प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि वे अवकाश ग्रहण करने की कोई इच्छा
नहीं रखते। 78 वर्ष के होने के बावजूद जब मनमोहन सिंह अवकाश ग्रहण करने
की इच्छा नहीं रखते तो कौन बुजुर्ग अवकाश प्राप्त करने की इच्छा रखेगा?
कोई अवकाश, पद छोड़कर प्राप्त नहीं करना चाहता, लेकिन वक्त अवकाश ग्रहण करा
ही देता है। कल राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहें तो आज ही मनमोहन
सिंह को अवकाश लेना पड़ेगा। जब तक गांधी परिवार के लिए मनमोहन सिंह
सुविधाजनक हैं और परिवार सीधे गद्दी पर नहीं बैठना चाहता तब तक ही मनमोहन
सिंह गद्दी पर बिराजते रह सकते हैं। कांग्रेसी तो चाहते हैं कि राहुल
बाबा प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हों तो उन्हें तुरंत प्रधानमंत्री
बना दिया जाए। मनमोहन सिंह तो चाहते हैं कि राहुल बाबा उनके मंत्रिमंडल
में सम्मिलित हों लेकिन राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हैं।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वे शीघ्र मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करेंगे और
युवा पीढ़ी को अवसर देंगे। वे चाहते हैं कि मंत्रिमंडल के सदस्यों की औसत
आयु कम हो। युवा लोगों को मंत्री तो अवश्य बनाया गया है लेकिन स्वतंत्र
प्रभार न होने के कारण वे वरिष्ठ मंत्रियों के अधीन राज्यमंत्री हैं।
वरिष्ठ मंत्री अपने कनिष्ठ मंत्रियों को कामधाम सौंपते नहीं और सौंपते
भी हैं तो दोयम दर्जे के। मुख्य नीतिगत मामले वे अपने पास ही रखते हैं।
ऐसी स्थिति में युवा मंत्री दर्शनीय हुंडी के समान हो जाते हैं। वे कहने
के लिए मंत्री अवश्य हैं लेकिन मंत्री के रूप में जिस तरह से जनता के बीच
उनका नेतृत्व उभरना चाहिए, वह तो उभरता नहीं। मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी
एवं एंटोनी जैसे बुजुर्ग मंत्रियों के सामने युवा मंत्रियों की सुनने
वाला कौन है? बुजुर्ग मंत्री अवकाश ग्रहण कर लें और राहुल गांधी
प्रधानमंत्री बन जाएं तो मंत्रिमंडल की औसत आयु एकदम युवा हो सकती है।
अभी युवाओं की दृष्टिï राहुल गांधी पर लगी हुई है। वे तैयार हों तभी
उन्हें जिम्मेदारी मिल सकती है।
गांधी परिवार के वफादार अर्जुनसिंह को मंत्री नहीं बनाया गया। जब इतने
सारे बुजुर्ग मंत्री हैं तो अर्जुनसिंह को क्यों छोड़ दिया गया? राजनैतिक
क्षेत्रों में तो यही चर्चा है कि मनमोहन सिंह उन्हें पसंद नहीं करते थे,
इसलिए उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। मनमोहन सिंह को उनसे क्या तकलीफ थी?
क्या इसीलिए कि उन्हें राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने के योग्य बताया
था। जो सच था, वह अर्जुनसिंह ने कहा था। उनके मन में जो भाव थे, वह
उन्होंने प्रगट किया था। यह भाव तो करीब करीब सभी कांग्रेसियों के मन में
है। यह बात दूसरी है कि लोग व्यक्त नहीं करते। अर्जुनसिंह ने छुपाने की
जरूरत महसूस नहीं की। मंत्री तो उन्हें नहीं बनाया गया लेकिन उनसे
राज्यपाल बनने के लिए कहा गया। मतलब साफ था कि सक्रिय राजनीति से अवकाश
ग्रहण कर लो। अर्जुनसिंह का मनमस्तिष्क अभी भी किसी युवा से कम प्रखर
नहीं है। यदि उम्र के कारण अवकाश दिया जाना था तो उनके हमउम्र कैसे
मंत्री पद की शोभा बढ़ाए हुए हैं?
