यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

सोनिया गांधी का समर्थक बनने के लिए मोहम्मद अकबर को सूचना देने से परहेज करने वाले कांग्रेस का भला नहीं कर सकते

मोहम्मद अकबर का कद बढ़ गया है, यह बात अब छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों को
समझ में आ गयी है। सोनिया गांधी के प्रस्तावक समर्थक बनने की लिस्ट में
छत्तीसगढ़ के मोहम्मद अकबर का भी नाम था। यह बात दूसरी है कि जिनकी
जिम्मेदारी मोहम्मद अकबर को सूचित करने की थी, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी
का निर्वाह ईमानदारी से नहीं किया। सूचना के अभाव में दिल्ली पहुंचकर
समर्थक बनने से भले ही मोहम्मद अकबर महरूम रह गए लेकिन जो लोग प्रदेश का
अध्यक्ष बनने के लिए अति आतुर हैं, उन्हें समझ में तो आ गया कि मोहम्मद
अकबर भी प्रदेश अध्यक्ष बन सकते हैं। इतनी समझदारी तो कांग्रेसियों में
है ही कि वे हवा किस तरफ बह रही है, इसे समझ सकें। इसीलिए मोहम्मद अकबर
को सूचित करने से परहेज किया गया लेकिन इससे फर्क क्या पड़ता है? आलाकमान
मोहम्मद अकबर को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना चाहेंगी तो उन्हें
रोकने वाला कौन है?

आलाकमान सब कुछ जानता समझता है। लोग कितनी भी अपनी सिफारिशें लगवा लें
लेकिन आलाकमान अपने तजुर्बे से भी जानता है कि किसमें कितना दम है और आज
तक जो लोग दावा कर पद प्राप्त करते रहे, उनके दावे में कितना असर था।
सोनिया गांधी ने जिसे इन नेताओं की सिफारिश पर प्रतिपक्ष का नेता और
पार्टी अध्यक्ष बनाया, वे स्वयं चुनाव नहीं जीत सके। पार्टी के प्रदेश
अध्यक्ष का चुनाव हारना तो पार्टी की सबसे बड़ी हार ही माना जाएगा। यदि
सोनिया गांधी लोकसभा का चुनाव स्वयं नहीं जीत सकती तो फिर वह पार्टी
अध्यक्ष भी नहीं बन सकती थी लेकिन उन्होंने न केवल चुनाव जीता बल्कि पद
के दुरूपयोग का आरोप लगा तो लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर पुन:
चुनाव लड़कर जीता। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ऐसे ही पार्टी के
सर्वोच्च नेता नहीं हैं। वे स्वयं चुनाव जीत सकते हैं और पार्टी को भी
चुनाव जितवा सकते हैं। इसीलिए पार्टी के पास उनका विकल्प नहीं है।
नरसिंहराव को सत्ता कांग्रेस ने राजीव गांधी की हत्या के बाद सौंपा तो था
लेकिन वे चुनाव में पार्टी को सत्ता पर पुन: काबिज नहीं कर सके। तब
राजनीति में आने की न इच्छा रखने के बावजूद सोनिया गांधी को राजनीति में
आना पड़ा। पार्टी की कमान संभालनी पड़ी। कुछ कांग्रेसियों ने ही विरोध भी
किया और पार्टी छोड़कर अपनी पार्टी बना ली लेकिन आज वे भी सत्ता का सुख
सोनिया गांधी के सहारे ही भोग रहे हैं। सत्ता के लिए नकार दी गई कांग्रेस
को फिर से सत्ता के सिंहासन पर बिठाने का कमाल सोनिया गांधी ने ही
दिखाया। एक बार नहीं दो बार और पहली बार से दूसरी बार तो जीत के मामले
में कांग्रेस का ग्राफ 200 सदस्यों का आंकड़ा भी पार कर गया।

प्रधानमंत्री न बनकर उन्होंने सत्ता के लिए राजनीति करने के आरोपों का
भी  करारा जवाब दिया। दुनिया भर में उनकी प्रतिष्ठï बढ़ी। सारे
राजनीतिज्ञों को यह चमत्कार से कम नहीं लगा कि एक व्यक्ति जो राजनीति में
हो और उसे सर्वोच्च पद मिले तब भी वह उस पद को स्वीकार करने से इंकार कर
दे। आज उनकी प्रतिष्ठï इतनी है कि कांग्रेस उनके सिवाय दूसरे का नेतृत्व
स्वीकार करने के विषय में सोच भी नहीं सकती।
उन्होंने कांग्रेसी नेताओं पर पूरा विश्वास किया लेकिन कसौटी पर जैसा
उन्हें खरा उतरना चाहिए था वैसा खरा सबके सब तो नहीं उतरे। उत्तरप्रदेश
और बिहार में तो पार्टी की छवि सुधारने के लिए राहुल गांधी को स्वयं
मैदान में उतरना पड़ा। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की स्थिति सुधरी। लोकसभा
चुनाव में कांग्रेस ने अकल्पनीय प्रदर्शन किया। किसी की कल्पना से परे था
कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश की एक चौथाई से अधिक सीट जीत सकती है लेकिन
कांग्रेस ने जीता। देर सबेर राहुल गांधी और सोनिया गांधी को सभी प्रदेशों
को देखना पड़ेगा। मध्यप्रदेश का ही दिग्विजयसिंह ने ऐसा कबाड़ा किया कि
दो चुनावों से निरंतर भाजपा ही जीत रही है। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के
हाथ से सत्ता गयी तो लौटकर नहीं आयी। जिन अजीत जोगी पर सोनिया गांधी ने
सबसे ज्यादा भरोसा किया था, वह अपने किसी भी आश्वासन पर खरा साबित नहीं
हुए। जिस तरह से दिग्विजयसिंह को मध्यप्रदेश के बाहर की जिम्मेदारी दी गई
उसी तरह से अजीत जोगी को भी छत्तीसगढ़ के बाहर की जिम्मेदारी सौंपना
चाहिए था लेकिन यह संभव हुआ नहीं।

