नक्सली समस्या को सही ढंग से डॉ. रमन सिंह समझते हैं और वे इसका खात्मा
करके ही रहेंगे, यह विश्वास उनकी वाणी से फिर नई दुनिया के एक कार्यक्रम
में व्यक्त हुआ। उन्होंने स्पष्ट रुप से कहा कि 40 वर्ष पूर्व जो मसीहा
बन कर आए थे वे अब लुटेरे बन गए हैं। लुटेरे भी ऐसे वैसे नहीं। माल की ही
लूटपाट नहीं कर रहे हैं बल्कि लोगों की जान से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। यह
बात डॉ. रमन सिंह ने नहीं कही लेकिन असलियत तो यही है। बंदूक की गोली के
बल पर लोगों को डराना धमकाना तो आम बात है और राष्ट्रीय संपत्ति को
नुकसान पहुंचाना ही उनकी क्रांति की परिभाषा है। अब वह पुरानी बात तो रही
नहीं। लोगों को अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि नक्सली उनके खैरख्वाह
नहीं बल्कि दुश्मन हैं। नित्य कहीं न कहीं से खबर आती है कि पुलिस ने दो
चार नक्सलियों को पकड़ा। कहीं पुलिस और नक्सलियों का आमना सामना भी होता
है तो नक्सली भागने के लिए बाध्य हो जाते हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि
आधी लड़ाई जीती जा चुकी है और शेष आधी भी वे जीत कर ही रहेंगे तो वे गलत
नहीं कहते हैं।
डॉ. रमन सिंह सशस्त्र बल और अपनी पुलिस को निरंतर प्रशिक्षण दे रहे हैं।
जिससे नक्सलियों से गुरिल्ला युद्ध में वे सक्षम हों और यह बात नक्सली भी
अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि कृतसंकल्पित डॉ. रमन सिंह को झुकाया नहीं जा
सकता। जबान से भले ही डॉ. रमन सिंह विनम्र हों लेकिन इच्छाशक्ति के मामले
में वे दृढ़ हैं। जिन आक्रमणों से नक्सली डॉ. रमन सिंह को डराना चाहते थे
और सोचते थे कि डॉ. रमन सिंह अपने कदम वापस खींच लेंगे, वह सभी आक्रमण
डॉ. रमन सिंह के संकल्प को और मजबूत कर गए। हर तरफ से तो डॉ. रमन सिंह पर
हमले किए गए। कांग्रेस के अजीत जोगी जैसे नेता तो बार-बार अपनी केंद्र
सरकार से अपील करते दिखायी दिए, हर नक्सली आक्रमण के बाद कि प्रदेश में
राष्ट्रपति शासन लगाया जाए लेकिन डॉ. रमन सिंह अपनी नीतियों से पीछे
नहीं हटे।
विध्वंसकों के विरुद्ध लड़ाई और विकास दोनों एक साथ करने वाले डॉ. रमन
सिंह ने देश को दिखा दिया कि विपरीत परिस्थितियों में भी वे विकास के रथ
को द्रुत गति से चलाने की क्षमता रखते हैं। आज देश देख रहा है कि
सर्वाधिक विकास दर छत्तीसगढ़ के खाते में ही दर्ज है। खबर आती है कि
नक्सली नए क्षेत्रों में फैल रहे हैं। इसका कारण दरअसल यह भी है कि बस्तर
में अपने आपको अब नक्सली असुरक्षित पा रहे हैं। इसलिए वे नए ठिकानों की
तलाश में इधर-उधर भाग रहे हैं। कहते हैं कि जब सियार की मौत आती है तब
जंगल छोड़कर शहर की तरफ भागता है। नक्सलियों की स्थिति भी कुछ इसी तरह की
है। इसलिए वे जहां भी जाते हैं तुरंत खबर लग जाती है कि फलां क्षेत्र में
नक्सली दिखायी पड़े। जिनको दृष्टि दोष है, उन्हें नक्सलियों का फैलाव
दिखायी पड़ता है लेकिन नए क्षेत्र में नक्सलियों का स्वागत नहीं हो रहा
है। दरअसल नक्सलियों की छवि जनता के बीच नायक की न होकर खलनायक की हो गयी
है और जब वे दिखायी देते हैं तो लोग तुरंत पुलिस को खबर देते है। फिर
मीडिया के द्वारा यह समाचार सर्वत्र प्रचारित हो जाता है।
खबर तो बीच में इस तरह की भी आ रही थी कि बस्तर के लोकल नक्सलियों को
बाहर भेजा रहा है। क्योंकि वे असंतुष्ट हो रहे हैं। उन्हें समझ में आ
रहा है कि नक्सली नेता उनका हर तरह का शोषण कर रहे हैं। अपने ही लोगों को
उनसे मरवाया जाता है और आतंक से प्राप्त धन का एक बहुत छोटा सा हिस्सा
उन्हें देकर असली माल तो वे हड़प जाते हैं जो कभी उन्हें क्रांति का