जब लोग नरसिंहराव के गुणगान में लगे थे तब अर्जुनसिंह ने गांधी परिवार के
मुद्दे उठाए थे। राजीव गांधी हत्याकांड का मुद्दा उठाया था। तब लोग जो आज
गांधी परिवार के वफादार बने हुए हैं, नरसिंहराव की सरकार मे सत्ता सुख
भोग रहे थे। नरसिंह राव सोनिया गांधी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे।
आज वे सत्ता सुख गांधी परिवार के कारण भोग रहे हैं और अर्जुनसिंह को
दरकिनार कर दिया गया है। फिर भी सोनिया गांधी का समर्थन करने के लिए
अर्जुनसिंह आए। उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाने के लिए नामांकन पत्र में
हस्ताक्षर किया। भोपाल गैस कांड के विषय में राज्यसभा में अपने वक्तव्य
में राजीव गांधी के हस्तक्षेप से इंकार किया। गांधी परिवार के हर संघर्ष
में वे उनके साथ खड़े रहे। जब इंदिरा जी को कांग्रेस से निकाला गया था तब
भी अर्जुनसिंह इंदिरा जी के साथ ही खड़े थे।
तब मनमोहन सिंह कांग्रेस के संघर्ष के साथी नही थे। वे तो नरसिंहराव के
द्वारा सीधे वित्तमंत्री बनाकर राजनीति में उतारे गए। उन लाखों
कांग्रेसियों के संघर्ष को दरकिनार कर जब सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को
प्रधानमंत्री बनाया तब भी कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी की इच्छा को
शिरोधार्य कर लिया। कही से बगावत का एक स्वर नहीं फूटा। एक तरह से देखा
जाए तो कांग्रेसियों का अपमान ही था, मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री के रूप
में चयन। जो व्यक्ति एक अदद लोकसभा का चुनाव स्वयं नहीं जीत सकता, वह
पार्टी को क्या चुनाव जितवाएगा? आज भी प्रधानमंत्री होने के बावजूद जनता
से मनमोहन सिंह का सीधा कोई संबंध नहीं है। लोग सोनिया गांधी और राहुल
गांधी का चेहरा देखकर उन पर विश्वास कर कांग्रेस को वोट देते हैं लेकिन
अर्जुनसिंह जैसे नेता की उपेक्षा भी हजारों कांग्रेसियों को कहीं न कही
पीड़ा तो देती है।
मनमोहन सिंह कहते हैं कि उनके अवकाश ग्रहण करने का कोई इरादा नहीं है।
उनके अवकाश ग्रहण करने के इरादे से उनके पद पर बने रहने का कोई संबंध
नहीं है। वे अवकाश ग्रहण करें और सोनिया गांधी की तरह दृढ़ इच्छाशक्ति का
इस मामले में प्रदर्शन करें तो वे अवकाश ग्रहण कर सकते हैं लेकिन जब वे
स्वयं कह रहे हैं कि उनका अवकाश ग्रहण करने का इरादा नहीं है तो जिस दिन
गांधी परिवार चाहेगा, उन्हें अवकाश ग्रहण करना पड़ेगा। क्योंकि गांधी
परिवार ने जिस दिन सोच लिया कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नहीं रहना
है, उस दिन मनमोहन सिंह के साथ कोई खड़ा दिखायी नहीं देगा। आज तो गांधी
परिवार इतना शक्तिशाली है ही कि जिसे चाहे उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर
बिठा सकता है। उन्हें रोकने वाला कौन है?
वह तो राहुल गांधी इस प्रयास में हैं कि कांग्रेस को अपने दम पर पूर्ण
बहुमत मिले। इसी के लिए वे दिन रात प्रयत्नशील हैं। वे अच्छी तरह से
भारतीय मानसिकता को समझ लेना चाहते हैं और तब प्रधानमंत्री बनना चाहते
हैं। जिस दिन उन्हें पूर्ण बहुमत मिला तब मनमोहन सिंह अवकाश की इच्छा
रखे या न रखें, उन्हें अवकाश ग्रहण करना पड़ेगा। राहुल गांधी युवक
कांग्रेस, एनएसयूआई को सक्रिय करने में लगे हैं। वे चुनाव करवा रहे हैं।
जिससे लोकप्रिय लोग कांग्रेस में आएं और युवा पीढ़ी में कांग्रेस का
वर्चस्व बढ़े। आज की तारीख में राहुल गांधी युवा पीढ़ी में सबसे लोकप्रिय
राजनीतिज्ञ हैं। अविवाहित होने के कारण युवतियों में तो उनकी लोकप्रियता
किसी भी फिल्म स्टार से भी ज्यादा है। कांग्रेस यदि राहुल गांधी को
प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगेगी तो कांग्रेस दो तिहाई बहुमत की
उम्मीद भले ही न करे लेकिन यह भी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। जिस
दिन राहुल गांधी तैयार प्रधानमंत्री बनने के लिए उस दिन कोई नहीं पूछेगा
कि मनमोहन सिंह जी अवकाश ग्रहण करना चाहते हैं या नहीं।
-विष्णु सिन्हा
08-09-2010