नहीं कि लगे समस्याओं का समाधान हो गया। हिंसा छोड़कर बातचीत करने का
आव्हान किया है लेकिन कौन हिंसा छोड़ें और किससे बातचीत करेंगे। बातचीत
करेंगे भी तो किस विषय में बातचीत करेंगे। सेना के अधिकार कम करेंगे या
सेना को ही वापस बुला लेंगे? इससे समस्या का समाधान होता तो कब का हो गया
होता। अलगाववादी तत्व और आतंकवादी जो खेल, खेल रहे हैं, उसमें सेना की
वापसी का अर्थ तो यही होगा कि राम भरोसे काश्मीर को छोड़ दिया जाए। डर ही
एकमात्र सेना का है और सेना के कारण ही काश्मीर भारत का अविभाज्य अंग बना
हुआ है। जब आतंकवादियों और पृथकतावादियों ने काश्मीरी पंडितों को
काश्मीर में नहीं रहने दिया और अब सिक्खों को धमका रहे हैं तो इसी से
उनकी मानसिकता समझ में आती है। पाकिस्तान और चीन दोनों ही चाहते हैं कि
काश्मीर अशांत क्षेत्र बना रहे। इसी में उन्हें फायदा नजर आता है। जब चीन
अपने नक्शे में काश्मीर को भारत के कब्जे वाला काश्मीर दिखाता है तब उसकी
मंशा स्पष्ट हो जाती है।
तमाम तरह की समस्याओं के बावजूद भारत विकासशील से विकसित राष्ट्र की तरफ
कदम बढ़ा रहा है लेकिन पाकिस्तान की हालत और खासकर आर्थिक हालत पूरी तरह
से चरमरा गयी है। ऋणों के बोझ तले दबे पाकिस्तान के वित्त मंत्री कह रहे
हैं कि उनके पास अपने कर्मचारियों को देने के लिए मात्र 2 माह का ही वेतन
शेष है। 2 करोड़ के करीब आबादी बाढ़ की चपेट में आकर बेघर हो गयी है और
कहा जा रहा है कि 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरी, रोटी रोजगार गंवा दिया है।
साफ दिखायी दे रहा है कि यदि अमेरिका या अन्य देशों ने पाकिस्तान की
आर्थिक मदद नहीं की तो पाकिस्तान दिवालिया अब हुआ कि तब। फौज और आईएसआई
का ही भारी खर्च पाकिस्तान के लिए भारी पड़ रहा है और इसीलिए उम्मीद तो
यही किया जा रहा है कि सरकार को अपदस्थ कर फौज पुन: सत्ता संभाल लेगी
लेकिन इससे समस्या का हल तो होने वाला नहीं। असल में तो अमेरिका ही
एकमात्र सहारा है पाकिस्तान के लिए, उसने हाथ खींच लिया तो पाकिस्तान का
क्या होगा और पाकिस्तानी करोड़ों नागरिकों का क्या होगा, यह समझना कठिन
नहीं है।
किसी का भी पड़ोसी भूखा हो और भोजन मिलने के अवसर न दिखायी दें तो आप भी
सुरक्षित नहीं रह सकते। भूखे व्यक्ति के लिए कायदे कानून का कोई मतलब
नहीं होता। जब भूख मार रही हो तब कानून कायदे का क्या डर ? इतनी जेल में
भी तो जगह नहीं होती कि सबको बंद कर दो समय का भोजन कराया जा सके। भारत
के पड़ोस में पाकिस्तान भूख की समस्या से ग्रसित होगा तो भारत के लिए यह
चिंता जनक स्थिति ही होगी। पाकिस्तान में आयी बाढ़ के समय भले ही
पाकिस्तान भारतीय मदद लेने से नानुकूर कर रहा था लेकिन आज की स्थिति कहीं
ऐसी न बने कि पाकिस्तान के भूखे लोग भारत की तरफ कूच करें। बंगलादेश के
युद्घ के समय करोड़ों शरणार्थियों को ठिकाना देने के लिए भारत बाध्य ही
हुआ था। तब सबसे पहले काश्मीर में ही पाकिस्तान के कब्जे वाले काश्मीर के
लोगों का आगमन बढ़े तब ऐसे लोगों को मानवीयता की ही दृष्टि से रोकना
कठिन होगा।
पाकिस्तान के हालात देखकर काश्मीरियों को समझ में आ जाना चाहिए कि उनके
काश्मीर में जो आज के हालत हैं वे और ज्यादा बिगड़ जाने वाले हैं। जो लोग
पत्थर हाथ में लेकर सशस्त्र बलों पर हमला कर रहे हैं, वे काश्मीरियों का
भला नहीं कर रहे हैं बल्कि उनकी शातिप्रिय जिंदगी में जहर ही घोल रहे
हैं। भारत के साथ रहकर न केवल वे हर मामले में सुरक्षित हैं, बल्कि उनकी
भावी पीढ़ी का भविष्य भी सुरक्षित है। किसी भी मुद्दे को लेकर भड़काने
