यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 6 सितंबर 2010

नितिन गडकरी अपनी छत्तीसगढ़ सरकार और उसके मुखिया डा. रमन सिंह पर गर्व कर सकते हैं

भाजपा के राष्ट्रीय  अध्यक्ष नितिन गडकरी अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार
छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। स्वाभाविक है, उनके स्वागत के लिए भाजपा
कार्यकर्ताओं का उत्साहित होना। पूरी पार्टी उनके स्वागत के लिए अपनी तरफ
से कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती। पोस्टर, बैनर, झंडे तो आजकल आम बात हो
गए हैं। स्वागत सत्कार में लेकिन असली बात इन सबसे परे कार्यकर्ताओं की
भावनाएं होती है और कार्यकर्ताओं की भावनाएं ही नहीं, छत्तीसगढ़ के
नागरिकों की भवनाओं को भी नितिन गडकरी को महसूस करना चाहिए। छत्तीसगढ़
राज्य देन है, अटलबिहारी वाजपेयी की। भाजपा की लोकप्रियता छत्तीसगढ़ में
अटलबिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता का ही समानार्थी शब्द है। अटलबिहारी
वाजपेयी ने छत्तीसगढ़ को सब कुछ दिया। छत्तीसगढ़ राज्य, उच्च न्यायालय
रेलवे का जोन। अपने शासनकाल में छत्तीसगढ़ की सभी मांगे अटलबिहारी
वाजपेयी ने पूरी दरियादिली से पूरी की। अटलबिहारी वाजपेयी ने रायपुर की
चुनावी सभा में छत्तीसगढ़ के मतदाताओं से अपील की थी कि वे 11 में से 11
सीट भाजपा को दें तो वे छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण उनकी सरकार बनने पर
करेंगे लेकिन छत्तीसगढ़ ने 11 में से 8 ही सीट भाजपा को दिया और तब भी
अटलबिहारी वाजपेयी ने छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण किया।
नितिन गडकरी नागपुर के रहने वाले हैं। जो विदर्भ क्षेत्र में आता है।
महाराष्ट से पृथक विदर्भ की मांग बहुत पुरानी है लेकिन अभी तक विदर्भ
राज्य नहीं बन सका। वैसे तो कई राज्यों की मांग  वर्षों से हो रही है
लेकिन छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तरांचल के सिवाय कोई  भी पृथक राज्य नहीं बन
सका। इन राज्यों को बनाया भी तो राजग की अटलबिहारी सरकार ने। झारखंड में
कुछ समय भाजपा की सरकार रही भी तो आज राष्टपति शासन है। उत्तरांचल में
राज्य निर्माण के बाद भाजपा के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और फिर से अब
भाजपा की सरकार है। इस मामले में छत्तीसगढ़ का इतिहास अलग है। जब
छत्तीसगढ़ राज्य बना तब कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला लेकिन पहली
बार जब छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी सरकार बनाने के लिए मतदान का अवसर
मिला तो छत्तीसगढ़ की जनता ने सत्ता भाजपा को सौंपी। ऐसा नहीं कि एक बार
सत्ता सौंपकर छत्तीसगढ़ के लोगों ने दोबारा जब अवसर मिला तो भाजपा के हाथ
से सत्ता छीन ली हो बल्कि दोबारा चुनने का अवसर आया तो फिर से भाजपा को
ही सत्ता सौंपी।

जिसका सीधा और साफ अर्थ तो यही निकला कि जनता भाजपा सरकार से संतुष्ट
है। कभी आदिवासियों एवं दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस का
कब्जा छत्तीसगढ़ में रहा करता था लेकिन अब वह बात नहीं। दोनों वर्गों ने
भाजपा का भरपूर समर्थन किया। बस्तर की 12 में से 11 सीटों पर भाजपा को
समर्थन मिला। सबसे ज्यादा नक्सली समस्या से ग्रस्त होने के बावजूद, इसका
कारण भी स्पष्ट है। छत्तीसगढ़ की डा. रमन सिंह सरकार ने नक्सलियों के
हाल पर बस्तर को नहीं छोड़ा बल्कि नक्सलियों से बस्तर को मुक्त कराने के
लिए अपनी तरफ से अथक प्रयास किया। डा. रमन सिंह के रूप में भाजपा ने
छत्तीसगढ़ को ऐसा मुख्यमंत्री दिया जिसने जनता की समस्याओं से न केवल खुद
को जोड़ा बल्कि छत्तीसगढ़ को समस्याओं से मुक्त कराने के लिए अपनी तरफ से
कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। आज जब बिजली देश के बड़े हिस्से के लिए स्वप्न
की तरह है तब बिजली सुविधा छत्तीसगढ़ के लिए स्वप्न नहीं हकीकत है।
मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने तो घोषणा की है कि 2013 में तक वे हर घर में
बिजली पहुंचा कर रहेंगे।

