यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 20 सितंबर 2010

रजनी त्रिपाठी पिछले चुनाव की तुलना में और अधिक मतों से विजयी हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं

शिवप्रताप सिंह की भाजपा में वापसी हो गयी है। कल मुख्यमंत्री डा. रमन
सिंह ने इसकी घोषणा की। डा. रमन सिंह ने कहा कि पूरे मान सम्मान के साथ
उनकी वापसी हो रही है। शिवप्रताप सिंह जनसंघ के जमाने से पार्टी से जुड़े
रहे हैं और पार्टी ने उन्हें संसदीय बोर्ड सहित प्रदेश का अध्यक्ष भी
बनाया था। पुत्र के निर्दलीय चुनाव लडऩे के कारण उन्हें निलंबन का दंश
झेलना पड़ा लेकिन कल उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे सदा से पार्टी के
साथ रहे हैं और भटगांव चुनाव जीतने में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उनके
पुत्र का निष्कासन पार्टी ने रद्द करने की घोषणा नहीं की है लेकिन वह भी
देर अबेर रद्द तो हो ही जाएगी। भटगांव से रजनी त्रिपाठी की जीत अब
शिवप्रताप सिंह के लिए भी प्रतिष्ठï की बात हो गयी है। शिवप्रताप सिंह
के बिना जब भाजपा भटगांव चुनाव जीत सकती है तब शिवप्रताप सिंह की वापसी
के बाद चुनाव न जीतने का तो प्रश्र ही खड़ा नहीं होना चाहिए।

कल वर्षा के कारण मुख्यमंत्री करीब 4 घंटे देरी से सम्मेलन स्थल पर
पहुंचे लेकिन वर्षा के बावजूद भीड़ का टस से मस न होना इस बात की निशानी
है कि कार्यकर्ताओं में जीत के प्रति पूरा विश्वास है। करीब 10 हजार
कार्यकर्ता उपस्थित थे। कार्यकर्ताओं की जब इतनी बड़ी फौज चुनाव जीतने के
लिए कमर कस कर तैयार है तो कांग्रेसी भले ही भाजपा के प्रत्याशी के हार
की कल्पना करें लेकिन लगता नहीं कि कांग्रेस भाजपा को हरा पाएगी। राज
परिवार का ही एक सदस्य चुनावी मैदान में है और राज परिवार ने क्षेत्र के
लिए ऐसा कुछ नहीं किया है कि जिसे याद कर मतदाता राज परिवार के सदस्य को
चुनाव में विजयी बनाएं। ऐसी स्थिति होती तो चुनाव प्रचार के लिए प्रदेश
भर से विधायकों को इकट्ठा  करने की जहमत नही  उठायी जाती। बड़े बड़े नेताओं
को चुनाव प्रचार के लिए लाने की कोशिश नहीं की जाती। यू. एस. सिंहदेव को
प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस ने पहले ही राजपरिवार के समक्ष आत्मसमर्पण कर
दिया है। किसी जनता के बीच के आदमी को कांग्रेस प्रत्याशी भी बनाती तो
जनता को लगता भी कि उनके बीच से कोई खड़ा हुआ है लेकिन ऐसा न कर कांग्रेस
ने एक तरह से पहले ही मान लिया है कि राज परिवार नहीं जीत सकता तो किसी
अन्य को जितवाने की क्षमता कांग्रेस में नहीं है।

मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट कर दिया है कि
चुनाव उन्हें ही लडऩा और जीतना है। प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से आए नेता
उन्हें सहयोग करने के लिए आए हैं। पिछले 18 माह में जो विकास कार्य स्व.
रविशंकर त्रिपाठी ने प्रारंभ करवाएं, वे तो पूर्ण होंगे ही, पिछले 50
वर्षों में जो विकास के कार्य नहीं हुए, वह भी आगामी साढे 3 वर्ष में किए
जाएंगे। जब मुख्यमंत्री स्वयं यह बात कह रहे हैं तो उस पर अविश्वास का
कोई कारण नहीं है। लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने मतदाताओं से वादा
किया था कि वह 3 रू. किलो में अनाज गरीबों को देगी लेकिन कांग्रेस की
सरकार केंद्र में बनने के बावजूद आज तक तो कांग्रेस यह कर नहीं पायी।
चर्चा तो यहां तक है कि सोनिया गांधी चाहती हैं कि इसे लागू किया जाए
लेकिन सरकार लागू नहीं करना चाहती। क्योंकि सरकार की दृष्टि में इस तरह
की योजनाएं विकास के कार्य में बाधा है। कांग्रेस की सरकार तो अनाज को
सड़ाना पसंद करती है लेकिन उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद गरीबों को
मुफत बांटने के लिए तैयार नहीं हैं। ऊपर से प्रधानमंत्री उच्चतम न्यायालय
को सलाह दे रहे हैं कि वे नीतिगत मामले में हस्तक्षेप न करें।