सब्जबाग दिखाया करते थे। आक्रोश बढ़ रहा है कि बाहर के लोग आकर न केवल
उन्हें बरगला रहे हैं बल्कि उनका शोषण भी कर रहे हैं। नक्सलियों के
बाहरी बुद्धिजीवी संपर्क भी जनता के मन में कोई अच्छा भाव पैदा नहीं कर
पा रहे हैं। ममता बेनर्जी के रुप में नक्सलियों को अपना एक समर्थक दिखायी
दे रहा है लेकिन यह बात भी वे अच्छी तरह से समझते हैं कि ममता बेनर्जी का
समर्थन एक सीमा तक ही है और उसको भी ममता का स्वार्थ पश्चिम बंगाल की
सत्ता में वामपंथियों को बेदखल कर स्वयं कब्जा करने तक ही हैं। ममता की
सरकार आने का यह अर्थ तो कदाचित नक्सली न लगाएं कि पश्चिम बंगाल उनके
हिंसक कृत्यों के लिए आश्रय स्थल बन जाएगा।
बिहार में भी 4 पुलिस कर्मियों का अपहरण कर और एक की हत्या कर नक्सलियों
ने देख लिया कि बिहार सरकार ने गिरफ्तार 8 नक्सलियों को नहीं छोड़ा। यह
तो प्रजातांत्रिक सरकार है। सरकार नक्सलियों की तरह कृत्य नहीं कर सकती।
नहीं तो सरकार कहे कि नक्सली आत्म समर्पण करें, नहीं तो गिरफ्तार
नक्सलियों को गोलियों से उड़ा दिया जाएगा तो नक्सली नेताओं को पता चल
जाएगा कि कैसे उनका साथ छोड़ कर नक्सली सिपाही भाग खड़े होते हैं। इतना
भी करने के बदले सरकार नक्सलियों को गिरफ्तार करने के बदले एनकाउंटर करने
लगे तो कितने दिन नक्सली नेता अपने साथियों को अपने साथ रोक पाएंगे। अभी
तक नक्सलियों को सरकारों से जान का खौफ नहीं है। पुलिस गिरफ्तार कर जेल
में डाल देती है और मुकदमा चलता है लेकिन जान तो नहीं जाती। नक्सलियों से
जुड़े किसी भी के पास ऐसा मकसद नहीं है कि वह अपनी जान की बाजी लगाए।
इसके विपरीत नक्सलियों को नक्सलियों से ही डर है कि साथ छोडऩे की बात
करने पर उनकी ही हत्या न कर दी जाए। तथाकथित नक्सली आंदोलन सही शब्दों
में कहें तो संगठित अपराधियों की तरह चल रहा है। जिनका काम है, भय पैदा
करो और अपना उल्लू सीधा करो।
भविष्य में लिखा जाने वाला इतिहास इस बात को अवश्य दर्ज करेगा कि
छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह नाम का शख्स मुख्यमंत्री था जिसने हिंसक
नक्सलियों से छत्तीसगढ़ को मुक्त कराया। गरीबों के हितचिंतक का लबादा
ओढ़े नक्सली ही गरीबों के सबसे बड़े शोषक थे। नक्सली नहीं चाहते थे कि
छत्तीसगढ़ विकसित हो। छत्तीसगढ़ के बड़े हिस्से पर अपने प्रभाव के द्वारा
क्षेत्र को पिछड़ा और पिछड़ा रखना चाहते थे। वे स्कूल की इमारतें तोड़ते
थे। जिससे आदिवासियों के बच्चे पढ़ लिख कर विकास की मुख्यधारा में
सम्मिलित न हो सकें। उन्हें लोगों के घर में जलता बिजली का बल्ब नहीं
सुहाता था और वे विद्युत टावरों को गिरा कर बस्तर को अंधेरे के आगोश में
रखना चाहते थे। वे ट्रकों को, बसों को, मशीनों को जलाया करते थे। जिससे
विकसित यंत्र, क्षेत्र की तरक्की में अहम भूमिका न निभा सकें। वे सड़क
नहीं बनने देना चाहते थे। क्योंकि सड़क बनाने का अर्थ होता था। दूरदराज
के क्षेत्रों का विकसित क्षेत्रों से संपर्क। वे आदिम युगीन क्रूरता का
परिचय देते हैं। निर्दोष निरीह लोगों की गर्दन काट कर हत्या करते थे। सजा
के रुप में लाठियों से पीट-पीट कर हत्या करने में उन्हें हिचक महसूस नहीं
होती थी। स्वतंत्रता के 63 वर्ष बाद जब डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने
छत्तीसगढ़ में तब इस घोर यंत्रणा से आदिवासियों को मुक्ति मिली। क्योंकि
आज जो डॉ. रमन सिंह कर रहे हैं, यह सब कुछ इतिहास में निश्चित रुप से
दर्ज होगा।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 17.09.2010
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