छत्तीसगढ़ तो कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा भारी साबित हुआ। प्रदेश की
सत्ता तो गयी ही, अपने साथ लोकसभा चुनाव में पार्टी का सुपड़ा भी साफ कर
गयी। कभी छत्तीसगढ़ की 11 में से 11 सीट कांग्रेस ही के पास  थी। प्रदेश
अध्यक्ष, प्रतिपक्ष का नेता ही चुनाव नहीं हारे, पूर्व मुख्यमंत्री की
पत्नी भी चुनाव लोकसभा का हार गयी। स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में पार्टी
ने नए ताजे चेहरे को मैदान में उतारा तो उसे सफलता मिली। विधानसभा
उपचुनाव में भी काँग्रेस  को सफलता मिली। जिस सीट पर भाजपा प्रत्याशी ने
22 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी उस चुनाव क्षेत्र में 1 वर्ष में ही
कांग्रेस के प्रत्याशी की जीत तो इसी तरफ इशारा है कि अच्छे प्रत्याशी को
मैदान में उतारा जाए तो कांग्रेस को सफलता मिलती है। पदाकांक्षी, पदलोभी
कांग्रेस के नेताओं के विचारों से परे यदि किसी युवा जात पात के मुद्दे
से हटकर व्यक्ति का चयन प्रदेशाध्यक्ष के लिए किया जाता है तो पार्टी के
सत्ता में आने की संभावना बढ़ सकती है।

सोनिया गांधी कांग्रेस को उसके मूल विचारों के अनुसार संचालित करें।
ब्राह्मण, पिछड़ा, दलित, आदिवासी जैसी बातों पर विचार करने के बदले उस
व्यक्ति को प्रदेशाध्यक्ष बनाएं जो सबको साथ लेकर चल सके तो संभावनाओं की
कमी नहीं है। मोहम्मद अकबर तो अल्पसंख्यक वर्ग से आते हैं। पंडरिया
विधानसभा से उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता। पंडरिया विधानसभा क्षेत्र
में अल्पसंख्यकों की संख्या ऊंगलियों पर गिनी जा सकती है। विधानसभा
क्षेत्र भी उनके लिए नया था। फिर भी वे मतदाताओं को विश्वास दिलाने में
सफल हो गए कि वे ही उनके विधायक बनने की पात्रता रखते हैं। तरह तरह के
गणित समझाकर अपने को पद के योग्य बताने वालों के लिए तो मोहम्मद अकबर एक
सबक हैं। मतदाता का विश्वास जात पात, वर्ग विशेष से हटकर प्रत्याशी की
विश्वसनीयता पर निर्भर करता है। वह विश्वास करता है तो वोट देने में पीछे
नहीं रहता।

जात पात, धर्म संप्रदाय के आंकड़े से देखें तो सोनिया गांधी और राहुल
गांधी की जाति के लोगों का तो वर्चस्व भारत में नहीं है। तब तो उनके
नेतृत्व वाली पार्टी को जनता को अस्वीकार कर देना चाहिए। जब मतदाता
कांग्रेस को वोट देता है और हर तरह के लोग वोट देते हैं तब वह सोनिया
गांधी पर विश्वास करता है। जो लोग वोट नहीं देते वे भी सोनिया  गांधी की
विश्वसनीयता के कारण वोट नहीं देते ऐसा नहीं है बल्कि वोट न देने का कारण
स्थानीय नेतृत्व के प्रति अविश्वसनीयता प्रमुख कारण होता है। कांग्रेस
छत्तीसगढ़ में अपना भला करना चाहती है तो उसे मोहम्मद अकबर की जरूरत है।
ऐसे ही नेता के हाथ में नेतृत्व सौंपा गया तो नई पीढ़ी कांग्रेस की तरफ
आकर्षित होगी। क्योंकि उसे दिखायी देगा कि कांग्रेस में युवा पीढ़ी के
लिए संभावनाएं हैं। वैसे भी युवा पीढ़ी कुंद मस्तिष्क न होकर बहुत खुले
दिमाग वाली है।

- विष्णु सिन्हा
06-09-2010