वाले उनके खैरख्वाह नहीं हैं। बंटवारे के समय पाकिस्तान को लेकर जो
स्वप्न देखे गए थे, वे पूरी तरह से धाराशायी हो गए हैं। वे असलियत को
नहीं समझेंगे तो तकलीफ भी तो आखिर उन्हें ही भोगना पड़ रहा है। उनकी ही
चुनी हुई सरकार है। वे अपनी सरकार से शांतिपूर्वक भी तो मांग कर सकते
हैं, अपनी तकलीफों को दूर करने के लिए सुविधाओं की। भारत सरकार भी उन्हें
हर तरह की सुविधा देने के लिए तैयार है। आज काश्मीर में सरकारी
कर्मचारियों की संख्या जितनी है, उससे आधे से भी काश्मीर का काम चल सकता
है लेकिन फिर भी लोगों को रोटी रोजगार मिले, इसलिए सरकार अनावश्यक
कर्मचारियों का भी बोझ ढो रही है। आतंकवादियों से लडऩे में जो खर्च सरकार
कर रही है, यह खर्च भी बचाकर काश्मीरियों का आर्थिक विकास किया जा सकता
है।
भारत सरकार पिछले दस वर्षों में 1 लाख करोड़ रूपये से भी अधिक काश्मीर पर
खर्च कर चुकी है। श्रीनगर तक रेल लाईन पहुंचाने का काम भी सरकार कर रही
है। पर्यटकों से जो काश्मीरी जनता को लाभ होता था, वह भी तो हिंसा के
कारण रूक गया है। युवाओं की शिक्षा में भी व्यवधान हो रहा है। हिंसक
गतिविधियां पूरी एक पीढ़ी का भविष्य खराब कर सकती है लेकिन नेताओं को
इससे नुकसान नहीं होने वाला। क्योंकि उनके बच्चे तो विदेशों में शिक्षा
प्राप्त कर रहे हैं। यह अटल सत्य है कि काश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है
और पृथकतावादी या आतंकवादी चाहे जो भी कर लें, काश्मीर को भारत से अलग
नहीं कर सकते। पाकिस्तान कितना भी दिवास्वप्न देखे कि वह काश्मीर को भारत
से उसी तरह से अलग कर देगा जिस तरह से पाकिस्तान से बंगलादेश अलग हुआ,
स्वप्न यथार्थ नहीं होने वाला है। बंगलादेश को भारत ने पाकिस्तान से अलग
नहीं किया था बल्कि पाकिस्तानी हुक्मरानों के अत्याचार के कारण बंगलादेश
पाकिस्तान से अलग हुआ था। जब मुजीब रहमान की पार्टी के चुनाव में सफल
होने के बाद पूरे पाकिस्तान की सता उन्हें नहीं सौंपी गयी थी।
वक्त बदला और बहुत कुछ बदल गया। भारत ने निरंतर आर्थिक प्रगति की। जब
सुनामी या बाढ़ के कारण भारत के लोगों को तकलीफें झेलनी पड़ती है तो भारत
को किसी अन्य देश की मदद की आवश्यकता नहीं होती। भारत की क्षमता स्वयं की
इतनी है कि वह अपने नागरिकों को राहत पहुंचा सकता है लेकिन पाकिस्तान की
स्थिति तो ऐसी नहीं है। फिर भी वह भारत से ईमानदारी से मित्रता करने के
बदले भारत से दुश्मनी निभाने का ही भाव रखता है तो हासिल क्या होता है ?
आज अमेरिका हाथ खींच ले तो चीन से वह आर्थिक मदद की भी उम्मीद नहीं कर
सकता। फिर किसी भी देश की कोई तात्कालिक मदद तो हो सकती है लेकिन स्थायी
मदद कौन कर सकता है? कल तक भारत अमेरिका के वैसे संबंध नहीं थे जैसे
पाकिस्तान के अमेरिका के साथ थे लेकिन आज तो भारत के भी अमेरिका से अच्छे
संबंध हैं। परमाणु समझौता अमेरिका ने भारत के साथ किया लेकिन पाकिस्तान
के साथ इंकार कर दिया। दक्षिण एशिया में पश्चिमी देशों को आज भारत ही
दोस्ती के योग्य दिखायी देता है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने तो
पाकिस्तान को आतंकवादियों का आश्रयदाता ही भारत आकर कहा। अमेरिका के
राष्टपति बराक ओबामा भारत की यात्रा पर आ रहे हैं। लगता है भारत
अमेरिका की मित्रता और गहरी होगी। ऐसे में पाकिस्तान के बहकावे में
काश्मीरियों का आना उनके ही हित में नहीं है। यह तो उन लोगों को सोचना
भूल जाना चाहिए कि वे काश्मीर को भारत से अलग कर सकेंगे।
-विष्णु सिन्हा
16.10.2010