2 रू. और 1 रू. किलो में चांवल छत्तीसगढ़ के गरीबों तक सुचारू रूप से
पहुंचाकर डा. रमन सिंह ने राष्ट्रीय  स्तर पर वाहवाही प्राप्त की है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को जिस तरह से लागू किया है, उसे समझने के लिए
केंद्र सरकार ही नहीं राज्यों की सरकार भी उत्सुक हैं। सार्वजनिक वितरण
प्रणाली अपने जन्म से ही भ्रष्टïचार की शिकार रही है। लोग आश्चर्य से
देखते हैं कि डा. रमन सिंह आखिर किस तरह से हर माह की 7 तारीख को चांवल
उत्सव मनाते हैं। दूरदराज के इलाकों तक में चांवल का वितरण समय पर सरकार
कर देती है। एक तरह से छत्तीसगढ़ को भूख से मुक्त करा दिया है, डा.
रमनसिंह ने। सबसे आश्चर्य की बात तो यही है कि प्रतिपक्ष की पार्टी
कांग्रेस के प्रवक्ता जनता को कुछ कहते हैं तो जनता उसे मानने के लिए,
सुनने के लिए भी तैयार नहीं है। अब कांग्रेस के पास यही काम रह गया है कि
स्टेडियम भाजपा के कार्यक्रम के लिए न दिया जाए, इसके लिए वे धरना दें।
भाजपा में सब कुछ ठीक ठाक है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। चंद असंतुष्ट
लोग हैं जो अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की लोकप्रियता से
जलते हैं। उनकी सोच स्पष्ट है कि इतने लोकप्रिय आदमी के होते सत्ता
उन्हें नहीं मिल सकती। तब ये ऊपर ऊपर तो पार्टी के लिए वफादारी दिखाते
हैं लेकिन अंदर से पार्टी के लिए गड्ढï खोदते हैं। ये पार्टी के बड़े
पदाधिकारी हैं। रायपुर नगर निगम के चुनाव में ही टिकट वितरण की
जिम्मेदारी इनके पास थी तो इन्होंने जीतने वाले प्रत्याशी का टिकट काटकर
ऐसे लोगों को टिकट थमा दिया जो जीत तो सके नहीं और पार्टी ने नगर निगम की
सत्ता गंवा दी। राजधानी रायपुर जहां कांग्रेस शासन काल में भी भाजपा के
बृजमोहन अग्रवाल का वर्षों से कब्जा रहा, वहां भाजपा को हार का मुख देखना
पड़ा। टिकट वितरण से पैदा असंतोष के बाद जीतने वाले प्रत्याशियों ने
निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। फिर पार्टी को सभापति के चुनाव के
लिए इनके समर्थन की जरूरत महसूस हुई तो इन निर्दलियों के समर्थन से ही
पार्टी ने सभापति का चुनाव जीता। राजधानी रायपुर पर कांग्रेस का कब्जा
कराने वाले भाजपाई नेता को सभी पहचानते हैं लेकिन दिल्ली में उनके रसूख
के कारण कोई मुंह नहीं खोलना चाहता।

ऐसा ही विधानसभा चुनाव के समय भी हुआ। रायपुर की 4 सीटों में से भाजपा ने
3 पर जीत दर्ज की जबकि योग्य प्रत्याशी को टिकट दिया जाता तो चौथी सीट भी
भाजपा के कब्जे में होती। महत्वाकांक्षी होना राजनीति में कोई बुरी बात
नहीं मानी जाती लेकिन भाजपा ऐसी पार्टी है जिसमें पार्टी से बड़ी व्यक्ति
की महत्वाकांक्षा नहीं मानी जाती। छत्तीसगढ़ आज भी भाजपा के साथ खड़ा है
तो यह डा. रमन सिंह के नेतृत्व में पार्टी की बड़ी उपलब्धि है। कांग्रेस
तो इसी उम्मीद में बैठी है कि जनता सरकार से नाराज हो तो उसे वोट देकर
सत्ता सौंपे लेकिन ऐसा कोई अवसर कम से कम डा. रमन सिंह के कारण तो
कांग्रेस को मिलने से रहा। घर के भेदी ही कांग्रेस के प्रयत्न को सफल
बनाने की कोशिश करते हैं। अभी तक तो सफलता नहीं मिली। नितिन गडकरी के पास
दिल्ली तक ऐसी सूचनाएं पहुंचती है या नहीं, यह उनकी ही सोच का विषय है।
नितिन गडकरी छत्तीसगढ़ आ रहे हैं तो उन्हें हर क्षेत्र से वास्तविक
जानकारियां प्राप्त करना चाहिए। छत्तीसगढ़ ने राज्य बनने के पहले जो अपने
राज्य की कल्पना की थी, वह सब साकार हो रहा है। जनता डा. रमन सिंह और
भाजपा से प्रसन्न है, यह कम बड़ी उपलब्धि भाजपा के लिए नहीं है। जबकि यह
सत्य किसी से छुपा हुआ नहीं है कि डा. रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनने और
भाजपा के सत्ता में आने के पहले छत्तीसगढ़ का क्षेत्र कांग्रेस का गढ़
था। छत्तीसगढ़वासियों का मन जिस तरह से अटलबिहारी ने जीता, उसे संभालकर
संजोकर डा. रमन सिंह ने रखा है। जात पात की राजनीति करने वालों के लिए भी
ये सबक है। आदिवासी बहुल राज्य की जनता एक आदिवासी के बदले एक गैर
आदिवासी पर विश्वास व्यक्त करे तो यह भाजपा के लिए धरोहर की तरह है। अजीत
जोगी आदिवासी के नाम पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उन्हें
हटाकर सत्ता डा. रमन सिंह को मिली तो इसी से बहुत कुछ सिद्घ हो जाता है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 02.09.2010
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