जब सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह सत्ता के दो अलग अलग केंद्र दिखायी दे
रहे हैं तो फिर जनता कितना कांग्रेस पर विश्वास करे। प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह ने तो वित्त मंत्री नरसिंहराव की सरकार में रहते हुए ही संसद में
स्पष्ट कर दिया था कि चुनाव में जनता से वादा करना अलग बात है और सत्ता
में आने के बाद उसे पूरा करना अलग बात। प्रधानमंत्री को विकास दर की
चिंता है। क्योंकि विकास दर उन्हें अंतर्राष्टरीय प्रतिष्ठï देते हैं।
भारत के करोड़ों गरीबों की आकांक्षाओं को तिलांजली देकर विकास दर की जिसे
चिंता है, उसके विषय में निर्णय तो सोनिया गांधी को करना चाहिए। क्योंकि
उन्हीं पर विश्वास कर जनता ने कांग्रेस को वोट दिया था। सरकार जनता की
आकांक्षा की कसौटी पर सही साबित नहीं हुई तो जनता को सरकार से मुंह फेरते
वक्त नहीं लगता। सरकार को बनाना और उसे सत्ताच्युत करना जनता अच्छी तरह
से जानती है। यह तो सोनिया गांधी के लिए सोच का विषय है कि जो व्यक्ति
जनता से जनादेश प्राप्त करने में ही हिचकता है, वह कितना जनता का हित कर
सकेगा।

छत्तीसगढ़ की जनता कांग्रेस  के साथ नहीं है, यह उसने दो बार सिद्घ निरंतर
किया है। केंद्र सरकार और कांग्रेस की उपेक्षा का शिकार भी छत्तीसगढ़
वर्षों रहा है। कभी छत्तीसगढ़ की जनता आंख मूंदकर कांग्रेस का समर्थन
करती थी। बदले में उसे पिछड़ेपन के तो और कुछ नहीं मिला। पहली बार विकास
का स्वाद छत्तीसगढ़ ने भाजपा के शासनकाल में चखा है। जनता को 2 रू. और 1
रू. किलो चांवल खिलाकर भी विकास दर छत्तीसगढ़ की देश में सबसे ज्यादा है।
यह तब है जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार है और वह हर तरह का प्रयास
करती है कि छत्तीसगढ़ की विकास योजनाओं पर अड़ंगा लगाया जाए। कांग्रेस ने
कभी राजाओं का प्रीविपर्स बंद कर गरीबों की हितैषी पार्टी की छवि बनायी
थी लेकिन आज जब पार्टी का टिकट देने का मामला सामने होता है तो जीत की
लालसा में टिकट राज परिवार के सदस्य को ही थमायी जाती है। आज भी कांग्रेस
राज परिवार के ही भरोसे सत्ता की आसंदी पर बैठना चाहती है।

भाजपा को सांप्रदायिक कहकर तो छत्तीसगढ़ में वोट बटोरे नहीं जा सकते।
क्योंकि डा. रमन सिंह किसी तरह के भेदभाव की बात नहीं करते बल्कि विकास
की और सिर्फ विकास की बात करते हैं। उन्होंने पुलिस अधिकारियों की बैठक
लेकर 24 तारीख को राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद मामले में आने वाले
फैसले के परिपे्रक्ष्य में स्पष्ट निर्देश दे दिया है कि किसी भी  तरह
से अशांति फैलाने वालों से सख्ती से निपटा जाए। कांग्रेस का आदिवासी
कार्ड भी छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से फेल हो चुका। आदिवासियों को विश्वास
डा. रमन सिंह पर है। भटगांव के मतदाता भी अच्छी तरह से जानते हैं कि
विकास की गंगा जो क्षेत्र में डा. रमन सिंह के कारण बह रही है, उसमें
विराम लगाने का काम होगा कांग्रेस प्रत्याशी को विजयी बनाने से। कौन अपने
हाथ से अपने पैर में कुल्हाड़ी मारना पसंद करेगा ?

अभी 3 वर्ष से अधिक समय आम चुनाव के लिए बचा हुआ है। भटगांव की जीत हार
से सरकार के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता। सरकार तो भाजपा और डा. रमन
सिंह की ही रहेगी। तब एक मतदाता को यही अक्लमंदी लगे कि भाजपा के
प्रत्याशी को विजयी बनाया जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं बल्कि पिछली
बार की तुलना में भाजपा की रजनी त्रिपाठी और अधिक मतों से जीत सकती है।
कांग्रेस इसीलिए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति चुनाव परिणाम आने के बाद
करना चाहती है। जिससे कोई गिला शिकवा न रहे कि उन्हें पद पर पुन.
प्रतिष्ठित क्यों नहीं किया गया ?

विष्णु सिन्हा
19-09-2010