंगा बहायी कि सबसे पिछड़ा
छत्तीसगढ़ आज विकास की नई ऊंचाइयों का न केवल स्पर्श कर रहा है बल्कि कई
क्षेत्रों में उसकी उपलब्धि राष्ट्रीय  स्तर पर सर्वोच्च है। नितिन गडकरी
ने पहली यात्रा में आशा भी प्रगट की है कि छत्तीसगढ़ देश का नंबर वन
राज्य होगा। निश्चित रुप से डॉ. रमन सिंह में यह क्षमता है। कितनी बार
विपक्ष ने आरोप लगाया कि डॉ. रमन सिंह जल्दी गरीबों को सस्ता अनाज देना
बंद कर देंगे लेकिन डॉ. रमन सिंह ने हर बार यही कहा कि जब तक वे
मुख्यमंत्री हैं तब तक यह योजना बंद नहीं होगी। जनहित में डॉ. रमन सिंह
ने ऐसी ऐसी योजनाएं प्रारंभ की हैं कि उनकी गिनती करना भी आम आदमी के बस
में नहीं है। बिना किसी भेदभाव के सर्वहित में डॉ. रमन सिंह ने ऐसे ऐसे
काम किए हैं जो छत्तीसगढ़ की जनता के लिए ही उनके शासन में आने के पहले
स्वप्र में भी संभव नहीं था।

नितिन गडकरी ने अपने रायपुर प्रवास के समय कहा कि पार्टी को विधानसभा की
60 और लोकसभा की 11 में से 11 सीटें जीतने की तैयारी करना है। यह कोई
असंभव काम नहीं है। कम से कम डॉ. रमन सिंह के लिए तो नहीं लेकिन इसके लिए
जरुरी है कि पार्टी में रह कर पार्टी को  नुकसान पहुंचाने वालों से सतर्क
रहने की जरुरत है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में
कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कांग्रेस में कुछ फूल
छाप कांग्रेसी हैं। भाजपा भी इस बुराई से बच नहीं सकी है। भाजपा में भी
कुछ पंजा छाप भाजपाई हैं। ये बड़े पद पर बैठे हैं और केबल जैसा छोटा धंधा
भी कांग्रेसी के साथ पार्टनरशिप में करते हैं। भाजपाई प्रत्याशी को हराकर
कांग्रेस प्रत्याशी को जितवाने का भी काम करते हैं। कुछ लोगों का आपसी
अंहकार और वर्चस्व की लड़ाई पार्टी को चुनाव में नुकसान पहुंचाती है। पता
नहीं यह सब जानकारी नितिन गडकरी तक पहुंचती है या नहीं। वे अभी नए नए आए
हैं लेकिन उन्हें जानना जरुरी है कि वफादारी और वरिष्ठता की आड़ में
भाजपा की नाव में छेद करने का काम कौन करता है? ऐसे लोगों से सतर्क नहीं
रहा गया तो पार्टी कैसे 60 विधानसभा और 11 में से 11 लोकसभा की सीट
जीतेगी?  पिछला विधानसभा का उपचुनाव और स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में
भाजपा ने काबिज सीटों पर हार का मुंह देखा। इसका ईमानदारी से विश्लेषण
नितिन गडकरी करवाएंगे तो दाल में काला कौन है, उन्हें समझ में आने में
कठिनाई नहीं होगी लेकिन एक बात तो नितिन गडकरी पार्टी कार्यकर्ताओं और
नेताओं को समझाने में सफल हो गए कि वे सब कुछ समझते हैं और जो नहीं
समझते, उन्हें भी जल्द ही वे समझा देंगे कि उनसे कुछ छुपा हुआ नहीं है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 05.09.2010
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